अब बारिश बिना भी लहलहाएंगी फसलें

पूसा संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों ने अब एक ऐसी तकनीक इजाद की है जिसके जरिए बिना पानी के ही फसलें उगाई जाएंगी। यह तकनीक उन राज्यों के लिए ज्यादा मुफीद है जहां पानी की कमी है।

फसल और बारिश एक-दूसरे के प्रयाय हैं। अगर बारिश नहीं हो तो खेती-बाड़ी की कल्पना नहीं की जा सकती। खेतों में अच्छी फसलें उगें, इसके लिए भारत के किसान इंद्र देवता की अराधना करते हैं पर उन्हें ऐसा कुछ भी नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि विज्ञान ने इस समस्या का समाधान खोज लिया है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के वैज्ञानिकों ने हाइड्रोजल नामक पॉलीमर विकसित किया है। पॉलीमर ग्रेन्यूल अपने वजन से करीब 400 गुना ज्यादा तक जमीन से पानी सोख लेगा। पॉलीमर बीजनुमा दाने की तरह होते हैं।

इस तकनीक के सहारे अब कम पानी वाले इलाकों में भी बहुत आसानी से खेती की जा सकती है। खेती की बुआई के वक्त पॉलीमर के ग्रेन्यूल बीजों के आसपास डाल दिए जाएंगे। जैसे-जैसे फसल बढ़ती जाएगी, ग्रेन्यूल भी अपनी जगह और पकड़ मजबूत करते जाएंगे। जब फसल की सिंचाई की जाएगी तब ये ग्रेन्यूल फसलों की जड़ों में हमेशा नमी उत्पन्न करते रहेंगे। यानी अगर बाद में फसलों की अन्य तरीके से सिंचाई न भी हो, तो भी वे फसल में जरूरत के अनुसार पानी डिस्चार्ज करते रहेंगे। यह तकनीक उन राज्यों के लिए वरदान साबित होगी जहां पानी की मात्रा न के बराबर है। उन जगहों पर ग्रेन्यूल के जरिए किसान अपने खेतों में खेती-बाड़ी करने का सपना अब पूरा कर सकेंगे।

संस्थान के कृषि वैज्ञानिक डॉ. बी.एस. परमार बताते हैं कि एक एकड़ फसल के लिए महज कुछ ही हाइड्रोजल के ग्रेन्यूल पर्याप्त होंगे। इस तकनीक का सफल परीक्षण किया जा चुका है। पानी की बचत के साथ-साथ हाइड्रोजल के अब तक विभिन्न रूपों में सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। पहला प्रयोग गेहूं की फसल में किया गया है जिसमें बालियां एवं दानें दोनों का आकार सामान्य खेती से कहीं अच्छा रहा है। पॉलीमर का कोई भी नकारात्मक परिणाम अभी तक सामने नहीं आया है।

हाइड्रोजल उन कृषि राज्यों के लिए तो उपयोगी है ही जहां फसलों की सिंचाई के लिए आमतौर पर बारिश पर निर्भर रहना पड़ता था, साथ ही जिन राज्यों में सिंचाई के साधन अपेक्षाकृत सीमित हैं, वहां भी इसकी उपयोगिता स्वतः ही अब बढ़ जाएगी।

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