अब देवसारी प्रोजेक्ट से गुस्सा

‘माँटू’ जनसंगठन और ‘भूस्वामी संघर्ष समिति’ का सवाल यह है कि जिस परियोजना की जनसुनवाई तीन साल में पूरी नहीं हो पाई, जिसमें दर्जनों गाँवों के 500 परिवार प्रभावित हो रहे हैं, उसे केवल 13 लोगों की सहमति के बाद ही अंतिम कैसे मान लिया गया ? परियोजना के प्रस्तावित जलाशय स्थल में लगातार आन्दोलन चल रहा है, लेकिन इस विरोध के स्वर केन्द्र सरकार तो दूर राज्य सरकार के कानों तक भी नहीं पहुँच रहे हैं।

गंगा की प्रमुख सहायक पिंडर नदी पर सतलुज जल विद्युत निगम द्वारा 1300 करोड़ रुपये की लागत से बनाई जा रही 252 मेगावाट की देवसारी जल विद्युत परियोजना से स्थानीय जनता गुस्से में है। पिंडर घाटी के लोग सड़कों पर उतर आए हैं। परियोजना के खिलाफ गठित ‘भू स्वामी संघर्ष समिति’ का कहना है निर्माण एजेंसी को न तो स्थानीय जनता के सवालों की चिंता है और न पर्यावरणीय पहलुओं की। भूकंपीय दृष्टि से जोन 4-5 में स्थित होने के बावजूद कंपनी फटाफट परियोजना का निर्माण चाहती है। स्थानीय जनता से ईमानदारी से बात करने के बजाए परियोजना के अधिकारी जन सुनवाइयों का दिखावा कर रहे हैं और स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर ग्रामीणों का उत्पीड़न कर रहे हैं। कंपनी द्वारा तैयार प्रभावों के आंकलन पर पर्यावरण मंत्रालय सवाल उठा चुका है। कंपनी न तो यह बताने की स्थिति में है कि बाँध की गहराई, ऊँचाई कितनी होगी और न यह कि इससे पर्यावरण पर क्या प्रभाव होगा। पिंडर गंगा की इकलौती ऐसी सहायक नदी बची है जिस पर फिलहाल कोई परियोजना नहीं बनी है। मंदाकिनी घाटी में बाँधों के कारण जनता को हो रहे कष्ट को देख चुके पिंडर घाटी के लोगों की मांग है कि राज्य की इस इकलौती नदी को अविरल रहने दिया जाए। देवसारी जल विद्युत परियोजना से पिंडर घाटी के 26 गाँव पूर्ण रूप से प्रभावित होंगे।

केन्द्र एवं हिमाचल सरकार के संयुक्त उपक्रम सतलुज जल विद्युत निगम द्वारा प्रस्तावित इस परियोजना की पर्यावरणीय जन सुनवाई स्थानीय जनता के विरोध के कारण तीन वर्ष में भी पूरी नहीं हो पाई है। पहली जन सुनवाई 13 अक्टूबर 2009 को कुलसारी में आयोजित की गई थी, जिसे ग्रामीणों के जोरदार विरोध के बाद स्थगित करना पड़ा था। 22 जुलाई 2010 को ब्लॉक मुख्यालय देवाल में आयोजित दूसरी जन सुनवाई का भी यही हस्र हुआ। फिर राज्य पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण बोर्ड द्वारा 20 जनवरी 2011 को देवाल ब्लॉक के चेपड़ों में आयोजित तीसरी जन सुनवाई में बड़ी संख्या में पुलिस बल को बुलाया गया। अपना पक्ष रखने पहुँचे स्थानीय लोगों को भी बैरीकेटिंग लगाकर जनसुनवाई स्थल तक जाने से रोका गया। केवल परियोजना समर्थकों को भीतर जाने दिया गया। इन जन सुनवाइयों का विरोध करने के कारण अब तक 11 ग्रामीणों के खिलाफ आईपीसी की धारा 232, 427, 435 व 504 के तहत मुकदमा दर्ज कराया गया है। जनसुनवाई बाधित करने और तोड़फोड़ के आरोप में 60 अज्ञात लोगों के खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज है।

परियोजना से सरकोट, सोडिंग, देवसारी, पूर्णा, देवालगाड़, थराली, पठानी, सिलोड़ी, पैनगढ़, चौपड़ू, कैल, तलार, गढ़कोट, चौरंगा और लौसरी गाँवों के लोग अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। आधा दर्जन गाँवों का वजूद इस परियोजना से समाप्त हो जाएगा। मगर इन हजारों लोगों की पीड़ा को अब तक सरकार समझ नहीं पाई है। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय से पर्यावरण क्लीयरेंस मिलने के बाद सतलुज निगम को निर्माण की जल्दी है, मगर दो दर्जन से अधिक गाँवों का क्या होगा, इसकी उसे चिन्ता नहीं है। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा स्वीकृत अंतिम पर्यावरण मूल्यांकन रिपोर्ट के मुताबिक इस बाँध के निर्माण में 223.36 हेक्टेयर भूमि खर्च होगी, इसका जल संग्रह क्षेत्र 11,138 वर्ग किमी तक फैला होगा और इससे 500 से अधिक परिवार प्रभावित होंगे।

पिंडर घाटी का यह समूचा मध्य हिमालयी क्षेत्र भूकंपीय दृष्टि से संवेदनशील है और सीस्मिक जोन 4-5 में आता है। जियोलॉजिक सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में माना गया है कि जिन क्षेत्रों में बड़े बाँध बनाए गए, वहाँ भूगर्भीय हलचल तेज होने के साथ ही भू कटाव और भू धँसाव की समस्या कई गुना बढ़ गई है। टिहरी बाँध बनने के बाद प्रतापनगर और भिलंगना के हजारों परिवार इस संकट को झेल रहे हैं, जहाँ 130 गाँवों में भूस्खलन और चट्टान खिसकने की समस्या बढ़ गई है। टिहरी बाँध से लगे क्षेत्रों में बादल फटने से बीते तीन सालों में 30 से अधिक लोगों की मौत हुई है। अब इसी तरह का डर पिंडर क्षेत्र के लोगों को भी घेर रहा है। 2010 में यहाँ के कई गाँव भूस्खलन की समस्या से प्रभावित रहे। देवसारी परियोजना के नंदकेसरी में बनने वाले मुख्य जलाशय की मुख्य टनल को पैनगाड़, सुनाऊ, देवलगाड़, सूना, थराली, कुन्नीपर्था, चौपड़ू, नंदकेसरी गाँवों के नीचे से गुजारा जाएगा। ऐसे में पानी के भारी दबाव से भूगर्भीय हलचल बढ़ने के साथ ही भूस्खलन भी तेज हो जाएगा। 2004 में सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के धारचूला में बनी धौलीगंगा जल विद्युत परियोजना के मुख्य टनल में हुए रिसाव के कारण स्याँकुरी गाँव के 18 परिवारों के घर, खेत-खलिहान पूरी तरह से जमींदोज हुए और दर्जनों घरों में दरारें पड़ गईं।

भारी पुलिस बल की मौजूदगी में सतलुज निगम प्रशासन और उत्तराखंड पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड द्वारा कराई गई तीसरी जन सुनवाई के आधार पर केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की पर्यावरण मूल्यांकन समिति ने परियोजना को पर्यावरणीय दृष्टि से हरी झंडी दिखा दी है। ‘माँटू’ जनसंगठन और ‘भूस्वामी संघर्ष समिति’ का सवाल यह है कि जिस परियोजना की जनसुनवाई तीन साल में पूरी नहीं हो पाई, जिसमें दर्जनों गाँवों के 500 परिवार प्रभावित हो रहे हैं, उसे केवल 13 लोगों की सहमति के बाद ही अंतिम कैसे मान लिया गया ? परियोजना के प्रस्तावित जलाशय स्थल में लगातार आन्दोलन चल रहा है, लेकिन इस विरोध के स्वर केन्द्र सरकार तो दूर राज्य सरकार के कानों तक भी नहीं पहुँच रहे हैं। वाहवाही लूटने के चक्कर में राज्य सरकार ने चुनाव से ठीक पहले नवम्बर माह में परियोजना निर्माण के लिये भूमि भी उपलब्ध करवा दी है। जबकि बीते साल उत्तराखण्ड की राज्यपाल मारग्रेट अल्वा ने परियोजना के प्रभावितों को आश्वासन दिया था कि वे खुद देवसारी आकर उनसे बात करेंगी।

देवसारी परियोजना से आस्था के प्राचीन केन्द्र भी संकट में पड़ गये हैं। अनेक प्राचीन मंदिरों के साथ ही पंचप्रयागों में एक प्रयाग, कर्णप्रयाग पर भी देवसारी परियोजना बनने के बाद संकट आयेगा। देवाल से पैठाणी तक पिण्डर नदी किनारे बसने वाले 200 परिवारों, जो मछली और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के लिए नदी पर निर्भर हैं, की आजीविका पर भी संकट होगा। नंदकेसरी से पैठाणी तक के सघन वन समाप्त हो जायेंगे। परियोजना की 17.9 किमी लंबी सुरंग के चलते कर्णप्रयाग तक पिंडर नदी सुरंग में कैद हो जाएगी। इस सुरंग से लगभग 20 किमी क्षेत्र में नदी जलविहीन होगी और इसका पारिस्थितिकी तंत्र बिखर जाएगा। 252 मेगावाट की यह परियोजना 35 मीटर रैम, 6.9 मीटर के व्यास की 17.9 किलोमीटर की सुरंग बनेगी।

देर-सबेर इस घाटी के लोगों को अपने घरों से बेघर होना ही है। नदी के उद्गम से लेकर कर्णप्रयाग तक लगभग 70 किमी के क्षेत्र में 24 जल विद्युत परियोजनायें निमार्णाधीन व प्रस्तावित हैं। पिंडर के उद्गम से लेकर कर्णप्रयाग तक पड़ने वाले 1 दर्जन छोटे- बड़े गाड गदेरों पर इन परियोजनाओं का निर्माण किया जाना है। इस प्रकार औसत 3 किमी की दूरी पर एक परियोजना का निर्माण किया जा रहा है। इस क्षेत्र में 24 परियोजनाओं से लगभग 300 मेगावाट बिजली निर्माण की योजना है। इन तमाम परियोजनाओं के कारण लगभग 30 किमी लम्बी सुरंगें भी इन पहाड़ों में बनाई जाएँगी।

विधानसभा चुनाव के दौरान भी क्षेत्र में देवसारी परियोजना के विरोध का मुद्दा हावी रहा। माटू जनसंगठन और भूस्वामी संघर्ष समिति ने बाँध के विरोध में लोगों के बीच अभियान चलाने के साथ ही पर्चे भी बाँटे। राजनीतिक दल पहली बार विकास के लिए बाँधों के बनाये जाने को जरूरी बताने से कतराते रहे। परियोजना विरोधी अभियान पर चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों ने अपनी सहमति व्यक्त की। माकपा तो पहले ही खुलकर इस बाँध के विरोध में सामने आ चुकी है।

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