अपनी गंगा को बचाइए

नामामि गंगे परियोजना शुरू करके गंगा के शुद्धीकरण का मोदी सरकार ने संकल्प लिया है। गंगा और यमुना कोई साधारण नदियां नहीं हैं। सदियों से यह हिंदुओं की आस्था का केंद्र रही है। आज इन नदियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।

पिछले 56 वर्षों में गंगा के पानी में 20 फीसदी की कमी आई है। आगामी दशकों में इस कमी के बढ़ने की पूरी संभावना है। यही हाल रहा तो अगले 50 सालों में गंगा नदी सूख जाएगी। यह निष्कर्ष नदियों के आकार-प्रकार पर शोध करने वाले विशेषज्ञों के एक दल ने निकाला है।

इस प्रमुख नदी की 27 धाराओं में से अब तक 11 धाराएं विलुप्त हो चुकी हैं और 11 धाराओं में जलस्तर में तेजी से कमी आ रही है। पर्यावरण की दृष्टि से यह स्थिति भयावह है। इसका कारण गंगोत्री ग्लेशियर का तेजी से पिघलना बताया गया है।

जल को जीवन का वायु के बाद दूसरा सबसे बड़ा आधार माना गया है। जल जीवन का पर्याय है अत: समस्त जीवन-धारा को प्रतीकात्मक रूप से गंगा-प्रवाह कहा जाता है। इसकी महिमा फाह्यान, ह्वेनसांग, इत्सिंग आदि विदेशियों ने और रसखान, रहीम, ताज, मीर आदि मुसलमानों ने भी गाई है।गंगा के यदि हम धार्मिक महत्व को छोड़ दें, तो भी गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक इसके किनारे बसी हुई 30 करोड़ से अधिक आबादी और तमाम जीव-जंतुओं, वनस्पतियों के जीवन का मूल आधार गंगा ही हैं। गंगा के बिना गंगा की घाटी में जीवन संभव नहीं है, इसलिए इसकी रक्षा, इसे निर्मल बनाए रखने की चिंता और प्रयास जो नहीं करता है, वह अपने साथ ही आत्मघात कर रहा है।

वेदों से लेकर वेदव्यास तक, वाल्मीकि से लेकर आधुनिक कवियों और साहित्यकारों ने इसका गुणगान किया है। इसका भौगोलिक, पौराणिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और साथ-साथ अध्यात्मिक महत्व है। गंगा को शास्त्रों ने एक स्थावर, सुगम नित्य तीर्थ कहा है। वेदों और पुराणों में गंगा को बारम्बार तीर्थमयी कहा गया है। महाभारत में कहा गया है कि गंगा अपना नाम उच्चारण करने वाले के पापों का नाश करती है, दर्शन करने वाले का कल्याण करती है तथा स्नान-पान करने वाले की सात पीढ़ियों तक पवित्र करती हैं। यह वारि-प्रवाह आकाश से पृथ्वी पर यों ही नहीं आया। इसके लिए भगीरथ ने बहुत तप किया था।

भगीरथ की जिस गंगा में कभी निर्मल जल की धारा बहती थी, आज वहां सड़ांध और दुर्गंध के भभके उठते रहते हैं। कानपुर में तो इस नदी ने एक तरह से नाले का रूप ले लिया है और वह अपने स्थान से भी खिसक रही है। अपनी नदियों को प्रदूषण से बचाना हमारा कर्तव्य है। इससे जुड़ी योजनाओं को जब तक पूरी इच्छा शक्ति से लागू नहीं किया जाएगा और लोगों को जागरूक नहीं किया जाएगा, तब तक हम गंगा-यमुना जैसी अपनी जीवनदायी नदियों को नहीं बचा सकते हैं।

गंगाजल में कीटाणुओं के उन्मूलन की क्षमता सबसे अधिक है। शरीर के विभिन्न अंगों के रोग इसके पवित्र जल से दूर हो जाते हैं। अनुसंधानों से भी यह पता चला है कि गंगा के जल में हैजे के कीटाणु तीन-चार घंटे में स्वतः मर जाते हैं। इसके जल की पवित्रता अक्षुण्ण बनी रहे, शास्त्रों ने कहा है कि इसके तट पर मानव-वास नहीं होना चाहिए।गंगोत्री के गोमुख से निकलने के बाद गंगा नदी ने 27 धाराओं (उपनदियों) को जन्म दिया जो विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग नामों से जानी जाती है। गंगा की धाराओं में 11 धाराएं- रुद्रगंगा, खांडव गंगा, नवग्राम गंगा, शीर्ष गंगा, कोट गंगा, हेमवंती गंगा, शुद्ध तरंगणी गंगा, धेनु गंगा, सोम गंगा और दुग्ध गंगा विलुप्त हो चुकी हैं। गणेश गंगा, गरुण गंगा और हेम गंगा की धारा सूख गई है।

गंगा कोई साधारण नदी नहीं है, वह इस धरती पर सतत् प्रवाहमयी चैतन्य की धारा है। गंगा की उत्पत्ति के अनुसार इसके कई नाम हैं। यह विष्णु के चरण से निकली हैं इसलिए विष्णुपदी, भगीरथ की तपस्या से उतरी हैं इसलिए भागीरथी, जाह्नू की कृपा से मुक्त हुई इसलिए जाह्न्वी और पृथ्वी पर उतरी है इसलिए गंगा कहलाती हैं। वह इस पृथ्वी पर पत्नी तथा माता के रूप में प्रसिद्ध हैं। वह शान्तनु की पत्नी और भीष्म की माता भी हैं।

पुराणों में गंगा को लोकमाता कहा गया है। भगवत्स्वरूपिणी गंगा का पूजन, कीर्तन और चिंतन करना और भगवान् का पूजन करना एक समान माना गया है। नाना प्रकार की औषधियों एवं स्वास्थ्यवर्धक अमृतोपम गुणों से संबंधित इसके जल में स्नान कर प्रसन्नता, तृप्ति, शक्तिवर्धन और स्वास्थ्य के तत्वों को अनायास ही जीव प्राप्त करता रहता है।

गंगा में अवगाहन से अंत:करण भी प्रफुल्लित हो जाता है और उसमें देवी चेतना का संचार होने लगता है। कोटि-कोटि भारतीयों के लिए गंगा माता है, धरित्री के समान पोषक और अपकर्मों से ऊपर उठाने वाली, धर्म की भांति तत्वधारक तथा परमेश्वर की भांति कैवल्य एवं मोक्ष प्रदाता है।

वास्तव में विश्व की विभिन्न रूप-रचनाओं में जो सारस्वत एवं सर्वनिष्ठ सत्ता निवास करती है, उसी एक की गति चेतना को गंगा कहा जाता है। जगत्प्रवाहे बहुरूपभिन्न यदेकरूपं भवतीह गंगा। भारतीयों के हृदय में गंगा के प्रति इतनी श्रद्धा है कि वे सभी नदियों में गंगा का ही दर्शन करते हैं जैसे तुलसी की घोषणा है कि जगत् के सभी नर-नारी सियाराम मय हैं वैसे ही मरकंडेय पुराण का कहना है कि “सवा गंगा: समुद्रगा:” अर्थात समुद्र से मिलने वाली सारी नदियां गंगा का ही रूपान्तर हैं। वैसे भी जल को जीवन का वायु के बाद दूसरा सबसे बड़ा आधार माना गया है। जल जीवन का पर्याय है अत: समस्त जीवन-धारा को प्रतीकात्मक रूप से गंगा-प्रवाह कहा जाता है।

दुनिया की किसी नदी ने गंगा की भांति न तो मानवता को प्रभावित किया है और न भौतिक सभ्यता तथा सामाजिक नैतिकता पर इतना प्रभाव डाला है। जितने व्यक्तियों और जितने क्षेत्रों को गंगा के जल से लाभ मिलता है, उतना संसार की किसी और नदी से नहीं पहुंचता है। यह वस्तुत: भारतीय संस्कृति का मेरूदंड बन गई है। गंगा के प्रवाह के चढ़ाव-उतार ने अनेक साम्राज्यों के चढ़ाव-उतार को देखा है। हस्तिनापुर, कान्यकुब्ज, प्रतिष्ठान, पाटलिपुत्र, काशी, चम्पा आदि इस तट पर बसे थे।

भारत के जल व्यापार और नौ-शक्ति का प्रारंभ इसी की धाराओं से हुआ था। लगभग चार लाख वर्गमील की भूमि इसके पानी से सींची और उर्वर बनाई जाती है। भारत की एक तिहाई आबादी इसी के तट पर बसती है। इसकी महिमा फाह्यान, ह्वेनसांग, इत्सिंग आदि विदेशियों ने और रसखान, रहीम, ताज, मीर आदि मुसलमानों ने भी गाई है। इन सारी बातों को छोड़ दें तो भी इसके अमृत के समान जल के कारण यह नदी भारत की जीवनदात्री है।

वैज्ञानिक अनुसंधानों से भी यह सिद्ध हो गया है कि दुनिया की नदियों में गंगा ही सबसे पवित्रतम नदी है। इसके जल में कीटाणुओं के उन्मूलन की क्षमता सबसे अधिक है। शरीर के विभिन्न अंगों के रोग इसके पवित्र जल से दूर हो जाते हैं। शुद्ध गंगाजल इस धरती पर एक दुर्लभ द्रव्य है।

कुछ वर्ष पूर्व युनेस्को के एक वैज्ञानिक दल ने हरिद्वार के निकट गंगा के पानी के अध्ययन के पश्चात कहा था कि जिस स्थान में पानी की धारा में मुर्दे, हड्डियां आदि दूषित वस्तुएं बह रही थीं, वहीं कुछ फुट नीचे का जल पूर्ण शुद्ध था। अनुसंधानों से भी यह पता चला है कि गंगा के जल में हैजे के कीटाणु तीन-चार घंटे में स्वतः मर जाते हैं।

इसके जल की पवित्रता अक्षुण्ण बनी रहे, इसीलिए शास्त्रों ने कहा है कि इसके तट पर मानव-वास नहीं होना चाहिए। गंगा के तट से सात किलोमीटर की सीमा के भीतर रहने वाले को गंगा के जल और वायु से विशेष लाभ पहुंचता है। पद्म पुराण के अनुसार गंगा तट के मल-मूत्र-थूक आदि से दूषित करने वाला व्यक्ति पातकी होता है। अपनी नदियों को साफ-सुथरा रखने का कर्तव्य हर व्यक्ति का होना ही चाहिए, क्योंकि हवा के बाद पानी ही हमारे जीवन का सबसे ज्यादा जरूरी है।

भारत में विकसित देशों ने अपने औद्योगिक अपशिष्ट को बेचने की जो प्रक्रिया पिछले कई वर्षों से अपना रखी थी उस पर भारत के उच्चतम न्यायालय ने जनहित में फैसला देते हुए 1997 में पूरी तरह रोक लगा दी थी, लेकिन इसके बावजूद पता नहीं, किन अज्ञात संधियों और कूटनयिक समझौतों के अंतर्गत यह अत्यंत विषैला कचरा लगातार अलग-अलग माध्यमों से भारत में निरंतर आता रहा है। उच्चतम न्यायालय की रोक के बावजूद यह सिलसिला जारी है।वैश्वीकरण की नीतियों को लागू किए जाने के बाद से भारत दुनिया के विकसित देशों का कूड़ाघर बनता जा रहा है। एक तरफ बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपना कचरा यहां की नदियों में बहा रही हैं तो दूसरी तरफ भारत में विकसित देशों ने अपने औद्योगिक अपशिष्ट को बेचने की जो प्रक्रिया पिछले कई वर्षों से अपना रखी थी उस पर भारत के उच्चतम न्यायालय ने जनहित में फैसला देते हुए 1997 में पूरी तरह रोक लगा दी थी, लेकिन इसके बावजूद पता नहीं, किन अज्ञात संधियों और कूटनयिक समझौतों के अंतर्गत यह अत्यंत विषैला कचरा लगातार अलग-अलग माध्यमों से भारत में निरंतर आता रहा है। उच्चतम न्यायालय की रोक के बावजूद यह सिलसिला जारी है।

भारी मात्रा में शीशे के अलावा परमाणु रिएक्टरों तथा परमाणु बमों में नियंत्रक तत्व के रूप में प्रयोग की जाने वाली कैड्मियम धातु भी गंगाजल में बड़ी मात्रा में पाई जा रही है। इसकी सफाई के लिए चलाई जा रही योजनाओं का अभी तक कोई नतीजा सामने नहीं आया है। इस चुनौती का मुकाबला किए बिना हमारा उद्धार गंगा नहीं कर सकती हैं।

(लेखक हिंदी विश्वकोष के सहायक संपादक रह चुके हैं। ईमेलः nirankarsi@gmail.com)
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Post By: pankajbagwan
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