आई सांस में सांस


इस सवाल का जवाब भला कौन नहीं जानता- हमारा शरीर सांस कैसे लेता है? यह भी कोई पूछने की बात है! हम नाक से सांस लेते हैं। लेकिन असल सवाल तो यह है कि सांस में हम अन्दर क्या लेते हैं। बच्चे जवाब में अक्सर बोल उठते हैं- ऑक्सीजन! शायद उन्होंने अपनी किताब में पढ़ा होता है कि सांस में हमें ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है।

.सांस के साथ बाहर की समूची हवा हमारे फेफड़ों में जाती है। हमारे चारों ओर वायुमंडल में लगभग 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन और 1% अन्य गैसें- जैसे आर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो-ऑक्साइड आदि होती हैं। खुशबू या बदबू वाली जगहों पर हमें उनकी गंध महसूस होती है। चूँकि हमारी नाक में इन्हें रोकने वाला कोई नहीं, इसलिये वायुमंडल में मौजूद सभी गैसें सांस के साथ सीधे फेफड़ों में पहुँचती हैं। हाँ धूल के कणों को हमारी नाक के बाल भीतर जाने से जरूर रोकते हैं।

मगर फेफड़े सिर्फ ऑक्सीजन को ही आगे जाने देते हैं। फेफड़ों में भरी ऑक्सीजन खून में घुल जाती है और दिल के जरिये पूरे शरीर में पहुँचती है। इस बीच शरीर के भीतर बनने वाली कार्बन डाइऑक्साइड भी खून के रास्ते फेफड़ों में आती है और वातावरण से पहुँची अन्य बेकार गैसों के साथ सांस छोड़ने की क्रिया में बाहर निकल जाती है। यह सिलसिला जीवन भर चलता रहता है।

.सांस लेने व छोड़ने की क्रिया को फेफड़ों के नीचे मौजूद श्वासपटल यानी डायाफ्राम संचालित करता है। श्वासपटल जब नीचे खिंचता है तो फेफड़े फैलते हैं। फैलने से इनका आयतन बढ़ जाता है और इनके भीतर वायुदाब घट जाता है। वायुदाब की कमी को पूरा करने के लिये बाहर की हवा नाक से फेफड़ों में घुस जाती है। इसी क्रिया को हम सांस लेना कहते हैं।

इसी तरह श्वासपटल के ऊपर उठने से फेफड़े सिकुड़ते हैं। इनका आयतन घट जाता है और भीतर का वायुदाब बढ़ जाता है। वायुदाब में हुई इस बढ़ोत्तरी को सामान्य बनाने के लिये फेफड़ों में भरी हवा बाहर निकल जाती है। यही क्रिया सांस छोड़ना कहलाती है।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि सांस से खींची गयी ऑक्सीजन शरीर में कहाँ जाती है और क्या गुल खिलाती है? इसी तरह शरीर के अलग-अलग हिस्सों से फेफड़ों में पहुँचने वाली कार्बन डाइऑक्साइड कैसे पैदा होती है? क्या तुम अपनी किताब से इन सवालों का जवाब खोज सकते हो?

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