पर्यावरण को लेकर अकसर बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं लेकिन उसमें सुधार की कोशिशें शायद ही होती हैं। यही कारण रहा है कि पर्यावरण संकट बढ़ता जा रहा है। अभी कुछ महीने पहले एक खबर आई थी कि गुड़गाँव स्थित सुलतानपुर झील में 47 पक्षियों की मृत्यु हो गई। इन 47 पक्षियों में कई विदेशी भी थे। आशंका यह जताई गई कि इन पक्षियों की मौत के पीछे स्वाइन फ्लू भी एक कारण हो सकता है। हालाँकि पर्यावरण प्रदूषण को भी इसके पीछे एक कारण के रूप में देखा गया। कारण चाहे जो भी हो, वे तो जाँच के बाद पता चलेंगे लेकिन पक्षियों की मौत और उनके आवास व भोजन आदि के खत्म होते जाने के सवाल किसी को चिन्तित नहीं करते।
अगर पर्यावरणविदों को छोड़ दिया जाए तो लगता ही नहीं कि किसी को इस बात से कोई फर्क पड़ता है कि चिड़ियों की वह चहचहाहट कहाँ गायब हो गई है जो कभी हमारे जीवन में नए उत्साह का संचार किया करती थी। कभी हमारी सुबहें पक्षियों के कलरव से गुंजायमान हुआ करती थीं। फिलहाल हालात ऐसे हों गए हैं कि गौरैया जैसी प्यारी चिड़ियाँ पता नहीं कहाँ गायब हो गई है। वह अगर कहीं दिख जाती है अथवा उसकी आवाज सुनाई दे जाती है तो लगता है कि अभी उसका अस्तित्व बाकी है। यह अलग बात है कि वह दिखती ही बहुत कम है। ऐसा इसलिए हुआ है कि उनके आवास उजाड़ दिए गए और नए आवास बनने की सम्भावनाएं भी लगातार क्षीण होती जा रही हैं। उनके भोजन-पानी के भी लाले पड़ते जा रहे हैं।
पहले लोग अपने आंगन और छतों पर पक्षियों के लिए अपने हिस्से में से स्वच्छ और पौष्टिक दाना-पानी उपलब्ध कराते थे। आस-पास के वृक्षों अथवा नदजीक के बगीचों में वे अपने घोंसले बना लिया करते थे। पेड़-पौधे और बगीचे लगातार नष्ट होते जा रहे हैं। उनकी जगह कंक्रीट के जंगल लेते जा रहे हैं। सड़कों पर वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है। इससे वायु प्रदूषण भी बढ़ रहा है। इनकी वजह से वातावरण में सीमेन्ट और बालू आदि के अलावा तमाम तरह के कैमिकलयुक्त हवा फैलती जा रही है। यह सब पक्षियों के लिए बेहद घातक साबित होता है। इस कारण उनका जीवन ज्यादा संकटमय होता जा रहा है। इस सबके बावजूद कोई सबक नहीं ले रहा है और न यह समझ पा रहा है कि पक्षियों का हमसे दूर होते जाना अथवा अस्तित्व समाप्त होना हमारे लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है।
सुलतानपुर झील में पक्षियों की मौत को मात्र एक हादसे के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए और न हीं ऐसी मौतों की अनदेखी की जानी चाहिए। ऐसी मौतों को बहुत गम्भीरता से लिया जाना चाहिए। लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि हमारी सरकारें और इस तरह की झीलों और पक्षी विहारों को लेकर प्रशासन अकसर उदासीन और लापरवाह ही ज्यादा दिखते हैं। लेकिन यह कैसे सम्भव होगा अगर झीलों में पक्षियों की इसी तरह अकारण मौतें होती रहेंगी। अगर पक्षी झीलों में आएंगे ही नहीं और उनके लिए समुचित वातावरण उपलब्ध नहीं होगा। इन झीलों और पक्षी विहारों के बारे में कागजों पर चाहे जितने बड़े-बड़े दावे किए जाते हों पर वास्तविकता बहुत ही खराब होती है। जो लोग ओखला पक्षी विहार या सुलतानपुर झील गए होंगे उन्हें इस बात का सहज ही अंदाजा होगा कि वहाँ रख-रखाव को लेकर कितनी लापरवाही अथवा उदासीनता बरती जाती है। झीलों में गन्दगी और पॉलिथिन साफ देखी जा सकती है। पक्षी विहार के चारों ओर रोक के बावजूद नियमों की अनदेखी कर वाहनों की दौड़ भी देखी जा सकती है। सिर्फ ओखला पक्षी विहार अथवा सुलतानपुर झील की ही यह स्थिति नहीं है। इसके अलावा भी इस तरह की झीलों और पक्षी विहारों के चारों तरफ इतनी गन्दगी होती है कि पक्षियों का जीवन दूभर होता जा रहा है। पर्यटक भी अनावश्यक चीजें झीलों में फेंकते रहते हैं। इन्हें देखने वाला कोई नहीं होता।
इलाहाबाद में गंगा और यमुना के बीच संगम में आम तौर पर माघ के महीने में जब यह दोनों नदियाँ गुलजार रहा करती हैं, प्रवासी पक्षी काफी तादाद में आया करते थे। लेकिन हाल के वर्षों में वहाँ के बाशिंदे और हर साल संगम स्नान के लिए जाने वाले लोग यह समझ सकते हैं कि वहाँ भी प्रवासी पक्षियों के आने में बाधा उत्पन्न हो रही है। इसके पीक्षे भी सबसे बड़ा कारण इन नदियों में लगातार बढ़ता प्रदूषण ही है। पक्षियों के लिए संकट के कारणों में एक जलावयु परिवर्तन भी है। जलवायु में परिवर्तन न केवल लगातार बढ़ता जा रहा है बल्कि काफी नुकसानदेह भी साबित हो रहा है। इनके पीछे एक बड़ा कार्बन का उत्सर्जन भी है। यह अलग बात है कि इसे रोकने के उपाय दुनिया के स्तर पर हो रहे हैं लेकिन वे अभी भी नाकाफी ही साबित हो रहे हैं। इसके विपरीत जलवायु परिवर्तन काफी बड़े संकट का रूप लेता जा रहा है।
पक्षियों की गणना के बारे में एक आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2013 में ओखला पक्षी विहार में 63 किस्म की प्रजातियों के पक्षी यहाँ आए थे। 2014 में इनकी संख्या कम होकर कुल 58 ही थी। हाल-फिलहाल यहाँ मात्र 49 प्रजातियों के पक्षी ही आए हैं। इनमें भी प्रवासी केवल 30 ही हैं। इसी आधार पर इस तरह की आशंकाएं भी व्यक्त की जाने लगी हैं कि अगर यही हाल रहा तो क्या निकट भविष्य में प्रवासी पक्षियों का आना भी बंद हो जाएगा। क्या यह गम्भीर चिन्ता का विषय नहीं होना चाहिए कि हमारे अपने पक्षी गायब होते जा रहे हैं और प्रवासी पक्षी आएंगे नहीं तो हमारा जीवन बिना पक्षियों के कैसा हो जाएगा।
अगर पर्यावरणविदों को छोड़ दिया जाए तो लगता ही नहीं कि किसी को इस बात से कोई फर्क पड़ता है कि चिड़ियों की वह चहचहाहट कहाँ गायब हो गई है जो कभी हमारे जीवन में नए उत्साह का संचार किया करती थी। कभी हमारी सुबहें पक्षियों के कलरव से गुंजायमान हुआ करती थीं। फिलहाल हालात ऐसे हों गए हैं कि गौरैया जैसी प्यारी चिड़ियाँ पता नहीं कहाँ गायब हो गई है। वह अगर कहीं दिख जाती है अथवा उसकी आवाज सुनाई दे जाती है तो लगता है कि अभी उसका अस्तित्व बाकी है। यह अलग बात है कि वह दिखती ही बहुत कम है। ऐसा इसलिए हुआ है कि उनके आवास उजाड़ दिए गए और नए आवास बनने की सम्भावनाएं भी लगातार क्षीण होती जा रही हैं। उनके भोजन-पानी के भी लाले पड़ते जा रहे हैं।
पहले लोग अपने आंगन और छतों पर पक्षियों के लिए अपने हिस्से में से स्वच्छ और पौष्टिक दाना-पानी उपलब्ध कराते थे। आस-पास के वृक्षों अथवा नदजीक के बगीचों में वे अपने घोंसले बना लिया करते थे। पेड़-पौधे और बगीचे लगातार नष्ट होते जा रहे हैं। उनकी जगह कंक्रीट के जंगल लेते जा रहे हैं। सड़कों पर वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है। इससे वायु प्रदूषण भी बढ़ रहा है। इनकी वजह से वातावरण में सीमेन्ट और बालू आदि के अलावा तमाम तरह के कैमिकलयुक्त हवा फैलती जा रही है। यह सब पक्षियों के लिए बेहद घातक साबित होता है। इस कारण उनका जीवन ज्यादा संकटमय होता जा रहा है। इस सबके बावजूद कोई सबक नहीं ले रहा है और न यह समझ पा रहा है कि पक्षियों का हमसे दूर होते जाना अथवा अस्तित्व समाप्त होना हमारे लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है।
सुलतानपुर झील में पक्षियों की मौत को मात्र एक हादसे के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए और न हीं ऐसी मौतों की अनदेखी की जानी चाहिए। ऐसी मौतों को बहुत गम्भीरता से लिया जाना चाहिए। लेकिन इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि हमारी सरकारें और इस तरह की झीलों और पक्षी विहारों को लेकर प्रशासन अकसर उदासीन और लापरवाह ही ज्यादा दिखते हैं। लेकिन यह कैसे सम्भव होगा अगर झीलों में पक्षियों की इसी तरह अकारण मौतें होती रहेंगी। अगर पक्षी झीलों में आएंगे ही नहीं और उनके लिए समुचित वातावरण उपलब्ध नहीं होगा। इन झीलों और पक्षी विहारों के बारे में कागजों पर चाहे जितने बड़े-बड़े दावे किए जाते हों पर वास्तविकता बहुत ही खराब होती है। जो लोग ओखला पक्षी विहार या सुलतानपुर झील गए होंगे उन्हें इस बात का सहज ही अंदाजा होगा कि वहाँ रख-रखाव को लेकर कितनी लापरवाही अथवा उदासीनता बरती जाती है। झीलों में गन्दगी और पॉलिथिन साफ देखी जा सकती है। पक्षी विहार के चारों ओर रोक के बावजूद नियमों की अनदेखी कर वाहनों की दौड़ भी देखी जा सकती है। सिर्फ ओखला पक्षी विहार अथवा सुलतानपुर झील की ही यह स्थिति नहीं है। इसके अलावा भी इस तरह की झीलों और पक्षी विहारों के चारों तरफ इतनी गन्दगी होती है कि पक्षियों का जीवन दूभर होता जा रहा है। पर्यटक भी अनावश्यक चीजें झीलों में फेंकते रहते हैं। इन्हें देखने वाला कोई नहीं होता।
इलाहाबाद में गंगा और यमुना के बीच संगम में आम तौर पर माघ के महीने में जब यह दोनों नदियाँ गुलजार रहा करती हैं, प्रवासी पक्षी काफी तादाद में आया करते थे। लेकिन हाल के वर्षों में वहाँ के बाशिंदे और हर साल संगम स्नान के लिए जाने वाले लोग यह समझ सकते हैं कि वहाँ भी प्रवासी पक्षियों के आने में बाधा उत्पन्न हो रही है। इसके पीक्षे भी सबसे बड़ा कारण इन नदियों में लगातार बढ़ता प्रदूषण ही है। पक्षियों के लिए संकट के कारणों में एक जलावयु परिवर्तन भी है। जलवायु में परिवर्तन न केवल लगातार बढ़ता जा रहा है बल्कि काफी नुकसानदेह भी साबित हो रहा है। इनके पीछे एक बड़ा कार्बन का उत्सर्जन भी है। यह अलग बात है कि इसे रोकने के उपाय दुनिया के स्तर पर हो रहे हैं लेकिन वे अभी भी नाकाफी ही साबित हो रहे हैं। इसके विपरीत जलवायु परिवर्तन काफी बड़े संकट का रूप लेता जा रहा है।
पक्षियों की गणना के बारे में एक आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2013 में ओखला पक्षी विहार में 63 किस्म की प्रजातियों के पक्षी यहाँ आए थे। 2014 में इनकी संख्या कम होकर कुल 58 ही थी। हाल-फिलहाल यहाँ मात्र 49 प्रजातियों के पक्षी ही आए हैं। इनमें भी प्रवासी केवल 30 ही हैं। इसी आधार पर इस तरह की आशंकाएं भी व्यक्त की जाने लगी हैं कि अगर यही हाल रहा तो क्या निकट भविष्य में प्रवासी पक्षियों का आना भी बंद हो जाएगा। क्या यह गम्भीर चिन्ता का विषय नहीं होना चाहिए कि हमारे अपने पक्षी गायब होते जा रहे हैं और प्रवासी पक्षी आएंगे नहीं तो हमारा जीवन बिना पक्षियों के कैसा हो जाएगा।
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