आईआईटी कानपुर ने अपने उन गाँवों के नाम भी तय कर लिये हैं, जिन्हें वह गोद लेने वाला है। ये सभी गाँव गंगा नदी के किनारे हैं। यदि आईआईटी ने इन गाँवों को एक माॅडल की तरह विकसित करने में सफलता पाई तो सम्भव है कि दूसरे क्षेत्रों के लोग भी आने वाले समय में इन गाँवों को स्वच्छता के माॅडल के तौर पर देखने आएँगे। जिन गाँव को आईआईटी गोद लेने वाला है, उनके नाम हैं, पहला रमेश नगर, दूसरा ख्योरा कटरी, तीसरा प्रतापपुर हरी, चौथा हिंदपुर और पाँचवा लोधवा खेड़ा। नेशनल मिशन फाॅर क्लिन गंगा के साथ अब आईआईटी कानपुर का नाम जुड़ गया है। नमामि गंगा परियोजना के अन्तर्गत गंगा नदी को निर्मल और स्वच्छ बनाने के लिये गंगा नदी के किनारे बसे पाँच गाँवों को आईआईटी कानपुर ने गोद लिया है।
आईआईटी अपने गोद लिये गाँव में जल सम्बन्धित व्यवस्थाओं का अवलोकन करेगी। जल सम्बन्धित व्यवस्थाओं का जब जिक्र करते हैं, इसमें जलापूर्ति, साफ-सफाई, स्वच्छता की व्यवस्था, शौचालय, स्नानघर, जानवरों के लिये इस्तेमाल होने वाला पानी, गन्दगी से बचाव और पानी निकास से समुचित व्यवस्था, पानी आपूर्ति से जुड़े सभी साधनों की निगरानी, हैण्डपम्प के पानी की गुणवत्ता की जाँच, नदी और नालों की स्वच्छता की बात, बारिश के पानी का प्रबन्धन। यह सारी व्यवस्थाएँ जल सबन्धित व्यवस्थाओं के अन्तर्गत आता है।
आईआईटी कानपुर में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर और नेशनल मिशन फाॅर क्लिन गंगा परियोजना के साथ जुड़े प्रो विनोद तारे ने बातचीत में जल सम्बन्धित व्यवस्था के इतने विस्तृत आयामों से परिचय कराया।
आईआईटी के अलावा ऐसे 12 संस्थान और भी हैं जिन्हें पाँच-पाँच गाँव गोद लेना है। ऐसा इसलिये क्योंकि गंगोत्री से गंगासागर तक बसे 13 शिक्षण संस्थानों को नेशनल मिशन फाॅर क्लिन गंगा परियोजना के अन्तर्गत पाँच-पाँच गाँव गोद लेने को कहा गया है। इन्हीं 13 शिक्षण संस्थानों में एक संस्थान आईआईटी भी है।
आईआईटी कानपुर ने अपने उन गाँवों के नाम भी तय कर लिये हैं, जिन्हें वह गोद लेने वाला है। ये सभी गाँव गंगा नदी के किनारे हैं। यदि आईआईटी ने इन गाँवों को एक माॅडल की तरह विकसित करने में सफलता पाई तो सम्भव है कि दूसरे क्षेत्रों के लोग भी आने वाले समय में इन गाँवों को स्वच्छता के माॅडल के तौर पर देखने आएँगे।
जिन गाँव को आईआईटी गोद लेने वाला है, उनके नाम हैं, पहला रमेश नगर, दूसरा ख्योरा कटरी, तीसरा प्रतापपुर हरी, चौथा हिंदपुर और पाँचवा लोधवा खेड़ा। इन गाँवों को संस्थान आदर्श गाँव के तौर पर विकसित करने वाली है।
आदर्श गाँव बनाने की योजना के अन्तर्गत गाँवों के पानी की जाँच की जाएगी। चापाकल का पानी पीने योग्य है या नहीं इसकी जाँच की जाएगी। वहाँ के लोगों को साफ पानी पीने को मिले इसके लिये प्रयास किया जाएगा।
गाँव की नालियों में बजबजाती हुई गन्दगी ना बहे। यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाएगा। नाले से होकर बारिश का पानी बहे, यह आदर्श गाँव की योजना में शामिल है। ऐसे शौचालय बनाए जाने की योजना है, जिसकी गन्दगी बाहर ना निकले। एक महत्त्वपूर्ण बात और कि गाँव का गन्दा पानी गंगा नदी में ना मिले। इसके लिये पक्की व्यवस्था करने की योजना है।
प्रोफेसर विनोद तारे के अनुसार- अभी पाँच गाँवों को गोद लेने के बाद यह मंथन चल रहा है कि हम उन्हें अपने गाँव को आदर्श बनाने में कैसे मदद कर सकते हैं। हमारी भूमिका आदर्श गाँव में तकनीकी सहयोगी की है। हम उन्हें एक मित्र की तरह सुझाव दे सकते हैं लेकिन काम उन्हें ही करना है। अलग-अलग योजनाओं के अन्तर्गत गाँव के नाम पर जो पैसा आएगा, वह भी ग्रामीणों को ही मिलेगा। हमारी भूमिका सिर्फ यह होगी कि वे पैसे का सबसे बेहतर इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं?जैसे गाय का गोबर है, उसका अधिक-से-अधिक गाँव के लोगों के लाभ में कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं।
प्रोफेसर विनोद तारे ने स्पष्ट किया कि इन गाँव को हमने किसी एनजीओ की परियोजना की तरह कोई तय लक्ष्य पाने के लिये गोद नहीं लिया। हम गाँवों में सिर्फ सहयोगी के नाते होंगे। गाँव अपने-अपने दम पर हमारे तकनीकी सहयोग से किस तरह आदर्श गाँव बन सकते हैं, इस पर अभी मंथन चल रहा है।
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Post By: RuralWater