डा.संघमित्रा गाडेकर व सुरेन्द्र गाडेकर क नेतृत्व में अणुमुक्ति समूह द्वारा 1991 में राजस्थान के रावतभाटा परमाणु बिजलीघर के इलाके में सर्वेक्षण किया गया | इस सर्वेक्षण का उद्देश्य भी रावतभाटा परमाणु ऊर्जा संयत्र का वहां के निवासियों में पड़े प्रभाव का अध्ययन करना था। इस अध्ययन में रावतभाटा के पास के गांवों के लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति पर कुछ चौकाने वाले तथ्य सामने आए। इस सर्वेक्षण की रपट अणुमुक्ति (भारत में अपनी किस्म की अकेली पत्रिका) के अप्रैल मई 1993 के अंक में छपी बाद में साइन्स फॉर डैमोक्रैटिक एक्शन के नवम्बर 2002 के अंक में छापी गई।
अणुमुक्ति समूह परमाणु संयंत्रों के विरोध में 1986 की चर्नोबिल की दुर्घटना के बाद कूदा । इसी दौरान सरकार अणुमुक्ति के कार्यस्थल वड़छी गांव के पास में ही काक्रापार नामक जगह परमाणु संयंत्र लगाने का निर्णय किया। स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया। परन्तु सरकारी दमन के आगे विरोध टिक नहीं पाया। इस आन्दोलन के दौरान यह भी समझ में आया कि भारत में परमाणु संयंत्रों से स्थानीय निवासियों को हो रहे नुकसान को आंकने के लिए कोई विश्वस्त सर्वेक्षण नहीं किया गया था। इसीलिए जनआन्दोलन भी इन संयंत्रों का सिद्दत से विरोध नहीं कर पा रहे थे। अतः सितम्बर 1991 में राजस्थान के रावतभाटा में दस साल पुराने परमाणु संयंत्र के पास रह रहे स्थानीय निवासियों की स्थिति के बारे में जानने का निर्णय लिया गया। हालांकि सर्वेक्षण रपट स्थानीय निवासियों के जीवन के हर पहलू के छूती थी और सर्वेक्षण के नतीजे बहुत उत्साहबर्धक नहीं थे। लेकिन स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्थिति बहुत भयावह पाई गई।
कुल 1,023 परिवारों का सर्वेक्षण किया गया। इनमें से 571 परिवार रावतभाटा परमाणु बिजली संयत्र से 10 किलोमीटर से कम दूरी पर थे। 472 परिवार इस संयंत्र से 50 किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्थित चार गांवों से थे। पास के गावों से 2860 तथा दूर के गावों से 2544 लोगों का सर्वेक्षण किया गया। वैसे इन गांवों को रहन सहन खान पान आदि में काफी समानता थी ऊर्जा संयंत्र की वजह से ही असमानताएं आई थी। सबसे बड़ी असमानता करीब और दूर के गावों के लोगों के स्वास्थ्य के क्षेत्र में दिखी।
रावतभाटा के पास के गांवों के अधिकतर (45 प्रतिशत) लोगों ने बीमारी की शिकायत की जबकि दूर के गावों के 25 प्रतिशत लोगों ने बीमारी की शिकायत की। पास के 551 गावों में 68 परिवारों में कम से कम एक सदस्य को चार अलग अलग बीमारियों ने घेर रखा था।दूर के 472 गावों में ऐसे घरों की संख्या केवल 9 थी। परमाणु ऊर्जा संयंत्र के पास के गावों में 30 मरीजों के शरीर में बड़े बड़े ट्यूमर (गांठें) थी। एक महिला की छाती में तो फूटबाल जैसी गोल गांठ थी। कइयों की गाठें टेनिस की बाल के बराबर गोल थी।दूर के गावों में ऐसे पांच केस मिले।पर किसी की भी गांठ फूटबाल जैसी गोल व बड़ी नहीं थी। गर्भवती स्त्रियों के गर्भपात, समय से पहले जन्म, मरे हुए बच्चों का जन्म नवजात शिशुओं की मृत्यु, तथा विकलांगता की दर अधिक पाई गई। संयंत्र के पास के गावों के 44 लोगों को विकलांगता थी। इनमें से पांच की आयु ही 18 साल से ऊपर थी। 33 की आयु 11 साल से कम थी तथा 6 की आयु 11 और 18 के बीच थी। दूर के गावों में 14 केस विकलांगता के मिले। इनमें से 4 की उम्र 18 वर्ष से ऊपर थी। 6 बच्चे 11 से कम उम्र के थे जबकि चार बच्चे 11 से 18 के बीच में थे। पास के गावों में 1989 व 1991 के बीच 16 बच्चे विकलागं पैदा हुए सामान्य बच्चे 236 पैदा हुए। दूर के गावों में इस दौरान 194 सामान्य बच्चे पैदा हुए तीन विकलागं पैदा हुए। इसी दौरान पास के गांवों में चार विकलांग मरे हुए बच्चे पैदा हुए थे जबकि दो सामान्य बच्चे मरे हुए पैदा हुए थे। दूर के गांवों में यह संख्या जीरो थी। नजदीक के गावों में पांच को कई विकलांगताएं थी। इनमें से चार में से हरएक को दो-दो विकलांगताएं थी। एक को तीन विकलांगताएं थी। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि संयंत्र के चालू होने के बाद पास के गावों में पैदा हुए बच्चों में विकलांगों की संख्या बढ़ी थी ।(1981-1991 के बीच पैदा हुए बच्चों में 39 विकलांगता से ग्रस्त थे।) 1989-1991 के बीच सात नवजात शिशु एक दिन की आयु ही जी पाए। दूर के गांवों में एक शिशु एक ही दिन की अल्पआयु में चल बसा। 1981-91 के बीच 16 विकलांग बच्चे पैदा हुए। 6 बच्चे मृत पैदा हुए 27 गर्भपात हुए तथा 31 बच्चे जन्म के बाद जल्दी ही काल के ग्रास बन गए। उल्लेखनीय है कि रावतभाटा भारत का प्रथम ऊर्जा संयंत्र है। कनाडा की मदद से इस संयंत्र का निर्माण 1964 में आरंभ हुआ। 1973 में इसको कामर्शियल घोषित कर तिया गया। दूसरी इकाई का काम 1967 में प्रारम्भ हुआ 1981 में कामर्शियल हुआ।
1991 के सर्वेक्षण की रीपोट के मुख्य निष्कर्षों को हिन्दी में छाप कर रावतभाटा के समीपवर्ती गावों में वितरित किया गया। इसके छः महिने बाद स्थानीय लोगों ने एक जलूस निकाला और रिएक्टरों को बन्द करने की मांग की। एक बूढ़ी आदिवासी महिला अपना पारम्परिक पर्दा त्याग कर मंच पर आई और लोगों को बच्चों में बढ़ती विकलांगता के बावजूद बिजली बनाने की जिद पर अड़े रहने के लिए फटकारा। इस सर्वेक्षण से मिले तथ्यों से साफ हो गया है कि रावतभाटा परमाणु ऊर्जा संयंत्र से स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य की स्थिति बिगड़ी और विकलांगता के आकड़ो का अवश्य विकास हुआ। मालूम नहीं सोनिया गांधी को उपरोक्त सर्वेक्षण की जानकारी था कि नहीं। यदि नहीं थी तो आम लोगों को गुमराह करने की कोशिश करने से पहले क्या उन्हें परमाणु ऊर्जा का सच जानने की कोशिश नहीं करनी चाहिये। यदि आम जनता को परमाणु संयंत्रों से होने वाली त्रासदी की भनक लग जाए तो वे कभी भी अपने निकटवर्ती इलाकों इस प्रकार के संयंत्रों के लगाने का पुरजोर विरोध करेंगे।
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