अब मोदी सरकार को नया जल मंत्रालय बनाने का अपना वायदा पूरा करना चाहिए

गंगा में डुबकी लगाते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी।
गंगा में डुबकी लगाते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी।

भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में नया जल मंत्रालय बनाने का वादा किया है, लेकिन केंद्र और राज्यों में अलग-अलग मंत्रालयों में बिखरे पानी के विषयों को समेटना बड़ी चुनौती होगी। फिलहाल केंद्र के करीब आधा दर्जन मंत्रालयों के अधीन जल से संबंधित विषय आते हैं। इन्हें एक जगह लाने के लिए लंबी कवायद करनी पड़ेगी।

सूत्रों ने कहा कि नया जल मंत्रालय बनाने की राह में सबसे बड़ी चुनौती अलग-अलग मंत्रालयों के दायरे से निकालकर जल से संबंधित विषयों को एक जगह लाने की है। फिलहाल राष्ट्रीय दृष्टिकोण से जल की योजना बनाने और समन्वयन का विषय ‘जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय’ के पास है, जबकि जल की आपूर्ति का जिम्मा दो अन्य मंत्रालय संभाल रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जल आपूर्ति, सीवेज और ड्रेनेज का काम पेयजल और स्वच्छता विभाग के पास आता है। वहीं नगरीय क्षेत्रों में जल आपूर्ति और सीवेज का कार्य आवास और शहरी कार्य मंत्रालय के अधीन आता है। इसी तरह नदियों की सफाई का काम भी दो मंत्रालयों के बीच बंटा हुआ है।

अलग-अलग मंत्रालयों के अधीन फैले जल संबंधी विषयों को एक जगह लाने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट को प्रस्ताव पारित कर भारत सरकार नियम, 1961 में बदलाव करना होगा। साथ ही यह भी देखना होगा कि नए जल मंत्रालय में सरकार एक विभाग रखेगी या एक से अधिक। 

गंगा और सहायक नदियों को निर्मल बनाने का कार्य जहां जल संसाधन मंत्रालय के दायरे में है, जबकि अन्य नदियों की सफाई का जिम्मा पर्यावरण मंत्रालय के अधीन है। पर्यावरण मंत्रालय में नेशनल रिवर कंजर्वेशन डाइरेक्टोरेट यानी एनआरसीडी के अधीन अन्य नदियों को निर्मल बनाने का काम आता है। मोदी सरकार ने 2014 में गंगा को एनआरसीडी के दायरे से बाहर निकालकर जल संसाधन मंत्रालय को सौंपा था। इसी तरह जल संभरण क्षेत्र यानी वाटरशेड डेवलपमेंट काम काम भी कृषि मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय के दायरे में आता है। साथ ही ड्रिप इरीगेशन का काम भी कृषि मंत्रालय के अधीन है, जबकि बड़ी-बड़ी सिंचाई परियोजनाओं, बांधों और जल की गुणवत्ता के आकलन का कार्य जल संसाधन मंत्रालय के अधीन आता है। हालांकि जल की गुणवत्ता सुधारने का काम पेयजल और स्वच्छता विभाग के पास है। यही वजह है कि पेयजल को आर्सेनिक व फ्लोराइड के मुक्त करने से संबंधी कार्यक्रम पेयजल और स्वच्छता विभाग के तहत चलते हैं। 

सूत्रों ने कहा कि अलग-अलग मंत्रालयों के अधीन फैले जल संबंधी विषयों को एक जगह लाने के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट को प्रस्ताव पारित कर भारत सरकार (कार्य आवंटन) नियम, 1961 में बदलाव करना होगा। साथ ही यह भी देखना होगा कि नए जल मंत्रालय में सरकार एक विभाग रखेगी या एक से अधिक। भाजपा ने 2019 के लोक सभा चुनाव के घोषणापत्र में केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों के अधीन आने वाले जल के विषय को एक जगह लाकर एक नया जल मंत्रालय गठित करने की घोषणा की है ताकि जल का पूरी तरह प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके। 

उल्लेखनीय है कि सरकार ने सितंबर 1985 में तत्कालीन सिंचाई और बिजली मंत्रालय को दो भागों में बांटकर सिंचाई विभाग को जल संसाधन मंत्रालय का रूप दिया था। देश आजाद होने के बाद सरकार ने 1952 में सिंचाई और जल मंत्रालय बनाया था। अस्सी के दशक में इस विभाग में कई बदलाव हुए और कृषि मंत्रालय से सिंचाई से जुड़े हुए कई विषय इसमें ट्रांसफर कर दिए गए। उच्च पदस्थ सरकारी सूत्रों ने कहा कि केंद्र में अगर जल से संबंधित विषयों को एक जगह लाया जाता है तो फिर राज्यों में भी इसकी दरकार होगी। चूंकि जल राज्य का विषय है, इसलिए वहां जब तक इससे जुड़े विषयों को एक जगह नहीं लाया जाता तब तक जल क्षेत्र की बाधाएं दूर नहीं होंगी। पानी को लेकर राज्यों के बीच आए दिन झगड़े होते रहते हैं।

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