सौर ऊर्जा की प्रचुरता के कारण राजस्थान अब औद्योगिक विकास और निवेश की दृष्टि से अपार संभावना वाला राज्य बन चुका है। विश्व के सौर ऊर्जा मानचित्र पर राजस्थान तेज गति के साथ उभर रहा है। आधे विश्व के सोलर एनर्जी मार्केट पर जर्मनी का कब्जा है किंतु वहां भी अब सौर ऊर्जा की सब्सिडी में कटौती हो रही है। इसके विपरीत भारत में सौर ऊर्जा पर भारी अनुदान दिया जा रहा है। इसलिए सौर ऊर्जा का भविष्य भारत का है।
दुनिया भर में तेजी से खत्म होते ऊर्जा के भंडार की चिंता स्वाभाविक है पर राजस्थान ने इस चुनौती का जम कर मुकाबला करने की ठानी है। आखिर इस मरु प्रदेश को तेज हवाओं और दमकते सूर्य की तीक्ष्ण किरणों का वरदान जो प्राप्त है। प्रकृति का यह अनुपम उपहार कभी खत्म होने वाला भी नहीं, वह तो अक्षय है। राजस्थान में इस अनुपम उपहार के सघन उपयोग की दिशा में जिस तेजी के साथ काम हो रहा है, उससे उम्मीद है कि भविष्य में यह राज्य ऊर्जा उत्पादन के मामले में मिसाल कायम करेगा। राजस्थान के विशाल मरुक्षेत्र में भूजल, फव्वारा और लिफ्ट एरिगेशन आधारित कृषि विकास में ऊर्जा का विशेष योगदान है राज्य सरकार इसके उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए पारंपरिक बिजली परियोजनाओं के साथ-साथ सौर एवं पवन ऊर्जा द्वारा बिजली उत्पादन के विस्तृत कार्यक्रम चला रही है। सरकारी सूत्रों का मानना है कि राजस्थान को वर्ष 2013 तक ‘पावर सरप्लस’ राज्य बनाने के लिए सरकार कटिबद्ध है।वर्तमान में पवन और बायोमास द्वारा कुल बिजली उत्पादन क्षमता 1,912 मेगावाट पहुंच चुकी है। दूसरी तरफ सौर ऊर्जा में असीम संभावनाएं देखते हुए सरकार प्रदेश को सौर ऊर्जा का विशाल हब बनाना चाहती है। यहां के कुल क्षेत्रफल का करीब 60 फीसदी इलाका (2,08,110 वर्ग किलोमीटर) रेगिस्तानी है। तकनीकी दृष्टि से देखें तो यहां 6 से 7 किलोवाट घंटा प्रति वर्गमीटर की दर से सौर विकिरणों की उपलब्धता है। अध्ययन बताते हैं कि प्रदेश के सौर विकिरण की तुलना कैलिफोर्निया, कोलोराडो तथा ऐरीजोना के मरुस्थलों से की जा सकती है। ऊपर से सौर ऊर्जा के लिए प्रयोग में आने वाले सोलर पीवी तथा सीएसपी तकनीक में गेल्वेनाईजेशन के लिए जिस जिंक का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है उसका 99 प्रतिशत उत्पादन इसी प्रदेश में होता है। फिर सीएसपी तकनीक में पिघले हुए नमक के प्रयोग के मद्देनजर देश का तीसरा सबसे बड़ा नमक उत्पादक प्रदेश आखिर अपनी इस क्षमता पर क्यों न खुश हो?
वर्तमान में राज्य में 500 सिरेमिक इकाइयां, कवरिंग ग्लास एवं खनिज एवं ग्राइंडिंग इकाइयां काम कर रही हैं जो राज्य को सोलर ग्लास निर्माण का हब बनाती हैं। इन्हीं विशेषताओं एवं संभावनाओं के मद्देनजर राज्य सरकार ने सौर ऊर्जा नीति 2011 लागू की है जिसका बेहतर परिणाम सामने आ रहा है। राज्स्थान में निजी क्षेत्र की सौर ऊर्जा परियोजनाओं को प्रोत्साहित एवं स्थापित करना तथा जवाहरलाल नेहरू सोलर मिशन के तहत सौर ऊर्जा से अधिकाधिक उत्पादन करना इस नीति का मुख्य उद्देश्य है। यह सौर नीति सौर ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित करने वाले निवेशकों को सरकारी दरों में 10 प्रतिशत की रियायत पर सरकारी भूमि का आवंटन करने, बिजली प्रभार में राहत देने, सौर ऊर्जा परियोजनाओं का उद्योग का दर्जा देते हुए इस क्षेत्र में अन्य उद्योगों के समान छूट एवं अनुदान देने, सौर उपकरणों एवं मशीनरी पर प्रवेश कर में छूट आदि देकर बड़े पैमाने पर उद्यमियों को राज्य की ओर आकर्षित कर रही है।
इसके अतिरिक्त सरकार जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर एवं बाड़मेर में 1,000 मेगावाट क्षमता के सोलर पार्क स्थापित कर रही है। ग्लोबल निवेश को आकर्षित करने के लिए आधारभूत सुविधाएं नियामक सहयोग तथा अन्य सहायता प्रदान करेगी। सोलर पार्क में विभिन्न गतिविधियों के लिए अलग-अलग क्षेत्र चिह्नित होंगे। इनमें विनिर्माण, अनुसंधान एवं विकास, प्रशिक्षण केंद्र एवं अन्य सुविधाएं शामिल हैं। ऊर्जा विभाग द्वारा जोधपुर के भड़ला क्षेत्र में सोलर पार्क की स्थापना के लिए 10 हजार हैक्टेयर भूमि चिह्नित की गई है। इस वर्ष जोधपुर सोलर पार्क चालू किया जाएगा। राज्य सरकार ने इसके लिए लिंटन फाउंडेशन के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किया है।
जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सोलर मिशन की घोषणा 19 नवंबर, 2009 को की गई थी। वर्ष 2022 तक भारत में 20,000 मेगावट क्षमता की सौर ऊर्जा परियोजनाएं स्थापित करने का इसका लक्ष्य है। योजना के प्रथम चरण में वर्ष 2013 तक 1000 मेगावट की परियोजनाएं स्थापित होंगी। प्रदेश में सौर ऊर्जा आधारित बिजली परियोजनाएं स्थापित करने के लिए 757 प्रतिष्ठित कंपनियां 18,626 मेगावाट क्षमता में प्रोजेक्ट के लिए अपना पंजीकरण करवा चुकी हैं। राजस्थान में अब तक 978 मेगावाट की 82 सौर परियोजनाएं स्वीकृत हैं। इनमें से 158 मेगावाट क्षमता की 40 सौर परियोजनाओं में उत्पादन भी शुरू हो चुका है। जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर और नागौर जिलों में स्थापित परियोजनाओं में सौर विद्युत का सफलतापूर्वक उत्पादन जारी है जबकि शेष परियोजनाओं पर काम प्रगति पर है। इन सभी परियोजनाओं में करीब 10 हजार करोड़ रुपए का निजी निवेश होगा।
राजस्थान की नई सौर ऊर्जा नीति के तहत वर्ष 2013-14 तक राज्य में 600 मेगावाट क्षमता की अतिरिक्त सौर ऊर्जा परियोजनाएं लगाना प्रस्तावित है। इन पर करीब 6,000 करोड़ रुपए का निवेश होगा। वर्ष 2013-14 तक प्रदेश में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में कुल 16 हजार करोड़ रुपए का पूंजी निवेश होने की आशा है। जानकारों का कहना है कि सौर ऊर्जा की प्रचुरता के कारण राजस्थान अब औद्योगिक विकास और निवेश की दृष्टि से अपार संभावना वाला राज्य बन चुका है। विश्व के सौर ऊर्जा मानचित्र पर राजस्थान तेज गति के साथ उभर रहा है। आधे विश्व के सोलर एनर्जी मार्केट पर जर्मनी का कब्जा है किंतु वहां भी अब सौर ऊर्जा की सब्सिडी में कटौती हो रही है। इसके विपरीत भारत में सौर ऊर्जा पर भारी अनुदान दिया जा रहा है। इसलिए सौर ऊर्जा का भविष्य भारत का है।vविश्व के सौर बाजार में ग्रिड कनेक्टिविटी के क्षेत्र में भारत की गणना जापान, चीन तथा अमेरिका की श्रेणी में होती है। भारत सरकार भी सौर ऊर्जा को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है। राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन के तहत वर्ष 2020 तक 20 हजार मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य है तेल कीमतों में उतार–चढ़ाव तथा कोयले के घटते प्राकृतिक संसाधनों के कारण सौर ऊर्जा की मांग बढ़ी है।
केंद्र सरकार द्वारा सौर ऊर्जा पर भारी सब्सिडी देने तथा सोलर पैनल की कीमतों में विश्व बाजार में आ रही गिरावट के कारण निजी उद्यमियों द्वारा इस क्षेत्र में रुचि बढ़ी है जो एक सकारात्मक संकेत है। आने वाले समय में ग्रीन और लीन एनर्जी के क्षेत्र में राजस्थान की बहुत बड़ी भूमिका होगी क्योंकि हमारे पास सौर ऊर्जा के रूप में एक बहुत बड़ा प्राकृतिक संसाधन है। भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जहां वैकल्पिक ऊर्जा (रिन्यूएबल एनर्जी) के लिए अलग से मंत्रालय कार्य कर रहा है। हमारे यहां रिन्यूएबल एनर्जी की प्रचुर संभावनाएं हैं। भारत में विश्व के अन्य देशों की तुलना में प्रति व्यक्ति ग्रीन हाउस गैसों की उत्सर्जन दर बेहद कम है। ग्रीन हाउस गैसों का जितना उत्सर्जन अमेरिका में होता है उसका 20वां भाग भारत में होता है। ऊर्जा के प्रभावी उपयोग और वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोतों के बारे में ठोस राष्ट्रीय कार्य योजना के अनुरूप व्यापक गतिविधियों का संचालन होने की उम्मीद की जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा की खपत अभी उतनी ज्यादा नहीं है।
जानकारों के मुताबिक भारत में प्रति वर्ष 300 दिनों तक निर्बाध सूर्य की रोशनी रहती है। राजस्थान तो इस मामले में बहुत ही भाग्यशाली है। इसलिए यहां सौर ऊर्जा का उत्पादन अत्यंत ही सुगम है किंतु सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले में यह यूरोपियन देशों से अभी काफी पीछे है। अकेले जर्मनी में वर्ष 2010 के अंत तक 1,70,00 मेगावाट सौर ऊर्जा का निर्माण हुआ लेकिन जानकार कहते हैं कि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में देरी से आने का एक लाभ भी भारत को मिल रहा है। आज सौर पैनल की कीमतों में वैश्विक बाजार में भारी कमी आ रही है इसलिए सौर ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी देशों की तुलना में हम कम लागत पर तथा उनसे ज्यादा तेज गति से सौर ऊर्जा उत्पादित कर सकते हैं।
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