अंबा-अंबिका

भीष्म-पितामह अंबा-अंबिका नामक दो राजकन्याओं को जीतकर राजा विचित्र वीर्य के पास ले आये। कन्याओं ने साफ-साफ कह दिया, ‘हमारा मन दूसरी जगह बैठा हुआ है।’ विचित्रवीर्य अब इनसे विवाह कैसे करे? और जिसमें इनका मन चिपका था वह राजा भी जीती हुई कन्याओं का स्वीकार किस प्रकार करे? बेचारी राजकन्याओं को कोई पति नहीं मिला और वे झुर-झुर कर मर गयीं।

गर्मी के दिनों में आबू के पहाड़ पर से सरस्वती और बनास नदियों के दर्शन किये थे। वे बेचारी समुद्र तक पहुंच ही न पाई। बीच में कच्छ के रेगिस्तान में ही झुर-झुर कर लुप्त हो गयी हैं। अंबा-अंबिका की तरह कौमार्य, सौभाग्य और वैधव्य में से एक भी स्थिति इनके लिए नहीं रही। गुजरात और राजपुताना के इतिहास में इन नदियों का कितना भी महत्त्व क्यों न हो, राजा कर्ण के दो आंसुओं के अलावा हम उन्हें क्या दे सकते हैं?

1926-27

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