मात्र 10 महीने पहले उत्तराखंड में गंगा की दोनों मुख्य धाराओं भागीरथीगंगा की अस्सीगंगा घाटी और अलकनंदागंगा की केदारघाटी में अगस्त और सितंबर महीने 2012 में भयानक तबाही हुई। भगीरथीगंगा में 3 अगस्त 2012 को अस्सी गंगा नदी में बादल फटने के कारण निर्माणाधीन कल्दीगाड व अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत परियोजनाओं ने तबाही मचाई और भागीरथीगंगा में मनेरी भाली चरण दो के कारण बहुत नुकसान हुआ। उत्तराखंड में मानसून के आरंभ में ही जो नुकसान हुआ है उसमें बांधों की बड़ी भूमिका है। राज्य सरकार ने लगातार बांधों में हो रहे पर्यावरणीय मानकों की अनदेखी की है। जिसका परिणाम है कि इस आपदा में बांधों के कारण नुकसान की मात्रा काफी बढ़ी। राज्य सरकार भविष्य में यह गलती ना दोहराए और बांध कंपनियों को उनके दोषों की सजा मिले तभी उत्तराखंड का पर्यावरण और लोग सुरक्षित रह पाएंगे। हाल की बाढ़ में ये बांध असमय के बम साबित हुए हैं। टाईम बम का तो समय निश्चित होता है। किंतु इन बांधों का कोई समय नहीं होता तबाही लाने के लिए। 16-17 जून की रात को बद्रीनाथ जी के नीचे अलकनंदागंगा पर बना जेपी कंपनी का बांध, दरवाज़े ना खोलने के कारण टूटा फिर नदी ने बांध के नीचे के क्षेत्र में भयंकर तबाही मचाई। लामबगड़, विनायक चट्टी, पाण्डुकेश्वर, गोविन्दघाट, पिनोला घाट आदि गाँवों में मकानों, खेती, वन और गोविंद घाट के पुल के बहने से जो नुकसान हुआ उसका मुख्य कारण था समय रहते जयप्रकाश कम्पनी द्वारा विष्णुप्रयाग बांध के दरवाज़े ना खोलना।
विष्णुप्रयाग बांध से कभी ग्रामीणों की आवश्यकता के लिए पानी तक नहीं छोड़ा जाता था। 2012 के मानसून में इस परियोजना के कारण आई तबाही में लामबगड़ गांव के बाजार की दुकानें बह गईं थीं। जे.पी. कंपनी ने मुआवज़ा नहीं दिया। विष्णुप्रयाग बांध की सुरंग के ऊपर चांई व थैंग गांव 2007 में धंस गए जिसके लगभग 30 परिवार आज भी बिना पुर्नवास के भटक रहे हैं। इसी बांध के ऊपर जी.एम.आर. का अलकनंदा-बद्रीनाथ जविप (300 मेगावाट) प्रस्तावित है जिसके लिए वनभूमि का राज्य सरकार के वन विभाग ने 19 जुलाई तक हस्तांतरित नहीं किया था किंतु वन कटान का काम द्रुतगति से चालू हो गया था। वो पेड़ व मशीनरी अलकनंदागंगा में बहे। जिसने नीचे के क्षेत्र में तबाही लाने में बड़ी भूमिका अदा की।
इसी नदी में विष्णुप्रयाग बांध से लगभग 200 कि.मी. नीचे, भागीरथीगंगा और अलकनंदागंगा के संगम देवप्रयाग से 32 कि.मी. ऊपर श्रीनगर में लगभग बन चुकी श्रीनगर परियोजना जविप (330 मेगावाट) के मलबे की वजह से बड़ी तबाही हुई। श्रीनगर परियोजना बिना किसी तरह से पर्यावरण स्वीकृति को सुधारे या उसे बदलवाए 200 मेगावाट से 330 मेगावाट और बांध की ऊंचाई 65 से 95 मीटर कर दी गई। 1985 में 65 मी. बांध के साथ 200 मेगावाट की बांध स्वीकृति में तमाम ख़ामियाँ थी। अनेकों मुकदमे उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में इन्हीं विषयों पर चल रहा है। इन सब जगह उठाई गई आशंकाएं पूरी तरह से सिद्ध हुई जब इस बांध का पांच लाख टन मलबा जिसे बांध के ठीक नीचे बिना सुरक्षा दीवार बनाए डाला गया था, पानी के साथ बह कर 70 घरों आदि में घुस गई।
16-17 जून 2013 में ऊपर से आ रहे पानी से जलाशय का जलस्तर बढ़ने की परिस्थितियों का फायदा उठाकर श्रीनगर जल विद्युत परियोजना की निर्माणदायी कम्पनी जी.वी.के. के कुछ अधिकारियों द्वारा धारी देवी मंदिर को अपलिफ्ट करने का अपराधिक षडयंत्र रचा जो कि अगस्त 2013 में प्रस्तावित था। इस दौरान बांध के गेट जो पहले आधे खुले थे उनको पूरा बंद कर दिया गया जिससे कि बांध की झील का जलस्तर बढ़ गया। बाद में पानी से बांध पर दबाव बढ़ने लगा तो बांध को टूटने से बचाने के लिए जी.वी.के. कम्पनी के द्वारा आनन-फानन में नदी तट पर रहने वालों को बिना किसी चेतावनी के बांध के गेटों को लगभग 5 बजे पूरा खोल दिया गया जिससे जलाशय का पानी प्रबल वेग से नीचे की ओर बहा। जिसके कारण जी.वी.के. कम्पनी द्वारा नदी के तीन तटों पर डम्प की गई मक बही। इससे नदी की मारक क्षमता विनाशकारी बन गई। जिससे श्रीनगर शहर के शक्ति विहार, लोअर भक्तियाना, चौहान मोहल्ला, गैस गोदाम, खाद्यान्न गोदाम, एस.एस.बी, आई.टी.आई., रेशम फार्म, रोडवेज बस अड्डा, नर्सरी रोड, अलकेश्वर मंदिर, ग्राम सभा उफल्डा के फतेहपुर रेती, श्रीयंत्र टापू रिसोर्ट आदि स्थानों की सरकारी/अर्द्धसरकारी/व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक संपत्तियां बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुईं।
अलकनंदागंगा की सहयोगिनी मंदाकिनी में छोटी से लेकर बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं जैसे फाटा-ब्योंग और सिंगोली-भटवाड़ी का भी यही हाल हुआ। बांधों के निर्माण में प्रयुक्त विस्फोटकों, सुरंग और पहाड़ के अंदर बने विद्युतगृह व अन्य निर्माण कार्यों से निकला मलबा हाल की तबाही का बड़ा कारण बना। चूंकि इन सब कार्यों पर किसी भी तरह की कोई निगरानी का गंभीर प्रयास सरकार की ओर से नहीं हुआ। एक आकलन के अनुसार बांध परियोजनाओं 150 लाख घनमीटर मलबा नदियों में बहा है इस मलबे ने पानी की विनाशकारी शक्ति को बढ़ाया है। विष्णुप्रयाग और श्रीनगर इन दोनों ही परियोजनाओं से हुई बर्बादी के बाद बांध कंपनी के व्यवहार में एक समानता थी। जे.पी. और जी.वी.के. कंपनी के किसी भी कर्मचारी अधिकारी ने आकर लोगों का हाल नहीं पूछा। सरकारी अधिकारियों का भी यही रवैया था। यहां प्रभावित याचक और सरकार दानी बनी।
ज्ञातव्य है कि मात्र 10 महीने पहले उत्तराखंड में गंगा की दोनों मुख्य धाराओं भागीरथीगंगा की अस्सीगंगा घाटी और अलकनंदागंगा की केदारघाटी में अगस्त और सितंबर महीने 2012 में भयानक तबाही हुई। भगीरथीगंगा में 3 अगस्त 2012 को अस्सी गंगा नदी में बादल फटने के कारण निर्माणाधीन कल्दीगाड व अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत परियोजनाओं ने तबाही मचाई और भागीरथीगंगा में मनेरी भाली चरण दो के कारण बहुत नुकसान हुआ। अस्सीगंगा के गांव बुरी तरह से प्रभावित हुए, छोटे-छोटे रास्ते टूटे, अस्सीगंगा घाटी का पर्यावरण तबाह हुआ जिसकी भरपाई में कई दशक लगेंगे। जिसमें मारे गए मज़दूरों का कोई रिकार्ड भी नहीं मिला। मनेरी भाली चरण दो का जलाशय पहले ही भरा हुआ था और जब पीछे से पानी आया तो उत्तरकाशी में जोशियाड़ा और ज्ञानसू को जोड़ने वाला मुख्य बड़ा पुल बहा। बाद में अचानक से बांध के गेट खोले गए, तब नीचे की ओर हजारों क्यूसेक पानी अनेकों पैदल पुलों को अपने साथ बहा ले गए। मनेरी भाली चरण दो के जलाशय के बाईं तरफ जोशियाड़ा और दाई तरफ के ज्ञानसू क्षेत्र की सुरक्षा के लिए बनाई गई दीवारें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। ज्ञात हो कि तथाकथित सुरक्षा दिवारें, बांध का जलाशय भरने के बाद बनाई गई। इन दिवारों को बनवाने के लिए लोगों ने काफी संघर्ष किया था। दिवारें पूरी नहीं बन पाई थी। इस वर्ष की वर्षा में जोशियाड़ा का सैकड़ों मीटर लंबा और दसियों मीटर चौड़ा क्षेत्र भागीरथीगंगा में बह गया जिसका कारण काफी हद तक मनेरी भाली चरण दो का जलाशय ही है।
13 सितंबर 2012 को उखीमठ तहसील मुख्यालय के चार किमी के दायरे में एक साथ छः स्थानों पर बादल फटने की घटना से चारों तरफ तबाही मचा दी। यहां एशियाई विकास बैंक यानि एडीबी द्वारा पोषित कालीगंगा प्रथम, द्वितीय और मद्महेश्वर जलविद्युत परियोजनाएं बन रही हैं। इन परियोजनाओं के निर्माण कार्य के कारण ही अनेक गाँवों की स्थिति खराब हुई है। टिहरी बांध झील में अस्सीगंगा के टूटे बांधों का सारा मलबा जमा है। यह बहुप्रचारित रहा कि टिहरी बांध से बाढ़ रुकी जो पूर्णतया बांधों से हुए नुकसान को छिपाने की झूठी कोशिश है। वास्तव में बांध की झील को भरने के लिए 15 से 18 जून की तेज वर्षा से अब तक लगातार झील में पानी रोका गया। केंद्रीय जल आयोग के नियमों का पालन न करते हुए, बांधों को सही सिद्ध ठहराने के लिए की गई इस कोशिश का नतीज़ा यह है कि आज टिहरी बांध की झील में लगातार बढ़ता पानी देवप्रयाग-हरिद्वार-ऋषिकेश और अन्य मैदानी क्षेत्र में बाढ़ काला रहा है और बड़े बाढ़ का कारण बनने वाला है।
जो बांध टूटे हैं उन बांध कंपनियों की चिंता है कि कैसे बांधों की मरम्मत का काम शुरू किया जाए। वे भी सरकार से आपदा के तहत सैकड़ों करोड़ों रुपयों की मांग कर रही हैं। जबकि बांध कंपनियों ने सुरक्षा प्रबंधों की पूर्ण अनदेखी की है। बांधों के खिलाफ लगातार आंदोलन चले हैं। किंतु हर बार विकास विरोधी का तगमा देकर और कुछ लोगों को रोज़गार देकर विरोध को छल-बल से दबा दिया जाता रहा। आज वहां की बर्बादी पर ये सब ‘‘विकास” के समर्थक मौन हैं।
इसलिए अलकनंदा नदी पर बनी
1. विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना (330 मेगावाट),
2. श्रीनगर जलविद्युत परियोजना (330 मेगावाट), अस्सी गंगा पर निमार्णाधीन
3.. कल्दीगाड जलविद्युत परियोजना
4. अस्सी गंगा चरण एक
5. अस्सी गंगा चरण दो जलविद्युत परियोजना, भागीरथीगंगा पर बनी
6. मनेरी भाली चरण दो जलविद्युत परियोजना, कालीगंगा पर
7. कालीगंगा चरण प्रथम,
8. कालीगंगा चरण द्वितीय और मद्महेश्वर नदी पर
9. मद्महेश्वर जलविद्युत परियोजनाओ मंदाकिनी नदी पर 10. फाटा ब्योंग जलविद्युत परियोजना
11. सिंगोली भटवाड़ी जलविद्युत परियोजना की निर्माता कंपनियों पर उपरोक्त तबाही के लिए राज्य सरकार द्वारा आपराधिक मुकदमे कायम किए जाने ही चाहिये।
विष्णुप्रयाग बांध से कभी ग्रामीणों की आवश्यकता के लिए पानी तक नहीं छोड़ा जाता था। 2012 के मानसून में इस परियोजना के कारण आई तबाही में लामबगड़ गांव के बाजार की दुकानें बह गईं थीं। जे.पी. कंपनी ने मुआवज़ा नहीं दिया। विष्णुप्रयाग बांध की सुरंग के ऊपर चांई व थैंग गांव 2007 में धंस गए जिसके लगभग 30 परिवार आज भी बिना पुर्नवास के भटक रहे हैं। इसी बांध के ऊपर जी.एम.आर. का अलकनंदा-बद्रीनाथ जविप (300 मेगावाट) प्रस्तावित है जिसके लिए वनभूमि का राज्य सरकार के वन विभाग ने 19 जुलाई तक हस्तांतरित नहीं किया था किंतु वन कटान का काम द्रुतगति से चालू हो गया था। वो पेड़ व मशीनरी अलकनंदागंगा में बहे। जिसने नीचे के क्षेत्र में तबाही लाने में बड़ी भूमिका अदा की।
इसी नदी में विष्णुप्रयाग बांध से लगभग 200 कि.मी. नीचे, भागीरथीगंगा और अलकनंदागंगा के संगम देवप्रयाग से 32 कि.मी. ऊपर श्रीनगर में लगभग बन चुकी श्रीनगर परियोजना जविप (330 मेगावाट) के मलबे की वजह से बड़ी तबाही हुई। श्रीनगर परियोजना बिना किसी तरह से पर्यावरण स्वीकृति को सुधारे या उसे बदलवाए 200 मेगावाट से 330 मेगावाट और बांध की ऊंचाई 65 से 95 मीटर कर दी गई। 1985 में 65 मी. बांध के साथ 200 मेगावाट की बांध स्वीकृति में तमाम ख़ामियाँ थी। अनेकों मुकदमे उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में इन्हीं विषयों पर चल रहा है। इन सब जगह उठाई गई आशंकाएं पूरी तरह से सिद्ध हुई जब इस बांध का पांच लाख टन मलबा जिसे बांध के ठीक नीचे बिना सुरक्षा दीवार बनाए डाला गया था, पानी के साथ बह कर 70 घरों आदि में घुस गई।
16-17 जून 2013 में ऊपर से आ रहे पानी से जलाशय का जलस्तर बढ़ने की परिस्थितियों का फायदा उठाकर श्रीनगर जल विद्युत परियोजना की निर्माणदायी कम्पनी जी.वी.के. के कुछ अधिकारियों द्वारा धारी देवी मंदिर को अपलिफ्ट करने का अपराधिक षडयंत्र रचा जो कि अगस्त 2013 में प्रस्तावित था। इस दौरान बांध के गेट जो पहले आधे खुले थे उनको पूरा बंद कर दिया गया जिससे कि बांध की झील का जलस्तर बढ़ गया। बाद में पानी से बांध पर दबाव बढ़ने लगा तो बांध को टूटने से बचाने के लिए जी.वी.के. कम्पनी के द्वारा आनन-फानन में नदी तट पर रहने वालों को बिना किसी चेतावनी के बांध के गेटों को लगभग 5 बजे पूरा खोल दिया गया जिससे जलाशय का पानी प्रबल वेग से नीचे की ओर बहा। जिसके कारण जी.वी.के. कम्पनी द्वारा नदी के तीन तटों पर डम्प की गई मक बही। इससे नदी की मारक क्षमता विनाशकारी बन गई। जिससे श्रीनगर शहर के शक्ति विहार, लोअर भक्तियाना, चौहान मोहल्ला, गैस गोदाम, खाद्यान्न गोदाम, एस.एस.बी, आई.टी.आई., रेशम फार्म, रोडवेज बस अड्डा, नर्सरी रोड, अलकेश्वर मंदिर, ग्राम सभा उफल्डा के फतेहपुर रेती, श्रीयंत्र टापू रिसोर्ट आदि स्थानों की सरकारी/अर्द्धसरकारी/व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक संपत्तियां बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुईं।
अलकनंदागंगा की सहयोगिनी मंदाकिनी में छोटी से लेकर बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं जैसे फाटा-ब्योंग और सिंगोली-भटवाड़ी का भी यही हाल हुआ। बांधों के निर्माण में प्रयुक्त विस्फोटकों, सुरंग और पहाड़ के अंदर बने विद्युतगृह व अन्य निर्माण कार्यों से निकला मलबा हाल की तबाही का बड़ा कारण बना। चूंकि इन सब कार्यों पर किसी भी तरह की कोई निगरानी का गंभीर प्रयास सरकार की ओर से नहीं हुआ। एक आकलन के अनुसार बांध परियोजनाओं 150 लाख घनमीटर मलबा नदियों में बहा है इस मलबे ने पानी की विनाशकारी शक्ति को बढ़ाया है। विष्णुप्रयाग और श्रीनगर इन दोनों ही परियोजनाओं से हुई बर्बादी के बाद बांध कंपनी के व्यवहार में एक समानता थी। जे.पी. और जी.वी.के. कंपनी के किसी भी कर्मचारी अधिकारी ने आकर लोगों का हाल नहीं पूछा। सरकारी अधिकारियों का भी यही रवैया था। यहां प्रभावित याचक और सरकार दानी बनी।
ज्ञातव्य है कि मात्र 10 महीने पहले उत्तराखंड में गंगा की दोनों मुख्य धाराओं भागीरथीगंगा की अस्सीगंगा घाटी और अलकनंदागंगा की केदारघाटी में अगस्त और सितंबर महीने 2012 में भयानक तबाही हुई। भगीरथीगंगा में 3 अगस्त 2012 को अस्सी गंगा नदी में बादल फटने के कारण निर्माणाधीन कल्दीगाड व अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत परियोजनाओं ने तबाही मचाई और भागीरथीगंगा में मनेरी भाली चरण दो के कारण बहुत नुकसान हुआ। अस्सीगंगा के गांव बुरी तरह से प्रभावित हुए, छोटे-छोटे रास्ते टूटे, अस्सीगंगा घाटी का पर्यावरण तबाह हुआ जिसकी भरपाई में कई दशक लगेंगे। जिसमें मारे गए मज़दूरों का कोई रिकार्ड भी नहीं मिला। मनेरी भाली चरण दो का जलाशय पहले ही भरा हुआ था और जब पीछे से पानी आया तो उत्तरकाशी में जोशियाड़ा और ज्ञानसू को जोड़ने वाला मुख्य बड़ा पुल बहा। बाद में अचानक से बांध के गेट खोले गए, तब नीचे की ओर हजारों क्यूसेक पानी अनेकों पैदल पुलों को अपने साथ बहा ले गए। मनेरी भाली चरण दो के जलाशय के बाईं तरफ जोशियाड़ा और दाई तरफ के ज्ञानसू क्षेत्र की सुरक्षा के लिए बनाई गई दीवारें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। ज्ञात हो कि तथाकथित सुरक्षा दिवारें, बांध का जलाशय भरने के बाद बनाई गई। इन दिवारों को बनवाने के लिए लोगों ने काफी संघर्ष किया था। दिवारें पूरी नहीं बन पाई थी। इस वर्ष की वर्षा में जोशियाड़ा का सैकड़ों मीटर लंबा और दसियों मीटर चौड़ा क्षेत्र भागीरथीगंगा में बह गया जिसका कारण काफी हद तक मनेरी भाली चरण दो का जलाशय ही है।
13 सितंबर 2012 को उखीमठ तहसील मुख्यालय के चार किमी के दायरे में एक साथ छः स्थानों पर बादल फटने की घटना से चारों तरफ तबाही मचा दी। यहां एशियाई विकास बैंक यानि एडीबी द्वारा पोषित कालीगंगा प्रथम, द्वितीय और मद्महेश्वर जलविद्युत परियोजनाएं बन रही हैं। इन परियोजनाओं के निर्माण कार्य के कारण ही अनेक गाँवों की स्थिति खराब हुई है। टिहरी बांध झील में अस्सीगंगा के टूटे बांधों का सारा मलबा जमा है। यह बहुप्रचारित रहा कि टिहरी बांध से बाढ़ रुकी जो पूर्णतया बांधों से हुए नुकसान को छिपाने की झूठी कोशिश है। वास्तव में बांध की झील को भरने के लिए 15 से 18 जून की तेज वर्षा से अब तक लगातार झील में पानी रोका गया। केंद्रीय जल आयोग के नियमों का पालन न करते हुए, बांधों को सही सिद्ध ठहराने के लिए की गई इस कोशिश का नतीज़ा यह है कि आज टिहरी बांध की झील में लगातार बढ़ता पानी देवप्रयाग-हरिद्वार-ऋषिकेश और अन्य मैदानी क्षेत्र में बाढ़ काला रहा है और बड़े बाढ़ का कारण बनने वाला है।
जो बांध टूटे हैं उन बांध कंपनियों की चिंता है कि कैसे बांधों की मरम्मत का काम शुरू किया जाए। वे भी सरकार से आपदा के तहत सैकड़ों करोड़ों रुपयों की मांग कर रही हैं। जबकि बांध कंपनियों ने सुरक्षा प्रबंधों की पूर्ण अनदेखी की है। बांधों के खिलाफ लगातार आंदोलन चले हैं। किंतु हर बार विकास विरोधी का तगमा देकर और कुछ लोगों को रोज़गार देकर विरोध को छल-बल से दबा दिया जाता रहा। आज वहां की बर्बादी पर ये सब ‘‘विकास” के समर्थक मौन हैं।
इसलिए अलकनंदा नदी पर बनी
1. विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना (330 मेगावाट),
2. श्रीनगर जलविद्युत परियोजना (330 मेगावाट), अस्सी गंगा पर निमार्णाधीन
3.. कल्दीगाड जलविद्युत परियोजना
4. अस्सी गंगा चरण एक
5. अस्सी गंगा चरण दो जलविद्युत परियोजना, भागीरथीगंगा पर बनी
6. मनेरी भाली चरण दो जलविद्युत परियोजना, कालीगंगा पर
7. कालीगंगा चरण प्रथम,
8. कालीगंगा चरण द्वितीय और मद्महेश्वर नदी पर
9. मद्महेश्वर जलविद्युत परियोजनाओ मंदाकिनी नदी पर 10. फाटा ब्योंग जलविद्युत परियोजना
11. सिंगोली भटवाड़ी जलविद्युत परियोजना की निर्माता कंपनियों पर उपरोक्त तबाही के लिए राज्य सरकार द्वारा आपराधिक मुकदमे कायम किए जाने ही चाहिये।
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