फूल निकलने के समय आम आर्द्रता, जल या कुहासा को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करता है। औसत वार्षिक वर्षा 150 से.मी. वाले क्षेत्रों में, पर्याप्त सूर्य की रोशनी एवं कम आर्द्रता में आम की फसल अच्छी होती है।
कम अम्लीय मिट्टी में आम की फसल अच्छी होती है। कच्चे आम का उपयोग अचार, चटनी और आमचुर में होता है। पके हुए आम से जाम, अमट, कस्टर पाउडर, टाॅफी इत्यादि बनाया जाता है सूखे हुए फूल से डायरिया एवं डिसेन्ट्री का भी इलाज सफलतापूर्वक किया जाता है।
प्रभेदः-
मई में पकने वालीः- बम्बई, स्वर्णरेखा, केसर, अलफांसो।
जून में पकने वाली दशहरी, लंगरा, कृष्णभोग, मल्लिका।
जुलाई में पकने वालीः- फजली, सिपिया, आम्रपाली।
अगस्त में पकने वालीः- बथुआ, चौसा, कातिकी।
प्रसार विधि
रूट स्टोक के लिये पके हुए फल से स्टोन निकालकर एक सप्ताह के भीतर मिट्टी में बो दें। दो-तीन सप्ताह की आयु में पौधों को नर्सरी बेड में ग्राफ्टिंग के लिये स्थानान्नतरित करते है। ट्रान्सप्लांटिंग के पहले नर्सरी बेड में प्रचुर मात्रा में कम्पोस्ट या पत्ता खाद डालते हैं। जुलाई-अगस्त में ग्राफ्टिंग करते हैं।
भिनियर ग्राफ्टिंग/साइड ग्राफ्टिंग
सही साइन जिसमें तीन से चार महीने का सूट एवं फूल नहीं हो का चुनाव करें। सूट को मदरप्लांट में घुसा दें। बड को बहार निकाल लें। यह कार्य उत्तरी भारत में मार्च से सितम्बर तक किया जाता है।
स्टोन ग्राफ्टिंग
आम के बीज को बालू के मेड़ पर रखकर सड़े हुए पत्तों से 5 से 7 से.मी. मोटा ढँक देते हैं। नवजात पौधा 8 से 15 दिन में निकल जाता है। साइन को रूट स्टाॅक में उदग्र रूप से छेद करके दोनों को सटाकर पाॅलीथिन टेप से अच्छी तरह से बाँध देते हैं। इसके तुरन्त बाद पॉलीथिन बैग में जिसमें पहले से आधा मिट्टी और गोबर की खाद रखी हुई हो, उसमें लगा देते हैं। इसमें नियमत रूप से पानी डालते हैं एवं धूप-छाँव में रखते हैं ताकि सूर्य और बारिश का सीधा असर न हो।
खाद उर्वरक की मात्रा
शुरू के दस साल तक प्रत्येक पौधा को प्रतिवर्ष 160 ग्रा. यूरिया, 115 ग्रा. स्फूर एवं 110 ग्रा. म्यूरेट आॅफ पोटाश दें। दस साल के बाद प्रत्येक पौधा में खाद की मात्रा प्रतिवर्ष दस-गुणा कर दें। बढ़े हुए खाद की मात्रा को दो बराबर भाग में करते हुए पहला भाग जून-जुलाई में और दूसरा भाग अक्टूबर में दें।
आम में प्रायः जिंक, मैग्नीशियम और बोरॉन की कमी पाई जाती है, जिसे सुधारना अति आवश्यक है। जिंक की कमी के लिये जिंक सल्फेट का 3 ग्रा. प्रति ली. पानी में मिलाकर साल में तीन छिड़काव फरवरी-मार्च-मई महीने में करें।
बोरॉन के कमी के लिये 5 ग्रा. बोरेक्स प्रति ली. पानी में और मैग्नीशियम की कमी के लिये 5 ग्राम मैग्नीशियम सल्फेट प्रति ली. पानी में मिलाकर छिड़काव करना लाभदायक होता है।
10 किलो कार्बनिक पदार्थ प्रति पेड़ प्रतिवर्ष के हिसाब से, रासायनिक खाद के साथ मिलाकर देने से आम का उत्पादन बढ़ जाता है। कार्बनिक पदार्थ के रूप में सड़ी हुई गोबर, केंचुआ खाद या सड़ी गली पत्ते वाली खाद का भी प्रयोग कर सकते हैं।
सिंचाई
जिस पौधा में फल लगना शुरू हो जाय उसमें 10 से 15 दिनों के अन्तराल पर पानी अवश्य दें। इससे फल का आकार बढ़ जाता है और फल का असमय गिरना कम हो जाता है। अच्छा मंजर आने के लिये मंजर आने के दो-तीन महीना पहले से ही पानी देना बन्द कर दें क्योंकि इस बीच सिंचाई करने से मंजर आना कम हो जाता है और नया पत्ता बढ़ने लगता है।
पौधा रोपने का तरीका
बरसात का मौसम आम लगाने का उपयुक्त समय है। आम का कलम लगाने के पहले कुछ बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक होता है।
अप्रैल-मई महीने में 1 मी. लम्बा, 1 मी. चौड़ा और 1 मी. गहरा गड्ढा खोद लिया जाता है। गड्ढे-से-गड्ढे की दूरी 10-10 मी. रखी जाती है।
प्रत्येक गड्ढे में गोबर की सड़ी हुई खाद 10 किलो, करंज की खल्ली 2 किलो, सिंगल सुपर फास्फेट 1 किलो, म्युरेट आॅफ पोटाश आधा किलो, लिण्डेन धूल 100 ग्राम, अच्छी तरह से मिलाकर डाल दें। तत्पश्चात आम के वृक्ष का रोपण बरसात में करें। शुरू में रोज सिंचाई तब तक दें जब तक कि कलम का जड़ मिट्टी में अच्छी तरह से लग न जाये।
अन्तर्वर्तीय फसल
आम का कलम गड्ढा में लगाने के पाँच साल तक अन्तर्वर्तीय फसल लिया जा सकता है। अन्तर्वर्तीय फसल के रूप में टमाटर, मटर, सोयाबीन, उड़द, मक्का, मडुवा, चना, तिसी (अलसी), गेहूँ लिया जा सकता है।
खरपतवार का नियंत्रण
बगीचा को स्वस्थ रखने के लिये खरपतरवार का नियंत्रण जरूरी है। मानसून के पहले घास निकाल दें और दूसरी बार अक्टूबर माह में खरपतवार निकालें। जरूरत पड़े तो रासायनिक तृणनाशक एट्राजीन 2.5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से खरपतवार निकलने से पहले छींट दें और खरपतवार निकलने के बाद ग्रामोक्सोन 3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छींट दें।
फल का गिरना
फल गिरने से रोकने के लिये एन.ए.ए. और जी.ए. (0.005 प्रतिशत) का घोल बनाकर छिड़काव करें।
आम का फसल प्रत्येक साल हो, इसके लिये टहनी को काटें एवं उर्वरक का समुचित प्रयोग करें। किस्में जैसे मल्लिका, आम्रपाली, अरका पुनीत एवं पी.के.एम. 1 प्रत्येक साल फल देती है।
कीट एवं उनकी रोकथाम
1. मधुआ (हाॅपर) मेलाथिआॅन 50 ई.सी. का 60 मि.ली. अथवा मेटासिस्टोक्स 25 ई.सी. का 25 मि.ली. दवा 20 लीटर पानी में मिलाकर वृक्ष के भींगने तक छिड़काव करें। वृक्ष पर यह छिड़काव तीन बार करें।
पहला- मंजर आने से पहले।
दूसरा- 5-10 प्रतिशत फूल आने पर।
तीसरा- दूसरे छिड़काव के एक महीना बाद जब फल मटर के आकार का हो जाये।
2. मिलीबग (बभनी) पेड़ के तने पर 60 से 100 सेमी. ऊँचाई पर पाॅलीथिन की 20 सेमी. चौड़ी पट्टी बाँधकर निचले सिरे पर 5 सेमी. की चौड़ाई के आॅस्टिको पेंट अथवा इस्सोफट ट्री ग्रीज 5 सेमी. की चौड़ाई में लेप दें।
3. शुट गाॅल
(क) मध्य अगस्त से 15 दिनों के अन्तर पर रोगर अथवा नुवाक्राॅन दवा 2 मिली. प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करें।
(ख) दिसम्बर-जनवरी के महीने में गाँठ से नीचे थोड़ी सी पुरानी लकड़ी के साथ काट कर जला दें।
4- तना छेदकनुवाक्राॅन/मेलाथिआॅन दवा का 0.5 से 1.0 प्रतिशत घोल अथवा पेट्रोल/किरासन तेल कपड़े में भीगो कर छेद में भरकर, गीली मिट्टी से छेद को भर दें। घोल के बदले सल्फाॅस की टिकिया को भी छेद में डाल जा सकता है।
रोग और उनकी रोकथाम
1. चूर्णी फफंद आधा मिली. कैराथेन 1 लीटर पानी में डालकर तीन छिड़काव फरवरी-मार्च में 15 दिनों के अन्तराल पर करें।
2. एन्थ्रकनोज (श्यामपर्ण) ब्लाइटाॅस 50 के 2.5 मिली. एक लीटर पानी में डालकर तीन छिड़काव फरवरी से मार्च के मध्य तक करें। ब्लाईटाक्स 50 के बदले चार मिली. कैलेथीन प्रति लीटर पानी में डालकर अथवा 2 मिली. बैविस्टीन प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है।
3. गुच्छारोग (मालफारमेशन)
(क) वानस्पतिक गुच्छा रोग 1 लीटर पानी में 2 मिली. की दर से ब्लाईटाॅक्स 50 का घोल बनाकर छिड़काव करें।
(ख) पुष्पक्रम गुच्छा रोग अक्टूबर में 2000 पी.पी.एम. नैप्थेलीन एसिटिक एसिड का छिड़काव करें। दिसम्बर-जनवरी के महीने में पुष्पक्रमों को काट दें।
पठारी कृषि (बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका) जनवरी-दिसम्बर, 2009 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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2 | उर्वरकों की क्षमता बढ़ाने के उपाय (Measures to increase the efficiency of fertilizers) |
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4 | फसल उत्पादन के लिये पोटाश का महत्त्व (Importance of potash for crop production) |
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Post By: RuralWater