अभाव से जन्मी पानी के लिए श्रद्धा

सामान्यतः किसी भी क्षेत्र में जल की कमी उसे श्रद्धा का रूप प्रदान कर देती है और सामाजिक दृष्टि से भी जल, आर्थिक महत्व प्राप्त कर लेता है। ऐसे क्षेत्रों में जल का महत्व इतना बढ़ जाता है कि यह सामाजिक और आर्थिक उपयोगिता के अतिरिक्त वहां के समाजों के इतिहास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस्लामी तथा ईरानी संस्कृति में भी जल को जीवन के स्रोत, विभूतियों, अनुकंपाओं, विकास तथा प्रकाश के रूप में विशेष रूप से ध्यान दिया गया है।

मानव सभ्यता और मानव जीवन को बाकी रखने का महत्वपूर्ण स्रोत जल है। मानव सभ्यताएं, नदियों के किनारों पर ही अस्तित्व में आई हैं। मूल रूप से जल और विकास का एक-दूसरे से साथ निकट का संबंध रहा है। मिस्र, मेसोपोटामिया, माद, चीन और सिंधु घाटी की सभ्यताओं ने नदियों के किनारों से ही अस्तित्व प्राप्त किया है। यही कारण है कि इतिहास में सभ्यताओं के अस्तित्व में आने का एक कारण जलवायु की परिस्थितियों को बताया गया है।

स्पष्ट है कि इस बात के दृष्टिगत उपजाऊ भूमि, प्राकृतिक स्रोत और अच्छी जलवायु की भी मानव सभ्यताओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन सबके बीच मानव जीवन में जल की भूमिका सबसे अधिक रही है। समस्त वैज्ञानिक और तकनीकी परिवर्तनों के अनुसार मानव समाजों का बाकी रहना, जल की प्राप्ति के बिना संभव नहीं। जीवनदायक इस तत्व अर्थात जल की भूमिका दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। वर्तमान समय में हर राष्ट्र के विकसित होने का मापदंड उसके द्वारा जल का वार्षिक प्रयोग है। विश्व के बहुत से देश, अपनी जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के कारण प्रचुर मात्रा में जल भंडारों के लिए बड़ी राशि का पूंजीनिवेश करते हैं।

मानव समाजों में जल की महत्वपूर्ण भूमिका के दृष्टिगत उन क्षेत्रों में जहां पर पानी की कमी है या जो जल संकट से जूझ रहे हैं, इसकी भूमिका कई गुना बढ़ जाती है। ईरान की गणना भी इन्हीं क्षेत्रों में होती है। प्राचीन काल से ही सूखे और कम जल वाले क्षेत्र में स्थित होने के कारण ईरान को सदैव ही जल संकट का सामना रहा है। ईरान की जलवायु अर्धशुष्क है। जलवायु की इन परिस्थितियों ने ईरान के केंद्रीय पठारी क्षेत्रों को मरुस्थलीय क्षेत्रों में परिवर्तित कर दिया है।

कैस्पियन सागर के तटवर्ती तथा ईरान के उत्तरी एवं पश्चिमी क्षेत्रों के अतिरिक्त, जहां पर उपयुक्त वर्षा होती है। ईरान के अन्य क्षेत्रों में वर्षा की वर्षिक दर बहुत कम है। विश्व के दूसरे अन्य देशों में, जहां की जलवायु ईरान जैसी है, वहां पर वर्षा का यह स्तर जमीनों के बंजर होने का कारण बना है।

सामान्यतः किसी भी क्षेत्र में जल की कमी उसे श्रद्धा का रूप प्रदान कर देती है और सामाजिक दृष्टि से भी जल, आर्थिक महत्व प्राप्त कर लेता है। ऐसे क्षेत्रों में जल का महत्व इतना बढ़ जाता है कि यह सामाजिक और आर्थिक उपयोगिता के अतिरिक्त वहां के समाजों के इतिहास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस्लामी तथा ईरानी संस्कृति में भी जल को जीवन के स्रोत, विभूतियों, अनुकंपाओं, विकास तथा प्रकाश के रूप में विशेष रूप से ध्यान दिया गया है। फारसी भाषा में जल के लिए विभिन्न प्रकार के शब्दों का प्रयोग ईरानियों की संस्कृति में पानी के महत्व का परिचायक है।

कृषि उत्पादों के निर्यात की दृष्टि से भी ईरान, दस उत्पादों के निर्यात में विश्व में पहले से दसवें स्थान पर है। फाओ के अनुसार विश्व में कृषि उत्पादों का विश्व व्यापार, 35 मुख्य कृषि उत्पादों के आयात और निर्यात पर निर्भर है। विश्व के 64 देश कृषि उत्पादों का निर्यात करते हैं जबकि 55 देश गार्डन प्रोडक्ट्स का निर्यात करते हैं। इसी प्रकार से जाफरान, जीरा और जेरिश्क अर्थात दारू हल्दी जैसी चीजों का भी ईरान में उत्पादन किया जाता है। फाओ के अनुसार इनकी गणना कृषि के मुख्य उत्पादों में नहीं होती अतः उन्हें इस वर्गीकरण में दृष्टिगत नहीं रखा गया है। जबकि ईरान विश्व में इन तीनों उत्पादों के बड़ी उत्पादनकर्ता देश में से है।

हम ईरान में कृषि के इतिहास और उसके महत्व पर चर्चा नहीं कर सकते। अब तक जो बातें हमने आपको बताई वे केवल ईरानियों द्वारा पानी की कमी और सूखी जमीन के लिए किए जाने वाले प्रयासों के अंतर्गत की गई है। स्पष्ट है कि सिंचाई की उचित शैली अपनाकर तथा निरंतर प्रयासों के माध्यम से ही कम पानी वाले क्षेत्रों में कृषि की जा सकती है। यही कारण है कि ईरानियों द्वारा सिंचाई के लिए प्रयोग की जाने वाली शैली की समीक्षा ध्यान देने योग्य है।

साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि ईरान में कनात या भूमिगत जलसेतु व्यवस्था का इतिहास तीन हजार वर्ष पुराना है। इस आधार पर ईरानियों को कनात के माध्यम से सिंचाई व्यवस्था के स्वामी प्रथम लोगों में गिना जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ईरान में पाए जाने वाले भूमिगत जलसेतुओं की लंबाई बहुत अधिक है। इस संदर्भ में फ्रांसीसी विद्वान एवं इंजीनियर हैनरी गैलो ने ईरान के पूर्वी क्षेत्र में पाए जाने वाले भूमिगत जलसेतुओं के मूल कुंओं की गहराई 300 मीटर से भी अधिक बताई है। इस प्रकार से एफिल टावर को भी उसमें बड़ी सरलता से छिपाया जा सकता है।

सर्वेक्षण बताते हैं कि प्राचीनकाल से ईरान के पूर्वी क्षेत्र खुरासान में ही केवल 42 हजार भूमिगत जलसेतु थे। नेशापूर पर मंगोलों के आक्रमण से पूर्व ईरान में कनात अर्थात भूमिगत जलसेतुओं की संख्या कई हजार थी। इसी प्रकार से सर्वेक्षण यह भी बताते हैं कि वर्षा 1950 तक ईरान के भीतर 50 हजार से अधिक कनातें पाई जाती थीं जिनमें से 40 प्रतिशत सिंचाई के लिए उपयोग होती थीं। वर्तमान में ये ईरान की धरती पर तारों की भांति बिखरी हुई हैं।

जल की कमी की समस्या से निबटने के लिए ईरानियों ने नहर निर्माण की एक अन्य शैली अपनाई थी। उदाहरण स्वरूप अरवंद नहर की खुदाई का आरंभ ईरानी विशेषज्ञों द्वारा सासानी काल में किया गया था और बाद में अब्बासी शासकों के काल में भी यह कार्य जारी रहा। उल्लेखनीय है कि अब्बासी काल में जलापूर्ति तकनीक अपने शिखर पर थी। खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि प्राकृतिक आपदाओं, सरकारों की कमजोरियों और अतिक्रमणकारी जातियों के आक्रमणों के कारण बांध और नहरों जैसे जलापूर्ति के बहुत से साधनों को क्षति पहुंची और कुछ माध्यम नष्ट हो गए।

भूमिगत जलसेतुवर्तमान समय में इनके अवशेषों की मौजूदगी, उन कार्यों की महानता की परिचायक है जिसे प्राचीन काल में ईरान में जलापूर्ति के क्षेत्र में किया गया है। इनमें से एक विश्व का अति प्राचीन बांध, धनुषाकार बांध है। यह बांध पवित्र नगर कुम के निकट स्थित है। निःसंदेह, इस वास्तविकता को स्वीकार किया जाना चाहिए कि जलापूर्ति के माध्यमों के निर्माण में ईरानी, विश्व में अग्रणी रहे हैं। उन्होंने विश्व के प्राचीनतम बांध का निर्माण किया और जलापूर्ति की विभिन्न व्यवस्थाओं के निर्माण और उनके संचालन में उन्हें अधिक अनुभव प्राप्त है। इस बारे में अभी भी बहुत से ऐतिहासिक प्रमाण पाए जाते हैं।

कई फसलों के उत्पादन में एक से दसवें स्थान तक है ईरान


जल की कमी से ईरानियों को होने वाली विभिन्न प्रकार की समस्याओं के बावजूद ऐतिहासिक प्रमाणों की समीक्षा बताती है कि पिछले छह हजार वर्ष पूर्व ईरानियों के पास सिंचाई की उन्नत व्यवस्था मौजूद थी। ईरान में इस्लाम के उदय से पूर्व प्रचलित धर्म जोरोएस्ट्रीएन में भी कृषि पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया है।

इस धर्म की पुस्तक ‘ऊस्ता’ में कहा गया है कि तीसरी वह जगह जहां पर धरती प्रसन्न है वह ऐसा स्थान है जहां पर ईश्वर के मानने वाले अधिक अनाज पैदा करें और अधिक से अधिक फलों और वनस्पतियां लगाएं। यूनान के एक इतिहासकार, विश्व विख्यात दार्शनिक सुकरात के हवाले से कहते हैं कि हखामनशी काल में ईरान में ऐसे बाग पाए जाते थे जिन्हें पारादीस या परदीस अर्थात स्वर्ग कहा जाता था। इन बागों में पेड़ों की लंबाई समान थी और वे समानांतर रूप में लगे थे जिनकी रहट से सिंचाई की जाती थी। इन बागों के फलों में खजूर, अंगूर तथा अंजीर का नाम लिया जा सकता है।

ईरानी मामलों के रूसी जानकार Petrushevsky Ilya Pavlovich अपनी पुस्तक में, जो सासानी काल से संबंधित हैं इन बागों में पैदा होने वाले फलों में सेब, अंगूर, खजूर, नींबू, बादाम, नाशपाती, आड़ू और पिस्ता आदि की ओर संकेत करते हैं। इन फलों के अतिरिक्त उन्होंने जाफरान सहित विभिन्न प्रकार के फूलों की ओर संकेत किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व स्वास्थ्य खाद्य संगठन फाओ की अंतिम रिपोर्ट के अनुसार विश्व में कृषि उत्पादों की पैदावार की दृष्टि से इस्लामी गणतंत्र ईरान को विशेष स्थान प्राप्त है।

फाओ की इस रिपोर्ट के अनुसार विश्व में कृषि के मूल उत्पादों का एक तिहाई उत्पादन करके ईरान विश्व में प्रथम से स्थान दसवें नंबर पर है। इस संदर्भ में ईरान, गार्डन प्रोडक्ट में 15वें स्थान पर और फसलों के उत्पाद में सातवें स्थान पर है। इस आधार पर ईरान, 15 प्रकार के गार्डन प्रोडक्ट का स्वामी होने के कारण इस क्षेत्र में चीन तथा अमरीका के बाद विश्व में तीसरे स्थान पर है।

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