अम्बाला का पानी

अम्बाला. पानी मानव जीवन को प्रकृति का बड़ा उपहार है। प्रकृति के इस उपहार का जिले के कुछ एरिया में स्वरूप बिगड़ रहा है। इसका बिगड़ता स्वरूप दांतों की समस्याओं, हड्डियों की कमजोरी से लेकर कई समस्याओं का कारण बन सकता है। हाल में रिसर्च वर्क के दौरान केमिस्ट्री लेक्चर्स द्वारा अम्बाला व आसपास के पानी सैंपल जांचे गए, जो पानी इस्तेमाल को लेकर चौकन्ना होने का संकेत दे रहे हैं।

रिसर्च से सामने आया है कि शहर व आसपास के गांवों में पानी में कई नुकसानदायक तत्व सामान्य से अधिक हो रहे हैं। हालांकि अभी स्थिति गंभीरता भरी या नियंत्रण से बाहर नहीं है। लेकिन अगर ऐसे ही पानी में नुकसानदायक तत्वों की बढ़ती है, तो गंभीर परिणाम होंगे। इंडस्ट्री व हास्पीटल वेस्ट और पानी को गंदगी से बचाने के प्रबंधों के अभाव में शहर के सामने ये समस्या उपजी है।

कहां, कहां से लिए गए सैंपल
क्षेत्र में पानी की गुणवत्ता जांचने के लिए शहर और विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों से 15 सैंपल लिए गए। इनमें विभिन्न एरिया से डीएवी स्कूल छावनी, रामकृष्ण कालोनी, सिविल अस्पताल, गणोश विहार, प्रभु प्रेम आश्रम, हाउसिंग बोर्ड कालोनी,छावनी का बंगाली मोहल्ला व गवाल मंडी, हाथीखाना मंदिर, रामनगर , बस स्टैंड के आसपास व उधर बलदेव नगर सिटी, मुलाना व आसपास के गांवों से सैंपल लिए गए। इन सैंपल को पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ स्थित अंतरराष्ट्रीय मानकों की लैब व जिला मुख्यालय स्थित पीडब्लयूडी में यूएसए से लाए उपकरणों पर लगाया जाए।

कहां पानी में कैसी कमी पाई गई
छावनी में हाउसिंग बोर्ड, डीएवी स्कूल के आसपास के एरिया, बंगाली मोहल्ला व गवाल मंडी, रामनगर में फलोराइड के मात्रा सामान्य से अधिक पाई गई है। सामान्य तौर पर इसकी पानी में अधिक मात्रा 1.5पीपीएम होनी चाहिए, लेकिन इन क्षेत्रों में यह 2 पीपीएम से भी अधिक है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे दांतों की समस्याएं बढ़ती है। यह हड्डियों को भी कमजोर करता है। उधर उक्त सभी स्थानों से लिए गए सैंपल में एलकलिनिटी यानी क्षारियता की मात्रा सामान्य से काफी ऊपर होग गई है। इसकी पानी में इसकी मात्रा 600 पीपीएम से अधिक नहीं होनी चाहिए, जबकि ये 980 को पार कर रही है। क्षारियता बढ़ने से भूख पर असर पड़ता है।

ये तत्व बढ़ा, तो बढ़ेंगी पत्थरी की समस्याएं
शहर व आसपास के एरिया से लिए गए सभी सैंपल में कैलशियम की मात्रा सामान्य से बढ़ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये पत्थरी का कारण बन सकती है। रिसर्च टीम सदस्यों का कहना है कि फिल्हाल इस तत्व के प्रभाव की फलोराइड की तरह ज्यादा चिंताजनक स्थिति तो नहीं है, लेकिन अगर यह आगे बढ़ता है तो समस्या पैदा करेगा।

15 गांवों के सैंपल जांचने का काम जारी
रिसर्च टीम सदस्य एसडी कालेज लेक्चरर डा. जेपी साहरन, डा. प्रेम सिंह ने बताया कि उनके साथ तीन एमफिल के स्टूडेंट भी इस कार्य में थे। उक्त स्थानों के अलावा 15 अन्य गांवों के पानी की स्थिति जांचने का काम प्रक्रिया में है। धीरे धीरे जिले के काफी हिस्से के पानी के बारे में जाना जा सकेगा।

समस्या के साथ क्या है समाधान
पानी बड़ी महत्वपूर्ण जरूरत है। इसमें बढ़ती समस्याओं का चित्रांकन करने के साथ समाधान के बारे में भी संबंधित विशेषज्ञों से जाना।सिविल अस्पताल चिकित्सा अधिकारी डा. अजय छाबड़ा कहते हैं कि फलोराइड आदि के बढ़ने से दांतों व हड्डियों के लिए समस्याएं होती है, तो एलकनिटी पानी को हार्ड करती है। जो लोग थोड़ा खर्च उठा सकते है, वे वाटर प्योरिफायर लगा लेते हैं। लेकिन जो इसका खर्च नहीं उठा सकते, वे पानी को उबाल कर जरूर पीएं। पानी उबालने में लापरवाही नहीं होनी चाहिए। इससे दुष्प्रभावों से काफी हद तक बचा जा सकता है।

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