‘आचमन’ के लायक भी नहीं रहा अब नर्मदा का पानी

भोपाल. अब तक प्रदूषण के अभिशाप से बची रही नर्मदा की दशा भी देश की अन्य प्रदूषित नदियों की तरह होती जा रही है। स्थिति यह है कि नर्मदा का पानी बिना ट्रीटमेंट किए नहीं पीया जा सकता है। यह खुलासा मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) की रिपोर्ट में हुआ है। इसके तहत बोर्ड ने कीड़ों की उपस्थिति के आधार पानी की गुणवत्ता जांचने की नई तकनीक (बायोमैपिंग) को अपनाकर लगातार तीन वर्षो तक रिसर्च की है। इसमें यह पाया गया कि हाल ही के वर्षो में म.प्र. में नर्मदा का पानी अब बी और सी ग्रेड तक के स्तर पर पहुंच गया है। (पानी की गुणवत्ता पांच ग्रेडों ए, बी, सी, डी और ई के आधार पर जांची जाती है। ए सबसे अच्छा और ई सबसे ज्यादा प्रदूषित पानी होता है।) विशेषज्ञों के मुताबिक बी और सी ग्रेड का पानी होने के कारण नर्मदा जल अब आचमन के भी लायक नहीं रह गया है। बोर्ड ने नर्मदा को तीन जोन पूर्व, मध्य व पश्चिम में बांटकर नदी के उद्गम अमरकंटक से लेकर बड़वानी तक 30 स्थानों पर बायोमैपिंग की।

रिसर्च के निष्कर्षो के मुताबिक तीनों ही जोन में नर्मदा का पानी औसत आधार पर ‘सी’ ग्रेड का है। इसी तरह यदि नर्मदा के 30 स्थानों की बात करें तो 23 पर ‘सी’ और मात्र सात स्थानों पर ‘बी’ ग्रेड का पानी मिला है। किसी भी स्थान पर नर्मदा के पानी की गुणवत्ता ‘ए’ ग्रेड की नहीं पाई गई है। हालांकि राहत की बात ये है कि सबसे ज्यादा प्रदूषित डी और ई ग्रेड का पानी नर्मदा में किसी स्थान पर नहीं पाया गया है।

 

 

सबसे अधिक प्रदूषण


अमरकंटक का रामघाट (चारों बार सी ग्रेड का पानी), जबलपुर का सरस्वती घाट (एक बार डी ग्रेड तथा तीन बार सी ग्रेड), होशंगाबाद के एसपीएम नाले के बाद (चारों बार सी ग्रेड) और महेश्वर एमपीटी होटल के पास (चारों बार सी ग्रेड) में सबसे ज्यादा प्रदूषित है।

 

 

 

 

बायोमैपिंग से फायदा


प्रदेश में पहली बार बायोमैपिंग के आधार पर पानी की गुणवत्ता जांची गई है। इसके परिणाम भी अभी तक अपनाई जा रही फिजियो-केमिकल तकनीक के समकक्ष ही है, लेकिन यह बायोमैपिंग तकनीक फिजियो-केमिकल से सस्ती व आसान है। तकनीक का आधार प्राकृतिक होने से इसके दुष्प्रभाव भी नहीं है। पीसीबी की टीम ने तीन वर्षो तक नर्मदा की पानी की गुणवत्ता पर बायोमैपिंग आधार पर रिसर्च किया है। इसमें टीम को बी और सी ग्रेड का पानी मिला है। लिहाजा नर्मदा का पानी बिना ट्रीटमेंट के पीने लायक नहीं हैं।

डॉ.एनपी शुक्ला,अध्यक्ष,पीसीबी

 

 

 

गंगा में रोका जा सकता है प्रदूषण


गंगा बेसिन मैनेजमेंट एक्शन प्लान बनाने वाले पर्यावरणविद डॉ. विनोद तारे का कहना है कि गंगा के पानी में इसे शुद्ध करने वाले तत्वों की ज्यादा मात्रा है। पानी का स्रोत हिमालय होने के कारण भी प्रदूषण काबू में किया जा सकता है।

 

 

 

..लेकिन नर्मदा में काफी मुश्किल


नर्मदा के पानी में इसे शुद्ध करने के तत्व कम है। इसकी तलहटी पथरीली होने के कारण इसमें प्रदूषण रोकने काफी मुश्किल है।

 

 

 

 

30 स्थानों पर पानी की जांच


रसायनज्ञ डॉ.जी.के.जैस के अनुसार दल ने 2007 से 09 के बीच नर्मदा के 30 स्थानों पर पानी की जांच की। नदी की गहराई तक जाकर वहां की मिट्टी और पत्थरों से कीड़ों को इकट्ठा किया। यहीं पर पानी का तापमान व फिजियो टेस्ट के बाद कीड़ों को लैब में लाकर उनका विश्लेषण किया। सभी स्थानों की अलग-अलग मौसम में कम से कम चार बार सैंपलिंग की गई है। इसके आधार पर विभिन्न तरह के आंकड़ों का इकट्ठा कर पीसीबी ने में इसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। इसे इसी साल मार्च में सीपीसीबी को भेजा गया है।

 

 

 

 

कैसे रोकें प्रदूषण


नर्मदा के आसपास बसे गांवों व शहरों में सीवेज सिस्टम स्थापित हों।
धार्मिक कर्मकांडों से प्रदूषण न फैले इसके लिए समाज को आगे आना होगा।

 

 

 

 

क्या है ग्रेडिंग सिस्टम


ग्रेड गुणवत्ता रंग
साफ नीला
बी थोड़ा प्रदूषित हल्का नीला
सी मध्यम प्रदूषित हरा
डी ज्यादा प्रदूषित नारंगी
गंभीर रूप से प्रदूषित लाल

कीड़ों ने बताई पानी की शुद्धता- पीसीबी के वैज्ञानिक आलोक सक्सेना के मुताबिक कई कीड़े ऐसे हैं, जो साफ पानी में ही बचे रहते हैं, कुछ गंदे पानी में रहते हैं। कुछ ऐसे होते हैं मध्यम तरह के पानी में रहते हैं। इनकी उपस्थिति के आधार पर ही पानी की गुणवत्ता का पता लगाया जाता है।

 

 

 

 

..पर भोपाल को मिलेगा पीने लायक पानी


पानी की शुद्धता के मामले में भोपालवासियों के लिए राहत भरी खबर है। रिसर्च टीम ने हिरानी गांव (भोपाल के लिए यहीं से पानी लाया जा रहा है।) से आठ किमी दूर बांद्राभान को भी प्वाइंट बनाया गया था, जिसमें तवा का पानी मिलने के बाद प्रदूषण का स्तर सी से बी ग्रेड का हो गया है।

 

 

 

 

मंडला में ए ग्रेड पानी हुआ बी ग्रेड


पीसीबी ने नवंबर 2007 में जब मंडला में रापता पुल घाट में कीड़े पकड़े थे, तब यहां पानी की गुणवत्ता ए ग्रेड थी। अप्रैल 08 जनवरी 09 में यही पानी बी ग्रेड का हो गया है। इसी तरह जबलपुर सरस्वती घाट में नवंबर 07 में डी ग्रेड का पानी था, जो बाद में सी ग्रेड का हो गया।

नर्मदा जल प्रदूषण के लिए कौन है जिम्मेदार? और कैसे साफ रखा जा सकता है जलस्रोतों को? हमसे शेयर करें

 

 

 

 

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