अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1956 के अंतर्गत जब दो या दो से अधिक राज्य सरकारों के बीच जल विवाद पैदा होता है तो अधिनियम की धारा 3 के तहत कोई भी नदी घाटी राज्य केंद्र सरकार को इस संबंध में अनुरोध भेज सकता है। अधिनियम के अंतर्गत ऐसे अंतर्राज्यीय जल विवादों की स्थिति इस प्रकार है:
उक्त अधिनियम के अंतर्गत,जिस विवाद को बातचीत के जरिए नहीं सुलझाया जा सकता इसके प्रति संतुष्ट होने की स्थिति में केंद्र सरकार उस विवाद को एक पचांट को सौंप सकती है। तदनुसार, कावेरी और कृष्णा से संबंधित जल विवाद क्रमश: 1990 और 2004 में फैसले के लिए पंचाटों को सौंप दिए गए थे।
कावरी जल विवाद पंचाट ने 25 जून 1991 को अंतरिम आदेश पारित किया और फिर अप्रैल 1992 और दिसंबर 1995 में स्पष्टीकरण आदेश जारी किए। बाद में 5.2.2007 को पंचाट ने अंतर्राज्यीय नदी विवाद अधिनियम 1956 की धारा 5(2) के अंतर्गत अपनी रिपोर्ट और फैसला दिया। इस रिपोर्ट और निर्णय सुनाए जाने के पश्चात केंद्र और राज्य सरकारों ने अधिनियम की धारा 5(3) के तहत पंचाट से स्पष्टीकरण और निर्देश के लिए अनुरोध किया है। मामला पंचाट के विचाराधीन है। मामले से संबद्ध राज्यों ने पंचाट के 5.2.2007 के निर्णय के विरूद्ध माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की है और अब यह मामला न्यायालयाधीन है।
कृष्णा जल विवाद पंचाट ने संबद्ध राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश द्वारा अंतरिम राहत के लिए दायर आवेदन पर 9 जून 2006 को निर्णय सुनाया और अंतरिम राहत प्रदान करने से इंकार करते हुए पंचाट से विवाद का हल प्राप्त करने के लिए कुछ नियमों की ओर इंगित किया। इसके पश्चात आंध्रप्रदेश राज्य ने अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1956 की धारा 5(3) के अंतर्गत संवादात्मक आवेदन दायर किया जिसमें 9 जून 2006 के पंचाट के आदेश के अंतर्गत स्पष्टीकरण/मार्गनिर्देश मांगे गए हैं, यह आवेदन अभी लंबित है। पंचाट ने सिंतंबर और अक्टूबर 2006 को हुई सुनवाई में अपने सम्मुख विवाद के हल के लिए 29 मुद्दों की पहचान की है। पंचाट की सुनवाइयां अभी जारी हैं।
महादायी/मण्डोवी और वंसाधारा जल विवादों के संबंध में गोवा और उड़ीसा राज्यों के निवेदन जुलाई 2002 और फरवरी 2006 में प्राप्त हुए हैं। महादायी जल विवाद के बारे में इस मंत्रालय में यह राय बनी है कि यह विवाद बातचीत से नहीं सुलझाया जा सकेगा और अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1956 के अनुसार आगे कार्रवाई की जा रही है। वन्सधारा जल विवाद के संबंध में पंचाट की स्थापना अनुपालन के चरण में है।
रावी और व्यास नदियों के जल पर पंजाब और हरियाण के दावों पर फैसला देने के लिए पंजाब समझौते (राजीव-लोंगोवाल सहमति-1985) के अनुच्छेद 9.1 और 9.2 के अनुसरण में 1986 में गठित रावी-व्यास जल पंचाट ने 30 जनवरी, 1987 को अपनी रिपोर्ट दाखिल की। संबद्ध राज्यों के संदर्भों और अपनी रिपोर्ट पर केंद्र सरकार द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरणों/मार्गनिर्देर्शों पर अभी पंचाट को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपनी है। पंचाट की कार्यवाही माननीय सर्वोच्च न्यायालय में पंजाब समझौतों के समापन का अधिनियम 2004 पर राष्ट्रपति के संदर्भ पर आने वाले निर्णय पर निर्भर हो गई है।
सतलज यमुना सम्पर्क नहर के जरिए रावी-व्यास नदी जल में से हरियाणा का हिस्सा दिया जाना है। पंजाब के क्षेत्र में इस नहर का कार्य पूरा होने के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 4 जून 2004 को एक निर्णय में केंद्र सरकार को नहर का काम पूरा करने की अपनी कार्ययोजना पर काम करने का निर्देश दिया था। केंद्र सरकार ने आवश्यक कार्यवाही की। किंतु पंजाब विधान सभा ने 12 जुलाई 2004 को रावी-व्यास नदी जल से संबंधित सभी समझौतों और उनके अंतर्गत सभी जिम्मेदारियों को निरस्त करते हुए पंजाब समझौता निरस्तीकरण अधिनियम 2004 लागू कर दिया। इस अधिनियम के बारे में माननीय सर्वोच्च न्यायालय में राष्ट्रपति की ओर से एक संदर्भ दायर किया गया है, जिसपर निर्णय अभी लंबित है।
अन्तर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 की मूल प्रति संलग्न है। कृपया पढ़ने के लिए डाऊनलोड करें
अन्तर्राज्यीय अन्तर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत जल विवाद
नदी/नदियां | राज्य | पंचाट के गठन की तिथि |
कृष्णा | महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक | अप्रैल 1969 |
गोदावरी | महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, उड़ीसा | अप्रैल 1969 |
नर्मदा | राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र | अक्टूबर 1969 |
कावेरी | केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी | जून 1990 |
कृष्णा | महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक | अप्रैल 2004 |
मदेई/मण्डोवी/महादयी | गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र | निर्माणाधीन |
वन्सधारा | आंध्र प्रदेश और उड़ीसा | निर्माणाधीन |
उक्त अधिनियम के अंतर्गत,जिस विवाद को बातचीत के जरिए नहीं सुलझाया जा सकता इसके प्रति संतुष्ट होने की स्थिति में केंद्र सरकार उस विवाद को एक पचांट को सौंप सकती है। तदनुसार, कावेरी और कृष्णा से संबंधित जल विवाद क्रमश: 1990 और 2004 में फैसले के लिए पंचाटों को सौंप दिए गए थे।
कावरी जल विवाद पंचाट ने 25 जून 1991 को अंतरिम आदेश पारित किया और फिर अप्रैल 1992 और दिसंबर 1995 में स्पष्टीकरण आदेश जारी किए। बाद में 5.2.2007 को पंचाट ने अंतर्राज्यीय नदी विवाद अधिनियम 1956 की धारा 5(2) के अंतर्गत अपनी रिपोर्ट और फैसला दिया। इस रिपोर्ट और निर्णय सुनाए जाने के पश्चात केंद्र और राज्य सरकारों ने अधिनियम की धारा 5(3) के तहत पंचाट से स्पष्टीकरण और निर्देश के लिए अनुरोध किया है। मामला पंचाट के विचाराधीन है। मामले से संबद्ध राज्यों ने पंचाट के 5.2.2007 के निर्णय के विरूद्ध माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की है और अब यह मामला न्यायालयाधीन है।
कृष्णा जल विवाद पंचाट ने संबद्ध राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश द्वारा अंतरिम राहत के लिए दायर आवेदन पर 9 जून 2006 को निर्णय सुनाया और अंतरिम राहत प्रदान करने से इंकार करते हुए पंचाट से विवाद का हल प्राप्त करने के लिए कुछ नियमों की ओर इंगित किया। इसके पश्चात आंध्रप्रदेश राज्य ने अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1956 की धारा 5(3) के अंतर्गत संवादात्मक आवेदन दायर किया जिसमें 9 जून 2006 के पंचाट के आदेश के अंतर्गत स्पष्टीकरण/मार्गनिर्देश मांगे गए हैं, यह आवेदन अभी लंबित है। पंचाट ने सिंतंबर और अक्टूबर 2006 को हुई सुनवाई में अपने सम्मुख विवाद के हल के लिए 29 मुद्दों की पहचान की है। पंचाट की सुनवाइयां अभी जारी हैं।
महादायी/मण्डोवी और वंसाधारा जल विवादों के संबंध में गोवा और उड़ीसा राज्यों के निवेदन जुलाई 2002 और फरवरी 2006 में प्राप्त हुए हैं। महादायी जल विवाद के बारे में इस मंत्रालय में यह राय बनी है कि यह विवाद बातचीत से नहीं सुलझाया जा सकेगा और अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1956 के अनुसार आगे कार्रवाई की जा रही है। वन्सधारा जल विवाद के संबंध में पंचाट की स्थापना अनुपालन के चरण में है।
रावी और व्यास नदियों के जल पर पंजाब और हरियाण के दावों पर फैसला देने के लिए पंजाब समझौते (राजीव-लोंगोवाल सहमति-1985) के अनुच्छेद 9.1 और 9.2 के अनुसरण में 1986 में गठित रावी-व्यास जल पंचाट ने 30 जनवरी, 1987 को अपनी रिपोर्ट दाखिल की। संबद्ध राज्यों के संदर्भों और अपनी रिपोर्ट पर केंद्र सरकार द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरणों/मार्गनिर्देर्शों पर अभी पंचाट को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपनी है। पंचाट की कार्यवाही माननीय सर्वोच्च न्यायालय में पंजाब समझौतों के समापन का अधिनियम 2004 पर राष्ट्रपति के संदर्भ पर आने वाले निर्णय पर निर्भर हो गई है।
सतलज यमुना सम्पर्क नहर के जरिए रावी-व्यास नदी जल में से हरियाणा का हिस्सा दिया जाना है। पंजाब के क्षेत्र में इस नहर का कार्य पूरा होने के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 4 जून 2004 को एक निर्णय में केंद्र सरकार को नहर का काम पूरा करने की अपनी कार्ययोजना पर काम करने का निर्देश दिया था। केंद्र सरकार ने आवश्यक कार्यवाही की। किंतु पंजाब विधान सभा ने 12 जुलाई 2004 को रावी-व्यास नदी जल से संबंधित सभी समझौतों और उनके अंतर्गत सभी जिम्मेदारियों को निरस्त करते हुए पंजाब समझौता निरस्तीकरण अधिनियम 2004 लागू कर दिया। इस अधिनियम के बारे में माननीय सर्वोच्च न्यायालय में राष्ट्रपति की ओर से एक संदर्भ दायर किया गया है, जिसपर निर्णय अभी लंबित है।
अन्तर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 की मूल प्रति संलग्न है। कृपया पढ़ने के लिए डाऊनलोड करें
अन्तर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 में सरकारिया आयोग द्वारा सुझाए गये संशोधनों
की मूल प्रति भी संलग्न है। कृपया पढ़ने के लिए डाऊनलोड करेंPath Alias
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