आहर-पईन के साथ कट रही जिंदगी

कमल नयन, गयाः साधारण कद-काठी। कुर्ता-पायजामा के साथ कंधे पर कपड़े का झोला। भोजपुर में जन्में करीब 50 साल के रवीन्द्र पाठक को मगध की माटी भा गई है। दो दशक पहले उन्होंने धरती के अंदर से पानी ढूंढ़ने का काम शुरू किया। इसके एक दशक बाद उन्होंने सतही जल की व्यवस्था पर भी ध्यान दिया। तब से वे आहर-पईन के साथ ही जी रहे हैं।

‘मगध जल जमात’ की स्थापनाः


रवीन्द्र पाठक ने 1993 में धरती के अंदर पानी की खोज शुरू की। शहर में उन्होंने कई जगह बोरिंग भी कराई। लेकिन उनके कार्यों की असली शुरूआत 2003 में मानपुर के ‘बड़की पईन’ के साथ आहर व पईन के संरक्षण अभियान के रूप में हुई। दो वर्ष बाद उन्होंने ‘गमध जल जमात’ की स्थापना की और जल नीति बनाई। इसके तहत कुछ पुस्तकें लिखीं तथा जनजागरण किया। गया शहरी क्षेत्र में सैकड़ों लोग उनसे जुड़े। मगध जल जमात के बैनर तले उन्होंने शहरी क्षेत्र के सरयू तालाब, गंगा-जमुना, विरनियां चुआं आदि आठ तालाबों की सफाई जन सहयोग से कराई। उन्होंने सिंगरा स्थान के पीछे के तालाब की सफाई में सरकारी मदद ली तो जमुने-दसईन पईन में जनप्रतिनिधियों व जनता का सहयोग मिला। इसी तरह जनसहयोग से उतरेन-पाली पईन की उड़ाही व मरम्मती कराई।

जनता भी निभाए जिम्मेदारी


रवींद्र बताते हैं कि आहर-पईन से मिलने वाले पानी के लिए कोई टैक्स नहीं दिया जाता। जनता की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह इसे दुरुस्त रखे। इससे गांवों में जल समस्या का समाधान होगा। जिले के करीब 3500 आहर-पईन को दुरुस्त कर खेतों को भी हरा-भरा किया जा सकता है।

पहल


दो दशक से कर रहे जल संरक्षण का प्रयास

सरकार की सराहना


सूबे की वर्तमान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार की सराहना करते हुए वे कहते हैं कि इसने आहर व पईन, के महत्व को समझा है। उनके अनुसार पिछली सरकारों में इनको महत्व नहीं दिया था।

जल संरक्षण की दिशा में रवीन्द्र पाठक के कार्य सराहनीय हैं। इसे मैंने करीब से देखा है।

राय मदन किशोर, पूर्व नगर आयुक्त

अभी तक 500 आहर व पईन का संरक्षण


रवीन्द्र ने माना कि गया जिला के सुदूर इलाकों तक अगर पानी की समस्या का हल निकालना है तो यहां के करीब 3500 आहर व पईन इसमें सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने इनके संरक्षण के लिए ‘गया जिला आहर – पईन गोआम समिति संघ’ का निबंधन कराया। इसके तहत गांव-गांव में जनता के संगठन बनाकर उनके माध्यम से आहर व पईन के जीर्णोद्धार व उनमें जल संरक्षण उनके प्रयास रंग लाने लगे हैं। वे अभी तक ऐसे 500 से अधिक संगठन बन चुके हैं।

फल्गु में बांध का विरोध


शहरी क्षेत्र की बात करे तो रवींद्र का मानना है कि फल्गु नदी के ऊपर (दक्षिण) बहुत पानी है। दंडीबाग की जगह अगर वहां बोरिंग किया जाए तो जल समस्या का समाधान हो जाएगा। वे फल्गु पर बांध की मांग को उचित नहीं मानते।

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