अब भी वक्त है संभल जाओ

पानी नहीं होना एक बड़ी चिंता है। गंदा पानी होना उससे भी बड़ी। यह सच है कि हम दूसरे ग्रहों पर पानी की खोजों को अंजाम दे रहे हैं, पर दूसरा बड़ा सच यह है कि हम अपने पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने की कोशिशों में नाकामयाब हो रहे हैं। अब यहीं देखिए। लगभग पांच सौ साल पुरानी झील में शहर के 27 नालों का हजारों लीटर गंदा पानी रोज मिल रहा है। इसके बावजूद हम पूरे शहर में केवल चार ऑक्सिडेंट लगाकार प्रकृति बचाने की ताल ठोंक रहे हैं। वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट के नाम पर पूरे देश में तो हालात खराब हैं ही, मप्र में इसकी स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है। उस पर भी मप्र की राजधानी भोपाल जो अपनी हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य को लेकर बेहद इठलाती है उसकी हालत सबसे ज्यादा खराब है। केन्द्रीय प्रदूषण निवारण बोर्ड के वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट की हालिया जारी रिपोर्ट पर यदि अब भी सबक नहीं लिया गया तो शेष सुरक्षित प्रकृति पर भी संकट और गहरा जाने की आशंका हर दिन बढ़ती जाएगी।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पूरे देश में वेस्ट वाटर या गंदे पानी को लेकर जो रिपोर्ट जारी की है उसके नतीजे चैंकाने वाले हैं। यह बोर्ड की वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट पर चैथी रिपोर्ट है। इसमें 498 प्रथम श्रेणी के शहर, 410 द्वितीय श्रेणी के शहर, 53 समुद्र तटीय प्रथम श्रेणी के शहर और 35 द्वितीय श्रेणी के शहरों को शामिल किया गया है। श्रेणी एक और श्रेणी दो को मिलाकर पूरे देश में 38,254 मिलियन लीटर प्रति दिन सीवेज उत्पादन हो रहा है इसमें से केवल 11 हजार 787 मिलियन लीटर प्रति दिन गंदे पानी का उपचार अब तक की स्थिति में उपचारित किया जा रहा है। यानी कुल गंदे पानी का केवल पैंतीस फीसदी हिस्सा ही बेहतर तरीके से दोबारा नदी-नालों या जमीन में जाकर मिल रहा है। शेष 65 प्रतिशत सीवेज हमारे दूसरे प्राकृतिक संसाधनों को जाकर उन्हें प्रभावित करने की प्रक्रिया में शामिल है। मौजूदा दौर में पीने का साफ पानी की उपलब्धता एक बड़ा मुद्दा है। यह बेहद सामान्य जानकारी है कि दूषित पेयजल कई बीमारियों का मुख्य कारक है लेकिन 78 प्रतिशत शहरी आबादी के पास ही स्वच्छ पेयजल तक पहुंच हैं और केवल 38 प्रतिशत आबादी के पास सेनिटेशन सुविधाएं मौजूद हैं। महाराष्ट्र में देश की सबसे अच्छी वाटर सप्लाई व्यवस्था है और यहां हर दिन 12 हजार 482 मिलियन लीटर प्रति दिन वाटर सीवेज किया जा रहा है। यह प्रथम श्रेणी शहरों की का 27 प्रतिशत है। प्रति व्यक्ति पानी सप्लाई के नजिरए से चंडीगढ़ बेहतर स्थिति में है और यहां हर दिन 540 एमएलडी पानी सप्लाई किया जा रहा है।

सीवेज और सेनिटेशन के इन आंकड़ो से साफ जाहिर होता है कि देश के ज्यादातर राज्यों में सीवेज को लेकर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जा रहा है। मौजूदा ढांचों को विस्तार देने की जरूरत तो है ही, जितने पम्पिंग स्टेशन या ऐसे शोधन संयत्र है उनको दुरूस्त करना भी बेहद जरूरी है। सीपीसीबी की रिपोर्ट भी मौजूदा पम्पिंग स्टेशनों पर सवालिया निशान खड़ा कती है। इसके मुताबिक देश के 39 प्रतिशत प्लांट पर्यावरण सुरक्षा के मानकों पर खरे नहीं उतर रहे।

एक अच्छी बात यह नजर आती है कि देश की राजधानी दिल्ली में गंदे पानी के नियोजन को लेकर बेहतर व्यवस्थाएं पाई गई हैं और यहां 2330 एमएलडी सीवेज ट्रीटमेंट की व्यवस्थाएं है। यह महानगरीय श्रेणी में कुल ट्रीटमेंट का 30 प्रतिशत है। दिल्ली जैसे व्यस्त शहरों की व्यवस्थाएं हमें आशा की एक किरण जगाते हैं लेकिन जब दिल्ली में यह क्षमताएं स्थापित की जा सकी हैं तो दूसरे शहर इससे महरूम क्यों है। इसके बाद मुंबई शहर का नंबर आता है जहां कि 2130 एमएलडी पानी का उपचार हो रहा है। यह कुल ट्रीटमेंट का 26 प्रतिशत है।

यानी दिल्ली और मुंबई अपनी श्रेणी में आधे से ज्यादा सीवेज का उपचार कर रहे है। इससे जाहिर होता है कि देश के दूसरे शहरों की हालत अधिक खराब है।

दरअसल प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण बचाने को लेकर अब हम ऐसे निर्णायक दौर में पहुंच गए हैं जहां कि एक बेहद निर्णायक लड़ाई की जरूरत महसूस होती है। हां अभी अंधेरा पूरी तरह नहीं छाया है, लेकिन कुहांसा घना है और इस बीच की स्थिति से निकलने के लिए बड़े पैमाने पर लोगों को आगे आने की जरूरत है।

लेकसिटी है फिसड्डी
देश में झीलों, पहाड़ियों और हरियाली का शहर कहलाने वाला भोपाल सीवेज ट्रीटमेंट के मामले में सबसे फिसड्डी है। समय के साथ शहर का आकार बेहद तेज गति से बढ़ रहा है, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इस शहर से हर दिन निकलने वाले सीवेज के केवल छह फीसदी हिस्से को ही यहां उपचारित किए जाने की क्षमता है। गंभीर बात यह भी है कि देश की 35 मेट्रो सिटीज में भोपाल का नंबर सबसे पीछे है।

भोपाल शहर पानी के मामले में समृद्ध माना जाता रहा है। यह जरूर है कि पिछले कुछ दशकों में यहां स्थितियां बदली हैं। राजा भोज द्वारा बनाई गई बड़ी झील, छोटा तालाब सहित कोई एक दर्जन छोटे-बड़े तालाब इस शहर में मौजूद हैं। बड़ी झील पर तो करोड़ों रूपए खर्च करके भोज वेटलैंड परियोजना के माध्यम से काम करवाए गए, लेकिन इन करोड़ों रूपयों के बावजूद शहर में सीवेज ट्रीटमेंट की दिशा में कोई उल्लेखनीय काम नहीं करवाए जा सके हैं। भोपाल शहर में हर दिन 334.75 मिलियन लीटर पर डे सीवेज निकलता है, लेकिन इसमें से केवल 22 एमएलडी सीवेज का ही ट्रीटमेंट किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि भोपाल में हर दिन 417 मिलियन लीटर प्रति दिन पानी की सप्लाई की जाती है। भोपाल शहर के लोग सीवेज जेनरेट करने के मामले प्रदेश के पच्चीस शहरों में सबसे आगे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भोपाल में 178 लीटर सीवेज प्रति व्यक्ति प्रतिदिन सीवेज निकल रहा है। भोपाल के साथ ही इंदौर की स्थिति भी कोई संतोषजनक नहीं कही जा सकती, यहां केवल 38 प्रतिशत सीवेज को ही उपचारित करने की क्षमता है। यदि 35 मेट्रो सिटी का औसत देखें तो यह 51 प्रतिशत है। इस दृष्टि से मप्र के शहर अन्य राज्यों की तुलना में बेहद पिछड़े नजर आते हैं। यदि मप्र की स्थिति पर नजर डाली जाए तो यहां भी हालत बेहद खराब है। मप्र में हर दिन 1248 एमएलडी सीवेज निकल रहा है और इसमें से केवल 186 एमएलडी को ही उपचारित किए जाने की क्षमता मौजूद है। इस तरह से केवल 14 प्रतिशत सीवेज को ही प्रदेश में ट्रीटमेंट किया जा रहा है। निश्चित तौर पर यह आंकड़ा असंतोषजनक है और इस दिशा में व्यापक इंतजाम किए जाने की आवश्यकता है।

सीवेज जेनरेशन एवं ट्रीटमेंट की राज्यों में स्थिति

क्रमांक

राज्य

अध्ययन में शामिल शहरों की संख्या

सीवेज उत्पादन एमएलडी

सीवेज उपचार क्षमता एमएलडी

1

आंध्रप्रदेश

47

1760

654

2

गुजरात

28

1680

782

3

मध्यप्रदेश

25

1248

186

4

राजस्थान

24

1382

54

5

महाराष्ट्र

50

9986

4225

6

उत्तरप्रदेश

61

3506

1240



सीवेज जेनरेशन एवं स्थिति

 

कुल प्रथम श्रेणी शहर

498

35,558

11,553

 

कुल द्वितीय श्रेणी शहर

410

2696

233

 

कुल

908

38254

11787



सीपीसीबी की हालिया जारी रिपोर्ट के मुताबिक लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विकास और जनसरोकार के मुद्दों में रूचि।

पताः विकास संवाद, ई-226, धन्वंतरि कॉम्पलेक्स के सामने, अरेरा कॉलोनी, भोपालसंपर्क 9977958934 0755-4252789

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