भारत के पास मौका है कि वह अपनी भावी ऊर्जा अधिसंरचना का निर्माण इस तरीके से करे कि ऊर्जा से वंचित तबकों को न्यायपूर्ण व सतत तरीके से बिजली उपलब्ध करायी जा सके। वर्तमान में कोयला आधारित ऊर्जा प्रणाली समूची धरती के लिए न सिर्फ विनाश का सबब हैं, बल्कि इनसे ऊर्जा मांगों को पूरा भी नहीं किया जा सकता। यह समय अब ऊर्जा क्रांति का है और यकीनन इसके केंद्र में विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा प्रणाली ही है।
पटना: इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से अक्षय ऊर्जा ही भविष्य है, ग्रीनपीस ने ‘ऊर्जा क्रांति की जगमगाती तसवीर: भारत में विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा के प्रकल्पों के नमूनों का अध्ययन’ रिपोर्ट को आज होटल चाणक्य में जारी की। यह रिपोर्ट दरअसल लोगों की उन बेमिसाल कोशिशों का सार्थक संग्रह है, जिन्होंने अपनी जिंदगी को जगमग करने के लिए अपने बूते अक्षय ऊर्जा के स्रोतों का इस्तेमाल करते हुए अपने घर और उद्यम को रोशन कर दिया। बिहार के ग्रामीण इलाके अब भी केंद्रीकृत ग्रिड प्रणाली का हिस्सा नहीं बन पाये हैं और दशकों से वे बिन बिजली अंधकार के साये में रहने को अभिशप्त हैं। यह रिपोर्ट आगे का रास्ता दिखाती है कि कैसे लोग विश्वस्त बिजली पा सकते हैं, जो न सिर्फ लागत में सस्ती और सुगम है, बल्कि यह पर्यावरण पर किसी किस्म का नकारात्मक दबाव या प्रभाव नहीं डालती।रिपोर्ट जारी करते हुए ग्रीनपीस इंडिया के कैंपेन मैनेजर रमापति कुमार ने बताया कि 'बिहार के सभी राजनीतिक दलों ने गत विधानसभा चुनाव के वक्त अपने चुनावी घोषणापत्र में अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देते हुए सब तक बिजली की पहुंच संभव बनाने का वायदा किया था। वास्तव में अक्षय ऊर्जा ही वह रास्ता है, जिसके जरिये आगामी विधानसभा चुनाव के पहले हर घर में बिजली पहुंचाई जा सकती है। इसलिए यह वर्तमान सरकार का दायित्व है कि वह इस प्रक्रिया को तेज करे, ताकि अपने किये वायदे को वह निभा सके। अब तक हुई प्रगति बेहद धीमी है और सरकार को अक्षय ऊर्जा से जुड़े अपने वायदे को अमली जामा पहनाने के लिए कोशिशें तेज कर देनी चाहिए।' । रिपोर्ट के पहले भाग में जहां इन प्रयोगों की स्थापना के पीछे सामूहिक व व्यक्तिगत प्रयासों को रेखांकित किया गया है, वहीं दूसरा भाग संक्षिप्त तरीके से इन प्रकल्पों के तकनीकी पहलुओं की व्याख्या करता है।
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वैसे बिहार सरकार राज्य के लिए अक्षय ऊर्जा के विविध आयामों पर विचार कर रही हे, पर इसे अक्षय ऊर्जा को और अधिक तेज और एकीकृत करने की दरकार है, ताकि ऊर्जा सततता और समावेशी विकास को जमीन पर उतारना सुनिश्चित किया जा सके। सरकार इस रिपोर्ट में दिये गये उदाहरणों का प्रयोग करते हुए समुदायों और सामाजिक उद्यमियों के साथ काम करते हुए एक व्यापक और सशक्त विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा कार्यक्रम का निर्माण कर सकती है, ताकि राज्य में व्याप्त 'ऊर्जा निर्धनता' को समाप्त किया जा सके।
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बेंगलुरू में सोलर वाटर हीटिंग प्रणाली ने अकेले अपने दम पर पूरे महानगर के लिए करीब 600 मेगावाट की बचत की है। ऐसे प्रयोगों को पर्याप्त नीतिगत और वित्तीय सहायता व समर्थन देकर इसे बिहार में लागू करना सुनिश्चित किया जा सकता है।' यह रिपोर्ट दरअसल वह संदर्भ है कि भारत के पास मौका है कि वह अपनी भावी ऊर्जा अधिसंरचना का निर्माण इस तरीके से करे कि ऊर्जा से वंचित तबकों को न्यायपूर्ण व सतत तरीके से बिजली उपलब्ध करायी जा सके। वर्तमान में कोयला आधारित ऊर्जा प्रणाली समूची धरती के लिए न सिर्फ विनाश का सबब हैं, बल्कि इनसे ऊर्जा मांगों को पूरा भी नहीं किया जा सकता। यह समय अब ऊर्जा क्रांति का है और यकीनन इसके केंद्र में विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा प्रणाली ही है।
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अक्षय ऊर्जा की सफल गाथाओं की रिपोर्ट
हिंदुस्तान की ऊर्जा जरूरतें तेजी से बढ़ती ही जा रही हैं, सरकार इसको किस तरह पूरा करने का सोच रही है? शहर जहां बिजली कटौती की शिकायतें करते हैं, वहीं हजारों गांवों को अभी भी बिजली देखना तक बाकी है। गरीबों को डिसेंट्रलाइज्ड रिन्यूएबल एनर्जी (डीआरई) के जरिए ऊर्जा देना इसका हल है।
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