आईएएस हीरालाल की प्रेरणा से बुझ रही ग्रामीणों की प्यास, लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज

आईएएस हीरालाल की प्रेरणा से बुझ रही ग्रामीणों की प्यास, लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज
आईएएस हीरालाल की प्रेरणा से बुझ रही ग्रामीणों की प्यास, लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में नाम दर्ज

उत्तर प्रदेश का बांदा जिला भारत के उन स्थानों में शामिल था, जो हर साल गर्मिया शुरु होते ही जल संकट और सूखे का सामना करता था। धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व होने के बावजूद भी जिले के अधिकांश तालाब और कुएं कूड़ेदान में तब्दील हो गए थे। मई जून का महीना आते आते सूखे कुएं गांव के प्यासों को मुंह चिढ़ाते थे। भूजल स्तर गिरने से हैंड़पंपों के गले भी सूख गए थे। जिस कारण बांदा के लोगों को हर साल पीने और सिंचाई के लिए बूंद बूंद पानी का मोहताज़ होना पड़ता था। पानी के संकट के कारण कई लोग खेती छोड़ने लगे थे। इससे धीरे धीरे पलायन भी बढ़ने लगा। ऐसे में लोगों की समस्या को हल करने का जिम्मा बांदा के तत्कालीन जिलाधिकारी और वर्तमान में लखनऊ में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के एडिशनल मिशन डायरेक्टर डाॅ. हीरालाल ने उठाया। उनके नेतृत्व में किए गए इस कार्य से गांवों को जब पानी मिलने लगा तो सभी के चेहरों पर एक नई चमक लौट आई। जल संरक्षण के लिए डाॅ. हीरालाल के इन प्रयासों को 6 राष्ट्रीय पुरस्कार मिले चुके हैं और दिसंबर 2019 में अभियान को लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में भी स्थान मिला था।

बांदा में सरकार के साथ कार्य कर रही संस्था वाटर एड (Wateraid) के मुताबिक बांदा के 70 प्रतिशत कुओं में जलस्तर तेजी से गिर रहा था। जिनमें से 50 प्रतिशत कुओं का जलस्तर 0-2 मीटर प्रतिवर्ष की दर से गिर रहा था, जबकि 7 प्रतिशत कुओं में 2-4 मीटर और 15 प्रतिशत कुओं में 4 मीटर प्रतिवर्ष की दर से जल स्तर में गिरावट आ रही थी। फर्स्टपोस्ट की एक रिपोर्ट के मताबिक ‘बांदा के 7508 कुओं में से 4285 कुएं सूख चुके हैं। 2292 तालाबों में से केवल 1193 तालाबों में ही पानी मौजूद था। शेष तालाब या तो सूख गए थे या लोगों ने उन पर कब्जा कर लिया था।'  

बांदा को जल संकट से उबारने के लिए अभियान की शुरुआत 6 अक्टूबर 2018 को हुई। दो चरणों में अभियान चलाए गए। पहले चरण में ‘भूजल बढ़ाओ, पेयजल बचाओ’ अभियान चलाया गया। जल संरक्षण हेतु जल संरक्षण चेतना पर्व, भूजल संरक्षण कार्यक्रम, तकनीकी दल को प्रशिक्षण दिया गया, लेकिन किसी भी कार्य को करने के लिए जन सहभागिता बेहद जरूरी होती है। जनता और नए जिलाधिकारी व प्रशासन के बीच आपसी संबंध स्थापित करने के लिए ‘‘स्टार्टअप एंड इनोवेशन समिट 2019’’ का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में लगभग 50 हजार लोगों ने हिस्सा लिया। 13 फरवरी 2019 को बड़ोखर खुर्द के गुरहे ग्राम पंचायत से कुएं आदि जल संरक्षण प्रणालियों के आसपास खंतियां खोदने का कार्य शुरू किया गया।

कुआं-तालाब जियाओ अभियान के अंतर्गत कुएं का किया गया जीर्णोद्धार।

जिलाधिकारी द्वारा विभिन्न विभागों के अधिकारियों को उनकी जिम्मेदारी सौंपते हुए एक कोर ग्रुप का गठन किया गया, जिसमें मुख्य विकास अधिकारी, जिला विकास अधिकारी, उप-कृषि अधिकारी, जिला पंचायत राज अधिकारी, लघु सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता, जल निगम के अधिशासी अधिकारी, भूमि संरक्षण अधिकारी, वाटर एड इंडिया के पाॅलिसी मैनेजर एवं प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर, पीएसआई के निदेशक और अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के डायरेक्टर एवं प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर को शामिल किया गया। इसके बाद वाटर बजटिंग करने और खंती बनाने का तकनीकी प्रशिक्षण देने के लिए विकास भवन के सभागार में जिला स्तरीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में विभिन्न ग्राम प्रधानों और विभागों के कर्मचारियों को बुलाया गया था। जिले की सभी न्याय और ग्राम पंचायतों में जागरुकता अभियान तथा खंतियां बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। लोगों को जल संरक्षण के महत्व से परिचित कराया। प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर जल चौपाल  बनाई गई। हर जल चौपाल में मुखिया/ग्राम प्रधान सहित 15 सदस्य होते हैं। हर मुखिया अपनी ग्राम पंचायत में जागरुकता फैलाने के लिए जिम्मेदार होता है। 

पहले चरण में बांदा के जन-जन तक चले अभियान का काफी सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला। बांदा के तत्कालीन जिलाधिकारी डाॅ. हीरालाल ने इंडिया वाटर पोर्टल को बताया कि 

अभियान के अंतर्गत पहले चरण में 469 ग्राम पंचायतों के 34732 ग्रामीणों ने प्रतिभाग किया। 2443 जलस्रोतों के पास 2605 खंतियां बनाई गईं, जिनकी क्षमता हर साल 1 लाख 1001 किलोलीटर भूजल संग्रह करने की है।  

बाएं - हैंडपंप के पास खंती की खुदाई करता युवक और दाएं - ग्रामीणों को जागरुक करते हुए।

बांदा सहित देश के तमाम इलाकों में पानी भरने का जिम्मा महिलाओं के कंधों पर ही होता है, लेकिन हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि गांवों में महिलाओं को प्रसव के बाद 12 दिनों तक पानी भरने की अनुमति नहीं होती। 13वें दिन कुएं की पूजा करने के बाद ही उन्हें कुओं आदि से पानी भरने की अनुमति होती है। विभिन्न जल चौपाल और जागरुकता कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं को यही समझाया गया कि जब कुएं में पानी ही नहीं होगा या वे प्रदूषित होंगे, तो फिर पूजा करके क्या लाभ ? ऐसे में अपनी मान्यताओं और संस्कृति को बचाए रखने तथा मां और शिशु के स्वास्थ्य के लिए कुंओं को साफ-सुथरा रखना बेहद जरूरी है। 

इस प्रकार ‘कुआं-तालाब जियाओ अभियान’ के रूप में दूसरा चरण शुरु हुआ। तत्कालीन जिलाधिकारी डाॅ. हीरालाल ने लोगों से अपील की कि ‘‘पुराने जमाने में खेत तालाब से पानी पीते थे। इंसान कुएं से पानी पीता था, लेकिन अब तालाब तालाब नहीं रहे। कुएं और तालाब सूख गए हैं। जब से कुएं और तालाबों ने हमारा साथ छोड़ा, तब से हमारे सामने पानी का विकट संकट खड़ा हो गया है। वर्तमान जीवन और भविष्य को यदि सुरक्षित करना है तो तालाब और कुएं को पुनर्जीवित कर उन्हें दोस्त और जीवनसाथी बनाना होगा। तालाब और कुएं हमारे लिए पूजनीय हैं। हमें पुनः इनकी पूजा करना शुरु कर देना चाहिए। सामुहिक श्रमदान और आपसी सहयोग से तालाब और कुओं को पुनर्जीवित करना होगा।’’

प्राथमिक विद्यालय में वर्षाजल संचयन का ढांचा तैयार करते हुए।

जिलाधिकारी की अपील के साथ दूसरे चरण को आगे बढ़ाते हुए जिलेभर में जल चौपाल, कुआं तालाब पूजन और तालाब व जल प्रणालियों की सफाई-खुदाई के प्रति जागरुक कर कार्य शुरु किया गया। इसके लिए 470 ग्राम प्रधान, 300 लेखपाल और 133 सचिव की मौजूदगी में 20 मई 2019 को जिला स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम कर ‘कुआं-तालाब जियाओ अभियान’ शुरु किया।

तालाबों और कुओं को साफ करने के लिए जनता की सहभागिता जरूरी थी। इसके लिए डाॅ. हीरालाल खुद गांवों के भ्रमण पर जाते और तालाब-कुओं को साफ करते थे। उन्हें ऐसा करते देख लोगों को भी प्ररेणा मिलेगी लगी। लोगों ने जल प्रणालियों के महत्व को समझा और बड़े पैमाने पर अभियान चलाकर जल प्रणालियों को साफ किया। कुंओं की सफाई कर उन पर रंगाई की गई और प्रेरणादायक वाक्य लिखे गए। खेतों में नए तालाब बनाए गए। पुराने तालाबों से गाद व कूड़ा निकालकर उन्हें साफ किया गया।  इसके साथ ही वर्षा जल संचयन का कार्य भी किया गया।

डाॅ. हीरालाल ने बताया कि वर्षा जल संचयन के लिए स्कूलों, सरकारी भवनों, निजी स्थानों आदि पर रेनवाटर हार्वेस्टिंग का ढांचा तैयार किया गया। छतों पर एकत्र होने वाले पानी को कुओं में उतारा गया। श्रमदान कर तालाबों की सफाई कर 572 तालाबों का जीर्णोद्धार किया। जल संरक्षण के लिए 1536 रिचार्ज पिट/ट्रेंच, वर्षा जल संचयन के 82 ढांचे, 1050 नए खेत तालाब बनाए गए, 410 तालाब मनरेगा के तहत तथा 2111 किसानों ने मेढबंदी करवाई। दिसंबर 2019 में अभियान को लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में भी स्थान मिला था।

अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान से जुड़ी प्रशंसा गुप्ता ने बताया कि अभियान के अंतर्गत जल संरक्षण के प्रति जागरुकता लाने के लिए जल यात्रा निकाली गई थी, जिसमें 15 से 20 हजार लोगों ने प्रतिभाग किया था। इसी प्रकार की जागरुकता दुनियाभर में होनी चाहिए, क्योंकि हवा और पानी इंसान के जिंदा रहने के लिए बेहद जरूरी है। हर व्यक्ति को अपने अपने स्तर पर जल संरक्षण का हर संभव प्रयास करना चाहिए। पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली को अपनाया जाए। रोजाना की जिंदगी में भी पानी को बचाने की कोशिश करें। यही सब-कुछ हमने अपने अभियान में लोगों को बताया भी था। आगे भी हमारे यही प्रयास रहेंगे।

जल संरक्षण के कार्य के लिए तत्कालीन जिलाधिकारी डाॅ. हीरालाल को किया गया सम्मानित।

धरातल पर भी दिखा अभियान का असर, भूजल स्तर बढ़ा

ग्राम पंचायत महुए के प्रधान व जल चौपाल के मुखिया मलखी श्रीनिवास ने इंडिया वाटर पोर्टल को बताया कि गांव में 11 कुएं और लगभग 57 हैंडपंप हैं, लेकिन गर्मियां आते ही कुएं सूख जाते थे और भूजल स्तर गिरने से 57 में से 25 हैंडपंप काम करना बंद कर देते थे। मानसून में जब भूमि को कुछ पानी बारिश के रूप में मिलता, तो ही फिर हैंडपंपों में पानी आता था। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।

उन्होंने बताया कि भूजल स्तर 90 फीट से भी ज्यादा नीचे चला गया था, लेकिन ‘कुआं-तालाब जियाओ अभियान’ के बाद वर्षा जल संचयन किया जा रहा है। तालाब और कुओं आदि को साफ किया गया। खतियों का निर्माण करने से इस बार 70 फीट पर पानी उपलब्ध है और अभी तक जलस्तर नीचे नहीं गिरा है।

क्यों बनाई गई खंतियां और तालाब

वैसे तो खंतियों का निर्माण मुख्यतः पर्वतीय इलाकों में किया जाता है। क्योंकि यहां ढलाननुमा इलाके होने के कारण बारिश का पानी ठहरता नहीं है। वैसे ही बांदा भले ही मैदानी इलाका है, लेकिन यहां भी बारिश का पानी रोकने की कोई व्यवस्था नहीं थी। बारिश होने पर पानी नालों आदि से होता हुआ बह जाता था। ऐसे में ग्रामीण जल संकट के बीच बारिश के पानी की एक बूंद भी नहीं संग्रहित कर पाते थे। खंतियां ऐसे छोटे गड्ढ़ें होती है, जिनका उपयोग पानी को संग्रहित करने के लिए किया जाता है। ऐसे में हैंड़पंप और कुओं आदि जल प्रणालियों के समीप खंतियों का कर निर्माण पानी को संग्रहित कर भूमि के अंदर पहुंचाया गया। खेतों में बने तालाबों ने भी पानी को जमीन के अंदर पहुंचाने का कार्य किया। खेतों में पानी की कमी मेढ़ बनाकर पूरी कर ली गई। ऐसे में भूजल रिचार्ज हुआ और लोगों को अभी भी पानी मिल रहा है। 


हिमांशु भट्ट (8057170025)

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Post By: Shivendra
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