''आपदा में फायदा'' का विमोचन

गंगा की दोनों मुख्य धाराओं भागीरथीगंगा की अस्सीगंगा घाटी और अलकनंदागंगा की केदारघाटी में जुलाई, अगस्त और सितंबर महीने 2012 में जो भयानक तबाही हुई उसका कारण बादल फटने से ज्यादा जलविद्युत परियोजनाएं थी। अस्सी गंगा नदी में बादल फटने के बाद एशियन विकास बैंक पोषित निर्माणाधीन कल्दीगाड व अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत और भागीरथीगंगा में मनेरी भाली चरण दो परियोजनाओं के कारण बहुत नुकसान हुआ। मारे गए मज़दूरों का कोई रिकार्ड नहीं, अस्सीगंगा व केदार घाटी के गांव बुरी तरह से प्रभावित हुए, पर्यावरण तबाह हुआ जिसकी भरपाई में कई दशक लगेंगे। उत्तराखंड में उत्तरकाशी में अस्सीगंगा व भागीरथी गंगा के संगम पर 15 अप्रैल को आपदा प्रभावितों के बीच माटू जनसंगठन के पंद्रहवें दस्तावेज़ “आपदा में फायदा” का विमोचन किया गया। इस अवसर पर सभा में वक्ताओं ने आपदा प्रबंध की पोल खोलने के साथ मुआवज़ा वितरण में हो रही धांधली की आलोचना की। एकमत से अस्सीगंगा के बांधों का विरोध किया गया। क्षेत्र पंचायत सदस्य श्री कमल सिंह ने कहा की हम अस्सी गंगा के बांधों का प्रारंभ से विरोध कर रहे हैं। हमारी बात सही सिद्ध हुई। आपदा प्रबंधन के दिशा निर्देशों के अनुसार तो आपदा आते ही यहां सभी समस्याओं के समाधान के लिए कैम्प लगना चाहिए था जो नहीं लगा और समस्याएं आज भी मौजूद हैं। अभी संगम चट्टी पर मलबा पड़ा है। सैकड़ों पेड़ गिरे पड़े हैं। पहले उस क्षेत्र का उपचार होना चाहिए था नाकि 25 किलोमीटर नीचे गंगोरीगाड में पुश्ते लगाने का काम चालू होता।

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व इस दस्तावेज़ के सहयोगी श्री नागेंद्र जगूड़ी ने कहा की हमें लंबा संघर्ष करना पड़ेगा जिसके लिए तैयारी जारी है। हम लोगों को ऐसे ही नहीं छोड़ सकते हैं।

‘सूर्योदय लोक हितकारी सेवा समिति’ के अध्यक्ष श्री केसरसिंह पंवार ने कहा की खेती की जमीनों का नुकसान बहुत हुआ है। हमारे सिंचित खेत बह गए और सरकार एक नाली खेत का मुआवजा सिर्फ 2500/- दे रही है। हम उत्तरौं गांव के लोगों ने ये मुआवजा ना लेने का निर्णय लिया है। जो मुआवजा बाँटा भी गया है। उसमें तमाम धांधलियां हैं। अनेक अपात्रों को मुआवजा दिया गया है। इसमें भी भाई-भतीजावाद हुआ है। जिनके मकान बहे हैं उन्हें 180 वर्गमीटर ज़मीन देने की बात चली थी किंतु बाद में कुछ नहीं। भ्रष्टाचार और प्रशासन की मनमानी का नमूना है कि स्वयं मेरी ज़मीन बह गई किंतु विधायक सहित अनेक जनप्रतिनिधियों के शपथपत्र के बावजूद मुझे ज़मीन नहीं मिल रही है।

समिति के सचिव श्री विकास उप्पल ने कहा कि मुख्यमंत्री जी ने अभी पुलों और पुश्तों के लिए 2 अरब 22 करोड़ रु. की घोषणा की है। पर प्रभावितों के बारे में अभी जांच कराएंगे। हम सात महीनों से लगातार शासन-प्रशासन के सामने समस्याओं को रख रहे है। पर आश्वासन ही मिले है। अब जो पुश्तों को काम चालू भी हुआ है तो वो मांनदंडो के उलट है। अभी नदी भरी है और दिवारें उसके साथ ही बनाई जा रही है। ये कितनी टिकेगी? यानि नया घपला चालू हो गया है।

गंगोरी के श्री विकास अग्रवाल ने कहा की इन बांधों के कारण ही हमारा ज्यादा नुकसान हुआ है। प्रभावितों को आपदा प्रमाण पत्र तक नहीं मिला है। कुछ दिन पहले एक बीमा कंपनी आई थी बांधों के नुकसान का आकलन करके चली गई। किंतु लोगों के नुकसानों का आकलन कौन करेगा? रामपाल चौहान, मुकेश नेगी आदि ने भी अपने विचार रखे। टौंस घाटी से केसर पंवार व रमेश नौटियाल भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए। सभा ने एकमत से रिपोर्ट में लिखी मांगों का समर्थन किया और पुनः इस बात को दोहराया किः-

अस्सीगंगा पर बांध तुरंत रोके जाए और अस्सीगंगा को लोक आधारित पर्यटन के लिए सुरक्षित किया जाए। पर्यावरणीय व मानवीय हानि पर एक गहन और विस्तृत जांच होनी चाहिए। इस हादसे की दोषी उत्तराखंड जल विद्युत निगम व उसके अधिकारियों पर तुरंत कार्रवाई हो।

माटू जनसंगठन की इस रिपोर्ट से यह मालूम पड़ता है कि गंगा की दोनों मुख्य धाराओं भागीरथीगंगा की अस्सीगंगा घाटी और अलकनंदागंगा की केदारघाटी में जुलाई, अगस्त और सितंबर महीने 2012 में जो भयानक तबाही हुई उसका कारण बादल फटने से ज्यादा जलविद्युत परियोजनाएं थी। अस्सी गंगा नदी में बादल फटने के बाद एशियन विकास बैंक पोषित निर्माणाधीन कल्दीगाड व अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत और भागीरथीगंगा में मनेरी भाली चरण दो परियोजनाओं के कारण बहुत नुकसान हुआ। मारे गए मज़दूरों का कोई रिकार्ड नहीं, अस्सीगंगा व केदार घाटी के गांव बुरी तरह से प्रभावित हुए, पर्यावरण तबाह हुआ जिसकी भरपाई में कई दशक लगेंगे। इसकी कोई समुचित निगरानी नहीं हुई। ‘उत्तराखंड जल विद्युत निगम‘ पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। बल्कि उनकी सारी गलतियों को बाढ़ के साथ बहा दिया गया। बीमा कंपनियों से उनका नुकसान तो पूरा होगा साथ ही भ्रष्टाचार के लिए और पैसा मिल जायेगा। हम इस पर आगे कार्यवाही करेंगे।

जो सरकारें 4.5 और 9 मेगावाट की परियोजनाएं नहीं संभाल सकती वो बड़े बांध की बात कैसे कर सकती हैं? उत्तराखंड सरकार बांधों को जिस तरह से आगे बढ़ा रही है वो आने वाले समय के लिए बहुत ही घातक है। बड़े बांधों में ही नहीं वरन् छोटी-2 जलविद्युत परियोजनाओं के कारण जो पर्यावरण व जनहक की अवहेलना हो रही हैं उसे भी नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।

माटू जनसंगठन के इस पंद्रहवें दस्तावेज़ ‘‘आपदा में फायदा‘‘ में क्षेत्रीय भ्रमण, प्रभावितों से बातचीत और कई वर्षो की प्रेस रिपोर्टों के आधार पर यही बताने की कोशिश है कि बादल फटने के कारण नहीं वरन् वहां जलविद्युत परियोजनाओं के कारण ज्यादा तबाही हुई। साथ ही बांध कंपनियों का भ्रष्टाचार, सरकार की लापरवाही और पर्यावरण की बर्बादी की पोल खोलने की भी कोशिश है।

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