महाराष्ट्र में किसानों से पानी छिनकर कंपनियों को देना एक आम बात होता जा रहा है। पानी पर पहला हक किसानों और नागरिकों का ना होकर के कंपनियों का हो रहा है। अमरावती के किसानों के हक का पानी मारकर इंडिया बुल्स अब नासिक के खेतों के पानी पर डाका डालने जा रही है। पानी पर डाका डालने का खेल अमरावती के बाद अब नासिक और अहमदनगर में सिंचाई विभाग के मदद से खेला जाना है। इससे आने वाले दिनों में नासिक के किसानों और नागरिकों को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ सकता है। इंडिया बुल्स द्वारा किसानों के पानी पर डाका डालने के बारे में बता रहे हैं, प्रवीण महाजन।
सिंचाई विभाग से करार होने के पहले तक यह संभावना थी कि इंडिया बुल्स का मनपा प्रशासन के साथ पानी आपूर्ति का करार हो जाएगा। इस प्लांट को मंजूरी दिए जाने के दौरान यह तय हुआ था कि सिंचाई विभाग द्वारा जो पानी दैनंदिन जरूरतों के लिए मनपा प्रशासन को उपलब्ध कराया जाता है, उससे निकलने वाले मलजल (दूषित पानी) को फिल्टर कर पुनः बिजली उत्पादन के लिए इंडिया बुल्स के पॉवर प्लांट को दिया जाएगा। महाराष्ट्र में जहां एक ओर इंडिया बुल्स का जलवा बढ़ता जा रहा है, तो दूसरी ओर किसानों पर आफत आ रही है। इंडिया बुल्स अमरावती के किसानों के हक के पानी पर डाका डालने के बाद अब नासिक के खेतों के पानी पर भी डाका डालने जा रही है। यह सब सरकारी स्तर पर हो रहा है। सरकार कहती जरूर है कि पानी पर पहला हक किसानों और नागरिकों का है, लेकिन उसकी कथनी-करनी में जमीन और आसमान का अंतर है। इंडिया बुल्स के नासिक के निकट स्थापित हो रहे पॉवर प्लांट को पानी मुहैया कराने के लिए सिंचाई विभाग के साथ करार भी कर लिया है।सिंचाई विभाग को यह करार करने पर जहां 72 करोड़ रुपये मिले हैं, वहीं इससे नासिक महानगर पालिका को करारा झटका लगा है। इसकी वजह यह है कि इंडिया बुल्स के पॉवर प्लांट को पहले पानी मुहैया कराने का करार मनपा से होना तय हुआ था और शहर से निकलने वाले निस्तारित पानी को पुनः बिजली उत्पादन के लिए उपयोग में लाया जाना था। मगर इंडिया बुल्स के मनपा को ठेंगा दिखाकर सिंचाई विभाग से करार कर लिए जाने से निस्तारित पानी के पुनः प्रयोग की योजना भी खटाई में पड़ गई है।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल दिसंबर माह में इंडिया बुल्स कंपनी उस समय चर्चा में आई थी, जब राज्य के सार्वजनिक निर्माण मंत्री छगन भुजबल के भुजबल फाउंडेशन को करोड़ों रुपये का चंदा देने के मामले का खुलासा हुआ था। भुजबल के फाउंडेशन को जो चंदा दिया गया था, वह नासिक में 2700 मेगावॉट के पॉवर प्लांट को स्थापित करने में सहयोग देने के बदले में दिया गया था। हालांकि भुजबल ने बताया था कि यह चंदा नासिक फेस्टिवल के नाम पर लिया गया था। मगर इस मामले के उजागर होने के पहले भी इंडिया बुल्स राज्य में तब भी चर्चा में थी, जब अमरावती जिले के किसानों ने अपने खेतों के हक के पानी पर सोफिया पॉवर प्लांट द्वारा पी जाने के खिलाफ आवाज उठाई थी और उग्र आंदोलन किया था। मामला अदालत में भी गया था और अदालत में सुनवाई के लिए निलंबित है।
अमरावती का खेल अब नासिक और अहमदनगर में इंडिया बुल्स द्वारा सिंचाई विभाग की मिलीभगत से खेला जाना है। इससे आने वाले दिनों में नासिक के आसपास के किसानों को अपनी फसलों की सिंचाई के लिए पानी की बूंद-बूंद के लिए तरसना पड़ सकता है। इसकी वजह यह है कि नासिक मनपा को ठेंगा दिखाकर इंडिया बुल्स ने सिंचाई विभाग के साथ जो करार किया है, उसको पूरा करने के लिए सिंचाई विभाग को नासिक और अहमदनगर जिले के तकरीबन 10 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षेत्र में कटौती किया जाना तय माना जा रहा है। इंडिया बुल्स ने इस क्षेत्र को पुनर्स्थापना हेतु लिए जाने के एवज में सिंचाई विभाग को 72 करोड 65 लाख रुपये का भुगतान किया है।
विशेष बात यह है कि छगन भुजबल नासिक के पालकमंत्री हैं और इंडिया बुल्स के दो चरणों में स्थापित होने वाले पॉवर प्लांट को लाने का पूरा श्रेय भी वही लेते हैं। सिंचाई विभाग से करार होने के पहले तक यह संभावना थी कि इंडिया बुल्स का मनपा प्रशासन के साथ पानी आपूर्ति का करार हो जाएगा। इस प्लांट को मंजूरी दिए जाने के दौरान यह तय हुआ था कि सिंचाई विभाग द्वारा जो पानी दैनंदिन जरूरतों के लिए मनपा प्रशासन को उपलब्ध कराया जाता है, उससे निकलने वाले मलजल (दूषित पानी) को फिल्टर कर पुनः बिजली उत्पादन के लिए इंडिया बुल्स के पॉवर प्लांट को दिया जाएगा। प्लांट के लिए पानी का आरक्षण किए जाने की स्थिति स्पष्ट होने के बाद भी कंपनी ने मनपा प्रशासन से पिछले तीन साल में करार करने में कोई रुचि नहीं दिखाई। उलटे मनपा प्रशासन उससे संपर्क कर पानी उपलब्ध कराने को तैयार था।
जिस मलजल का उपयोग इंडिया बुल्स के पॉवर प्लांट में किया जाना था, उसकी रॉयल्टी पर सिंचाई विभाग एवं मनपा प्रशासन ने हक जताया था। इस मामले में उच्चाधिकार समिति ने हस्तक्षेप करके अपना फैसला सिंचाई विभाग के पक्ष में दिया। इससे रॉयल्टी पाने का सिंचाई विभाग का रास्ता साफ हो गया। इस पर इंडिया बुल्स के प्रबंधन का मानना था कि रॉयल्टी भुगतान की प्रक्रिया से उसके लिए आरक्षित पानी पर विपरीत असर पड़ सकता है, जिसके कारण उसने सिंचाई विभाग से ही करार करने का मन बना लिया। सिंचाई विभाग से जो करार इंडिया बुल्स ने किया है, उसमें मनपा का कहीं भी किसी भी संदर्भ में कोई जिक्र तक नहीं किया गया है। आखिर मनपा प्रशासन की क्या भूमिका रहेगी? इसका साफ अर्थ यह निकलता है कि इंडिया बुल्स ने मनपा प्रशासन को अपने रास्ते से पूरी तरह हटा दिया है। इसका कारण अब तक कंपनी द्वारा नहीं बताया गया है कि आखिर मनपा को करार से बाहर करने का राजनीतिक कारण है या आर्थिक या अन्य कोई।
बहरहाल, दो चरणों में साकार होने वाले इंडिया बुल्स के नासिक पॉवर प्लांट के पहले चरण के लिए 43.80 और दूसरे चरण के 36.50 लाख घनमीटर पुनः उपयोग के लिए पानी दिया जाना है। अब यदि करार पर अमल होता है तो गोदावरी नहर से 9,749 हेक्टेयर खेती को सिंचाई के लिए मिलने वाले पानी पर कटौती किया जाना है। इसका मतलब यह है कि सिंचन क्षेत्र में पानी की कटौती के लिए पहले चरण के लिए 26.36 करोड़ रुपये और दूसरे चरण के लिए 46.29 करोड़ मिलाकर कुल 72 करोड़ 65 लाख रुपये इंडिया बुल्स ने सिंचाई विभाग के खाते में अग्रिम रूप से जमा कर दिए हैं। इसी तरह प्रारंभ के दो माह की पानीपट्टी के लिए 78 लाख रुपये महाराष्ट्र जलसंपत्ति नियामक निर्णय के आधार पर पहले से ही भुगतान कंपनी द्वारा किया जा चुका है। हालांकि वर्तमान में 10 रुपये 70 पैसे प्रति 10 हजार लीटर की दर से पानीपट्टी का भुगतान किया गया है, लेकिन कंपनी ने निस्तारित पानी के पुनः उपयोग के लिए दिए जाने के कारण जलसंपत्ति प्राधिकरण से दर कम करने का अनुरोध किया है।
इस मामले में प्राधिकरण का निर्णय प्रलंबित है और इसी दरम्यान मनपा प्रशासन ने रॉयल्टी में कुछ हिस्सा दिलाने के लिए प्राधिकरण के सामने अपना दावा पेश कर दिया है। गौर करने वाली बात यह है कि कंपनी ने सिंचाई विभाग से सीधे करार करने का वह समय चुना, जब मनपा प्रशासन चुनाव में व्यस्त था। इससे करार किए जाने के दौरान इंडिया बुल्स को मनपा प्रशासन से किसी तरह का विरोध नहीं करना पड़ा। चुनाव संपन्न होने के बाद जब करार के संबंध में पता चला तो मनपा प्रशासन की आंख खुली। वहीं पानी का मोल पहचानें, की सीख जनता को देने वाले सिंचाई विभाग ने इंडिया बुल्स के पॉवर प्लांट को हरी झंडी दिखा दी। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब सिंचाई विभाग ने नासिक मनपा प्रशासन की अनदेखी की है। इसके पहले भी शहर के आसपास पांच प्रकल्पों को पानी देने के मामले में मनपा प्रशासन को पूरी तरह किनारे किया गया है। इससे ऐसा लगता है कि इंडिया बुल्स के पॉवर प्लांट को पानी आपूर्ति का मामला सैद्धांतिक या नीतिगत कम और राजनीतिक अधिक लगता है।
इंडिया बुल्स पॉवर प्लांट को पानी आपूर्ति को लेकर सिंचाई विभाग से करार चाहे जिस वजह से हुआ हो, लेकिन इसमें बेचारे किसानों पर आफत आनी तय है। आखिर 9,749 हेक्टर क्षेत्र को मिलने वाला सिंचाई का पानी जब इंडिया बुल्स के पॉवर प्लांट को दिया जाएगा तो किसान बेचारे क्या करेंगे? करार करने से पूर्व सिंचाई विभाग को यह तय करना चाहिए था कि किसानों के हित पर किसी तरह का विपरीत प्रभाव न पड़े। सरकार ने भी अपनी नीति में स्पष्ट किया है कि पीने का पानी दिए जाने के बाद पहला हक किसानों का होता है और उनके खेतों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी दिए जाने के बाद उद्योगों को दिया जाएगा। मगर यहां तो सिंचाई विभाग सरकार की नीति को ही उलटता दिखाई दे रहा है। सरकार को इस पर अंकुश लगाना चाहिए, लेकिन यहां वह तमाशबीन बनी नजर आ रही है। अब इस करार का कारण राजनीति एवं नीतिगत जो भी हो, लेकिन यहां सबसे अधिक नुकसान किसानों को होने वाला है। यदि यह करार राजनीतिक बिसात पर किया गया है, तो बेचारे किसान राजनीतिक लड़ाई में पिस जाएंगे। इसके कारण नासिक में भी आने वाले समय पर यदि मावल और अमरावती जैसा उग्र किसान आंदोलन हो तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। इसलिए सरकार को नासिक को दूसरा मावल और अमरावती बनने से रोकने के लिए किसानों एवं कृषि के हितों की रक्षा के लिए स्वतः आगे आना चाहिए। विशेषकर मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार को किसानों की रक्षा राजनीति से ऊपर उठकर करनी चाहिए।
सिंचाई विभाग से करार होने के पहले तक यह संभावना थी कि इंडिया बुल्स का मनपा प्रशासन के साथ पानी आपूर्ति का करार हो जाएगा। इस प्लांट को मंजूरी दिए जाने के दौरान यह तय हुआ था कि सिंचाई विभाग द्वारा जो पानी दैनंदिन जरूरतों के लिए मनपा प्रशासन को उपलब्ध कराया जाता है, उससे निकलने वाले मलजल (दूषित पानी) को फिल्टर कर पुनः बिजली उत्पादन के लिए इंडिया बुल्स के पॉवर प्लांट को दिया जाएगा। महाराष्ट्र में जहां एक ओर इंडिया बुल्स का जलवा बढ़ता जा रहा है, तो दूसरी ओर किसानों पर आफत आ रही है। इंडिया बुल्स अमरावती के किसानों के हक के पानी पर डाका डालने के बाद अब नासिक के खेतों के पानी पर भी डाका डालने जा रही है। यह सब सरकारी स्तर पर हो रहा है। सरकार कहती जरूर है कि पानी पर पहला हक किसानों और नागरिकों का है, लेकिन उसकी कथनी-करनी में जमीन और आसमान का अंतर है। इंडिया बुल्स के नासिक के निकट स्थापित हो रहे पॉवर प्लांट को पानी मुहैया कराने के लिए सिंचाई विभाग के साथ करार भी कर लिया है।सिंचाई विभाग को यह करार करने पर जहां 72 करोड़ रुपये मिले हैं, वहीं इससे नासिक महानगर पालिका को करारा झटका लगा है। इसकी वजह यह है कि इंडिया बुल्स के पॉवर प्लांट को पहले पानी मुहैया कराने का करार मनपा से होना तय हुआ था और शहर से निकलने वाले निस्तारित पानी को पुनः बिजली उत्पादन के लिए उपयोग में लाया जाना था। मगर इंडिया बुल्स के मनपा को ठेंगा दिखाकर सिंचाई विभाग से करार कर लिए जाने से निस्तारित पानी के पुनः प्रयोग की योजना भी खटाई में पड़ गई है।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल दिसंबर माह में इंडिया बुल्स कंपनी उस समय चर्चा में आई थी, जब राज्य के सार्वजनिक निर्माण मंत्री छगन भुजबल के भुजबल फाउंडेशन को करोड़ों रुपये का चंदा देने के मामले का खुलासा हुआ था। भुजबल के फाउंडेशन को जो चंदा दिया गया था, वह नासिक में 2700 मेगावॉट के पॉवर प्लांट को स्थापित करने में सहयोग देने के बदले में दिया गया था। हालांकि भुजबल ने बताया था कि यह चंदा नासिक फेस्टिवल के नाम पर लिया गया था। मगर इस मामले के उजागर होने के पहले भी इंडिया बुल्स राज्य में तब भी चर्चा में थी, जब अमरावती जिले के किसानों ने अपने खेतों के हक के पानी पर सोफिया पॉवर प्लांट द्वारा पी जाने के खिलाफ आवाज उठाई थी और उग्र आंदोलन किया था। मामला अदालत में भी गया था और अदालत में सुनवाई के लिए निलंबित है।
अमरावती का खेल अब नासिक और अहमदनगर में इंडिया बुल्स द्वारा सिंचाई विभाग की मिलीभगत से खेला जाना है। इससे आने वाले दिनों में नासिक के आसपास के किसानों को अपनी फसलों की सिंचाई के लिए पानी की बूंद-बूंद के लिए तरसना पड़ सकता है। इसकी वजह यह है कि नासिक मनपा को ठेंगा दिखाकर इंडिया बुल्स ने सिंचाई विभाग के साथ जो करार किया है, उसको पूरा करने के लिए सिंचाई विभाग को नासिक और अहमदनगर जिले के तकरीबन 10 हजार हेक्टेयर सिंचन क्षेत्र में कटौती किया जाना तय माना जा रहा है। इंडिया बुल्स ने इस क्षेत्र को पुनर्स्थापना हेतु लिए जाने के एवज में सिंचाई विभाग को 72 करोड 65 लाख रुपये का भुगतान किया है।
विशेष बात यह है कि छगन भुजबल नासिक के पालकमंत्री हैं और इंडिया बुल्स के दो चरणों में स्थापित होने वाले पॉवर प्लांट को लाने का पूरा श्रेय भी वही लेते हैं। सिंचाई विभाग से करार होने के पहले तक यह संभावना थी कि इंडिया बुल्स का मनपा प्रशासन के साथ पानी आपूर्ति का करार हो जाएगा। इस प्लांट को मंजूरी दिए जाने के दौरान यह तय हुआ था कि सिंचाई विभाग द्वारा जो पानी दैनंदिन जरूरतों के लिए मनपा प्रशासन को उपलब्ध कराया जाता है, उससे निकलने वाले मलजल (दूषित पानी) को फिल्टर कर पुनः बिजली उत्पादन के लिए इंडिया बुल्स के पॉवर प्लांट को दिया जाएगा। प्लांट के लिए पानी का आरक्षण किए जाने की स्थिति स्पष्ट होने के बाद भी कंपनी ने मनपा प्रशासन से पिछले तीन साल में करार करने में कोई रुचि नहीं दिखाई। उलटे मनपा प्रशासन उससे संपर्क कर पानी उपलब्ध कराने को तैयार था।
जिस मलजल का उपयोग इंडिया बुल्स के पॉवर प्लांट में किया जाना था, उसकी रॉयल्टी पर सिंचाई विभाग एवं मनपा प्रशासन ने हक जताया था। इस मामले में उच्चाधिकार समिति ने हस्तक्षेप करके अपना फैसला सिंचाई विभाग के पक्ष में दिया। इससे रॉयल्टी पाने का सिंचाई विभाग का रास्ता साफ हो गया। इस पर इंडिया बुल्स के प्रबंधन का मानना था कि रॉयल्टी भुगतान की प्रक्रिया से उसके लिए आरक्षित पानी पर विपरीत असर पड़ सकता है, जिसके कारण उसने सिंचाई विभाग से ही करार करने का मन बना लिया। सिंचाई विभाग से जो करार इंडिया बुल्स ने किया है, उसमें मनपा का कहीं भी किसी भी संदर्भ में कोई जिक्र तक नहीं किया गया है। आखिर मनपा प्रशासन की क्या भूमिका रहेगी? इसका साफ अर्थ यह निकलता है कि इंडिया बुल्स ने मनपा प्रशासन को अपने रास्ते से पूरी तरह हटा दिया है। इसका कारण अब तक कंपनी द्वारा नहीं बताया गया है कि आखिर मनपा को करार से बाहर करने का राजनीतिक कारण है या आर्थिक या अन्य कोई।
बहरहाल, दो चरणों में साकार होने वाले इंडिया बुल्स के नासिक पॉवर प्लांट के पहले चरण के लिए 43.80 और दूसरे चरण के 36.50 लाख घनमीटर पुनः उपयोग के लिए पानी दिया जाना है। अब यदि करार पर अमल होता है तो गोदावरी नहर से 9,749 हेक्टेयर खेती को सिंचाई के लिए मिलने वाले पानी पर कटौती किया जाना है। इसका मतलब यह है कि सिंचन क्षेत्र में पानी की कटौती के लिए पहले चरण के लिए 26.36 करोड़ रुपये और दूसरे चरण के लिए 46.29 करोड़ मिलाकर कुल 72 करोड़ 65 लाख रुपये इंडिया बुल्स ने सिंचाई विभाग के खाते में अग्रिम रूप से जमा कर दिए हैं। इसी तरह प्रारंभ के दो माह की पानीपट्टी के लिए 78 लाख रुपये महाराष्ट्र जलसंपत्ति नियामक निर्णय के आधार पर पहले से ही भुगतान कंपनी द्वारा किया जा चुका है। हालांकि वर्तमान में 10 रुपये 70 पैसे प्रति 10 हजार लीटर की दर से पानीपट्टी का भुगतान किया गया है, लेकिन कंपनी ने निस्तारित पानी के पुनः उपयोग के लिए दिए जाने के कारण जलसंपत्ति प्राधिकरण से दर कम करने का अनुरोध किया है।
इस मामले में प्राधिकरण का निर्णय प्रलंबित है और इसी दरम्यान मनपा प्रशासन ने रॉयल्टी में कुछ हिस्सा दिलाने के लिए प्राधिकरण के सामने अपना दावा पेश कर दिया है। गौर करने वाली बात यह है कि कंपनी ने सिंचाई विभाग से सीधे करार करने का वह समय चुना, जब मनपा प्रशासन चुनाव में व्यस्त था। इससे करार किए जाने के दौरान इंडिया बुल्स को मनपा प्रशासन से किसी तरह का विरोध नहीं करना पड़ा। चुनाव संपन्न होने के बाद जब करार के संबंध में पता चला तो मनपा प्रशासन की आंख खुली। वहीं पानी का मोल पहचानें, की सीख जनता को देने वाले सिंचाई विभाग ने इंडिया बुल्स के पॉवर प्लांट को हरी झंडी दिखा दी। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, जब सिंचाई विभाग ने नासिक मनपा प्रशासन की अनदेखी की है। इसके पहले भी शहर के आसपास पांच प्रकल्पों को पानी देने के मामले में मनपा प्रशासन को पूरी तरह किनारे किया गया है। इससे ऐसा लगता है कि इंडिया बुल्स के पॉवर प्लांट को पानी आपूर्ति का मामला सैद्धांतिक या नीतिगत कम और राजनीतिक अधिक लगता है।
किसान पिसेंगे
इंडिया बुल्स पॉवर प्लांट को पानी आपूर्ति को लेकर सिंचाई विभाग से करार चाहे जिस वजह से हुआ हो, लेकिन इसमें बेचारे किसानों पर आफत आनी तय है। आखिर 9,749 हेक्टर क्षेत्र को मिलने वाला सिंचाई का पानी जब इंडिया बुल्स के पॉवर प्लांट को दिया जाएगा तो किसान बेचारे क्या करेंगे? करार करने से पूर्व सिंचाई विभाग को यह तय करना चाहिए था कि किसानों के हित पर किसी तरह का विपरीत प्रभाव न पड़े। सरकार ने भी अपनी नीति में स्पष्ट किया है कि पीने का पानी दिए जाने के बाद पहला हक किसानों का होता है और उनके खेतों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी दिए जाने के बाद उद्योगों को दिया जाएगा। मगर यहां तो सिंचाई विभाग सरकार की नीति को ही उलटता दिखाई दे रहा है। सरकार को इस पर अंकुश लगाना चाहिए, लेकिन यहां वह तमाशबीन बनी नजर आ रही है। अब इस करार का कारण राजनीति एवं नीतिगत जो भी हो, लेकिन यहां सबसे अधिक नुकसान किसानों को होने वाला है। यदि यह करार राजनीतिक बिसात पर किया गया है, तो बेचारे किसान राजनीतिक लड़ाई में पिस जाएंगे। इसके कारण नासिक में भी आने वाले समय पर यदि मावल और अमरावती जैसा उग्र किसान आंदोलन हो तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। इसलिए सरकार को नासिक को दूसरा मावल और अमरावती बनने से रोकने के लिए किसानों एवं कृषि के हितों की रक्षा के लिए स्वतः आगे आना चाहिए। विशेषकर मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार को किसानों की रक्षा राजनीति से ऊपर उठकर करनी चाहिए।
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