आकाश एक ताल है

आकाश एक ताल है
हम जहाँ भी हैं उसके
घाट पर हैं। अपने संकल्प-विकल्प को
तिलक देते हुए

आकाश एक ताल है
महाताल-
जिसकी गगन-गुफा से अजर रस झरता है
कबीर का
(योगी जिसे पीता है)

आकाश एक ताल है
सुबह-सुबह जिसके एक फूल से
उजाला फैलता है। और रात में
जिसमें असंख्य कुमुदिनी के फूल
खिलते हैं जो हमारी आँखों के तारे हैं।
जब-तब एक चन्द्रमा उगता है
चाँदनी जिसकी खुशबू है।

आकाश एक ताल है
हमारे नयन-गगन में बहता हुआ
हँसी से जो उजला होता है
और खुशी से निर्मल
ज़िन्दगी के आब से जिसे लगाव है असीम

आकाश एक ताल है
जन्म लेते हैं जिसमें रंग-सप्तक
और वहीं खिलते-खेलते रहते हैं।
सरगम आकाश से चलकर
आकाश में ही हो जाते हैं लीन
शब्दों का ऐसा ही स्वभाव है

आकाश एक ताल है
जिससे हमारा पैतृक सम्बन्ध है
हमारा पाखी मन आकाश से उड़कर
फिरि आकाश में ही आता है
आकाश के रस्ते ही विज्ञान के चमत्कार:
इनसेट, मंगल यात्रा, चन्द्रयान...
लेकिन मारक मिसाइलों से बेहद खफा है
आसमान

आकाश एक ताल है
डूबे रहते हैं जिसमें बड़े-बड़े बादलों के पहाड़
और पिघल कर जब-तब धरती पर बरसते हैं

आकाश एक ताल है
इसी सरोवर के भीट पर खुली है रामायण
और आदिकवि से प्रश्न-मुख है आज का युवा कवि:
कि सीता का विलाप कहने में
अनुष्ट्रुप समर्थ क्यों नहीं हुआ तात!
धरा-सुता क्यों पाती है लाँछना-अपमान
क्यों लोकापवाद इतना हत्यारा है
कि सत्य-शील को दिला देता है वनवास

करुणा से भीगी आँखें कहती हैं:
लव-कुश को विद्याभ्यास कराते
यही सब मथता रहा मुझे
ध्यान से निहारो इन आँखों के आँसू
यही तुम्हारी आँखों में हैं

सीता का दुख हर कवि या कविता का दुख है!

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