सारांश
देश में पानी की भविष्य की समस्याओं के संबंध में केंद्र सरकार ने अलग से जल शक्ति विभाग की स्थापना की है। हमारे प्रधानमंत्री पानी बचाने के लिए भी ध्यान दे रहे हैं। वर्तमान में, पानी की बचत, पुनर्चक्रण, पुनः उपयोग और वर्षा जल संचयन के लिए किए गए सभी प्रयास ईमानदारी से किए गए हैं जो भविष्य के लिए अच्छे हैं। पानी को बचाने के सभी प्रयास हमारे सामने तरल रूप में दिखाई देने वाले पानी पर केंद्रित हैं। लेकिन वर्तमान स्थिति में यह पानी को बचाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है जो दिखाई नहीं देता है और जिसे आभासी पानी कहा जाता है। किंग्स कॉलेज, लंदन के प्रो. टोनी एलन ने पहली बार 1993 में आभासी पानी की अवधारणा का प्रस्ताव रखा। उन्होंने पाया कि पानी की कमी वाले देशों में खाद्य पदार्थों की कमी है और इस प्रकार वे अपने जल संसाधनों को बचाते हैं। इस आधार पर उन्होंने पानी की मात्रा के साथ कृषि उत्पादन का अध्ययन किया और 2002 में उन्हें स्टोखोम विश्व जल पुरस्कार से सम्मानित किया। कुछ वर्षों के बाद नीदरलैंड के प्रो.ए.वाई. होकेस्ट्रा ने पानी की मात्रा के संबंध में फसल और पशु उत्पादन का भी अध्ययन किया। सभी अध्ययनों से लगता है कि फसल और पशुओं के उत्पादन के लिए पानी की मात्रा प्रयाप्त नहीं है। आभासी पानी के संबंध में अब वाटर फुट प्रिंट की भी अवधारणा है। एक साल में पानी की मात्रा का उपयोग और उपभोग कैसे होता है, उसका वाटर फुट प्रिंट है। यह अनुमान है कि हमारे देश में एक व्यक्ति हर दिन 3000 लीटर आभासी पानी का उपभोग करता है। इसलिए, आभासी पानी की बचत बहुत आवश्यक है।
Abstract
In relation with future problems of water in the country the central government stablish separately Jal Shakti Department. Our prime minister is also paying attention for saving the water. At present all the efforts made for water saving, recycling, reuse and rain water harvesting are made honestly and sincerely than it is good for future. All efforts for saving the water are concentrated over the water that appears in liquid form before us. But in present situation it is most important to save the water also which is not visible and referred as virtual water. Prof. Tony Allen of Kings College, London for the first time proposed the concept of virtual water in 1993. He found that countries with shortage of water imposed food items and thus save their water resources. On this basis he studied agricultural production with water quantity and awarded with Stokhom World Water prize in 2002. After few years Prof. A.Y. Hokestra of netherland also studied crop and animal production in relation with water quantity. All the studies suffest tthat quantity of water for crop and animal production is not same in all the countries. In relation with virtual water now there is a concept of water foot print also. How an individul use and consume the water amount in a year is his water foot print. It is estimated that in our country an individual consumes 3000 litre of virtual water every day. Hence, saving of virtual water is very essential.
जल ही जीवन का आधार है क्योंकि हवा के बाद मनुष्य को जीने के लिए सबसे जरूरी जल ही है। बगैर भोजन के मनुष्य लगभग 30 दिनों तक जिंदा रह सकता है परन्तु बगैर जल के केवल 03 दिन। जल हमें मूल्यवान नहीं लगता है क्योंकि यह प्रकृति में बहुतायत से विभिन्न अवस्थाओं में पाया जाता है। वर्तमान समय में औद्योगिकरण, नगरीकरण, उन्नत कृषि पद्धतियां, परम्परागत जल स्त्रोतों का खराब होना या समाप्ति एवं आधुनिक जीवन शैली के कारण जल की उपलब्धता घटती जा रही है। जल की कम होती उपलब्धता एवं बढ़ता प्रदूषण, अब एक वैश्विक समस्या बन चुका है।
जल की समस्या से हमारा देश भी अछूता नहीं है। वल्र्ड रिर्सोस इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट (मार्च 2016) अनुसार देश का 54 प्रतिशत हिस्सा जल की कमी से जूझ रहा है। विश्व बैंक के एक अध्ययन अनुसार (2015) देश में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता वर्ष 2010 में 1588 घन मीटर प्रतिवर्ष थी जो 2030 तक घटकर आधी रह जायेगी। इससे देश पानी की दुर्लभता वाले देशों की श्रेणी में आ जावेगा। हमारे ही देश के नीति आयोग के अनुसार देश के लगभग 60 करोड़ लोग जल की कमी को झेल रहे हैं एवं 70 प्रतिशत पानी पीने योग्य नहीं है। इन सारी परिस्थितियों के मद्देनजर केन्द्र में बनी नई सरकार ने अलग से जलशक्ति मंत्रालय गठित किया एवं प्रधानमंत्री स्वयं भी जल की बचत पर जोर दे रहे हैं। म. प्र. सरकार भी प्रदेश की जनता के लिए ‘राइट टू वाटर’ लागू करने वाली है एवं तालाबों तथा झीलों के लिए केचमेंट प्रोटेक्शन एक्ट बनाया जा रहा है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि जल की समस्या से निपटने हेतु जो भी प्रयास किये जा रहे हैं वे उस जल के लिए हे जो हमारे आसपास तरल रूप में दिखायी देता है। वर्तमान हालात में उस जल को बचाना भी बहुत जरूरी है जो हमें तरल स्वरूप में दिखायी नहीं देता है। इस अदृश्य जल को आभासी जल या Virtual Water कहा गया है। किंग्स काॅलेज लंदन के प्रो. टोनी एलेन ने 1993 में आभासी जल की अवधारण प्रस्तुत की थी। प्रो. एलेन ने देखा कि पानी की कमी वाले देश जैसे उत्तरी अफ्रीका एवं मिडिल ईस्ट आवश्यक खा़द्य पदार्थों का आयात कर अपने देश का जल बचाते हैं। एलेन ने कृषि उत्पादों की पैदावार में लगे जल की मात्रा को जोड़कर विस्तृत अध्ययन किया। इस अध्ययन हेतु उन्हें वर्ष 2002 का स्टाकहोम वल्र्ड वाटर पुरस्कार (नोबेल के समतुल्य) दिया गया। कुछ वर्षों बाद नीदरलैंड के ट्वानटे वि.वि. के प्रोफेसर ए. वाय. होकेस्ट्रा ने अपने साथियों सहित फसलों तथा जानवरों के उत्पादों में उपयोग में आए जल की मात्रा का अध्ययन आधुनिक कम्प्यूटर प्रणाली से किया। इस अध्ययन में पाया गया कि खाद्य पदार्थों तथा जानवरों के उत्पाद के लिए जल की मात्रा सभी देशों में एक समान नहीं होती है। इसका कारण जल की उपलब्ध मात्रा तथा उपयोग में लायी गयी तकनीक बताया गया। उदाहरण देकर समझाया गया कि एक किलोग्राम सेब (एपल)के उत्पादन में 131, 157, 154 213 तथा 2122 लीटर जल की जरूरत क्रमशः जर्मनी, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, कनाड़ा तथा भारत में लगती है। आभासी जल का वैश्विक औसत एक किलो ग्राम आलू उत्पादन के लिए 317 लीटर बताया गया है। वैश्विक स्तर पर 43 प्रतिशत खाद्य पदार्थों की पैदावार हेतु अनवीनीकरणीय भूजल (Nonrenewable ground water) का उपयोग हो रहा है, यानी जल निकाला तो जा रहा है परन्तु उतनी मात्रा में प्राकृतिक भरण नहीं हो पाता है।
भारत, चीन, पाकिस्तान तथा अमेरिका काफी खाद्य पदार्थों का निर्यात करते है, बगैर यह सोचे कि भविष्य में पानी की कमी से इस पर बड़ा संकट आ सकता है। पाकिस्तान ज्यादातर चांवल का निर्यात कर विदेशी मुद्रा प्राप्त करता है। विश्व में फैला खाद्य पदार्थों का व्यापार दुनिया के बड़े भागों में जल संकट की स्थिति पैदा कर रहा है। भारत प्रतिवर्ष विभिन्न वस्तुओं के साथ औसतन 59 ग 1012 लीटर आभासी जल का निर्यात कर 33 ग 1012 आयात करता है। इसे आयात निर्यात में देश को 26 ग 1012 आभासी जल की मात्रा का घाटा होता है। वर्ष 2013 में देश से 6ण्38 ग 109 किलो गेहूं का निर्यात 44 देशों को किया गया जिसमें आभासी जल की मात्रा 1ण्34 ग 1013 थी। हमारे देश में एक किलोग्राम गेहूं की पैदावार हेतु औसतन 2315 लीटर जल उपयोग में लाया जाता है। आभासी जल निर्यात के संदर्भ में हमारे देश का अमेरिका व चीन के बाद तीसरा स्थान है।
खाद्य पदार्थों के अलावा अब आभासी जल की गणना अन्य सामग्रियों में भी की जाने लगी है जैसे अचार, मुरब्बा, कागज, पेसिंल, नमकीन, मिठाईयाँ एवं इलेक्ट्रानिक उपकरण। यह भी पाया गया है कि पीने, कपड़े धोने, नहाने एवं सफाई कार्य में उपयोगी तरल जल की मात्रा से ज्यादा आभासी जल की मात्रा का उपयोग आजकल हो रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के संदर्भ में जिस प्रकार ‘‘कार्बन फुट प्रिंट’’ की अवधारणा बनी ठीक उसी प्रकार जल उपयोग को लेकर ‘‘वाटर फुट प्रिंट’’ की धारणा भी स्थापित हो गयी है। वाटर फुट प्रिंट से तात्पर्य है कि एक व्यक्ति द्वारा निश्चित समयावधी (प्रतिदिन, प्रतिमाह एवं प्रतिवर्ष) कितने तरल एवं आभासी जल का उपयोग किया जाता है। हमारे देश में एक व्यक्ति का औसतन वार्षिक वाटर फुट प्रिंट 5,69,000 लीटर आंका गया है। मांसाहारी भोजन का वाटर फुट प्रिंट शाकाहारी से ज्यादा पाया गया है। शादी या अन्य समारोह में एक शाकाहारी खाने की प्लेट में लगभग 2000 लीटर आभासी जल होता है। 20 ग्राम की मात्रा का खाना झूठा फेंकने पर 60 लीटर आभासी जल बर्बाद हो जाता है। आभासी जल का महत्व समझते हुए अब यह सोचा जाने लगा है कि खाद्य एवं अन्य उत्पादों पर आभासी जल की मात्रा का उल्लेख हो।
आभासी जल की अवधारणा एक क्रांतिकारी एवं सामयिक सोच है।
विभिन्न समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं में समय≤ पर प्रकाशित विभिन्न वस्तुओं में आभासी जल की मात्रा का औसतन मान
अनाज पेय पदार्थ
एक किलोग्राम गेंहू - 2315 लीटर एक लीटर साफ्ट ड्रिंक - 4 लीटर
एक किलोग्राम चावल - 2500 लीटर एक गिलास बीयर - 75 लीटर
एक किलोग्राम मक्का - 300 लीटर एक कप चाय/काफी - 2 लीटर
एक कप ब्लेक टी - 20 लीटर
फल/सब्जियां अन्य
एक किलोग्राम आम - 1600 लीटर एक किलो शकर - 2000 लीटर
एक किलोग्राम टमाटर - 1000 लीटर एक किलो मूंगफली - 3000 लीटर
एक किलोग्राम कद्दू - 353 लीटर एक किलो मांस -10000लीटर
एक दर्जन केला - 1920 लीटर एक किलो कागज - 100 लीटर
एक सामान्य आकार का सेब- 70 लीटर एक किलो चपड़ा - 17000 लीटर
एक किलो प्लास्टिक - 1300 लीटर
डेयरी उत्पाद एक किलो सीमेंट - 500 लीटर
एक लीटर दूध - 1000 लीटर एक किलो स्टील - 200 लीटर
एक किलो पनीर - 5000 लीटर एक कार निर्माण में 40000 गैलन
एक किलो मक्खन - 940 लीटर
दही 100 ग्राम - 140 लीटर
एक सामान्य गिलास दूध - 250 लीटर
बेकरी उत्पाद
एक किलो ब्रेड - 1600 लीटर
एक स्लाइस ब्रेड - 42 लीटर
प्रमुख संदर्भ
01 Why food grain trade could result in a parched earth
लेख- टाइम्स ऑफ इंडिया 20 अप्रेल 2014
02 विज्ञान प्रगति जुलाई 2014
03 How much water do we eat?
साइंस रिपोर्टर जनवरी 2018
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