आधुनिक कृषि में यंत्रों ने लाई क्रांति

धान निकौनी की जापानी मशीन भी लोकप्रिय है। श्रीविधि से धान की निराई जुड़ाई के एक नई मशीन ‘कोनोवीडर’ का प्रयोग कर रहे हैं किसान। जल निकास के लिए साधारण पंप से लेकर टर्बोजेट एवं समरसेबल पंपों के अलावा सौर ऊर्जा चालित पंप भी विशेषज्ञों ने बनाए।भारतीय कृषि में महाराज पृथु से राजा जनक तक सबने कृषि एवं हल के महत्व को स्थापित किया है। तब से आज तक कृषि के उत्तरोत्तर विकास में कृषि यंत्रों की भूमिका को विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई है। आइए इसकी एक वानगी देखें। कृषि की शुरुआत भूमि तैयारी होती है। खेतों की प्रारंभिक जुताई के लिए प्रारंभिक यंत्र हल के आज काफी सुधीर स्वरूप उपलब्ध है। इनमें प्रमुख बैलचालित मिट्टी पलट हल (मोल्ड बोर्ड प्लाउ) जो मूड उखाड़, काली मिट्टी जैसे अलग-अलग होते हैं। इसी प्रकार एक हत्थेवाला मैस्टन हल, प्रजा हल, शाबास हल, वाहवाह हल, केयर हल, विक्ट्री हल, डबल मोल्ड बोल्ड हल, टर्नरेस्ट हल आदि मिट्टी के अनुसार प्रयोग किए जाते हैं। आज ट्रैक्टर चालित मिट्टी पलट हल एवं डिस्क हल भी विकसित हो गए हैं जिनसे सहजता से कम समय में बड़े भूभाग की जुताई संभव हो गई है।

बैल व ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन


प्रथम जुताई के बाद भूमि के ढेलों की तुड़ाई, खर-पतवारों की गहराई, भुरभुरी मिट्टी तथा नमी संरक्षण के लिए दूसरे प्रकार के कृषि यंत्रों की आवश्यकता होती है। इनमें से प्रमुख कल्टीवेटर है कानपुर कल्टीवेटर। कानपुर कल्टीवेटर मैकोर्मिक, वाह-वाह सीनियर एवं वाह-वाह जूनियर कल्टीवेटर पशु चालित है जबकि स्प्रिंग युक्त तथा स्प्रिंग रहित ट्रैक्टर से क्रियाशील होते हैं। इसी श्रेणी में दूसरा यंत्र हैरो है। यह बैल एवं ट्रैक्टर दोनों से चलाया जाता है। बैल चालित तिकोनिया, खूंटीदार, कमानीदार हैरो प्रमुख हैं। इसी प्रकार ट्रैक्टर चालित डिस्क हैरो (एकल क्रिया, टैंडम तथा ऑफसेट) है। फसल लगने के बाद हो की एक सुगम यंत्र है जो प्राय: हाथ से चलाए जाते हैं। इनमें फावड़ा, कुदाल, खुरपी, शर्मा हैंड हो, नैनी टाइप एवं सिंह हैंड हो है जबकि बैलचालित अकेला हो भी प्रयोग में आता है। आजकल पहिएवाले हो ज्यादा प्रचलित है साथ ही धान निकौनी की जापानी मशीन भी लोकप्रिय है। श्रीविधि से धान की निराई जुड़ाई के एक नई मशीन ‘कोनोवीडर’ का प्रयोग भी वृहत स्तर पर करके धान की उपज में काफी वृद्धि देखी गई है।

संकर किस्म के यंत्र


अब कुछ संकर किस्म के यंत्र भी विकसित हुए हैं। इसमें खेत की जुताई एवं समतलीकरण के लिए कल्टीवेटर (जे एवं उल प्रकार) आज काफी प्रासंगिक हो गए हैं। हल्की भूमि में एल एवं भारी मिट्टी में ‘जे’ प्रकार ज्यादा प्रभावी पाए गए हैं। इसी कड़ी में छोटी जोत वाले किसानों के लिए पावर टिलर यंत्र उपलब्ध है जिनके प्रयोग से जुताई, सिंचाई, माल-ढुलाई के साथ दवा छिड़काव, दाल-तेल, आटा मिलों का संचालन भी संभव हो गई है।

पानी की कमी वाले क्षेत्रों के लिए रेज्ड बेड प्लांटर भी विकसित हो गए हैं जिससे 30 प्रतिशत पानी, 25 प्रतिशत बीज तथा नेत्रजन की बचत संभव हो गई है। इनका प्रयोग मक्का, दलहन, तेलहन को गेहूं के साथ लगाने में करके भूमि की उपयोगिता बढ़ाई जाती है। इसी कड़ी में बीजों की बोआई के लिए हैपी सीडर, डिबलर, टांड, वाह-वाह कल्टिवेटर के अतिरिक्त सीड तथा उर्वरक ड्रिल विकसित हो गए हैं जिनसे निश्चित दूरी एवं गहराई पर जुटे खेतों में बीज लगते हैं।

स्वास्थ्य संवर्धन के लिए संसाधन संरक्षण तकनीक


आज मिट्टी के स्वास्थ्य संवर्धन के लिए संसाधन संरक्षण तकनीकों की पूरे विश्व में चर्चा है। इसमें बगैर जोताई के सीधे बोआई के लिए यंत्र विकसित किया गया है जिसे जीरोटिल सीड-कम-फर्टिलाइजर ड्रिल मशीन के नाम से जाना जाता है। इससे डीजल, जुताई खर्च, श्रम के साथ ही सिंचाई जल की बचत होती है। समय पर फसल लगने के कारण उत्पादन में भी अच्छी बढ़वार प्राप्त होती है।

भूमि के समतल के लिए पाटा व हेंगा विधि


आज जल कृषि के लिए एक चुनौती है। इसके भूमि में बेहतर प्रयोग के लिए खेत का समतल होना आवश्यक है। इसके लिए पाटा व हेंगा देना एक प्रचलित विधि है। इनके लिए भी सुधरे यंत्रों का विकास किया गया है जिसमें सिंह पटेल प्रमुख है। इससे जमीन में दबे ढेले ऊपर उठ कर पीस जाते हैं। इसके अलावा रौलर, बेलन लकड़ी व पत्थर तथा लोहे के आ रहे हैं। यह बड़े ढेलों को तोड़ कर खेत की नमी ऊपर लाने में उपयोगी है। एक अति आधुनिक मशीन ‘लैंड लेजर लेबलर’ आ गई है। इसका प्रयोग कर सिंचाई की लागत एवं समय में कमी तथा खेत लगभग शून्य जलजमाव के साथ फसल उत्पादकता में 10-20 प्रतिशत वृद्धि पाई जाती है। इनके साथ ही आलू बुआई यंत्र, गन्ना बुआई यंत्र के साथ ही बगीचा लगाने के लिए गड्ढा बनाने के लिए पोस्टहोल डिगर भी बनाए गए हैं। ऑटोमेटिक धान रोपाई मशीन (पैडी ट्रांसप्लांटर) से धान रोपनी ऊपरी भूमि में काफी सहज हो गई है।

जल प्रबंधन के लिए कई उपकरण


जल प्रबंधन में सतत नवीन तकनीकों का प्रयोग हो रहा है। जल निकास के लिए साधारण पंप से लेकर टर्बोजेट एवं समरसेबल पंपों के अलावा सौर ऊर्जा चालित पंप भी विशेषज्ञों ने बनाए हैं। वहीं फब्बार सिंचाई के लिए विविध प्रकार के उपकरण जैसे स्थिर एवं घुमने वाले फब्बारे तथा बगीचों के लिए रेनगन उपलब्ध है। साथ ही बागवानी फसलों (शुष्क एवं अद्धशुष्क क्षेत्र) के लिए टपक सिंचाई (ड्रीप) विकसित है जिसमें जल की उपयोगिता 90-95 प्रतिशत तक प्राप्त हो जाती है यह विशेष सिंचाई उपकरणों का कमाल है।

फसल सुरक्षा के लिए भी बना यंत्र


इसी कड़ी में फसल सुरक्षा के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। इनके लिए हस्तचालित स्प्रेयर, बाल्टी स्प्रेयर, नैपसेक स्प्रेयर, फुट स्प्रेयर, शक्ति चालित स्प्रेयर एवं रॉकिंग स्प्रेयर आज सुलभ हो गए हैं। इनसे तरल रूप में पानी में घुस कर दवाओं का छिड़काव किया जाता है। कई बार धूल के रूप में दवाओं के भुरकाव की आवश्यकता होती है। इसके लिए हाथ से चलने वाले पैकेज, प्लंजर, बेलोज, रोटरी एवं नैपसैक डस्टर प्रमुख हैं। इस कड़ी में शक्तिचालित इंजन चालित डस्टर, टैक्शन डस्टर, पावर टेकआफ डस्टर एवं सैट डस्टर काफी उपयोगी है। पूर्व में हसिया ही फसल कटाई का प्रमुख यंत्र था तथा जमीन के नीचे बैठने वाली फसलों के लिए खुरपी एवं कुदाल तथा देशी हल का प्रयोग था। परंतु काफी कम समय में फसल के कटाई के लिए कंबाइन हार्वेस्टर, रीपर अब सहज प्रयोग में आ गए हैं। इसी प्रकार आलू खुदाई यंत्र (पशु एवं ट्रैक्टर चालित) ईख हार्वेस्टर, मोबाइल फूट हार्वेस्टर, रीपर तथा बाइंडर इनके अतिरिक्त घासवाली फसलों की कटाई के लिए पशु चालित सिलिंडर, रेसी प्रोकेटिंग, क्षैतिज रोटरी एवं गैंग मोअर प्रमुख हैं।

कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन


अनाज, दलहन, तेलहन की मड़ाई गहराई के लिए पूर्व में बैलों का प्रयोग होता है। वर्तमान में आलपैड मड़ाई मशीन पैडी थ्रेसर (धान के लिए) मक्का निराई मशीन, बहुफसली थ्रेसर काफी उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। फसलों से गंदगी, धूल, टूटे अनाज, घास बीजों को अलग कर साफ-सफाई के लिए, ओसाई के लिए पंखों का प्रयोग किया जा रहा है। गन्ना पेराई मशीन इन यंत्रों के अतिरिक्त ट्रैक्टर, फल उपचार यंत्र, फसल श्रेणीकरण, बीज प्रसंस्करण ईकाई, फल ग्रेडर, थैला सिलाई मशीन, फल, मशाला, सब्जी सुखाई यंत्र, चारा कटाई मशीन, गाय-भैंस दूहने की मशीन, मक्खन निकालने की मशीन, भूसा क्यूब बनाने की मशीनों ने कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिए हैं।

अब प्रश्न है कि क्या सारी मशीनें एक अकेला किसान रख सकता है। अलग-अलग यंत्रों को रखा जाए या सहकारिता के आधार पर इन्हें समूह में रखा जाए। साथ ही क्षेत्र विशेष के लिए आवश्यक उपकरणों एवं यंत्रों का चयन विशेषज्ञों से सलाह लेकर करना उचित होगा। यंत्रों के प्रयोग से मौसम में हो रहे उतार-चढ़ाव से विलंब को कम करने के साथ ही समय की बचत, श्रम की ज्यादा उपयोगिता के साथ संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करने में आम कृषक सक्षम होंगे। इसे बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने कृषि यांत्रीकीकरण की महत्वाकांक्षी परियोजना चलाई है। निकट के कृषि पदाधिकारी से संपर्क कर इसका लाभ अवश्य उठावें। इस पर कई प्रकार के अनुदान देय है।

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Post By: pankajbagwan
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