आंध्र प्रदेश की नई राजधानी के लिये राज्य सरकार लैंड पूलिंग के जरिए किसानों से जमीन ले रही है। बेहद उपजाऊ और बहुफसली जमीन होने की वजह से इस परियोजना पर सवाल भी उठ रहे हैं
एक गाँव जो कृष्णा नदी के तट पर बसा है उदानदरायुनिपेलम। गुंटूर जिला स्थित इस क्षेत्र की गिनती देश के सर्वाधिक उपजाऊ जमीनों में की जाती है। यहाँ की ज्यादातर जमीनें तीन फसली हैं। काली कपासी मिट्टी वाले इन खेतों में धान, चना, अरहर, मूंग, सरसों, कपास, मिर्च, गन्ना और केले की अच्छी खेती होती है।
अगले साल मार्च-अप्रैल के बाद अमरावती समेत 29 गाँवों में कोई खेती नहीं होगी। आंध्र प्रदेश सरकार ने इस बाबत अधिसूचना भी जारी कर दी है। फिलहाल यहाँ की खेतों में जो भी फसलें लगी हैं, वे इस इलाके की आखिरी फसल है। कुछ महीने बाद यहाँ के खेतों में हल और बैल की जगह जेसीबी, सीमेंट और लोहे से लदे ट्रक दिखाई देंगे। अमरावती को कभी ‘धान का कटोरा’ कहा जाता था। अब यह माजी का हिस्सा बन जाएंगी।
इतिहास के मुताबिक, अमरावती सन 1800 ई. पहले सातवाहन वंश की राजधानी थी। कृष्णा नदी के किनारे स्थित होने के कारण यह नगर उन दिनों कृषि एवं व्यापारिक गतिविधियों के लिये मशहूर था। सूबे के मुख्यमंत्री एन.चंद्र बाबू नायडू यह कहते हुए गर्व महसूस करते हैं कि उन्होंने अमरावती को पुनर्जीवित करने का काम किया है। सिंगापुर और जापान की मदद से वह हरित अमरावती को कंक्रीट के शहर में तब्दील करने पर आमादा है।
सातवाहन शासन के दौरान अमरावती एक कृषि प्रधान राजधानी थी, लेकिन चंद्र बाबू के शासन में यह राजधानी विशुद्ध व्यवसायिक होगी। यहाँ चिकनी-चौड़ी सड़कों पर फर्राटा भरती कारें, क्लब और मल्टीप्लेक्स बिल्डिंग्स दिखाई पड़ेगें। मुख्यमंत्री नायडू की कथित जनता की राजधानी कैसी होगी, इसका मॉडल भी उन्होंने जारी कर दिया है। हैदराबाद में सामाजिक कार्यकर्ता पीजे सूरी बताते हैं, इस राजधानी में तमाम आधुनिक सुख-सुविधाएँ होंगी, लेकिन यहाँ मुख्यमंत्री को एक खास म्यूजियम भी बनाना चाहिए, जिसमें किसानों की मूर्तियाँ और खेती से जुड़े उनके औजार रखे जाने चाहिए। ताकि देश और दुनिया से आने वाले लोग यह जान सकें कि अमरावती में कभी खेती और किसानी भी होती थी।
जून 2014 में तेलंगाना राज्य बनने के बाद आंध्र प्रदेश को नई राजधानी की जरूरत थी। पहले से विकसित गुंटूर और विशाखापट्टनम को नई राजधानी बनाई जा सकती थी। इन जिलों में अधिक जमीन की जरूरत भी नहीं पड़ती। तमाम सुझावों के बावजूद मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू अमरावती में सूबे की नई राजधानी बनाने का फैसला किया। उनके इस फैसले पर अब सवाल भी उठने लगे हैं। लैंड पूलिंग का विरोधी कर रही सीपीएम नेताओं का कहना है कि अमरावती में कम्मा जाति की संख्या अधिक है। मुख्यमंत्री नायडू का संबंध भी इसी जाति से है।
वैसे तो नई राजधानी बनाने की घोषणा डेढ़ साल पहले हुई, लेकिन तेलगूदेशम पार्टी की सरकार के कई मंत्रियों एवं विधायकों को पहले ही इसकी भनक लग चुकी थी। यही वजह है कि टीडीपी से जुड़े नेताओं, बड़े अधिकारियों और प्रोपर्टी डीलरों ने यहाँ की जमीनें खरीदनी शुरू कर दी। बाजार भाव से अधिक कीमत मिलने की वजह से अधिकांश किसानों ने अपनी जमीनें बेच दीं। उस वक्त उन्हें नहीं पता था कि अमरावती ही नई राजधानी बनेगी। जब सरकार ने इस बाबत एलान किया तो किसान खुद को ठगा महसूस करने लगे। सीपीएम का आरोप है कि नई राजधानी के नाम पर यहाँ किसानों की जमीनें लूटी जा रही हैं। टीडीपी के ज्यादातर मंत्री व विधायक अमरावती की आड़ में रीयल इस्टेट का धंधा चला रहे हैं।
विजयादशमी के दिन प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी नई राजधानी की नींव रखी। भूमि पूजन में आंध्र प्रदेश के सभी गाँवों की मिट्टी, देशभर की पवित्र नदियों से पानी यहाँ लाया गया। वास्तु आधारित बनने वाली इस नई राजधानी से मुख्यमंत्री नायडू को खास उम्मीद है। उन्हें विश्वास है कि इससे राज्य में सुख-शांति और समृद्धी बढ़ेगी। गौरतलब है कि नई राजधानी के लिये उदानदरायुनिपेलम समेत कुल 29 गाँवों की 33,692 हजार एकड़ जमीन लैंड पूलिंग के जरिए अधिग्रहीत की जा रही है। इनमें कृष्णापेल्यम, रायापुडी, लिंगायापेलम, मलकापुरम, तुल्लुरू, वैंकेटापेलम, नेलापेडू, अनंतवरम ऐसे गाँव हैं, जहाँ भूजल स्तर महज दस फीट नीचे है। इस समय यहाँ खेतों में अरहर, कपास, चना और मिर्च की फसलें खड़ी हैं।
चिंता खाद्य सुरक्षा कानून की केन्द्र सरकार खाद्य सुरक्षा कानून की बात करती है, लेकिन नई राजधानी अमरावती को बसाने के नाम पर जिस तरह हजारों एकड़ बहुफसली जमीन किसानों से ले रही है, उससे न सिर्फ किसानों का नुकसान होगा, बल्कि भविष्य में खाद्य संकट की स्थितियों का भी सामना करना पड़ेगा। अमरावती इलाके में बड़े पैमाने पर दलहन की खेती होती है। नई राजधानी बनने के बाद यहाँ कृषि कार्य पूरी तरह बंद हो जाएगा, ऐसे में जरूरी खाद्यान संकट से गुजर रहे देश को काफी नुकसान भी हो सकता है। एक तरफ सरकार खाद्य सुरक्षा विधेयक अमल में लाती है, दूसरी तरफ वह उपजाऊ कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण करती है। ऐसे में खाद्य सुरक्षा अधिनियम कितना प्रभावी होगा, यह एक अहम सवाल है। |
इस इलाके में जिन लोगों के पास अधिक जमीनें हैं, उनमें ज्यादातर हैदराबाद और विजयवाड़ा आदि शहरों में रहते हैं। ऐसे बड़े किसान स्वयं खेती नहीं करते और वे बंटाई पर अपनी जमीनें चढ़ा देते हैं। बदले में बटाईदार किसान जमीन मालिक को 10 से 15 हजार रुपये सालाना देता है। गुंटूर जिलाधिकारी कार्यालय के अनुसार, अमरावती में ऐसे भूमिहीन छोटे किसानों की संख्या करीब 28 हजार है, जो दूसरों की जमीन पर खेती करते हैं। नई राजधानी के शिलान्यास होने के बाद अब ऐसे किसानों के सामने बेरोजगारी का संकट पैदा हो गया है।
हालाँकि, गुंटूर के जिला कलेक्टर कांतिलाल डांडे के अनुसार, लैंड पूलिंग से प्रभावित होने वाले बटाईदार किसानों को सरकारी मदद दी जाएगी। सरकार से उन्हें किस तरह की सुविधाएँ मिलेंगी फिलहाल यह तय नहीं है।
यहाँ आने से पहले इस संवाददाता के मन में यह सवाल था कि किसानों से उनकी बहुफसली जमीनें ली जा रही हैं, लेकिन अमरावती में इसे लेकर कोई विरोध क्यों नहीं हो रहा है? किसानों से बात करने के बाद इसका जवाब मिल गया। दरअसल, आंध्र प्रदेश सरकार ने यहाँ भूमि अधिग्रहण से इतर लैंड पूलिंग स्कीम का सहारा लिया है। इसके तहत कोई किसान अगर अपनी एक एकड़ सिंचित जमीन देता है, तो बदले में राज्य सरकार उस भू-स्वामी को नई राजधानी में 1400 गज रेसीडेंसियल और 450 गज डेवलप कॉमर्शियल प्लॉट देगी। इसके अलावा नई राजधानी बनने यानी दस वर्षों तक सरकार 50 हजार रुपये एकड़ मुआवजा देगी। यही वजह है कि लैंड पूलिंग स्कीम यहाँ के किसानों को पसंद आया और उन्होंने अपनी जमीनें दीं।
शहरों में रहने वाले बड़े किसानों को जहाँ एक एकड़ पर सालाना 10 से 15 हजार रुपये मिलते थे, वहीं लैंड पूलिंग से उन्हें 35 से 40 हजार रुपये का फायदा हो रहा है। इतना ही नहीं, उन्हें अमरावती में डेवलप रेसिडेंसियल और कॉमर्शियल प्लॉट भी मिल रहे हैं। शायद यही वजह है कि किसानों द्वारा लैंड पूलिंग का कोई विरोध नहीं हो रहा है। हालत यह है कि कैपिटल रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (सीआरडीए) के तुल्लरू दफ्तर में जमीन देने के लिये किसानों की लंबी कतार लगी रहती है।
वाईएसआर कांग्रेस अमरावती में लैंड पूलिंग का विरोध कर रही है। जगनमोहन रेड्डी इसके खिलाफ अनशन भी कर चुके हैं। उनका कहना है कि कई किसान डर की वजह से भी जमीन दे रहे हैं। उन्हें लगता है कि जमीन नहीं देने पर सरकार उसे छीन लेगी। फिलहाल अमरावती में लैंड पूलिंग का उतना विरोध नहीं हो रहा है, लेकिन इस मुद्दे पर यहाँ एक बड़े आंदोलन की जमीन जरूर तैयार हो रही है। आंध्र प्रदेश किसान आत्महत्या से प्रभावित राज्य है। पिछले डेढ़ दशकों के दौरान कर्ज और गरीबी में डूबे हजारों किसानों ने यहाँ आत्महत्या की।
इस सच्चाई को जानते हुए भी तेलुगू देशम पार्टी सरकार अमरावती के किसानों से उनकी खेती छीन रही है। सरकार कहती है कि अपनी मर्जी से यहाँ के किसान जमीन दे रहे हैं। इससे किसानों को फायदा मिलेगा, क्योंकि सरकार इसके एवज में किसानों को डेवलप लैंड देगी। कुछ इसी तरह का किस्सा एनसीआर का भी है। जब नोएडा, गुड़गाँव और फरीदाबाद बसाए जा रहे थे, तो उसमें किसानों की जमीनें ली गईं। उस वक्त किसानों को निर्धारित मुआवजा तो मिला, लेकिन अपनी जमीन और खेती से अलग होकर कितने किसान संपन्न हो सके। यह एक बड़ा सवाल है?
यहाँ के ज्यादातर किसानों ने मुआवजे में मिले रुपये शराब और शाहखर्ची में गँवा दिए। आज हालत यह है कि एनसीआर के बड़े किसान कहे जाने वाले लोग वहाँ की फैक्टरियों में मजदूरी करते देखे जा सकते हैं। अमरावती का हश्र भी ऐसा हो, इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। गुंटूर की एडिशनल ज्वाइंट डायरेक्टर ऑफ एग्रीकल्चर एस. सुनीथा बताती हैं कि अमरावती कैपिटल रीजन के सभी 29 गाँवों में रबी और खरीफ फसलों की अच्छी पैदावार होती है। उत्तम क्वालिटी की बासमती धान यहाँ की मुख्य फसल है। लंबे रेशे वाले कपास, मिर्च और दलहन का उत्पादन यहाँ काफी होता है।
अमरावती में लैंड पूलिंग का सर्वाधिक विरोध ताडेपल्ली, उंडावल्ली, बोरूपेलम, मलकापुरम, उदघनदरायुनिपेलम व रायापुडी गाँव में हो रहा है। सीपीएम के डिविजनल सेकेटन्नी दुंती वेंकट रेड्डी बताते हैं, आंध्र प्रदेश सरकार किसानों को डराकर और झांसा देकर उनसे जमीनें ले रही हैं। यह जानते हुए कि यह बहुफसली भूमि है। राजधानी बनाने के लिये 5000 एकड़ भूमि काफी थी, इसके लिये हजारों एकड़ जमीन लेने का कोई मतलब नहीं है।
गौरतलब है कि ताडेपल्ली गाँव में सीआरडीए यानी कैपिटल रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी को ताडेपल्ली गाँव में कुल 800 एकड़ जमीन लेनी है। यहाँ सीपीएम का काफी प्रभाव है। यहाँ के ज्यादातर किसान जमीन देने के मूड में नहीं हैं। उसी तरह पेनूमाका गाँव में 3000 एकड़ जमीन ली जानी है। फिलहाल यहाँ सीआरडीए को 2000 एकड़ जमीन मिल चुकी है। तेलुगू कवि वरवर राव अमरावती को राजधानी बनाए जाने को दुर्भाग्यपूर्ण मानते हैं। इनके मुताबिक, अमरावती किसानों के दुख एवं आँसुओं से बनी राजधानी होगी। बहुफसली जमीन पर स्मार्ट सिटी बनाना किसानों के हित में नहीं है। तुल्लूरु निवासी सत्यनारायण बताते हैं, राजधानी बनने से अमरावती के लोग खुश तो हैं, लेकिन उन्हें इलाके की खेती चौपट होने का अफसोस भी है।
पर्यावरण को खतरा
अपनी हरियाली और उर्वर भूमि के रूप में शुमार अमरावती का यह गौरव अब समाप्त होने वाला है। नई राजधानी सिंगापुर और मलेशिया की तर्ज पर बनेगा, लेकिन उसमें वह अमरावती कहीं नजर नहीं आएगा, जिसकी अंतिम सुंदरता का जिक्र कभी चीनी यात्री वेनसांग ने किया था।
अमरावती को आंध्र प्रदेश की नई राजधानी बनाने से पर्यावरणविद खुश नहीं है। उनकी चिंता इस बात को लेकर है कि नई राजधानी के नाम पर न सिर्फ इलाके के संरक्षित वनों को नुकसान पहुँचेगा, बल्कि यहाँ बहने वाली कृष्णा नदी के मार्ग में कई तरह की बाधाएं उत्पन्न होगी। इतिहास की किताबों में जिक्र है कि 1800 बरस पहले अमरावती सातवाहन साम्राज्य की राजधानी थी। उस वक्त कृष्णा नदी के जरिए काफी व्यापार होता था। दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर दिवाकर कुमार सिंह बताते हैं, ‘सातवाहन शासन के दौरान अमरावती काफी खुशहाल था। कृषि और व्यापार उन दिनों काफी प्रगति पर थीं।
मौर्य शासन के बाद सातवाहन साम्राज्य ही ऐसा था, जहाँ कला, शिल्प और संस्कृति को बढ़ावा मिला। उनके मुताबिक, अमरावती का इतिहास करीब 200 ईसा पूर्व से मिलता है। सातवाहन शासन के दौरान वहाँ के राजा बौद्ध धर्म के अनुयायी हो गए और कृष्णा नदी के तट पर प्रबौद्ध महाचैत्य स्तूप बनवाया। यहाँ संग्रहालय में रखी भगवान बुद्ध की आदमकद मूर्ति भी कई मायनों में खास है। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का प्रचार अमरावती शहर से ही सुदूर पूर्व के देशों तक हुआ। चीनी यात्री वेनसांग ने भी अमरावती के बौद्ध विहार और स्तूपों का शानदार वर्णन किया है।
हालाँकि, आधुनिक राजधानी अमरावती में ऐसा कुछ नहीं है। देश भर में अपनी उपजाऊ भूमि के लिये प्रसिद्ध कृष्णा डेल्टा में चंद महीनों के बाद किसानों के हल की बजाय जेसीबी मशीनें चलेंगी। खेती की जमीनों में गहरी खुदाई होगी और उसमें सीमेंट, कंक्रीट और लोहे भरे जाएंगे। इस तरह कुछ ही वर्षों में यहाँ का भू-दृश्य बदल जाएगा, खेती और हरियाली अतीत के पन्नों में खो जाएगा। गौरतलब है कि नई राजधानी के लिये आंध्र प्रदेश सरकार लैंड पूलिंग के जरिए किसानों से उनकी जमीनें ले रही हैं। सरकार ने इस बाबत 34,000 एकड़ भूमि अर्जित करने का लक्ष्य रखा है। नई राजधानी की जद में वन विभाग की 10,200 एकड़ जमीन है।
राजधानी क्षेत्र के कोंडावेडू, वेंकटापेलम, मंगलगिरि और ताडेपल्ली गाँव में वन विभाग की सर्वाधिक जमीनें हैं। एक अनुमान के मुताबिक, नई राजधानी के लिये अमरावती में लाखों की संख्या में पेड़ काटे जाएंगे। पर्यावरण से जुड़े संगठनों में इसे लेकर काफी चिंता है। गुंटूर के सामाजिक कार्यकर्ता राजशेखर राव बताते हैं, ‘पेड़-पौधों को विकास की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। डेवलपमेंट के समय भरोसा दिलाया जाता है कि जितने पेड़ काटे जाएंगे, उससे तीन गुना पेड़ लगाए जाएंगे। विकास परियोजनाओं के नाम पर नष्ट हुए जंगलों के बदले कितने नए वन क्षेत्र बने हैं?’ गुंटूर के डीएफओ के. लोहितसायुडू यह बातें पूरी तरह गलत और हास्यास्पद ही लगती हैं कि ‘नई राजधानी के लिये कोई पेड़ नहीं काटे जाएंगे।’
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