भोपाल स्कूल ऑफ सोशल साइंसेस के सभागार में रविवार को नर्मदा संरक्षण न्यास ने नर्मदा पर्यावरण आस्था और अस्तित्व विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया है। जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह, नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर और पर्यावरणविद राजेन्द्र चंद्रकांत राय सहित नदी संरक्षण से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए । इस बीच मेघा प[पाटेकर ने कहा कि नर्मदा केवल एक नदी नहीं है बल्कि यह मातेश्वरी हैं।
इस दौरान पाटेकर ने नर्मदा नदी से अन्य शहरों पर किये जा रहे पानी सप्लाई करने की योजनाओं पर सवाल खड़े किए और इसे रोकने की अपील की और कहा कि नदी के विकास के नाम पर जब हम नदी को तोड़ते और जोड़ते हैं तो अमेरिका ही हमको पहला संदेश देने वाला देश था। आज अमेरिका ने एक हजार बांध तोड़कर नदियों को स्वतंत्र कर दिया है। आज हम उसी टेनिसी वेली के आधार पर चलते रहेंगे। इस बीच उन्होंने अंनकंट्रोल रेत खनन को विनाशकारी बताया।
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रेत में करोड़ों का व्यापार चल रहा है –
पाटेकर ने कहा कि रेत में करोड़ों का व्यवहार चल रहा है। एक कार्पोरेशन जिसका नाम शिवा है। अब यह नाम शिव से आया है कि कहां से आया है, कौन जानें। लेकिन यह कार्पोरेशन पूरा कंट्रोल कर रहा है। एक और घोषणा होती है कि रेत खनन हम नहीं करने देंगे। दूसरी ओर जिस तरह से खनन किया जा रहा है उससे उप नदियां खत्म होने के कगार पर पहुंच जाएगी और नर्मदा का भी खत्म होना शुरू हो चुका है। बांध ऊपर गया है नदी नीचे चली गई। उन्होंने कहा अनकंट्रोल खनन विशानकारी भी है। हम लोग जान भी दें तो भी खनन करने वाले नहीं रुकेंगे। इसका ऐसा बाजार खड़ा हो गया है। इंदौर के राजेंद्र नगर में खुली मंडी चलती है। यह भी सबके नजर में है। यदि हमको सबकुछ वर्ल्ड क्लास बनाने के लिए कंस्ट्रक्शन करना है तो डिस्ट्रक्शन ही डिस्ट्रक्शन होगा।
एनजीटी के आदेश के बाद भी नहीं रूकता खनन –
संसाधनों पर पहला हक स्थानीय लोगों का होगा तो ही नर्मदा बचेगी। वहां टूरिस्ट कमाई करने, रेत के लिए लोग उतर आएंगे तो नर्मदा कभी नहीं बचेगी। रेत खनन पर खुलेआम चर्चा हो रही है। सबको मालूम है कि सीहोर में सबसे ज्यादा रेत खनन चल रहा है। जहां भी नर्मदा का अंश है। लेकिन यह कैसे हो रहा है। एनजीटी ने सभी चीफ सेक्रेटरी को कई आदेश दिए हैं कि बिना मंजूरी केनदि किनारे रेत खनन नहीं होना चाहिए। इसके बाद भी खनन हो रहा है।
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कानून बदलकर पता नहीं जंगल बाबा रामदेव को या किसे बेच दें –
पाटेकर ने कहा कि नर्मदा के पूरी घाटी का एक-एक संसाधन पर्यावरण का हिस्सा है। आक्सीजन के बिना तड़पते-तड़पते धनवान लोग गुजर गए। ऐसे में पर्यावरण की बात धरातल पर उतर आई है। आज यह समझना जरूरी है कि हरे वेंटीलेटर्स ही जान बचाते हैं। नर्मदाघाटी घाटी के सतपुड़ा के आदिवारियों में कोई भी कोरोना से पीड़ित नहीं हुआ। उन्हें लाखों रुपए वेंटीलेटर खरीदने की नहीं पड़ें। उन्होंने जंगल मिर्ची से ही बुखार उतार दिया। यह जो जंगल हैं जो जड़ी-बूटियों, जैविक विविधता का आधार है, उससे संबंधित कानून बदलकर पता नहीं सब जंगल बाबा रामदेव ले जाएंगे कि कौनसी कंपनियां खरीद लेंगी।
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