पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता और सुंदरबन में बीते सप्ताह आए चक्रवाती समुद्री तूफान आइला ने सुंदरबन का भूगोल बदल दिया है. इससे इलाके के हजारों लोग अपने ही घर में शरणार्थी बन गए हैं. तूफान के एक सप्ताह बाद तक राहत नहीं पहुंचने की वजह से अब यह लोग हजारों की तादाद में पलायन करने लगे हैं. इनकी मंजिल है राजधानी कोलकाता. सुंदरबन के खासकर गोसाबा द्वीप इलाके के कई गांवों में आइला ने लोगों से उनके घर-बार और पालतू पशुओं को छीन लिया है. उनके पास न तो खाने के लिए कुछ है और न ही पीने का साफ पानी. ऊपर से भारी तादाद में मरे जानवरों के शवों के चलते इलाके में महामारी फैलने का खतरा पैदा हो गया है.
रविवार को मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य जब इस इलाके के दौरे पर पहुंचे तो उनको हजारों तूफान पीड़ितों की नाराजगी का सामना करना पड़ा. दो जगह तो भीड़ ने उनका घेराव किया. सब उनसे यही पूछ रहे थे कि अब तक राहत क्यों नहीं पहुंची और आप इतने दिनों बाद क्यों यहां आए हैं? हालात की गंभीरता समझते हुए जल्दी ही राहत भेजने का भरोसा देकर मुख्यमंत्री अपना दौरा अधूरा ही छोड़ कर वहां से कोलकाता लौट आए. लेकिन इस तूफान और राज्य सरकार की उदासीनता से इलाके में पलायन तेज हो गया है. गांव के गांव तेजी से खाली हो रहे हैं. लोगों की पहली चिंता जान बचाने की है.
सुंदरबन इलाके से लोगों के पलायन ने बंगाल में 1943 में पड़े अकाल की यादें ताजा कर दी हैं. सजनेखाली के खगेन मंडल कहते हैं कि ‘गांव में हमारा कुछ नहीं बचा है. खेत खारे पानी में डूबे हैं. पशु मारे जा चुके हैं. घर भी ढह गया है. इसलिए हम अपने परिवार को बचाने के लिए कोलकाता आ गए हैं.’
गोसाबा अब एक भूतहा कस्बा लगता है. कच्चे मकान पूरी तरह ढह गए हैं और पक्के मकानों के लोग भी या तो गोसाबा स्कूल में बने इकलौते राहत शिविर में हैं या फिर कोलकाता चले गए हैं. गोसाबा से आए सुब्रत मंडल कहते हैं कि ‘पानी उतर जाने के बाद भी हम लौट कर करेंगे क्या? वहां न तो फसलें बची हैं और न ही पशु.’ वे अपने परिवार के साथ महानगर में अपने एक रिश्तेदार के साथ रह रहे हैं. कुछ द्वीपों में तो लोग ऊंचे तटबंधों पर रह रहे हैं.
राहत के सवाल पर राज्य की वाममोर्चा सरकार और तृणमूल कांग्रेस के बीच होने वाली राजनीति में पिसते इन लोगों ने महानगर के फुटपाथों को अपना ठिकाना बनाया है. गोसाबा के सुमंत मंडल कहते हैं कि ‘मुख्यमंत्री के दौरे से हालत में किसी बदलाव की उम्मीद कम ही है. आइला ने हमें शरणार्थी बना दिया है. गांव के लोगों के पास इतना पैसा भी नहीं है कि ट्रेन के टिकट खरीद सकें. इसलिए ज्यादातर लोग बिना टिकट ही कोलकाता तक का सफऱ कर रहे हैं.’ संदेशखाली के नौशाद अली कहते हैं कि ‘समुद्र के खारे पानी ने हमारी फसलों को तो नष्ट कर ही दिया है, अब उन खेतों में अगले दो-तीन साल तक खेती नहीं हो सकती.’ वे कहते हैं कि ‘कोलकाता में हम कम से कम भीख मांग कर तो अपना पेट भर सकते हैं.’पर्यावरणविदों का कहना है कि सुंदरबन इलाके में बीते पचास वर्षों में कभी किसी तूफान से इतनी बर्बादी नहीं हुई थी. इलाके में साढ़े तीन हजार किमी लंबे तटबंध में से छह सौ किमी तो पूरी तरह साफ हो गया है. कम से कम पांच सौ किमी लंबे तटबंध की तुरंत मरम्मत की जरूरत है. लेकिन जहां लोगों को तूफान के एक सप्ताह बाद तक पीने का पानी तक नहीं मिला हो, वहां तटबंधों की मरम्मत को कौन पूछता है. इलाके के दौरे से लौटे जाने-माने पर्यावरणविद तुषार कांजीलाल कहते हैं कि ‘अगर सुंदरबन से पलायन पर रोक नहीं लगी तो पूरा इलाका ही जनशून्य हो जाएगा.’
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