मध्यप्रदेश के इंदौर में आजीविका की बदौलत ग्रामीण महिलाओं में सामाजिक बदलाव की सुहानी सूरत देखने को मिल रही है। महिलाओं को संगठित कर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन उनके हाथों में हुनर सौंप रहा है। उन्हें संसाधन मुहैया करा रहा है। निर्धन परिवारों की महिलाओं के लिए आजीविका नारी सशक्तिकरण की नयी मिसाल बन गई है। स्त्री अपने परिवार की धुरी होती है। उनकी आजीविका से परिवार की आमदनी बढ रही है, परिवार और समाज सशक्त हो रहा हैं। महिलाएँ आत्मनिर्भर हुई हैं। अब वे आत्मविश्वास से लबरेज़ दिखती हैं।
इंदौर जिले के नागपुर गाँव में उजाला महिला आजीविका ग्राम संगठन की 20 महिलाएँ हर दिन काढा पावडर और सेनेटाइज़र तैयार कर रही हैं। एनआरएलएम के ज़रिए इन समूहों को हर मुमकीन सहायता पंहुचाई जा रही है। समूह ने साढे तीन लाख का लोन लेकर मशीनें जुटाई। यहाँ तैयार सेनेटाइजर और काढे को आयुष विभाग खरीदेगा। आयुष विभाग ने इसके लिए 3 ग्राम संगठनों को 5 साल के लिए रजिस्ट्रेशन जारी किया है। इस काम से महिलाओं के जीवन में नया सवेरा दिखाई दे रहा है।
जम्बुडी हप्सी में बैंक सखी के ज़रिए औरतों में बचत की आदत डाली जा रही है। ललिता चौहान ने अपने गाँव में बीते दस महीनों में 46 स्वंय सहायता समूहों समेत 492 बचत खाते खुलवा दिए हैं। गाँव की यह बैंक महिलाओं की अपनी बैंक है, जो दिन-रात खुली होती है। जब ज़रूरत हो, पैसा हाज़िर।
रंगवासा की ये महिलाएँ एक साल से टेलरिंग का काम कर अपनी आजीविका चला रही हैं। वक़्त की माँग के मुताबिक ये अब मास्क तैयार कर रही हैं। अब तक 15 हजार मास्क तैयार कर चुकी हैं। महज तीन महीनों में इससे उन्हें करीब 50 हजार रूपए की आमदानी हुई है।
घर की चारदीवारी और घूंघट में काम करने वाली ये औरतें अब दहलीज पार कर यूट्यूब के ज़रिए मेकरम के अपग्रेड आयटम बना रही है। तोरण, झूला, लेटर बॉक्स, झूला, झूमर, आईना और पैरदान बनाकर इन्हें बाज़ार में सप्लाई कर रही हैं। गाँव की 15 महिलाएँ इससे 4 से 5 हजार रुपए प्रति माह की अतिरिक्त आमदानी हो रही हैं।
रंगवासा की नर्सरी मनरेगा मद से तैयार की गई है। इसके संचालन का जिम्मा महिला समूहों को सौंपा गया है। यह नर्सरी महिलाओं के लिए आजीविका का ज़रिया बनेगी। इसमें डेढ लाख पौधे तैयार कर सौ से ज्यादा पंचायतों में भेजे जाएंगे। इसी तरह माचल गाँव के पत्थर खदान के इस तालाब का पट्टा 10 सालों के लिए राधा-कृष्णा स्वंय सहायता समूह को सौंपा गया है। समूह की ग्यारह महिलाएं मछली पालन कर खुद को आर्थिक रूप से सक्षम बना रही हैं।
सेमल्या चाऊ की रेखा अपने ही समूह से 25 हजार का लोन लेकर आजीविका फ्रेश के नाम से सब्जी की दुकान चला रही है। सब्जी बेचकर रेखा 15 हजार रुपए महीना अर्जित कर रही हैं। इसी तरह जामनिया खुर्द की ज्योति सैनी का चूडियाँ बनाने का कारोबार भी चल निकला है। उसे मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के तहत एक लाख का लोन मिला है। इसमें 30 हजार रुपए अनुदान दिया गया है। ज्योति इस कारोबार से 16-17 हजार रुपए प्रतिमाह आय अर्जित कर रही है। ज्योति के चेहरे पर आत्मविश्वास और ख़ुशी की चमक साफ़ दिखाई देती है।
इंदौर जिले में आजीविका मिशन के आंकडों पर एक नजर
कुल स्वंय सहायता समुह- 2425
कुल गाँवों की संख्या जिनमें स्वंय सहायता समुह काम कर रहे हैं- 448
स्वंय सहायता समुहों से जुड़ी महिलाओँ की संख्या- 26 हजार 301
202 समुहों को 2 करोड़ 70 लाख 75 हजार का सामुदायिक निवेश फंड उपलब्ध कराया गया
358 स्वंय सहायता समुहों को बैंको से लिंकेज कर 4 करोड़ 91 लाख 85 हजार का बैंक लोन उपलब्ध कराया
समूहों की तरफ़ से तैयार उत्पादों को बिक्री के लिए इंदौर हाट में लाया जाएगा। अब हस्त शिल्प की चीजें सीधे इंदौर जैसे बड़े बाज़ार में अपनी जगह बनाएगी। ज़ाहिर है इससे पैसों के साथ-साथ हुनरमंद हाथों को मान भी मिलेगा।
प्रशासन की कोशिश है कि इन समूहों में महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा संगठित कर उन्हें ज़रूरी संसाधन उपलब्ध कराएं जाए। इसके लिए हर मुमकिन कोशिशें की जा रही है।
यक़ीनन गरीबी और बेबसी के कुचक्र को तोडकर आजीविका मिशन खुशहाली की एक नई राह बन रहा है। इससे गाँव में बदलाव और तरक्की का इन्द्रधनुष आकार ले सकेगा।
यह फिल्म मध्यप्रदेश के प्रतिष्ठित प्रोडक्शन हाउस ‘द टेलीप्रिंटर’ ने तैयार की है। ‘द टेलीप्रिंटर’ सरकारी एंव ग़ैर सरकारी संगठनों के लिए किफ़ायती दाम पर बेहतर गुणवत्ता वाली शॉर्ट फ़िल्म और डॉक्यूमेंट्री तैयार करता है। आप इस नंबर पर संपर्क कर सकते हैं- 9425049501
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