विश्व बैंक के एक अध्ययन से पता चला है कि वायुमंडलीय ताप के कारण समुद्र के जल स्तर में एक मीटर की बढ़ोतरी से विकासशील देशों के तटीय इलाकों में रहने वाले करीब छह करोड़ लोगों को बेघर होना पड़ सकता है।
इसका प्रभाव सबसे अधिक पश्चिम एशिया, उत्तरी अफ्रीका और पूर्वी एशिया के तटीय लोगों पर पड़ेगा। नदी डेल्टा क्षेत्रों में रहने वाले विकासशील देशों के 84 तटीय इलाकों के उपग्रह से लिए नक्शों और आंकड़ों से जो नतीजे सामने आए हैं उससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस सदी के अंत तक इस कारण छह करोड़ लोगों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ सकता है।
जलवायु परिवर्तन पर गठित संयुक्त राष्ट्र अंतर राजकीय पैनल ने बढ़ते तापमान के लिए मानव क्रियाकलापों को दोषी पाया है। पैनल के अनुमान के मुताबिक इस शताब्दी के अंत तक समुद्र के जल स्तर में 18 से 59 सेंटीमीटर की बढ़ोतरी होगी। अगर बर्फ की विशाल चादरें मौजूदा रफ्तार से पिघलती रहीं तो तुलनात्मक रूप से जलस्तर में कहीं ज्यादा की बढ़ोतरी हो सकती है। बढ़ते तापमान ने असर दिखाना शुरू कर दिया है, जिसके चलते समुद्र ने भारत के दो द्वीपों को लील लिया है। हिमालय के प्रमुख हिमनद 21 प्रतिशत से ज्यादा सिकुड़ गये हैं। पक्षी और मौसमी बदलाव आसन्न संकट के संकेत दे रहे हैं।
भारत के सुंदरवन डेल्टा के करीब सौ द्वीपों में से दो को समुद्र ने निगल लिया है और करीब एक दर्जन द्वीपों पर डूबने का खतरा मंडरा रहा है। इन द्वीपों पर दस हजार के करीब आदिवासियों की आबादी है। यदि ये द्वीप डूबते हैं तो इस आबादी को बचाना मुश्किल हो जाएगा। जादवपुर विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ ओशियनोग्राफिक स्टडीज के निदेशक सुगत हाजरा ने स्पष्ट किया है कि लौह छाड़ा समेत दो द्वीप समुद्र में डूब चुके हैं। ये अब उपग्रह द्वारा लिए गए चित्रों में भी नजर नहीं आ रहे हैं। हाजरा इसका कारण दुनिया में बढ़ता तापमान बताते हैं। दूसरी तरफ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के स्पेस एप्लीकेशन सेन्टर (एसएसी) के हिमनद विशेषज्ञ अनिल बी. कुलकर्णी और उनकी टीम ने हिमालय के हिमनदों का ताजा सर्वे करने के बाद खुलासा किया है कि हिमालय के हिमनद 21 फीसद से ज्यादा सिकुड़ गए हैं। टीम ने 466 से भी ज्यादा हिमनदों का सर्वेक्षण करने के बाद उक्त नतीजे निकाले हैं।
तापमान वृद्धि से समुद्र तल तो ऊंचा उठेगा ही, तूफान की प्रहारक क्षमता और गति भी 20 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। इस तरह के तूफान दक्षिण भारतीय तटों के लिए विनाशकारी साबित होंगे। ग्लोबल वार्मिंग का कुछ कुछ असर भारत के उत्तर पश्चिम क्षेत्र में देखने को मिलने लगा है। पिछले कुछ सालों से मानसून इस क्षेत्र में काफी नकारात्मक संकेत दिखा रहा है। ऐसे संकेत नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका व बांग्लादेश में भी देखने को मिल रहे हैं। देश के उत्तर पश्चिम में मानसून की बारिश बढ़ रही है और पूर्वी मध्यप्रदेश, उड़ीसा व उत्तरी पूर्वी भारत में यह कम होती जा रही है। पूरे देश में मानसून की वर्षा का संतुलन बिगड़ सकता है। मौसम छोटे होते जाएंगे जिसका सीधा असर वनस्पतियों पर पड़ेगा। अध्ययनों के मुताबिक 2050 तक भारत का धरातलीय तापमान तीन डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ चुका होगा।
डॉ. अनिल बी कुलकर्णी और उनकी टीम द्वारा हिमाचल प्रदेश में आने वाले 466 हिमनदों के उपग्रह चित्रों और जमीनी पड़ताल के जरिये जो नतीजे सामने आए हैं, वे चौकाने वाले हैं। 1962 के बाद से एक वर्ग किलामीटर क्षेत्रफल में आने वाले 162 हिमनदों का आकार 38 फीसद कम हो गया है। बड़े हिमनद 12 प्रतिशत तक छोटे हो गए हैं हिमाचल प्रदेश के इलाकों में हिमनदों का कुल क्षेत्रफल 2077 वर्ग किलोमीटर से घटकर 1628 वर्ग किलोमीटर रह गया है।
जलवायु में निरंतर हो रहे परिवर्तन से पक्षियों की 72 फीसद प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड की हालिया रिपोर्ट के अनुसार इन्हें बचाने के लिए अभी समय है। केन्या में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में जारी प्रतिवेदन के अनुसार वातावरण में हो रहे विश्वव्यापी विनाशकारी परिवर्तन से सबसे ज्यादा खतरा कीटभक्षी प्रवासी पक्षियों, हनीक्रीपर्स और ठंडे पानी में रहने वाले पेंग्विन को है। इन सब संकेतों और चेतावनियों के बावजूद इंसान नहीं चेतता है तो उसे समुद्र के लगातार बढ़ रहे जलस्तर में डुबकी लगानी ही होगी।
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