प्राचीन युग से ही मात्स्यिकी मानव जाति के लिये भोजन, रोजगार आजीविका तथा आर्थिक लाभ का महत्त्वपूर्ण स्रोत रहा है। मात्स्यिकी दुनियाभर में एक अरब से ज्यादा लोगों के लिये आहार एवं लगभग 38 मिलियन से भी ज्यादा लोगों के लिये रोजगार का मुख्य साधन है। इसके अलावा अंतर्स्थलीय मत्स्य पालन का मात्स्यिकी क्षेत्र के रोजगार में सबसे बड़ा योगदान है। विश्व में रोजगार की 15 प्रतिशत भागीदारी मत्स्य पालन क्षेत्र से जुड़ी हुई है। मछली भारतीय परिवारों के भोजन एवं प्रोटीन पूर्ति का मुख्य साधन है। इसके अलावा हमारे देश में मत्स्य का सामाजिक व सांस्कृतिक, परम्पराओं एवं रीति-रिवाजों में भी महत्त्व परिलक्षित है। भारत में मत्स्य-पालन रोजगार, आहार, पोषण के अलावा विदेशी मुद्रा अर्जित कर भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय जनसंख्या में से लगभग 60 लाख लोग आजीविका के लिये इस क्षेत्र पर निर्भर हैं।
![महाशीर मछली पालन](https://farm5.staticflickr.com/4316/35823220791_239dc35d2d.jpg)
(1) मौसमी चौर - जिसमें साल के कुछ महीनों में पानी रहता है।
(2) बारहमासी चौर - जिसमें साल भर पानी रहता है।
इन उपयुक्त एवं महत्त्वपूर्ण जल संसाधनों की उपस्थिति के कारण ही बिहार में मत्स्य-पालन की काफी संभावना है। परन्तु इनका अब तक समुचित विकास, उपयोग एवं प्रबंधन नहीं होने के कारण, काफी कम मत्स्य उत्पादन होता आ रहा है। आवश्यक रणनीति, सही तकनीक तथा समुचित प्रबंधन द्वारा उत्पादकता बढ़ाकर आजीविका एवं रोजगार को नई दिशाएँ दी जा सकती हैं। चौर का विकास करने के लिये इसका समुचित प्रबन्धन तथा जल का सही उपयोग करना चाहिए। खुले जल संसाधनों के अनियंत्रित जल क्षेत्र होने के कारण इनमें मत्स्य पालन एवं प्रबंधन एक बहुत बड़ी समस्या है।
प्रदेश के इन जलीय संसाधनों की पारिस्थितिकी को देखते हुए विभिन्न प्रौद्योगिकियों जैसे पेन कल्चर, केज कल्चर के माध्यम से जलीय वातावरण और उत्पादकता के अनुसार आवश्यक प्रजाति, माप/आकार तथा संचयन दर के साथ मत्स्य पालन कर उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। इसके अलावा चौर के समन्वित प्रबंधन द्वारा एकीकृत मत्स्य-पालन कर राज्य में आजीविका को समृद्ध करने, खाद्यान्न सुरक्षा के साथ सामाजिक ढाँचे को मजबूत करने का अद्वितीय अवसर प्रदान किया जा सकता है। इन्हीं अवसरों के कारण हाल के समय में विभिन्न सामाजिक तथा जातिय समूहों द्वारा इन संसाधनों का सही आकलन और संरक्षण कर उन्नत तकनीकों के माध्यम से संवहनीय उपयोग एवं दोहन के विभिन्न प्रयास किये जा रहे हैं।
चौर क्षेत्र में मात्स्यिकी द्वारा जीविकोत्थान के अवसर - जनवरी, 2014 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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5 | चौर संसाधनों में पिंजरा पद्धति द्वारा मत्स्य पालन से उत्पातकता में वृद्धि |
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7 | बिहार में टिकाऊ और स्थाई चौर मात्स्यिकी के लिये समूह दृष्टिकोण |
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