राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण (एनडीएमए) मुख्यालय पर भारी भीड़ जमा थी और इसके चलते इलाके के आस-पास बुरी तरह ट्रैफिक जाम हो गया था। इस भीड़ में ज्यादातर संख्या लिखित परीक्षा में सफल होने वाले उन प्रार्थियों की थी जो साक्षात्कार के लिये बुलाये गये थे। इसके अलावा भीड़ का एक बड़ा हिस्सा उन उत्सुक लोगों का भी था जो केवल यह जानने के लिये खड़े थे कि यह भीड़ आखिर क्यों लगी है। कुछ लोग सेल्फी लेकर फेसबुक-स्टेटस अपडेट कर रहे थे।
किसी उच्च पद के लिये प्रार्थियों का साक्षात्कार चल रहा था। किसी फायरिंग स्क्वॉड की तरह कुछ लोग एक बड़ी-सी टेबल के एक ओर पोजीशन लेकर बैठे थे। सामने रखी खाली कुर्सी पर एक के बाद एक कैंडिडेट आता है और उस पर ‘फायरिंग स्क्वाड’ सवालों की गोलियों की बौछार होती है और वह बेचारा लूलुहान होकर गिरता पड़ता कमरे से बाहर निकल जाता है।
‘नेक्स्ट!’ एक दहाड़ आती।
उस दहाड़ में एक जादू था। इस आवाज के साथ ही कमरे का दरवाजा खुलता और कमरे के बाहर बैठा चपरासी अगले कैंडिडेट को अन्दर धकेल देता है। केरल में आई बाढ़ को देखते हुए सवाल इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द हो रहे थे।
‘नाम?’
‘जी...’ बात खत्म नहीं हो पाती इससे पहले ही पहली गोली (या सवाल) दग जाता है-
“हाँ तो मिस्टर ‘जी’ केरल में आई बाढ़ के बारे में आपकी क्या राय है? आप कैसे इसका प्रबन्धन करना चाहेंगे?”
“जी इसकी तैयारी तो हमें बरसों पहले ही शुरू कर देनी चाहिए थी” कैंडीडेट मिमियाता है।
‘कैसे’ टेबिल के एक कोने से दूसरी दहाड़ आती है।
“सर, मैं पहले अन्धाधुन्ध शहरीकरण को रोकूँगा। जहाँ-तहाँ हो रहे अवैध मकानों के निर्माण को रोकूँगा...”
“मिस्टर ‘जी’ मान लीजिए कि आपकी बात कोई नहीं सुनता… भूमि माफिया, नेता और बिल्डर तो बहुत ताकतवर हैं, आपको तो पता होना चाहिए!”
“तब मैं पेड़ों की कटाई पर प्रतिबन्ध लगाऊँगा जिससे अगर कल को भारी बारिश हो तो भू-स्खलन को रोका जा सके और नुकसान कम-से-कम हो...”
“मिस्टर ‘जी’ मान लीजिए कि वहाँ आपकी बात कोई नहीं मानता। टिम्बर माफिया को इतने हल्के में मत लीजिए।”
“तब मैं शहर की जल-निकास प्रणाली को पुख्ता बनाने पर जोर दूँगा जिससे बारिश का पानी जमा न हो और जल्दी से जल्दी निकल जाए...”
“मिस्टर ‘जी’ मान लीजिए कि नगर पालिकाएँ भी आपकी बात नहीं मानतीं!” दहाड़ आती है।
“हमारे सवाल का जवाब दीजिए मिस्टर, आप चुपचाप बैठकर क्या सोच रहे हैं” ठीक सामने बैठा शख्स दहाड़ता है।
“तब में भगेलू को बुला लाऊँगा...” कैंडिडेट कहता है।
‘व्हाट!’ टेबिल के दूसरी ओर बैठे सभी चीख पड़ते हैं “यह भगेलू कौन है? क्या वह कोई फॉरेन रिटर्न डिजास्टर मैनेजमेंट एक्सपर्ट है?” कोई एक पूछता है।
“नहीं सर भगेलू मेरा छोटा भाई है, जो गाँव में रहता है...”
“आपका छोटा भाई भगेलू यहाँ क्या करेगा?”
“हम भगेलू को बुलाएँगे और आराम से बैठकर अगली बारिश का इन्तजार करेंगे और उसको कहेंगे कि देखो भगेलू जब किसी देश का नागरिक, प्रशासन और संस्थान हद दर्जे की गैर जिम्मेदारी पर उतारू हो जाते हैं तो कैसी विपदा वाली बाढ़ आती है।”
कमरे में सन्नाटा छा जाता है...
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