अनुभवजन्य कहावतों का वैज्ञानिक पक्ष

मुढ़ैनी, मनासा, मोड़ीमाता और मोरवन की चौपालों में एकत्रित लोगों का कहना था कि उनके क्षेत्र के बड़े-बूढ़ों को सैकड़ों अनुभवजन्य कहावतें याद हैं। उन कहावतों में जीवन के प्रत्येक पक्ष पर सुझाव, मार्गदर्शन या वर्जना प्रगट करता संदेश होता है। सामान्य बातचीत में भी उनका उपयोग होता है। झांतला के नेमीचन्द छीपा इत्यादि कई लोगों ने महीनों से सम्बन्धित अनेक कहावतें सुनाई।

बडला की डाड़ी बढ़े, जामुन पाके मीठ।
नीम निम्बोली पाक जा, हे बरखा की दीठ।।


इस मालवी कहावत के अनुसार यदि वटवृक्ष की लटकने वाली जड़ों में नई कोपल फूट पड़ें, जामुन पक जाए और नीम की निम्बोली (फल) पक जाए तो समझ लो वर्षा आने ही वाली है।

हम सब आम में बौर आने या नीम के वृक्ष में फूल आने या पलाश के फूलने, सागौन या पतझड़ आने की घटनाओं से परिचित हैं। इन घटनाओं को प्रकृति नियंत्रित करती है और साल-दर-साल, निश्चित समय पर उसकी पुनरावृत्ति होती है। हमारी टीम का मानना है कि इस कहावत के पीछे निश्चित समय पर वटवृक्ष, नीम और जामुन के वृक्षों में होने वाले परिवर्तन से जुड़ा बरसात सम्बन्धी अवलोकन है जिसे समाज ने कहावत के रूप में सम्प्रेषित किया है।

पाणी पीवे धाप।
नी लागे लू की झाप।।


यदि गर्मी के दिनों में पानी पीकर धूप में बाहर जाते हैं तो लू नहीं लगती।

लीली फसल सांचे।
पालो न्होर नीचे।।


हरी फसल की सिंचाई करने से फसल को पाला नहीं लगता। कहावत का संदेश है कि सिंचाई कर हरी फसल को पाले से बचाया जा सकता है। यही वैज्ञानिक मान्यता है।

बादल ऊपर बादल चले, घन बादल की पाँत।
बरखा तो आवे अवस, अंधड़ के उत्पात।।


यदि बादलों के ऊपर बादलों की परत दिखे और बादल चलते दिखें तो जानिए कि जोरदार बरसात तो होगी ही, आँधी भी चलेगी।

धोरा-धोरा वादरा, चले उतावर चाल।
नी बरसावे मेवलो, निडरो गेले चाल।।


यदि सफेद बादल तेजी से जाते दिखें तो निश्चिंत होकर यात्रा पर निकल जाएँ। बरसात नहीं होगी।

वायुकुंडो चन्द्रमो, जद बी नजरा आयें।
दखनियों वायरो चले, पाणी ने तरसाय।।


यदि चन्द्रमा के इर्दगिर्द वायु कुंड (थोड़ा दूर गोल वृत्त) बना दिखे तो दक्षिणी हवा चलेगी और वर्षा में विलम्ब होगा।

कामण्यो वायरो ढबे, भीतर मन अकलाय।
परसीनो चप- चप कर, तरतंई बरखा आय।।


यदि मानसूनी हवा चलने लगे, भीतर ही भीतर मन अकुलाने लगे और शरीर से पसीना चूने लगे तो जान लो कि अब बरसात होने में विलम्ब नहीं है। यह वैज्ञानिक वास्तविकता है कि वातावरण में नमी बढ़ने के कारण उमस बढ़ती है। उमस के बढञने से पसीना आता है और बेचैनी अनुभव होती है। उमस का बढ़ना, बरसात का संकेत है।

लांबो चाले वायरो, घोरा बादर जाय।
बरखा लाम्बी ताण दे, फसला ने तरसाय।।


यदि एक ही दिशा में लगातार हवा चले और आकाश में सफेद बादल तैरते दिखें तो जान लें कि अभी बरसात नहीं होगी। फसलें पानी को तरसेंगी।

कोंपर फूटें नीम की, पीपरयाँ तंबाय।
चेत चेत ग्यो जाण लो, अस्साढ़े बरसाय।।


यदि चैत्र माह में सही समय पर नीम में कोंपल निकल आएँ तथा पीपल के वृक्ष के पत्तों का रंग ताँबे जैसा हो जाए तो मान लो कि सही समय पर चैत्र आया है और असाढ़ के माह में समय पर बरसात अवश्य होगी।

दादर टर्रावे घणा,पीऽकां-पीऽकां मोर।
पपियो पी-पी कर पड़े, घन बरसे घनघोर।।


यदि मेंढक जोर-जोर से टार्राने लगें, मोर पीकां का शोर करे और पपीहा पीऽ की रट लगाए तो जानिए घनघोर बरसात होगी।

झाड़ मथारे बैठने, मोर मचाये शोर।
दशा भूल ग्या वादरा, चला गया किण ओर।।


वृक्ष के ऊपर भाग या चोटी पर बैठकर मोर शोर मचाए तो समझिए कि बादल राह भटक कर कहीं और चले गए हैं। फिलहाल बरसात की सम्भावना नहीं है।

होरी के दूजे दना, बादर घिरें अकास।
हावण हरियाला रहे, हे बरखा की आस।।


होली के दूसरे दिन यदि आसमान में बादल घिर आएँ तो मानिए कि श्रावण माह में खूब हरियाली होगी अर्थात पर्याप्त बरसात होगी।

जणी दनाँ होरी बरे, बादर दिखें अकास।
बरखा सुभ की आवसी, रित असाढ़ के मास।।


जिस दिन होली जलती है उस दिन यदि आसमान में बादल घिर आएँ तो जानिए कि असाढ़ माह में पर्याप्त बरसात होगी।

पाणी पीवे धाव,
नी लागे लू की झाप।


गर्मी के दिनों में धूप में जाने के पहले पानी पीकर बाहर निकलने से लू नहीं लगती।

सेवे शुद्ध पाणी अन हवा,
कई करे वैद अन दवा।


शुद्ध हवा और पानी का सेवन करने वाला व्यक्ति कभी बीमार नहीं पड़ता। उसे दवा और वैद्य की आवश्यकता नहीं होती है।

करसे पाणी तप उठे, चिड़िया न्हावे धूर।
अंडा ले चींटी चलै, बरखा हे भरपूर।।


जब कलश में रखा पानी अपने आप गर्म होने लगे। चिड़ियाँ धूल में स्नान करने लगें और चीटियाँ अपने बिलों से अण्डों को लेकर ऊँचे स्थानों की ओर जाने लगें तो भरपूर बरसात होगी। हमारी टीम को यह कहावत प्रदेश के सभी अंचलों में सुनने को मिली। इस कारण हमें लगता है कि ज्ञान-विज्ञान को आंचलिकता की सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता। उसका प्रभाव चारों ओर दिखता है।

हमारी टीम को लगता है सभी कहावतों के विज्ञान पक्ष का अध्ययन किया जाना चाहिए और उनकी संप्रेषण कला की ग्राह्यता को आधुनिक युग में उपयोग में लाना चाहिए। इन कहावतों के सम्प्रेषण पर विचार करते समय हमें लगा कि इन कहावतों में समाज का हित छुपा है इसलिए उनके सम्प्रेषण का असर स्थायी बना। सभी अंचलों में हमें एक भी ऐसी कहावत सुनने में नहीं आई जो किसी का विज्ञापन करती हो या दूसरे के हित को शब्दाजाल में लपेट कर समाज को बरगलाती हो।

-73, चाणक्यपुरी, चूना भट्टी, भोपाल (म.प्र.) 462016

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