आदिवासी रहेंगे तो बचेंगे जंगल

आज भारत और चीन के खेतों में जो कुछ भी हो रहा है वह शताब्दियों पहले हो चुका था। ये गतिविधियाँ लगभग वैसी ही स्थाई है जैसे कि पहले जंगलात में हुआ करती थी। बहरहाल, उत्पादन के इन स्थाई सिद्धान्तों को विविध एवं बहुरूपी वन प्रबन्धन के साथ जोड़ा जा सकता है। ऐसा करने से विविध प्रजातियों के साथ-साथ जंगल और जंगल में रहने वाले लोगों के जीवन-यापन के तौर-तरीकों का भी संरक्षण किया जा सकेगा। यह सम्भव है। लेकिन तभी जब हमें इन सबकी चिन्ता हो और हम यह सुनिश्चित कर सकें। बाघ, आदिवासी, वृक्षों और अन्य जीवों की रक्षा हो और ये सभी अपनी जीवन-यात्रा शान्ति और सौहार्द के साथ जारी रख सकें।

आज से कुछ समय पहले तक भारतीयों ने अपनी पहचान आर्य संस्कृति के रूप में की। आर्य संस्कृति यानी अरण्य सभ्यता! आज अपने जीवन की मूल सहायता, व्यवस्था और सभ्यता के रूप में अपनी मूल पहचान को बचाने के रास्ते में समस्या आड़े आ रही है। यह परेशानी इसलिए पैदा हुई; क्योंकि हमने विविधता में एकता के जीवन सिद्धान्त का त्याग कर दिया है। इस सिद्धान्त का सरोकार सहअस्तित्व से भी है। आज बान्धों का कबीलों और कबीलों का वृक्षों से टकराव दिखाया जा रहा है। ये आपसी सम्बन्ध प्रतिद्वंद्विता, ध्रुवण और बहिष्कार में परिवर्तित हो गए हैं। नतीजा, इससे सभी को चुनौती मिल रही है - आदिवासियों को, बान्धों को, जंगलों को और साथ ही जैव-विविधता को भी।

ध्रुवण और जंगल में मानव तथा मानवेतर प्रजातियों की रक्षा के बीच टकराव का पता उन दो विमर्शों से भी चलता है, जो पिछले कुछ महीनों से देशभर में जारी हैं। पहला, देश में बाघ लगातार कम होते जा रहे हैं। सौ साल पहले हमारे देश में बाघों की संख्या चालीस हजार थी जो अब घटकर महज तीन हजार रह गई है। बाघों का गायब होना पिछले दिनों अचानक से अन्तरराष्ट्रीय चिन्ता का विषय भी बना। और, दूसरी चर्चा अनुसूचित जनजातियों तथा वन अधिकार विल, 2005 की पहचान को लेकर चल रही है। भारत की जनसंख्या में आदिवासियों की तादाद आठ प्रतिशत के आस-पास है।

ऐसे समय में जब संरक्षणवादियों और आदिवासी हकों की खातिर आवाज उठाने वाले कार्यकर्ताओं को एकजुट होना चाहिए वे अपना समय कहीं और ही बर्बाद कर रहे हैं। लेकिन जंगल और जंगल में रहने वाले जीवों की रक्षा के लिए शक्ति-सम्पन्न समुदायों के अलावा एक ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता है जो मजबूत हो।

भारत के वन और वन्य-जीव संरक्षण से जुड़े औपनिवेशिक कानून पश्चिम की उस अवधारणा पर आघारित हैं, जो कहती है कि मानव और मानवेतर प्रजातियाँ एक साथ नहीं रह सकती। लिहाजा जंगल में मनुष्यों का वास नहीं होना चाहिए और जैव-विविधता तभी सुरक्षित रह सकती है, जब उसमें इन्सानों का हस्तक्षेप न हो।

भारत की अपनी परम्पराएँ विविधता, अनेकत्व और अबहिष्कार पर आधारित है। आदिवासियों के अधिकारों की पहचान करने वाला कानून जंगल की सुरक्षा को मजबूती देगा और साथ ही इससे वन्य जीवों की रक्षा का मार्ग भी प्रशस्त होगा क्योंकि, इससे वनों के असल रक्षकों और पहरेदार वैधानिक रूप से अधिकार सम्पन्न होंगे।

आज जरूरत इस बात की है कि वन और वन्य जीव प्रशासन आदिवासियों के साथ मिलकर जंगल पर अवैध कब्जा करने वालों से इसकी हिफाजत करे। इसमें सन्देह नहीं है कि संरक्षण आधारित आर्थिक जीवन-यापन की वजह से ही आदिवासी और जंगल बचे रहे हैं। अगर जंगल और आदिवासी गरीब हुए हैं तो इसकी वजह यह नहीं है कि जैव-विविधता और वन आधारित जीवन सम्पदा अर्जित नहीं कर पाए हैं। इसकी वजह यह है कि बाहर की व्यावसायिक शक्तियों ने जंगल और आदिवासी दोनों का ही दोहन किया है। जैव-विविधता युक्त कृषि और ग्राम्य अर्थव्यवस्थाएँ ही वन्य पारितन्त्र के पोष्य-तत्व हो सकते हैं।

व्यावसायिक पैमानों को पूरा करने के लिए ट्रैक्टरों से खेती, बड़ी-बड़ी मशीनों का इस्तेमाल और टॉक्सिक रसायनों का इस्तेमाल असल में खेती नहीं है, चाहे इसे जमीन पर कब्जा करने वाले माफिया करते हों या फिर आदिवासी समुदाय ही क्यों न करते हों। जंगल का बचा रहना ही संस्कृति और स्वदेशी जीवन शैली की पहचान है। 'एग्रीकल्चरल टेस्टामेन्ट' में सर अल्बर्ट होवर्ड ने लिखा है- एशिया में जो खेती की जाती है वहाँ हमारा सामना कृषकों से होता है, जो निश्चित रूप से कुछ समय के बाद स्थापित गतिविधि हो जाएगी। आज भारत और चीन के खेतों में जो कुछ भी हो रहा है वह शताब्दियों पहले हो चुका था। ये गतिविधियाँ लगभग वैसी ही स्थाई है जैसे कि पहले जंगलात में हुआ करती थी।

बहरहाल, उत्पादन के इन स्थाई सिद्धान्तों को विविध एवं बहुरूपी वन प्रबन्धन के साथ जोड़ा जा सकता है। ऐसा करने से विविध प्रजातियों के साथ-साथ जंगल और जंगल में रहने वाले लोगों के जीवन-यापन के तौर-तरीकों का भी संरक्षण किया जा सकेगा। यह सम्भव है। लेकिन तभी जब हमें इन सबकी चिन्ता हो और हम यह सुनिश्चित कर सकें। बाघ, आदिवासी, वृक्षों और अन्य जीवों की रक्षा हो और ये सभी अपनी जीवन-यात्रा शान्ति और सौहार्द के साथ जारी रख सकें।

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