अपनी मौत पर रो रही है नदी

विश्व नदी दिवस, 27 सितम्बर 2015 पर विशेष


रायपुर/खारून नदी के किनारे सात मीटर के एक टीले के प्रारम्भिक सर्वेक्षण में ही पुरातत्व शास्त्रियों को चौंकाने वाले सबूत मिले हैं।

दो हजार साल पुराने कुषाण राजाओं के तांबे से बने दो गोल सिक्के और सातवाहन राजा के शासनकाल का चौकोन सिक्का मिला है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर को पहचान देने वाली इस नदी के किनारे ग्राम जमराव में दो से ढाई हजार साल पुरानी एक और बसाहट मिली है। यह गाँव पाटन तहसील में आता है।

जिस तरह के मिट्टी के बर्तन, पासे और दूसरी चीजें यहाँ मिलीं हैं, उसे देखते हुए जमराव के तरीघाट की तरह बड़ी बसाहट मिलने की उम्मीद है। नतीजों से उत्साहित राज्य पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग के डायरेक्टर राकेश चतुर्वेदी अगले सीजन में यहाँ खुदाई या उत्खनन की अनुमति लेने की तैयारी में हैं।

मल्हार, तरीघाट और डमरू के बाद जमराव ऐसी चौथी साइट है, जिसका इतिहास दो से ढाई हजार साल पुराना मिल रहा है। करीब दो साल पहले विभाग ने खारून नदी के तट पर ही तरीघाट साइट की खोज की थी। वहाँ की प्रारम्भिक खुदाई में छोटे शहर जैसा स्वरूप निकलकर सामने आया है।

पुरातत्व विभाग के डॉ. प्रताप चन्द्र पारख को दो साल पहले जमराव गाँव के पास सर्वे में मिट्टी को पकाकर बनाए गए बर्तनों के टुकड़े मिले थे। इन टुकड़ों की जाँच के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने यहाँ सर्वेक्षण की अनुमति डॉ. पारख को दी। पारख और डॉ. अतुल कुमार प्रधान ने जमराव में टीले का सर्वेक्षण किया, तो इसमें चौंकाने वाले सबूत मिले।

दो से ढाई हजार साल पुरानी जिन चीजों के लिये तरीघाट में कई फीट नीचे तक खुदाई करनी पड़ी, वह यहाँ सतह पर ही मिल रही हैं। कुछ पुरा पाषाणिक औजार भी साइट से मिले हैं। सबसे खास चीज है काली चिकनी मिट्टी से बने बर्तन, जो ढाई हजार साल पुरानी सभ्यता की ख़ासियत माने जाते हैं। जमराव से लगे उफरा गाँव में भी पुरा शास्त्रियों को मिट्टी से तैयार पात्र भी मिले हैं, जिनके बारे में दावा किया जा रहा है कि वह जमराव या उससे भी ज्यादा पहले के काल के हैं।

खारून नदी की धारा की वजह से जमराव के टीले को काफी नुकसान हुआ है। उसमें दबी प्राचीन इतिहास से सम्बन्धित कुछ चीजें बह जाने का अनुमान है। इसके बावजूद काफी सारा हिस्सा अभी भी सलामत है।

प्रारम्भिक सर्वेक्षण में उस समय के लोगों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले गहनों के हिस्से, हाथीदाँत से तैयार पासों के अलावा 50 से ज्यादा पत्थर के सिलबट्टे मिले हैं। यहाँ मिली टेराकोटा की देवी प्रतिमा का भी अध्ययन किया जा रहा है। प्राचीन बसाहट की संरचना भी दिख रही है। डॉ. प्रताप चंद्र पारख का दावा है कि खुदाई के बाद जमराव और उफरा राज्य के इतिहास में कई नए अध्याय जोड़ देंगे।

धीरे-धीरे मर रही है नदी


दुर्ग जिले के संजारी से निकलकर रायपुर जिले के एक बड़े हिस्से में खारून की दुर्दशा हो रही है। साल-दर-साल खारून पर संकट गहराता जा रहा है। यह नदी आज कचरे के मैदान की रूप में परिवर्तित होते जा रही है। नदी के दोनों किनारे जितनी दूरी आप तय करते जाएँगे, आपको कचरा और गन्दगी ही नजर आएगी। गर्मी के दिनों में खारून की यह दुर्दशा वाली भयानक तस्वीर हम सबके सामने पूरी तरह उभरकर सामने आती हैं।

इस नदी को हम कूड़ा-करकट से पाटते जा रहे हैं। शासन ने एनीकट का निर्माण कराया और खारून की धारा को रोक दिया। एनीकट के निचले हिस्से में नदी का बहाव ठहर गया।

गर्मी में लगता है जैसे नदी सुखकर मानो नाले में तब्दील हो गई हो। खारून में जिस तरीके से सौंदर्यीकरण का काम चल रहा है, वह खारून सँवारने का काम कम, मारने का काम अधिक कर रहा है, क्योंकि खारून के लिये जो सबसे जरूरी काम था (पानी के प्रवाह को राजधानी के भीतर बनाए रखने का) उसे वरीयता न देकर, खारून को संकरा करने का, दोनों किनारों से पाटने का और जबरदस्ती अनुचित स्थान पर एनीकट निर्माण करने का काम जारी है।

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Post By: RuralWater
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