कछुए जैली फिश का शिकार करते हैं। समुद्र में तैरती पॉलीथिन को अक्सर वे जैली फिश समझकर खा लेते हैं और परिणाम... केवल कछुओं का नहीं, यह हश्र तो हर समुद्री जीव का है। कभी न मिटने वाले प्लास्टिक पर समय रहते रोक न लगाई गई, तो इंसानी जीवन भी खतरे में आ जाएगा....
यदि हम आपसे कहें कि आज से खाने में आपको प्लास्टिक मिलेगा, तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? हैरान होंगे, नाराज होंगे? यदि आपकी अपने लिए यह प्रतिक्रिया है, तो सोचिए धरती को कैसा लगता होगा? हर दिन, हर घंटे, हर पल, हम धरती को यह जहर देते जा रहे हैं। ठीक हमारी तरह वह भी न इसे चबा सकती हैं, न निगल सकती हैं। फिर भी इन दानव को निरंतर उपयोग में लाकर धरती के मुंह में ठूंसा जा रहा है। दरअसल यह जहर न सड़ता है। न खत्म होता है। यह केवल वर्षाजल को जमीन में अवशोषित होने से रोकता है और धरती की सेहत बिगाड़ता चला जाता है. इसका सबसे अधिक इस्तेमाल पैकिंग व बोतलों के रूप में किया जाता है। इस्तेमाल के साथ ही अमूमन प्लास्टिक को कचरे में फेंका जाता है, जो आखिरकार नदियों, समुद्रों से होते हुए महासागरों में समा जाता है। और तो और यह सालों-साल मरता नहीं है, क्योंकि यह ‘अमर’ है! यह पहले से ही ढेरों जहरीले तत्व अपने में समाए होता है, लेकिन धीरे-धीरे आस-पास के अन्य जहरीले तत्वों को भी अवशोषित करता जाता है। कई अध्ययनों के अनुसार प्लास्टिक में ढेरों समुद्री जीव फंस कर अपनी जान भी गंवा बैठते हैं अब सवाल यह उठता है स्वयं और अन्य जीवों की जान पर बनता देखकर भी हम कब तक इस जहर को अपनी जिंदगी पर हावी होने देते रहेंगे?
याद रखिए! यह धरती गोल है। आज आपने जो किया है, वह कभी न कभी घूम-फिर कर आप तक पहुंच ही जाएगा। इसलिए बेहतर काम करने का प्रयास करें।
1. तटों या नदी-तालाबों के आसपास कचरा नजर आए, तो सफाई कर्मचारी से साफ करने को कहें।2. पता करें कि आप के घर का कचरा कहां जाता है। ऐसी पाइप लाइन में कचरा डालना, जो सीधे किसी ताल या पानी के स्रोत से जुड़ती हो, गलत है। अपने घर के कचरे को केवल घर से बाहर न करें, बल्कि यह भी जानें कि आखिर उसका हो क्या रहा है।
3. अच्छे मेहमान बनें। जब किसी दूसरे शहर जाएं, तो उसे अपने ही घर की तरह समझें। वहां के पेड़, पौधे, जानवर और जल स्रोतों को तकलीफ न पहुंचाएं।
4. ऐसे स्थानों की सैर करें, जहां प्रशासन जल स्रोतों वन्य-जीव की देखभाल के लिए भरपूर प्रयास कर रहा हो। यहां पर्यटन पर किया गया खर्च इनके काम ही आएगा।
5. नहीं कहें... प्लास्टिक का इस्तेमाल कतई न करें।
यदि हम आपसे कहें कि आज से खाने में आपको प्लास्टिक मिलेगा, तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? हैरान होंगे, नाराज होंगे? यदि आपकी अपने लिए यह प्रतिक्रिया है, तो सोचिए धरती को कैसा लगता होगा? हर दिन, हर घंटे, हर पल, हम धरती को यह जहर देते जा रहे हैं। ठीक हमारी तरह वह भी न इसे चबा सकती हैं, न निगल सकती हैं। फिर भी इन दानव को निरंतर उपयोग में लाकर धरती के मुंह में ठूंसा जा रहा है। दरअसल यह जहर न सड़ता है। न खत्म होता है। यह केवल वर्षाजल को जमीन में अवशोषित होने से रोकता है और धरती की सेहत बिगाड़ता चला जाता है. इसका सबसे अधिक इस्तेमाल पैकिंग व बोतलों के रूप में किया जाता है। इस्तेमाल के साथ ही अमूमन प्लास्टिक को कचरे में फेंका जाता है, जो आखिरकार नदियों, समुद्रों से होते हुए महासागरों में समा जाता है। और तो और यह सालों-साल मरता नहीं है, क्योंकि यह ‘अमर’ है! यह पहले से ही ढेरों जहरीले तत्व अपने में समाए होता है, लेकिन धीरे-धीरे आस-पास के अन्य जहरीले तत्वों को भी अवशोषित करता जाता है। कई अध्ययनों के अनुसार प्लास्टिक में ढेरों समुद्री जीव फंस कर अपनी जान भी गंवा बैठते हैं अब सवाल यह उठता है स्वयं और अन्य जीवों की जान पर बनता देखकर भी हम कब तक इस जहर को अपनी जिंदगी पर हावी होने देते रहेंगे?
याद रखिए! यह धरती गोल है। आज आपने जो किया है, वह कभी न कभी घूम-फिर कर आप तक पहुंच ही जाएगा। इसलिए बेहतर काम करने का प्रयास करें।
1. तटों या नदी-तालाबों के आसपास कचरा नजर आए, तो सफाई कर्मचारी से साफ करने को कहें।2. पता करें कि आप के घर का कचरा कहां जाता है। ऐसी पाइप लाइन में कचरा डालना, जो सीधे किसी ताल या पानी के स्रोत से जुड़ती हो, गलत है। अपने घर के कचरे को केवल घर से बाहर न करें, बल्कि यह भी जानें कि आखिर उसका हो क्या रहा है।
3. अच्छे मेहमान बनें। जब किसी दूसरे शहर जाएं, तो उसे अपने ही घर की तरह समझें। वहां के पेड़, पौधे, जानवर और जल स्रोतों को तकलीफ न पहुंचाएं।
4. ऐसे स्थानों की सैर करें, जहां प्रशासन जल स्रोतों वन्य-जीव की देखभाल के लिए भरपूर प्रयास कर रहा हो। यहां पर्यटन पर किया गया खर्च इनके काम ही आएगा।
5. नहीं कहें... प्लास्टिक का इस्तेमाल कतई न करें।
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