अब तो नहाने के काबिल भी नहीं रहा ब्यास नदी का पानी

1. नदी के पानी में बढ़ी कोलीफार्म की मात्रा
2. सी ग्रेड की श्रेणी में पहुँची ब्यास नदी की पवित्रता
3. पर्यटन सीजन में रोज नदी में फेंकी जाती है 60 क्विंटल गन्दगी


. देवभूमि कुल्लू-मनाली से लेकर पंजाब और हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान तक की जमीं को तर करने वाली ब्यास नदी का पवित्र कहे जाने वाला पानी अब नहाने के काबिल भी नहीं रहा है। लगातार बढ़ते प्रदूषण की मार ने इस नदी की पवित्रता के साथ-साथ सुन्दरता पर भी ग्रहण लगा दिया है।

पवित्र जल और शारीरिक रोगों का नाश करने वाली ब्यास नदी आज अपने वजूद को तरसने लगी है। प्राकृतिक सौन्दर्य से लबालब कुल्लू घाटी की सुन्दरता में घाटी के मध्य बहने वाली ब्यास नदी चार चाँद लगाती है। ब्यास के बगैर कुल्लू घाटी की कल्पना अपने आप में एक बुरे सपने की तरह है। यहाँ जन जीवन ब्यास नदी के कल-कल के साथ निरन्तर गतिमान है।

रोहतांग के पास ब्यास कुण्ड से निकली छोटी-सी जलधारा ने आगे निकल कर नदी का रूप धारण कर लिया है। हालांकि ब्यास कुण्ड से निकलने वाली जलधारा को देखकर कोई भी यह अनुमान नहीं लगा सकता है कि यह छोटी-सी जलधारा मनाली, कुल्लू, मंडी, कांगड़ा होती हुई पाँच नदियों वाले प्रदेश पंजाब तक पहुँचती है और वहाँ पर यह जलधारा सतलुज नदी में जा समाती है।

ब्यास कुण्ड ब्यास नदी का उद्गम स्थल है जहाँ पौराणिक काल में महर्षि ब्यास ने वर्षों तक तपस्या की थी। रोहतांग की ढलान से अपना सफर शुरू करते हुये ब्यास ज्यों-ज्यों मनाली की तरफ बढ़ती है त्यों-त्यों यह नदी का रूप लेने लगती है।

मनाली पहुँचने तक यह जलधारा विशाल नदी का रूप धारण कर लेती है। इसका पानी नीले व हरे रंग में बदल जाता है। जिसका तापमान काफी कम होता है। अगर इस पानी में ज्यादा देर हाथ या पैर रखा जाये तो यह अंग सुन्न होने लगते हैं मानों शरीर का रक्त जम गया हो।

घाटी के प्राकृतिक सौन्दर्य में चार चाँद लगाने वाली ब्यास का पानी सर्दियों के मौसम में बेहद साफ रहता है। नीले-हरे रंग के इस साफ सुथरे पानी में नदी की सतह पर पड़े पत्थरों व नदी में तैरते जल जीवों को साफ देखा जा सकता है। देश-विदेश से आने वाले सैलानियों को यह दृश्य रोमांचित कर देता है।

हालांकि गर्मियों में इसका जलस्तर बढ़ जाता है और पानी का रंग मटमैला हो जाता है। लेकिन बरसात आते ही ब्यास प्रचण्ड रूप ले लेती है बरसात में तो इसके पानी का रंग काफी मटमैला हो जाता है और अपनी लहरों में जो भी सामने आया ले चलती है। पिछले कई सालों से ब्यास नदी बरसात में भारी कहर ढा रही है।

इसमें बाढ़ आने से खासकर कुल्लू जिला में अरबों की सम्पति का नुकसान हुआ है ब्यास में बाढ़ आने की बात हर किसी को अश्चर्यजनक लगती है। लेकिन यह कड़वा सत्य है कि जब से यहाँ पर इंसान ने अपने स्वार्थ के लिये प्रकृति से खासकर ब्यास से छेड़छाड़ करनी शुरू की है तब से ब्यास नदी काफी उग्र होती जा रही है।

हालांकि कल-कल का मधुर निनाद करती बहती ब्यास संध्या की बेला के शान्त वातावरण में हर किसी का मन मोह लेती है मनाली से बजौरा तक लगभग 55 किमी के दायरे में ब्यास कुल्लू घाटी की प्राकृतिक छटा को और ज्यादा निखारती है।

घाटी में बहते झरने व ग्रामीण अंचलों से आने वाले नाले इसके सीने से लगकर फूले नहीं समाते हैं तथा ब्यास के रंग रूप को और ज्यादा सुन्दर व प्रभावशाली बनाते हैं। जबकि ब्यास को पार करने के लिये जगह-जगह लगाये गए झुले तथा ऊपर नीचे होते झुलेनुमा पुल घाटी का रोमांचकारी दृश्य पेश करने के साथ-साथ यहाँ का एक नया रूप पेश करते हैं वैसे मनाली से भुन्तर तक इसका पानी काफी शान्त है मगर भुन्तर से आगे पानी काफी तेज गति से बहता है लेकिन इसके पानी की गहराई का अन्दाजा कहीं भी नहीं लग पाता है।

ब्यास कुण्ड से ज्यों-ज्यों ब्यास नदी बांहग, मनाली, बबेली होती हुई कुल्लू में प्रवेश करती है इसका रूप लगातार निखरता जाता है रामशीला पुल के पास बड़ी-बड़ी चट्टानें ब्यास नदी के बहाव को कम करती हैं वहीं बच्चों के साथ कभी-कभी बड़ों को भी ब्यास के आँचल में कूदकर नहाते हुये ‘खासकर गर्मियों में’ देखा जा सकता है।

थोड़ा-सा आगे चलकर भूतनाथ मन्दिर के पास लगघाटी से आने वाली सरवरी नदी भी बड़े शान से अपना अस्तित्व ब्यास को सौंपकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करती है। इनका मिलन भी एक मनोहारी दृश्य पैदा करता है। कुल्लू में ब्यास को महर्षि ब्यास से जोड़ने की वजह से इसको आस्था से भी देखा जाता है। कुल्लू से इसका सफर बजौरा की ओर बढ़ता है।

कुल्लू से 4 किमी की दूरी पर पिरड़ी नामक स्थान ब्यास में जलक्रिड़ा ‘रीवर राफ्टिंग’ के लिये विश्व भर में प्रसिद्ध हो गया है। रीवर राफ्टिंग की बेहतर सम्भावनाएँ पैदा करके ब्यास नदी ने कुल्लू को विश्व स्तर पर नई पहचान दी है। पिरड़ी से ब्यास में राफ्टिंग करते हुए रोमांचकारी खेल प्रेमी झीड़ी मंडी जिला में पहुँचते हैं तथा वहाँ से वापिस पिरड़ी लौट आते हैं।

पिरड़ी से ब्यास बलखाती लहरों के साथ उछल कूद करते हुए भुन्तर होते हुए बजौरा में मंडी जिला के झीड़ी, नगवाई, औट, थलौट से गुजरती हुई लारजी झील में पहुँचती है। थलौट के पास ब्यास नदी पर 126 मेगावाट की लारजी जल विद्युत परियोजना स्थापित है।

लारजी जल विद्युत परियोजना का पावर हाउस भुमिगत बनाया गया है और यहीं पर दिल्ली-मनाली राष्ट्रीय मार्ग पर पहली यातायात सुरंग प्रदेश विद्युत परिषद ने बनाई है। भुन्तर में ब्यास व पार्वती नदी का भावभीना मिलन होता है। पार्वती नदी मणीकर्ण घाटी से निकलकर भुन्तर में ब्यास नदी में मिलकर अपना अस्तित्व खो देती है। ब्यास व पार्वती के इस संगम स्थल का धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्त्व है यहाँ 20 भादो को देवता व मनुष्य एक साथ स्नान करते हैं।

धार्मिक दृष्टि से ब्यास व पार्वती के संगम पर नहाना काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। पंडोह से ब्यास पर बाँध बनाकर इसके वेग को कम किया है यहाँ से ब्यास के कुछ पानी को सुरंग के रास्ते बग्गी (मण्डी) तथा वहाँ से नहर द्वारा सुन्दर नगर झील फिर वहाँ से सुरंग द्वारा सलापड़ पावर हाउस तक पहुँचाया गया है जहाँ इसके पानी से बिजली पैदा की जाती है।

ब्यास ने घाटी को असीम सौन्दर्य बख्शा है वहीं सैंकड़ों बेरोजगारों को रोज़गार भी उपलब्ध करवाया है। लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से ब्यास का कोई भी ख्याल नहीं रख रहा है हर रोज ब्यास नदी के सीने को छलनी करके रेत, बजरी व पत्थर मनमाने ढंग से निकाले जा रहे हैं। वहीं शहरों की गन्दगी को भी ब्यास में फेंका जाता है तथा इसके तटों पर गन्दगी-ही-गन्दगी होती है। इंसान की स्वार्थ भावना से आक्रोशित होकर ही तो ब्यास हर वर्ष उग्र रूप धारण करके भयंकर तांडव करती है। पंडोह से ही ब्यास नदी उछल-कूद करती हुई छोटी काशी मंडी की ओर बढ़ी है वहाँ पंचवक्त्र को नमन करती हुई यह संधोल होते हुए चामुण्डा व ज्वालामुखी माता की स्थली कांगड़ा की ओर बढ़ती है। कांगड़ा के देहरा में ब्यास पर पौंग बाँध का निर्माण किया गया है।

रोहतांग के ब्यास कुण्ड से अपना सफर जारी करने वाली ब्यास नदी कांगड़ा जिला में हिमाचल का सफर खत्म करने के बाद पाँच प्यारों व पाँच नदियों वाले पंजाब में प्रवेश करती है। जहाँ ब्यास सतलुज नदी में मिलकर अपना सर्वस्व सतलुज को सौंपकर निश्चिन्त हो जाती है। हालांकि हिमाचल प्रदेश में जहाँ-जहाँ से ब्यास नदी गुजरती है वहाँ इसने अपने सौंदर्य की वजह से चार चाँद लगाए हैं। लेकिन कुल्लू घाटी की सुन्दरता ब्यास नदी के बगैर कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

ब्यास ने घाटी को असीम सौन्दर्य बख्शा है वहीं सैंकड़ों बेरोजगारों को रोज़गार भी उपलब्ध करवाया है। लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से ब्यास का कोई भी ख्याल नहीं रख रहा है हर रोज ब्यास नदी के सीने को छलनी करके रेत, बजरी व पत्थर मनमाने ढंग से निकाले जा रहे हैं। वहीं शहरों की गन्दगी को भी ब्यास में फेंका जाता है तथा इसके तटों पर गन्दगी-ही-गन्दगी होती है। इंसान की स्वार्थ भावना से आक्रोशित होकर ही तो ब्यास हर वर्ष उग्र रूप धारण करके भयंकर तांडव करती है।

देवभूमि कुल्लू-मनाली से लेकर पंजाब और हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान तक की जमीं को तर करने वाली ब्यास नदी का पवित्र कहे जाने वाला पानी अब नहाने के काबिल भी नहीं रहा है। लगातार बढ़ते प्रदूषण की मार ने इस नदी की पवित्रता के साथ-साथ सुन्दरता पर भी ग्रहण लगा दिया है। पवित्र जल और शारीरिक रोगों का नाश करने वाली ब्यास नदी आज अपने वजूद को तरसने लगी है।

यदि ब्यास नदी के जल प्रदूषण की रफ्तार यूँ ही जारी रही तो आने वाले समय में यह नदी अपने धार्मिक और औषधीय गुणों के वजूद खत्म हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सैम्पलों में यह खुलासा हुआ है कि इस नदी का पानी उद्गम स्रोत से मात्र 40-50 किलोमीटर के अन्दर ही सी ग्रेड बन गया है। जिसे पीने के लिये इस्तेमाल करना तो दूर रहा नहाने के लिये भी इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।

रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि ब्यास नदी के पानी में कोलीफार्म की मात्रा अत्यधिक हो गई है। जानकारों की माने तो यदि पानी में कोलीफार्म हो तो उसकी मात्रा 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। सौ मिलीलीटर पानी में सिर्फ दस मिलीलीटर कोलीफार्म की मात्रा से अधिक बढ़ा तो यह स्वास्थ्य के लिये घातक हो सकता है। जबकि ब्यास नदी में इसकी मात्रा 20 प्रतिशत से भी अधिक हो गई है। लिहाजा, 470 किलोमीटर लम्बाई वाली इस नदी के वजूद पर भी खतरे के बादल मँडराते हुए दिखाई दे रहे हैं।

हर रोज 60 क्विंटल गन्दगी ब्यास के हवाले


जीबी पंत रिसर्च केन्द्र मौहल की एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्यास नदी के उदगम स्रोत ब्यास कुण्ड से कुछ ही दूरी पर स्थित पर्यटन नगरी मनाली में पर्यटन सीजन के दौरान इस नदी में प्रतिदिन लगभग 60 क्विंटल गन्दगी प्रवाहित की जा रही है। इससे प्रदूषण की गति लगातार तेजी से बढ़ रही है। मनाली में ही इस रफ्तार से प्रदूषण बढ़ रहा है तो इसके निचले क्षेत्रों की स्थिति क्या होगी इसका तो सहज ही अन्दाजा लगाया जा सकता है।

परियोजनाओं ने बिगाड़ा खेल


पर्यावरण चिन्तक एवं लेखक दौलत भारती का कहना है कि ब्यास नदी के दूषित होने का एक कारण ब्यास नदी में बाहंग से लेकर नदी में प्रवाहित किया जाने वाला कूड़ा है तो दूसरे सबसे बड़ा कारण पनविद्युत परियोजनाएँ भी हैं।

जिला में ब्यास की सहायक नदियों पर परियोजनाएँ स्थापित की गई है लेकिन उन परियोजनाओं में न तो डम्पिंग की उचित व्यवस्था है और न ही टनलों से निकलने वाले द्रव्य को ठिकाने लगाने को कोई ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। दुहांगन, फोजल, सरवरी, सैंज, पार्वती नदियाँ ऐसी है जिसमें परियोजनाएँ स्थापित हुई है उनके कारण ही नदियों का जल अत्यधिक दूषित हुआ है।

और खतरनाक होगी स्थिति


जल पर शोध कर रहे हिमालयन एन्वायरमेंट प्रोटेक्शन सोसायटी के अध्यक्ष अभिषेक राय के अनुसार ब्यास नदी में जल प्रदूषण निरन्तर बढ़ता जा रहा है। उन्होंने चेताया है कि यदि ब्यास नदी का प्रदूषण इसी रफ्तार से बढ़ता रहा तो आने वाले समय में इस नदी का पानी सिंचाई करने के काम भी नहीं आएगा। राय के अनुसार मंडी के पास इसकी खतरनाक स्थिति हो गई है। जबकि इससे आगे नादौन क्षेत्र में तो स्थिति और भी भयानक हो गई है।

दो दशकों में खराब हुई स्थिति


जानकारों की माने तो ब्यास नदी के पानी को 90 के दशक तक लोग पीने के लिये इस्तेमाल करते थे। लेकिन जैसे ही घाटी में परियोजनाओं के स्थापित होने का सिलसिला बढ़ा और सैलानियों के आने की तादाद में इज़ाफा हुआ तो वैसे-वैसे ब्यास नदी के दूषित होने की रफ्तार में भी तेजी आती गई। इसके अलावा शहरी क्षेत्रों मनाली, पतलीकूहल, अखाड़ा बाजार, रामशिला, कुल्लू, गाँधीनगर, शमशी, भुन्तर, औट, मंडी आदि क्षेत्रों में बढ़ती आबादी के साथ-साथ नदी में कूड़ा-कचरा फेंकने की मात्रा में भी इजाफा हुआ है।

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Post By: RuralWater
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