आधुनिकता की इस दुनिया में हर देश विकास के नए पैमानों को छूना चाहता है, लेकिन विकास की दौड़ में विभिन्न देशों की जनता अपनी मूलभूत सुविधाओं से दूर होती जा रही है। सुविधाओं के नाम पर उन्हें ऐसे उत्पादन दिए जा रहे हैं, जिनसे वर्तमान तो सुखद बीत रहा है, लेकिन भविष्य अंधकार में जा रहा है। यानी वें लोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों को जन्म दे रहे हैं। इन्हीं आधारभूत आवश्यकताओं में जीवन के लिए सबसे जरूरी ‘जल’ भी शामिल है, जो फिलहाल दुनिया के 785 मिलियन लोगों को पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पा रहा है। हर दो मिनट में एक बच्चे की मौत पानी से संबंधित बीमारियों के कारण होती है। दुनिया की 3 में से एक स्कूल में पानी और स्वच्छता की पर्याप्त सुविधा नहीं है। डायरिया दुनिया में बच्चों की मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। कुछ ऐसी ही स्थिति भारत में भी है। भारत की 60 प्रतिशत आबादी को पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है। तो वहीं जल प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है।
जल संरक्षण और जल प्रदूषण सहित पानी से जुड़ी विभिन्न समस्याओं को दूर करने के लिए पिछले साल जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रत्येक घर में नल से जल पहुंचाने के लिए ‘जल जीवन मिशन’ योजना का प्रारंभ किया था। योजना के प्रारंभ के दौरान देश में पेयजल लाइनों की सुविधा कुछ खास नहीं थी। सीएसई की स्टेट आफ इंडियाज़ इनवायरमेंट रिपोर्ट 2020 के अनुसार वर्ष 2012 में ग्रामीण भारत के 6.5 प्रतिशत और शहर में 35.1 प्रतिशत घरों में पेयजल लाइन की सप्लाई की जाती थी, जबकि वर्ष 2018 में 11.3 प्रतिशत ग्रामीण घरों में और 40.9 प्रतिशत शहरी घरों में पेजयल लाइनों से ही पानी सप्लाई किया जाता था। बाकी शेष लोग पानी के लिए पानी की बोतलों, सार्वजनिक नलों, ट्यूबवेल, हैंडपंप, कुएं, पानी के टैंकर, स्प्रिंग्स, वर्षा जल, सतही जल, तालाब आदि पर निर्भर हैं।
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018 में आंध्र प्रदेश के 5 प्रतिशत ग्रामीण घरों को ही पेयजल पाइपलाइनों से सप्लाई किया जाता था, जबकि अरुणाचल प्रदेश के 26 प्रतिशत, असम के 2.5 प्रतिशत, बिहार के 1.1 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ के 6.4 प्रतिशत, दिल्ली के 47.5 प्रतिशत, गोवा के 58.2 प्रतिशत, गुजरात के 37.4 प्रतिशत, हरियाणा के 34.9 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश के 36.9 प्रतिशत, जम्मू कश्मीर के 52.2 प्रतिशत, झारखंड के 0.3 प्रतिशत, कर्नाटक के 21.5 प्रतिशत, केरल के 9.4 प्रतिशत, मध्य प्रदेश के 10.9 प्रतिशत, महाराष्ट्र के 28 प्रतिशत, मणिपुर के 4.5 प्रतिशत, मेघालय के 6.8 प्रतिशत, मिज़ोरम के 30.7 प्रतिशत, नागालैंड के 15.6 प्रतिशत, ओडिशा के 2.7 प्रतिशत, पंजाब के 39.4 प्रतिशत, राजस्थान के 19.2 प्रतिशत, सिक्किम के 64.9 प्रतिशत, तमिलनाडु के 11.2 प्रतिशत, तेलंगाना के 4.2 प्रतिशत, त्रिपुरा के 3.6 प्रतिशत, उत्तराखंड के 42.5 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश के 2.3 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल के 2.1 प्रतिशत, अंडमान और निकोबार के 47.1 प्रतिशत, चंड़ीगढ़ के 47.8 प्रतिशत, दादरा और नगर हवेली के 8.4 प्रतिशत, दमन और दीव के 22 प्रतिशत, लक्षद्वीप के 0 प्रतिशत और पुड्डुचेरी के 70 प्रतिशत ग्रामीण घरों में पाइपलाइन से पानी की सप्लाई की जाती थी, लेकिन आज भी हर घर को नल से जल देने में ज्यादा सुधार नहीं आया है।
जल जीवन मिशन की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक भारत में 22.42 प्रतिशत (4,24,50079 ग्रामीण घरों में) ग्रामीण घरो में नलों में पानी आता है। हालांकि केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कुछ दिन पूर्व कहा था कि बिहार सरकार ने वर्ष 2019-20 में 29.11 लाख परिवारों को नल के कनेक्शन उपलब्ध करवाए हैं। वर्तमान परिवेश में बात करें तो, बिहार के ग्रामीण इलाकों में 1 करोड़ 77 लाख 31 हजार 200 घर हैं, जिनमें करीब 9 करोड़ 30 लाख लोग रहते हैं। जिनमें से केवल 1.1 प्रतिशत यानी लगभग 1 लाख 95 हजार 043 घरों को नल से जल मिल रहा है। यदि बिहार के पड़ोसी राज्य झारखंड के ग्रामीण इलाकों की बात की जाए तो यहां केवल 0.3 प्रतिशत घरों को ही नल से जल से सप्लाई किया जाता है। जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों बिहार की अपेक्षा विपरीत परिस्थितियां होने के बावजूद काफी अधिक घरों में नल से पानी सप्लाई हो रही है, यहां करीब 30 प्रतिशत घर नल से जल की सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। हरियाणा में भी तीस प्रतिशत ग्रामीण घरों को ही नल से जल प्राप्त होता है। हालाकि ये आंकड़ा संतोषजनक नहीं है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 11.3 प्रतिशत घरों को नल से जल मिल रहा है।
राष्ट्रीय स्तर पर शहरी इलाकों में 40.9 प्रतिशत घरों को नल से जल मिलता है, लेकिन इसमें भी बिहार के शहरी इलाकों की स्थिति काफी निराशाजनक ही है। यहां 17.2 प्रतिशत घरों को ही नल से जल मिल रहा है। इस बात का खुलासा नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएस) की रिपोर्ट में किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के ग्रामीण इलाकों के 94.3 प्रतिशत घरों में पानी की सप्लाई का मुख्य स्रोत हैंडपंप हैं, जबकि 2.9 प्रतिशत घरों में ट्यूबवेल से पानी सप्लाई किया जाता हैं। शहरी इलाके की बात करे तो यहां 37.3 प्रतिशत घरों को ट्यूबवेल से पानी सप्लाई होता है, जबकि 38.5 प्रतिशत घरों में पानी की जरूरत हैंडपंप के पानी से पूरी होती है। बिहार की ग्रामीण और शहरी दोनों की आबादी के आंकड़ों को सम्मिलित किया जाए तो केवल 2.9 प्रतिशत घरों को नल से जल मिलता है। ऐसे में बिहार में नल से जल पहुंचाना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन सरकार अपनी जवाबदेही तय करने के बाद केवल ढकोसले ही दे रही है।
उत्तराखंड में भी जल जीवन मिशन की वर्तमान स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है। राज्य के ग्रामीण इलाकों में 15 लाख 09 हजार 758 घर हैं। इनमें से 12 लाख 64 हजार 286 घरों में पानी का नल है। यानि 12 लाख 45 हजार 472 घरों में पानी का नल नहीं है। ये पानी के लिए हैंडपंप या आसपास के लिए विभिन्न जलस्रोतों पर निर्भर हैं। अमर उजाला की एक खबर के मुताबिक राज्य की 39311 बस्तियों में से 23156 बस्तियों में 40 लीटर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति पानी मिल रहा है, लेकिन 16146 बस्तियों को 40 लीटर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति से कम पानी मिल रहा है। लेकिन पानी की गुणवत्ता नौ बस्तियों में काफी खराब है। सरकार अगले चार वर्षों में देश भर के हर गाँव के हर घर तक पर्याप्त मात्रा में साफ पानी पहुंचाने के लिए कृतसंकल्प है। केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को लिखे पत्र में आश्वस्त किया है कि केंद्र सरकार उत्तराखंड को 2023 तक ‘हर घर जल राज्य’ बनाने में पूरा सहयोग देगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार जल जीवन मिशन के अंतर्गत आम जन का जीवन बेहतर बनाने के इस महत्वपूर्ण अभियान में राज्यों की पूरी मदद कर रही है।
सरकार द्वारा अभी जो प्रयास किए जा रहे हैं, वो नाकाफी हैं। बिहार सरकार समय पर अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाई है। विभिन्न राज्यों की सरकारें वादों के अनुरूप गति से कार्य नहीं कर रही हैं। हालांकि इसमें कोई दोराय नहीं है कि हर घर तक पानी का नल पहुंच जाएगा, लेकिन सबसे बड़ी समस्या पेयजल उपलब्ध कराने की होगी। जिसकी ओर भी सरकार को ध्यान देने की जरूरत है और कार्यों में तेजी लाए।
हिमांशु भट्ट (8057170025)
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