आँखें गीली पर हलक सूखा

प्रकृति के तीन तत्व जीने के लिए सबसे अहम हैं- प्रकाश, हवा और पानी लेकिन दुखद है कि हवा है लेकिन शुद्ध नहीं, प्रकाश (विद्युत) अभी भी लाखों लोगों की आँखों से दूर है और पानी का तो हाल सबसे बुरा है। पानी के लिए आज भी लाखों लोगों को खासी मशक्कत करनी पड़ती है। हर साल विश्व जल दिवस (22 मार्च) के अवसर पर कई देशों की सरकारें पानी को बचाने की खास योजनाएं बनाती हैं। विश्व जल दिवस हर बार किसी थीम पर आधारित होता है। इस बार की थीम ‘जल और दीर्घकालिक विकास’ है।
.पग-पग रोटी, डग-डग नीर। हमारे देश की कहावत बताती है कि पहले न तो खाने की दिक्कत थी और न पानी की लेकिन अब स्थिति यह है कि बाल्टी भर पानी के लिए घण्टों इन्तजार करना पड़ता है। देश के जाने कितने शहरों, गाँवों-कस्बों के न जाने कितने परिवारों का दिन सार्वजनिक नल पर पानी के इन्तजार से शुरू होता है। जैसे ही पानी की पहली बूंद नल से बाल्टी में गिरती है, पूरा परिवार पानी भरने में जुट जाता है। कभी-कभी यह इन्ताजर आधे घण्टे से एक दिन तक पहुँच जाता है। सबका यही कहना है-हमारा बहुत बड़ा समय पानी के इन्तजार और उसके इन्तजाम में ही गुजर जाता है। क्या कभी हमें पर्याप्त पानी मिलेगा? कभी तो हम कुछ बाल्टी पानी में गुजारा कर लेते हैं, लेकिन कभी हमारे पास कोई विकल्प नहीं होता और हमें पानी खरीदना होता है। हर दिन लोग यहाँ सार्वजनिक नलों या पानी के टैंकरों पर लाइन लगाकर खड़े रहते हैं। गर्मी में देश की राजधानी दिल्ली में लोगों को पानी के लिए कड़ी मशकक्त से गुजरना पड़ता है। चिलचिलाती धूप में खाली पड़े नलों को छोड़कर पानी के इन्ताजम में यहाँ-वहाँ भटकना होता है।

पानी के कारण बहता खून


पानी भरने की यह आपाधापी गर्मी के दिनों में अकसर खूनी संघर्ष का रूप भी ले लेती है। महाराष्ट्र के अलीपुर में पिछले दिनों हैण्डपम्प पर ताला लगाने का विवाद इतना भड़क गया कि एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई। हाल ही में मध्यप्रदेश के सबसे बड़े शहर इन्दौर में भी नल से पहले पानी भरने के विवाद में महिला सहित दो लोगों को जान गंवानी पड़ी थी। आने वाले दिनों में ऐसी घटनाएं ज्यादा बढ़ सकती हैं, क्योंकि पानी की स्थिति दिन व दिन बद से बदतर होती जा रही है।

गन्दा पानी पीने को मजबूर


बड़े हो या छोटे हर शहरों के लोग अकेले पानी की कमी का ही सामना नहीं कर रहे हैं, बल्कि इन्हें गन्दे पानी की समस्या से भी जूझना पड़ता है। लगभग चार माह पहले देश के 300 छोटे-बड़े शहरों में पानी पर सर्वेक्षण किया गया था। पीने के पानी में कीटनाशक और नुकसानदेह भारी धातु की मात्रा खतरनाक स्तर तक पाई गई। 100 से भी अधिक शहरों में सीवेज सिस्टम ठीक नहीं होने से पीने के पानी में गन्दा पानी मिल जाना पाया गया। कितनी भयावह बात है कि लोग जहरीला पानी पीकर धीमी मौत की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन सब कुछ जानते हुए उनके पास और कोई विकल्प नहीं है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस वक्त देश में पानी की मांग 830 अरब घन मीटर है। जबकि उपलब्धता 1,123 अरब घन मीटर है। 2050 तक देश को 1180 अरब घन मीटर पानी की जरूरत होगी। तब कैसे इन्तजाम होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

विशेषज्ञों के अनुसार भारत में पानी की कमी से फसल नहीं हो पाने और उससे बढ़ते कर्ज के कारण लगभग 16000 किसान हर साल मौत को गले लगा लेते हैं। विज्ञान और पर्यावरण केन्द्र के अध्ययन में कहा गया कि दिल्ली और मुंबई सहित देश के 71 बड़े शहरों में पानी की सही सप्लाई की व्यवस्था और योजना नहीं है। इन शहरों में वितरित किया जाने वाला पानी का एक तिहाई हिस्सा लीकेज और खराब पाइपों से बह जाता है। एक और जहाँ सामान्य लोगों को पीने तक के लिए पानी नहीं मिलता, वहीं सम्पन्न लोग इसका जम कर दुरुपयोग करते हैं। दक्षिणी दिल्ली के पॉश इलाके में रहने वाले एक व्यापारी ने अपने पड़ोसियों की शिकायत सोशल साइट पर दर्ज की कि वे रोजाना 3000 लीटर से ज्यादा पानी लॉन और कार धोने में बहा देते हैं।

आसानी से किया जा सकता है जल को संरक्षित


1. सबको जागरुक नागरिक की तरह जल संरक्षणों का अभियान चलाते हुए बच्चों और महिलाओं में जागृति लानी होगी। नहाते समय बाल्टी में पानी लेकर शावर या टब में नहाने की तुलना में बहुत जल बचाया जा सकता है। रसोई में जल की बाल्टी या टब में अगर बर्तन साफ करें, तो जल की बहुत बड़ी हानि रोकी जा सकती है।
टॉयलेट में लगी फ्लश की टंकी में प्लासटिक की बोतल में रेत भरकर रख देने से हर बार एक लीटर जल बचाने का कारगर उपाय उत्तराखण्ड जल संस्थान ने बताया है। इस विधि का तेजी से प्रवार-प्रसार करने पूरे देश में लागू करके जल बचाया जा सकता है।
पहले गाँवों, कस्बों और नगरों की सीमा पर या कहीं नीची सतह पर तालाब अवश्य होते थे, जिनमें मानसून की वर्षा का जल एकत्रित हो जाता था। साथ ही, अनुपयोगी जल भी तालाब में जाता था, जिसे मछलियाँ और मेढ़क आदि साफ करते रहते थे और तालाबों का जल पूरे गाँव के पीने, नहाने और पशुओं आदि के काम में आता था। दुर्भाग्य यह है कि लोगों ने तालाबों को पाट कर वहाँ घर बना लिए और जल की आपूर्ति खुद ही बन्द कर बैठे। जरूरी है कि गाँवों, कस्बों और नगरों में छोटे-बड़े तालाब बनाकर वर्षा जल का संरक्षण किया जाए।

2. नगरों और महानगरों में घरों की नालियों के पानी को गढ्ढ़े बना कर एकत्र किया जाए और पेड़-पौधों की सिंचाई के काम में लिया जाए। इससे साफ पेयजल की बचत अवश्य की जा सकती है।
अगर प्रत्येक घर की छत पर वर्षा जल का भण्डार करने के लिए एक या दो टंकी बनाई जाए और इन्हें मजबूत जाली या फिल्टर कपड़े से ढक दिया जाए तो हर नगर में जल संरक्षण किया जा सकेगा।
घरों, मुहल्लों और सार्वजनिक पार्कों, स्कूलों अस्पतालों, दुकानों, मन्दिरों आदि में लगी नल की टोटियाँ खुली या टूटी रहती है जिससे अनजाने ही प्रतिदिन हजारों लीटर जल बेकार हो जाता है। इसे रोका जा सकता है।

3. विज्ञान की मदद से आज समुद्र के खारे जल को पीने योग्य बनाया जा रहा है, गुजरात द्वारिका आदि नगरों में प्रत्येक घर में पेयजल के साथ-साथ घरेलू कार्यों के लिए खारेजल का प्रयोग करके शुद्ध जल का संरक्षण किया जा रहा है, इसे बढ़ाया जाए।
गंगा और यमुना जैसी सदानीरा बड़ी नदियों की नियमित सफाई बेहद जरूरी है। नगरों और महानगरों का गन्दा पानी ऐसा नदियों में जाकर प्रदूषण बढ़ाता है, जिससे मछलियाँ आदि मर जाती है और यह प्रदूषण लगातार बढ़ता ही चला जाता है। बड़ी नदियों के जल का शोधन करके पेयजल के रूप में प्रयोग किया जा सके, इसके लिए शासन प्रशासन को लगातार सक्रिय रहना होगा।

4. जंगलों का कटान होने से दोहरा नुकसान हो रहा है। पहला यह कि वाष्पीकरण न होने से वर्षा नहीं हो पाती और दूसरे भूमिगत जल सूखता जाता है। बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण के कारण जंगल और वृक्षों के अन्धाधुन्ध कटान से भूमि की नमी लगातार कम होती जा रही है, इसलिए वृक्षारोपण लगातार किया जाना जरूरी है।

5. पानी का दुरुपयोग हर स्तर कानून के द्वारा, प्रचार माध्यमों से कारगर प्रचार करके और विद्यालयों में पर्यावरण की ही तरह जल संरक्षण विषय को अनिवार्यरूप से पढ़ा कर रोका जाना बेहद जरूरी है। अब समय आ गया है कि केन्द्रीय और राज्यों की सराकरें जल संरक्षण को अनिवार्य विषय बना कर प्राथमिक से लेकर उच्च स्तर तक नई पीढ़ी को पढ़वाने का कानून बनाएँ।

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