आईएफएस सुधा रमन के प्रयासों से पुनर्जीवित हुई सूखी झील

आईएफएस सुधा रमन के प्रयासों से पुनर्जीवित हुई सूखी झील
आईएफएस सुधा रमन के प्रयासों से पुनर्जीवित हुई सूखी झील

चेन्नई का जल संकट किसी से छिपा नहीं है। दो साल पहले चेन्नई में भूजल एक प्रतिशत से भी कम बचा था। पानी की बूंद बूंद के लिए हाहाकार मच गया था। यहां ट्रेन से पानी की सप्लाई की जा रही है। चेन्नई को पानी सप्लाई करने वाली झील सूख चुकी थी। चेन्नई में भीषण जल संकट का कारण अनियमित विकास, भूजल का अतिदोहन और जलवायु परिवर्तन था। इन सबसे चेन्नई के वंडलूर चिड़ियाघर की ओट्टेरी झील भी अछूती नहीं रही। प्रवासी पक्षियों का घर कही जाने वाली ये झील भी सूख चुकी थी। चिड़ियाघर में भी जल संकट खड़ा हो गया था, लेकिन आईएफएस अधिकारी वंडलूर चिड़ियाघर की उप-निदेशक सुधा रमन के प्रयासों से झील को पुनर्जीवित किया गया। 

ओट्टेरी झील 18 एकड़ में फैली हुई है, जो मुख्यतः बारिश के पानी से रिचार्ज होती है। सर्दियों के मौसम में आर्कटिक सर्किल से यहां बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते थे। 2016 में जब वरदा साइक्लोन आया तो, इसका असर झील पर भी पड़ा। चिड़ियाघर में हजारों पेड़ उखड़ गए थे और करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ था। तो वहीं हर साल बढ़ते तापमान (गर्मी) के कारण झील सूखती चली गई। झील का घटता जल चिंता का सबब बन गया। धीरे-धीरे कुछ स्थानों को छोड़कर अन्य स्थानों पर झील पूरी तरह सूख गई थी। परिणामतः प्रवासी पक्षियों ने झील में आना बंद कर दिया था। इससे चिड़ियाघर के प्रति लोगों का आकर्षण घटने की संभावना भी बनी हुई थी, लेकिन झील के सूखने और चेन्नई के जल संकट का असर और बड़े पैमान पर पड़ा।

झील के सूखने के कारण चिड़ियाघर में भी जल संकट गहराने लगा था। जीव-जंतुओं की प्यास बुझाने के लिए बाहर से पानी मंगवाना पड़ता था, लेकिन बाहर से पानी मंगवाकर प्यास बुझाना दीर्घकालिक उपाय नहीं था और समस्या काफी बड़ी थी। वंडलूर चिड़ियाघर की उप-निदेशक सुधा रमन ने झील को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया इसके लिए झील के प्राकृतिक ड्रेनेज चैनल को साफ करने के लिए गाद को निकाला गया। गाद के रूप में निकाली गई मिट्टी का उपयोग झील में टीले बनाने के लिए किया गया। टीलों में अर्जुन, जामुन, गुलर और मैंग्रोव आदि के पौधों का रोपण किया गया। झील के काफी हिस्से में खरपतवार भी जमा हो गई थी, जिसे पूरी तरह से निकाला गया। 

झील बारिश के पानी से रिचार्ज होती है। भविष्य में ऐसी समस्या फिर न खड़ी हो, इसके लिए झील के चारों ओर मेढ़ों को ऊंचा किया गया, जिससे झील की स्टोरेज क्षमता भी बढ़ गई। साथ ही क्षेत्र में भूजल स्तर को बनाए रखने के लिए चिड़ियाघर में कई तालाब और रेनवाटर हार्वेस्टिंग यूनिट बनाई गई। ऐसे में एक समस्या अधिक बारिश होने पर पानी के ओवरफ्लो होने से आती है। इसके समाधान के लिए एक डायवर्जन चैनल बनाया गया है। झील और तालाबों को चैनल से लिंक कर दिया गया है। सुधा रमन सहित अन्य सभी के प्रयासों के परिणामस्वरूप बारिश के बाद झील में न केवल पानी एकत्रित हुआ, बल्कि प्रवासी पक्षी भी लौट आए। जीव-जंतुओं के लिए पानी की समस्या भी दूर हुई। सुधा रमन ने अपने और उनकी टीम के प्रयासों को अपने ट्वीटर के माध्यम से भी शेयर किया है। 

2018 में वंडलूर चिड़ियाघर की सैर पर गए शील काटे ने इंडिया वाटर पोर्टल को बताया कि ‘‘दो साल पहले चेन्नई सैर के दौरान वंडलूर चिड़ियाघर में जाने का मौका मिला। चिड़ियाघर के बारे में काफी कुछ इंटरनेट पर पढ़ा था, लेकिन वहां पहुंचने पर सूखी झील देखकर मायूस होना पड़ा। ऐसा लगा कि हम इंसान प्रकृति की सभी धरोहरों का विनाश कर रहे है, लेकिन हाल ही में झील के पुनर्जीवित होने की जानकारी प्राप्त हुई, जो कि काफी सुखद है। उम्मीद है अब झील का अलौकिक दृश्य और प्रवासी पक्षियों को देखने वंडलूर जाएंगे।’’


हिमांशु भट्ट (8057170025)

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Post By: Shivendra
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