जीआईएस आपदा की तैयारियों की एडवांस तकनीक है, जिसके माध्यम से हम आने वाली आपदा से निपटने के लिये तैयार हो सकते हैं। जीआईएस के माध्यम से उत्तराखण्ड के दूर-दराज के इलाकों की सटीक जानकारी लेकर अन्य विभागों के साथ सामंजस्य स्थापित कर आने वाली आपदा से होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं। देहरादून। आपदा के समय विभागों द्वारा विकसित किये गए रिसोर्स डाटा का बेहतर उपयोग कर एक स्टेट डाटा पॉलिसी बनाए जाने और समय-समय पर विभागों का फीडबैक प्राप्त कर भविष्य के लिये एक स्पष्ट रोड मैप तैयार किये जाने के मकसद से राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण की अगुआई में भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) का विकास और आपदा प्रबन्धन में इसके प्रयोग और उत्तराखण्ड में आपदा जोखिम मूल्यांकन विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन एक स्थानीय होटल में किया गया।
आपदा प्रबन्धन विभाग के सचिव अमित सिंह नेगी ने राज्य की प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता पर गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए सभी विभागों, संस्थाओं और संगठनों के वैज्ञानिकों को एक मंच पर आकर आपदा के प्रबन्धन के लिये एक सशक्त तंत्र बनाए जाने की पुरजोर वकालत की।
जीआईएस आपदा की तैयारियों की एडवांस तकनीक है, जिसके माध्यम से हम आने वाली आपदा से निपटने के लिये तैयार है सकते हैं। जीआईएस के माध्यम से उत्तराखण्ड के दूर-दराज के इलाकों की सटीक जानकारी लेकर अन्य विभागों के साथ सामंजस्य स्थापित कर आने वाली आपदा से होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं।
सचिव अमित नेगी ने बताया कि राज्य आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण ने जीआईएस की उपयोगिता को समझा है और नियोजन विभाग की सहायता से राज्य के सभी जनपदों में जीआईएस प्रकोष्ठों की स्थापना को प्राथमिकता दिये जाने का निर्णय लिया है। वर्तमान तक पाँच जनपदों अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, ऊधमसिंह नगर व टिहरी में जीआईएस प्रकोष्ठों का गठन किया जा चुका है जबकि शेष जनपदों में इस सम्बन्ध में कार्यवाही की जा रही है।
कार्यशाला में कुमाऊँ विश्वविद्यालय अल्मोड़ा परिसर के सेंटर फॉर एक्सीलेंस फॉर एनआरडीएमएस, भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष जेएस रावत ने सुशासन में जीआईएस की उपयोगिता विषय पर विस्तृत प्रस्तुतीकरण दिया।
प्रो. रावत ने बताया कि पूर्व में आपदा को कम करने के लिये कई नवीनतम तकनीकों का विकास हुआ है। जिसमें भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) एक महत्त्वपूर्ण टूल है। कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं जहाँ वृहद रूप में जीआईएस का प्रयोग डिसिजन मेकिंग के लिये किया जा रहा है, जिनमें लैंड यूज प्लानिग, अर्बन डेवलपमेंट और रिसोर्स मैपिंग प्रमुख हैं।
प्रो. रावत द्वारा जनपदवार विभागों के संसाधनों को जीआईएस फॉर्मेट में तैयार की गई सूची भी प्रस्तुत की गई। उन्होंने आपदा प्रबन्धन में जीआईएस के उपयोग से संसाधनों को एक प्लेटफॉर्म पर एकत्रित कर इनके प्रभावी प्रयोग पर बल दिया। प्रो. रावत ने बताया कि विज्ञान एवं तकनीकी विभाग के नोटिफिकेशन द्वारा जीआईएस डाटा के समुचित उपयोग एवं अन्य व्यवस्थाओं के सम्बन्ध में उत्तराखण्ड स्टेट स्टेरिंग कमेटी और उत्तराखण्ड स्टेट एक्जीक्यूटिव कमेटी का गठन किया गया है। कार्यशाला में जनपदों से आये आपदा प्रबन्धन अधिकारियों द्वारा भी डिजिटल इंफार्मेशन नीड असेसमेंट पर अपने-अपने प्रस्तुतीकरण किये गए।
कार्यशाला में उपस्थित विभिन्न विभागों के प्रतिनिधियों से जीआईएस सम्बन्धित कार्यों को राज्य स्तरीय प्लेटफॉर्म पर लाये जाने के लिये सुझाव माँगे गए। कार्यशाला में वन विभाग, ग्राम्य विकास विभाग, चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, राज्य मौसम केन्द्र, सिंचाई विभाग, लोक निर्माण विभाग, पेयजल संसाधन एवं निर्माण निगम आदि विभागों के अधिकारियों ने हिस्सा लिया।
कार्यक्रम में अपर सचिव सविन बंसल, डीएमएमसी के अधिशासी निदेशक डॉ. पीयूष रौतेला भी इस कार्यशाला में मौजूद थे। आपदा प्रबन्धन की मैनेजर (कम्युनिकेशन) ज्योति नेगी ने बताया कि समय-समय पर इस तरह की कार्यशालाएँ प्रदेश में सभी जनपदों में भी आयोजित की जाएँगी।
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Post By: RuralWater