वास्को-द-गामा (गोवा) : कृत्रिम उपग्रहों और रिमोट सेंसिंग तकनीक वाली भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग प्राकृतिक व सांस्कृतिक संसाधनों को समझने के लिये बड़े पैमाने पर हो रहा है। अब भारतीय वैज्ञानिकों ने इस प्रौद्योगिकी का उपयोग तमिलनाडु के तट पर समुद्र में डूबे खण्डहरों को खोजने के लिए किया है।
गोवा स्थित राष्ट्रीय समुद्र-विज्ञान संस्थान (एनआईओ) के वैज्ञानिकों ने भू-स्थानिक तकनीक की मदद से महाबलीपुरम, पूमपूहार, त्रेंकबार और कोरकाई के समुद्र तटों और उन पर सदियों पूर्व बसे ऐतिहासिक स्थलों का विस्तृत अध्ययन किया है। इससे पता चला है कि महाबलीपुरम और उसके आस-पास तटीय क्षरण की दर 55 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि पिछले 1500 वर्षों से इसी दर से महाबलीपुरम की तटरेखा में क्षरण हुआ होगा, तो निश्चित रूप से उस समय यह तटरेखा लगभग 800 मीटर समुद्र की तरफ रही होगी। इसी आधार पर पुष्टि होती है कि समुद्र के अंदर पाए गए ये खण्डहर भूभाग पर मौजूद रहे होंगे।
महाबलीपुरम के बारे में माना जाता है कि इसके तट पर 17वीं शताब्दी में सात मंदिर स्थापित किए गए थे और एक तटीय मंदिर को छोड़कर शेष छह मंदिर समुद्र में डूब गए थे। यदि महाबलीपुरम की क्षरण दर को पूमपुहार पर लागू किया जाए तो वहाँ भी इसकी पुष्टि होती है कि पूमपुहार में 5-8 मीटर गहराई पर मिले इमारतों के अवशेष 1500 साल पहले भूमि पर रहे होंगे।
दल के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ सुंदरेश ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “समय के साथ तमिलनाडु की समुद्र तट-रेखा में आए स्थानिक बदलावों के कारण समुद्र-तटीय धरोहरें क्षतिग्रस्त हुई हैं। भू-स्थानिक तकनीक पर आधारित शोध परिणाम भविष्य में समुद्री ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण में सतर्कता बरतने के लिये कारगर साबित हो सकते हैं।”
वैज्ञानिकों के अनुसार तटीय क्षरण, समुद्र के स्तर में परिवर्तन और निओ-टेक्टॉनिक सक्रियता के कारण तमिलनाडु के लगभग 900 किलोमीटर लंबे समुद्र तट पर स्थित महाबलीपुरम, अरीकमेडू, कावेरीपट्टनम, त्रेंकबार, नागापट्टनम, अलगांकुलम, कोरकाई और पेरियापट्टनम जैसे कई बंदरगाह पिछली सदियों में नष्ट हो गए या फिर समुद्र में डूब गए।
वर्ष 1954 से 2017 तक तमिलनाडु की तटरेखा में आए बदलावों का पता लगाने के लिये प्रमाणित टोपोग्राफिक शीट और उपग्रह से प्राप्त प्रतिबिंब का उपयोग किया गया। रिमोट सेंसिंग से प्राप्त चित्रों के विश्लेषण से पाया गया कि पिछले 41 वर्षों में महाबलीपुरम में 177 मीटर और पूमपुहार के तटों में 36 वर्षों के दौरान 129 मीटर क्षरण हुआ है।
अध्ययन के दौरान गोताखोरों ने समुद्र के अंदर विभिन्न मंदिर पाए हैं, जो उपग्रह द्वारा प्राप्त जानकारियों की पुष्टि करते हैं। वर्तमान कावेरी मंदिर से 25 मीटर की दूरी पर एक मीटर की गहराई में समुद्र के समानांतर मिली ईंटनुमा संरचनाएँ मिली हैं। इसी तरह, पूमपुहार से लगभग एक किलोमीटर दक्षिण में वनगिरि में खण्डहर गोताखोरों को मिले हैं।
समुद्र की सतह से 20 मीटर नीचे 300-500 मीटर की चौड़ाई वाली पुरा-जल-नहरों के निशान मिले हैं। इसी तरह, कावेरी के अपतटीय मुहाने पर 5-8 मीटर जल गहराई में काले एवं लाल रंग के बर्तननुमा टुकड़े तथा पूमपुहार में 22-24 मीटर गहराई में तीन अंडाकार रचनाएँ भी पाई गई हैं।
पूमपुहार से 15 किलोमीटर दक्षिण में स्थित त्रेंकबार गाँव और उसका किला 1305 ईस्वी में मासिलमणी मंदिर द्वारा सुरक्षित था। भू-स्थानिक सर्वेक्षणों से समुद्र में तलछटों के नीचे कम से कम एक मीटर नीचे दबी बस्तियाँ और किले की दीवार के अवशेष मिले हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि इस समय मासिलमणी मंदिर खतरे में है क्योंकि समुद्र ने इसे 50 प्रतिशत से ज्यादा नष्ट कर दिया है और निकट भविष्य में पूरे मंदिर के क्षतिग्रस्त हो जाने की संभावना है। पुरातात्विक प्रमाण, हाइड्रोग्राफिक चार्ट और 17वीं सदी का त्रेंकबार का मानचित्र तट-रेखा के क्षरण की पुष्टि करते हैं। पिछले 300 वर्षों में त्रेंकबार तट-रेखा का लगभग 300 मीटर क्षरण हुआ है। लहरों के प्रहार ने आस-पास के कई अन्य स्मारकों को भी नष्ट कर दिया है।
यह शोध हाल ही में वैज्ञानिक पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित हुआ है। टीम में डॉ. सुंदरेश के अलावा आर. मणिमुरली, ए.एस. गौर और एम. दिव्यश्री शामिल थे।
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