देश में अॉपरेशन फ्लड (श्वेत क्रान्ति) की अभूतपूर्व सफलता के बाद सरकार ने अॉपरेशन ग्रीन शुरू करने की घोषणा की है। इसमें टमाटर, प्याज और आलू जैसी फसलों को उसकी खेती से लेकर रसोईघर तक की आपूर्ति शृंखला को संयोजित करना है। इस पूरी शृंखला को मजबूत बनाने के लिये सरकार ने आम बजट में बजटीय प्रावधान किया है। इसमें कृषि मंत्रालय के साथ खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की भूमिका भी अहम होगी।
रसोईघर की प्रमुख सब्जियों में शुमार इन कृषि उत्पादों की खेती आमतौर पर देश के छोटे एवं मझोले स्तर के किसान ज्यादा करते हैं। यही वजह है कि पैदावार अधिक हुई तो मूल्य घट जाने से उनकी लागत मिलने के भी लाले पड़ जाते हैं। इसके विपरीत इन जिंसों की पैदावार घटी तो पूरे देश में हाय-तौबा मचना आम हो गया है। राजनैतिक तौर पर यह बेहद संवेदनशील मुद्दा बन जाता है।
अॉपरेशन ग्रीन के तहत इसमें एक तरफ किसानों को इनकी खेती के लिये प्रोत्साहित करना है तो दूसरी तरफ उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर इन जिंसों की साल भर उपलब्धता बनाए रखने की चुनौती से निपटना है। इन्हीं दोहरी बाधाओं से निपटने के लिये सरकार ने अॉपरेशन ग्रीन की शुरुआत कर दी है। आगामी वित्त वर्ष में इस दिशा में कार्य तेजी भी पकड़ सकता है। इसके चलते किसानों की आमदनी को दोगुना करने की सरकार की मंशा को पूरा करने में भी मदद मिलेगी।
दरअसल टमाटर, प्याज और आलू की खेती में अपार सम्भावनाएँ हैं। कम खेत में ज्यादा पैदावार लेना आसान होता है। देश में उन्नतशील प्रजाति के बीज, आधुनिक प्रौद्योगिकी, मशीनरी एवं अनुकूल जलवायु के चलते इनकी उत्पादकता बहुत अच्छी है। लेकिन लॉजिस्टिक सुविधाओं का अभाव, कोल्डचेन की भारी कमी और प्रसंस्करण सुविधा के न होने से किसानों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं। इन नाजुक फसलों की आपूर्ति बनाए रखने और मूल्यों में तेज उतार-चढ़ाव कई बार गम्भीर संकट पैदा कर देता है।
तभी तो कई बार फसलों की कटाई के समय बाजार में मिट्टी के भाव आलू, प्याज और टमाटर जैसी सब्जियाँ बिकने लगती हैं। किसानों को उनकी लागत का मूल्य भी नहीं मिल पाता है। ऐसे में किसानों की नाराजगी के मद्देनजर आलू, प्याज और टमाटर उत्पादक राज्यों में आन्दोलन शुरु हो जाते हैं। केन्द्र के साथ राज्यों की सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं।
केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने वित्त वर्ष 2018-19 के आम बजट में इस समस्या का निदान ढूँढा और उसके लिये अॉपरेशन ग्रीन की घोषणा की है। इसके लिये आम बजट में 500 करोड़ रुपए की प्रारम्भिक धनराशि भी आवंटित कर दी गई है। इस धनराशि से कोल्ड चेन, कोल्ड स्टोरेज, अन्य लॉजिस्टिक और सबसे अधिक जोर खाद्य प्रसंस्करण पर दिया जाएगा।
प्रधानमंत्री कृषि सम्पदा योजना इसमें बेहद मुफीद साबित होगी। इसके तहत देशभर में आलू, प्याज और टमाटर उत्पादक क्षेत्रों में क्लस्टर आधारित पूरी शृंखला विकसित की जाएगी, ताकि किसानों के उत्पादों के बाजार में आने के वक्त कीमतें न घटने पाएँ और समय रहते उनका भण्डारण उचित माध्यमों से किया जा सके। अॉपरेशन ग्रीन के तहत इन प्रमुख सब्जियों की खेती वाले राज्यों के क्षेत्रों को चिन्हित कर वहाँ इन बुनियादी ढाँचे का निर्माण किया जाएगा।
जरूरत पड़ने पर सम्बन्धित मंडी कानून में संशोधन भी किया जा सकता है ताकि सीधे किसानों के खेतों से ही उत्पाद को बड़ी उपभोक्ता कम्पनियाँ और प्रसंस्करण करने वाले खरीद सकते हैं। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (ठेके की खेती) की सुविधा बहाल की जाएगी। इससे इन संवेदनशील सब्जियों की उपलब्धता पूरे समय एक जैसी रह सकती है। किसानों को उनकी उपज का जहाँ उचित मूल्य मिलेगा, वहीं उपभोक्ताओं को महँगाई से निजात मिलेगी। किसानों की आमदनी को दोगुना करने में सहूलियत मिलेगी।
वर्ष 2017-18 में टमाटर, प्याज और आलू खेती का बुवाई रकबा और पैदावार (अनुमानित) |
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जिंस |
रकबा (लाख हेक्टेयर) |
पैदावार(लाख टन) |
प्याज |
11.96 |
214 |
टमाटर |
8.01 |
223.4 |
आलू |
21.76 |
493.4 |
दरअसल किसानों के लिये किसी फसल को पैदा करना बहुत बड़ी बात नहीं है, बल्कि उसकी मुश्किलें बाजार और उचित मूल्य न मिलने से होती हैं। इन्हीं चुनौतियों से निपटने के लिये सरकार का अॉपरेशन ग्रीन फायदेमंद साबित हो सकता है। देश में फिलहाल आलू भण्डारण के लिये कोल्ड स्टोरों की स्थापना तो की गई है, लेकिन बाकी दोनों जिंसों टमाटर और प्याज भण्डारण का पुख्ता बंदोबस्त नहीं है। इसके चलते जल्दी खराब होने वाली इन फसलों के चौपट होने की आशंका बराबर बनी रहती है। यही किसानों की सबसे बड़ी समस्या है, जिससे सरकार वाकिफ है। तभी तो अॉपरेशन ग्रीन की शुरुआत करने की घोषणा की गई है। पिछले दो सालों से देश में आलू की पैदावार के अधिक हो जाने की वजह से बाजार में मूल्य बहुत नीचे चले गये हैं। लिहाजा किसानों के हाथ उसकी लागत भी नहीं आ रही है।
इन प्रमुख सब्जियों की खेती में कम खेत में अधिक पैदावार लेना आसान है। बाजार में इनकी अच्छी माँग भी रहती है। लेकिन कभी-कभी मौसम की मार और कई अन्य कारणों की वजह से पैदावार घटी तो हाय-तौबा मच जाती है। इतना ही नहीं, अगर माँग आपूर्ति के मुकाबले अधिक हो गई तो नये तरीके की मुश्किलें पैदा हो जाती हैं। बाजार में उनकी पूछ घट जाती है, कीमतें धराशायी हो जाती हैं। इससे इन किसानों के अस्तित्व का संकट पैदा हो जाता है; उनकी लागत भी डूबने लगती है। केन्द्र से लेकर राज्य सरकारें तो मदद के लिये आगे आती हैं, लेकिन यह मुद्दा कई बार गम्भीर राजनीतिक हो जाता है। इसकी जरूरत हर छोटी-बड़ी रसोईघर में होती है।
आलू उत्पादक प्रमुख राज्यों में आलू के भण्डारण की स्थिति |
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राज्य |
2017 भण्डारण (लाख टन में) |
2016 भण्डारण (लाख टन में) |
2015 भण्डारण (लाख टन में) |
उत्तर प्रदेश |
124.62 |
112.57 |
112 |
पश्चिम बंगाल |
65.76 |
55.46 |
64.29 |
बिहार |
12.14 |
12.97 |
13.16 |
पंजाब |
19.36 |
19.34 |
18.61 |
गुजरात |
11.61 |
11.26 |
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भण्डारण वाले कुल आलू की मात्रा |
233.49 |
211.6 |
208.06 |
नोट- 50 से 55 फीसदी आलू का ही भण्डारण हो पाता है। बाकी आलू ताजा में बिकता है या सड़ जाता है। |
सब्जियों के उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर है। यहाँ सालाना 18 करोड़ टन सब्जियों का उत्पादन होता है हालांकि पहले पायदान पर रहने वाले चीन में इसका चार गुना उत्पादन होता है। लेकिन भारत सब्जियों की पैदावार में तेजी से आगे बढ़ने वाला देश बन गया है। लेकिन भारत में हरित क्रान्ति के समय जैसे गेहूँ व चावल की पैदावार और श्वेतक्रान्ति में दूध के उत्पादन में बहुत तेजी से वृद्धि हुई थी, सब्जियों की पैदावार में वह क्रान्ति नहीं आई है।
उदाहरण के तौर पर वर्ष 2003-04 से 2017-18 के बीच आलू का उत्पादन 2.8 करोड़ टन से बढ़कर 4.9 करोड़ टन हो चुका है। जबकि प्याज की पैदावार में तीन गुना से अधिक की छलांग लगा ली है। इसका उत्पादन 63 लाख टन से बढ़कर 2.14 करोड़ टन हो गया है। टमाटर जैसी फसल का उत्पादन 81 लाख टन से बढ़कर 2.2 करोड़ टन हो गया है। लेकिन बढ़ती आबादी और लोगों की माली हालत में सुधार होने से इन जिंसों की माँग में भी खूब इजाफा हुआ है।
इन फसलों की माँग में इजाफा हुआ है, जिसके चलते इनकी पैदावार बढ़ी है। आधुनिक भण्डारण और कोल्ड चेन के भरोसे ही समस्या का समाधान नही ढूंढा जा सकता है। सबसे बड़ी जरूरत जल्दी खराब होने वाली इन फसलों को प्रसंस्करण उद्योग से जोड़ने की है। साथ ही मंडी कानून में संशोधन कर इसे थोक उपभोक्ताओं को सीधे खेत से खरीद करने की छूट देने की जरूरत है। फिलहाल इन फसलों के उत्पादकों को केवल मामूली मूल्य प्राप्त हो रहा है। बाकी मार्जिन बिचौलियों की जेब में भर रहा है। इसे रोकना ही होगा।
अॉपरेशन ग्रीन की सफलता के बाद माना जा रहै है कि किसानों को उनकी उपज के महानगर में मिल रहे मूल्य का कम-से-कम 60 फीसदी तो मिलना ही चाहिए। उदाहरण के तौर पर देखें तो अॉपरेशन फ्लड यानी श्वेतक्रान्ति के बाद किसानों को उनके दूध का 75 फीसदी से अधिक मूल्य प्राप्त होने लगा है। वास्तव में दूध और सब्जियों का उत्पादन और उनकी प्रकृृति एक जैसी ही है, रख-रखाव का उचित प्रबन्ध न हो तो ये जल्दी खराब हो जाती हैं।
श्वेत क्रान्ति के जनक कहे जाने वाले डॉक्टर कुरियन ने अपनी किताब में इसके बारे में विस्तार से लिखा है कि उनका सपना किसानों को संगठित करना, उनके उत्पादन को बढ़ाना और उन्हें उनके घर पर रोजी-रोजगार मुहैया कराना था। उत्पादों को वास्तविक बाजार मुहैया कराना और किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाना असल चुनौती होती है, जो उन्हें सतत मिलता रहे। इसके लिये पहली जरूरत उपज की खपत वाले सबसे विशाल केन्द्रों की खोज कर उन्हें चिन्हित करना है और फिर वहाँ तक उत्पाद को पहुँचाने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही खपत यानी उपभोक्ता केन्द्रों पर हर जिंस के लिये सशक्त खुदरा नेटवर्क बनाना सबसे जरूरी है। इसी तरह फसलों की पैदावार को बढ़ाने के लिये किसानों को संगठित कर किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) बनाना होगा। इन संगठनों की जिम्मेदारी होगी कि वह जिंसों को उत्पादक स्थल पर छंटाई, भराई, ग्रेडिंग, वजन और पैकेजिंग के साथ बार कोड लगाकर उपभोक्ता केन्द्रों तक पहुँचाएँ।
कृषि उत्पाद मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) कानून को संशोधित करने की सख्त जरूरत होगी, जिससे इन एफपीओ से निजी व सरकारी कम्पनियों के साथ थोक उपभोक्ता अपनी खरीद कर सकेंगे। श्वेत क्रान्ति में घर-घर दूध पहुँचाने तक की नेटवर्किंग का नतीजा है कि यह क्षेत्र विकास की नई ऊँचाइयों को छू रहा है। केन्द्र सरकार ने एफपीओ को सहकारी संस्थाओं की तर्ज पर अगले पाँच सालों तक आयकर कानून से मुक्त करने का भी ऐलान किया है। यह एक स्वागत योग्य कदम है। दूसरे स्तर पर निवेश का होना बहुत जरूरी है, जिससे लॉजिस्टिक सुविधाएँ और आधुनिक कोल्ड स्टोरेज बनाए जा सकें। इससे आलू, प्याज और टमाटर की बर्बादी को रोकने में मदद मिलेगी।
प्रमुख आलू उत्पादक राज्यों की तीन सालों में आलू की पैदावार |
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राज्य |
2014-15 |
2015-16 |
2016-17 |
हिस्सेदारी (प्रतिशत) |
उत्तर प्रदेश |
148.79 |
138.51 |
150.76 |
31.26 |
पश्चिम बंगाल |
120.27 |
84.27 |
112.34 |
23.29 |
बिहार |
63.45 |
63.45 |
63.77 |
13.22 |
गुजरात |
29.64 |
35.49 |
35.84 |
7.43 |
मध्य प्रदेश |
30.48 |
31.61 |
29.90 |
6.20 |
पंजाब |
22.62 |
23.85 |
25.19 |
5.22 |
असम |
17.06 |
10.37 |
10.66 |
2.21 |
सभी आँकड़े लाख टन में |
प्याज का उचित भण्डारण न होने से खेत से लेकर परम्परागत कोल्ड स्टोर तक पहुँचाने में 25 से 30 फीसदी तक बर्बादी होती है यानी सड़ जाता है। इसे रोकने के लिये आधुनिक कोल्ड स्टोरेज की जरूरत है। विशेषज्ञों के मुताबिक आधुनिक भण्डारण प्रणाली से प्याज की बर्बादी 15 से 20 फीसदी तक रुक जाएगी। साथ ही भण्डारण की लागत भी कम होगी।
योजना के मुताबिक बिजली से चलाए जाने वाले कोल्ड स्टोरेज की जगह आधुनिक कोल्ड स्टोरेज सौर ऊर्जा से चलाए जा सकते हैं, जो बहुत सस्ते साबित होंगे। अधिक मात्रा में भण्डारण के लिये आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसीए) संशोधन की सख्त जरूरत पड़ेगी क्योंकि सरकार समय-समय पर स्टोरेज कंट्रोल आर्डर लागू करती रहती है।
तीसरी सबसे बड़ी जरूरत अॉपरेशन ग्रीन में प्रोसेसिंग उद्योग को प्रमुखता दी जाय और उसे खुदरा-स्तर पर जोड़ा जाय। सुखाई गई प्याज (डिहाईड्रेटेड ऑनियन), टमाटर की प्यूरी और आलू के चिप्स का प्रयोग खूब धड़ल्ले से किया जा सकता है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग आलू प्याज और टमाटर की अतिरिक्त पैदावार को लेकर प्रोसेस कर सकता है। इससे किसान और उद्योग दोनों पक्षों को लाभ होगा। सरकार के समर्थन से इन जिंसों के मूल्य में उतार-चढ़ाव की सम्भावना बहुत कम रह जाएगी, जिससे न किसान दुखी होगा और न ही उपभोक्ता। अॉपरेशन ग्रीन चैम्पियन होकर उभरेगा, लेकिन इसके लिये किसी कुरियन की तलाश करनी होगी।
(लेखक दैनिक जागरण में डिप्टी चीफ अॉफ नेशनल ब्यूरो) (कृषि, खाद्य, उपभोक्ता मामले हैं।)
ई-मेलः surendra64@gmail.com
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