Identification of epicenter
भूकम्प के कारण उत्पन्न होने वाली हलचलों या कम्पनों के प्रारूप को भूकम्पमापी द्वारा दर्ज किया जाता है। जैसा कि हम अब तक जान चुके हैं भूकम्प में प्रमुख रूप से दो प्रकार की तरंगें उत्पन्न होती हैं। इन तरंगों की विशिष्टताओं के कारण इन्हें भूकम्पमापी द्वारा दर्ज किये गये प्रारूप में अलग-अलग पहचाना जाता है।
अपेक्षाकृत तेज गति से चलने के कारण द्वितीयक तरंगों के सापेक्ष प्राथमिक तरंगें भूकम्पमापी तक पहले पहुँच जाती हैं। इन दो तरंगों के भूकम्पमापी तक पहुँचने के बीच का समय का अन्तर भूकम्प के केन्द्र से भूकम्पमापी की दूरी के समानुपाती होता है। भूकम्पमापी के भूकम्प के केन्द्र के नजदीक स्थित होने पर समय का यह अन्तर कम होता है और दूरी बढ़ने के साथ बढ़ता चला जाता है।
गति के अन्तर के कारण भूकम्प आने के बाद अलग-अलग जगहों पर स्थित भूकम्पमापी यंत्रों तक प्राथमिक व द्वितीयक तरंगों के पहुँचने के बीच का समय का अन्तर अलग-अलग होता है और इस अन्तर के आधार पर प्रत्येक भूकम्पमापी से भूकम्प के केन्द्र की दूरी निर्धारित की जाती है। आज इसके लिये मानक तालिकायें उपलब्ध हैं।
भूकम्प का केन्द्र इस प्रकार निर्धारित दूरी पर भूकम्पमापी के चारों ओर कहीं भी हो सकता है अर्थात मापे गये भूकम्प का केन्द्र भूकम्पमापी को केन्द्र मानकर खींचे गये उक्त दूरी की त्रिज्या वाले गोले (sphere) की सतह पर कहीं भी हो सकता है। सरल शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि भूकम्प का अभिकेन्द्र भूकम्पमापी को केन्द्र मान कर खींचे गये उक्त दूरी की त्रिज्या वाले वृत्त की परिधि पर होगा।
किसी अन्य भूकम्पमापी के आंकड़े उपलब्ध होने की स्थिति में उस भूकम्पमापी को केन्द्र मानकर खींचा गया तथा भूकम्प के अभिकेन्द्र से उस भूकम्पमापी की दूरी की त्रिज्या वाला वृत्त पूर्व में खींचे गये वृत्त को दो स्थानों पर काटेगा। इस प्रकार भूकम्प के अभिकेन्द्र की स्थिति से सम्बंधित अनिश्चितता को दो स्थानों तक सीमित किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि भूकम्प का अभिकेन्द्र इन दो वृत्तों को आपस में काटने वाले दो बिन्दुओं में से किसी एक पर स्थित होगा।
इसी प्रकार तीन अलग-अलग स्थानों पर स्थापित भूकम्पमापियों तक प्राथमिक व द्वितीयक तरंगों के पहुँचने के बीच के समय के अन्तर से सम्बंधित जानकारियाँ उपलब्ध होने पर भूकम्प के केन्द्र व अभिकेन्द्र की स्थिति का सटीक निर्धारण सहजता से किया जा सकता है।
वर्तमान में विभिन्न संस्थानों द्वारा अनेकों स्थानों पर स्वचलित भूकम्पमापी यंत्र स्थापित किये गये हैं जो उनके द्वारा एकत्रित किये जा रहे आँकड़ों को लगातार केन्द्रीय नियंत्रण कक्ष को भेजते रहते हैं। यही कारण है कि भूकम्प आने के एकदम बाद तद्सम्बंधित सभी जानकारियाँ हमें तत्काल उपलब्ध हो जाती हैं।
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