अब बारी आपकी


यों हमारा देश बहुत ही छोटा-सा है पर आपको जान कर बड़ा अचरज होगा कि यह एकमात्र ऐसा देश है, जो दुनिया के चारों कोने में स्थित है! भला कैसे? हम उत्तरी गोलार्द्ध में हैं, हम दक्षिणी गोलार्द्ध में हैं और हमारा एक भाग अन्तरराष्ट्रीय समय रेखा के पूरब में है, तो एक अन्य भाग पश्चिम में। हो गये न चार कोने दुनिया के। हमारा देश समुद्र से बस कुल दो मीटर ऊपर है। हमारी इस धरती पर कहीं तीन छोटे-से बिन्दु हैं। इन्हीं तीन द्वीप समूहों से बना है हमारा देश किरिबाती। आज किरिबाती का किस्सा मैं आपको इसलिये सुना रहा हूँ कि शायद आप हमारे इस छोटे-से देश पर कुछ ध्यान दे पाएँ। अब तक तो हमने यह किस्सा प्रायः उन लोगों को सुनाया है, जो अब किसी भी बात पर ध्यान नहीं दे पाते।

तो ये तीन बिन्दु हैं- पश्चिम में गिल्बर्ट द्वीप है, फोनिक्स है बीच में और पूरब में है लाइन द्वीप। यों हमारा देश बहुत ही छोटा-सा है पर आपको जान कर बड़ा अचरज होगा कि यह एकमात्र ऐसा देश है, जो दुनिया के चारों कोने में स्थित है! भला कैसे? हम उत्तरी गोलार्द्ध में हैं, हम दक्षिणी गोलार्द्ध में हैं और हमारा एक भाग अन्तरराष्ट्रीय समय रेखा के पूरब में है, तो एक अन्य भाग पश्चिम में। हो गये न चार कोने दुनिया के। हमारा देश समुद्र से बस कुल दो मीटर ऊपर है। और हमारे देश की चौड़ाई है बस दो किलोमीटर। कई बार जब हम अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी बात रखते हैं, अपने तट के डूब जाने की जानकारी देते हैं तो हमें सलाह मिलती है कि आपको तट से थोड़ा पीछे हट जाना चाहिये। अरे भाई तट से पीछे हटेंगे तो दूसरी तरफ भी तो तट ही है। इस किनारे डूबें या उस किनारे। ये सब बाते हैं, जिन्हें समझाना बहुत कठिन है बड़े देशों को।

हमारे देश पर यह खतरा तो बहुत पहले से मँडराने लगा था। मैं सन 2003 में यहाँ इस पद पर आया। तब से मैं बराबर संयुक्त राष्ट्र संघ में बदलते मौसम की बात करता रहा हूँ। लेकिन तब लोग इस विषय को लेकर उतने गम्भीर नहीं थे। बहुत-से राजनेता, खासकर बड़े देशों के राजनेता तो यही कहते रहे कि इस बदलाव के पीछे प्रकृति का हाथ है, हमारी कोई गलती नहीं है। हमारी जीवन शैली की, हमारे विकास के तौर-तरीकों की कोई कमी नहीं है। इन्हें कुछ वैज्ञानिकों का भी पूरा समर्थन मिला था तब। यह भी बहस थी कि यह मुद्दा ही नहीं है। ऐसा कोई खतरा दुनिया पर नहीं है।

लेकिन फिर सन 2007 में वैज्ञानिकों के एक प्रसिद्ध संगठन ने आधिकारिक रूप से यह बात अपनी रिपोर्ट में बताई कि सचमुच ऐसा हो रहा है। इसमें विकास की इस झूठी दौड़ का हाथ है और इस सबका परिणाम हमारे जैसे देशों पर तो बहुत ही भयानक पड़ेगा। तब तो हम भी बहुत सजग हो गये। कुछ लोग मानते हैं कि मौसम का यह बदलाव अभी तो दूर की बात है। पर हमारे लिये तो यह आज की, अभी की बात है। बात भी नहीं, अभी का खतरा है। हमारे अस्तित्व का प्रश्न है। हमारा देश तो डूबने वाले देशों, देशों के हिस्सों की सूची में एकदम पहले नम्बर पर है। हमारे देश के ऐसे कुछ निचले हिस्सों में रहने वाली आबादी को तो हमें अभी से हटा कर कहीं और बसाना पड़ा है।

यदि विस्थापन ही एकमात्र हल है पूरे देश के लिये तो वह एकाएक न हो, क्रमशः हो। लोगों को मौका मिले अपना सब कुछ समेट कर किसी दूसरी जगह जाने का। फिर जहाँ हमें जाना है, वहाँ का वातावरण, वहाँ के लोग, वहाँ की संस्कृति वैसी नहीं होगी, जैसी यहाँ है, तो उन्हें नई जगह में ठीक से जमने के लिये भी कुछ समय तो मिलना ही चाहिये। हमारी संसद में हर बार देश के विभिन्न स्थानों पर आ रहे संकट की आवाज सुनाई देती है। गाँवों से माँग उठती है कि समुद्र एकदम सामने खड़ा है। हमारे यहाँ एक दीवार बनवा दें। या ऐसी भी खबरें आती हैं कि हमारे मीठे पानी के स्रोत में अब समुद्र की खारी लहरें आने लगी हैं। या फिर हमारे उपजाऊ खेत खारे पानी में डूब रहे हैं। हम इस सब का क्या हल खोज पाएँगे, हमें तो कुछ सूझ नहीं रहा।

यह भी जान लें कि हमारा यह देश ठीक भूमध्यरेखा पर स्थित है। यह एक ऐसी विशिष्ट भौगोलिक परिस्थिति है जहाँ हवा नहीं चलती, तूफान नहीं आते। भूमध्य रेखा से तो तूफान उठते हैं, बनते हैं और फिर हम उन्हें उत्तर या दक्षिण में जाते देखते हैं पर इस वर्ष एक तूफान उठा और पलट कर वह हमारे देश में आ गया। भारी तबाही मचाई उसने। हमारा बनाउतू नामक द्वीप तो उसने तहस-नहस ही कर दिया था। फिर ऐसे ही अन्य तूफान ने दक्षिण छोर के द्वीप तूवाली को डुबो दिया था। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। हमारे देश में यह एकदम नया डरावना अनुभव है।

मैं ये सब बातें जगह-जगह सुना ही रहा हूँ। हर साल मुझे अपने देश के राष्ट्रपति की हैसियत से न जाने कहाँ-कहाँ, कितने ही देशों में, संयुक्त राष्ट्रसंघ की सभाओं में, कार्यक्रमों में जाना पड़ता है। मैं तो सब जगह बस यही बात बताता हूँ। इस अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से हम अपील कर रहे हैं कि हमारे देश के बारे में कुछ सोचिये, समय रहते सोचिये। यदि कोई हल नहीं निकला तो हम तो डूब ही जाएँगे एक दिन। वह ‘एक दिन’ आने से पहले हमें कुछ और भी तैयारी करनी पड़ेगी। एकाएक भगदड़ में हम अपना पूरा देश उठाकर कहाँ ले जाएँगे भला। तो अभी से सोचना होगा हमें कि विस्थापन की ऐसी घड़ी आ ही जाय तो हम क्या करेंगे। हमारे हाथ में कोई-न-कोई सोची-समझी योजना तो होनी चाहिये न। इसलिये हम अभी से सोच रहे हैं कि यदि विस्थापन ही एकमात्र हल है पूरे देश के लिये तो वह एकाएक न हो, क्रमशः हो। लोगों को मौका मिले अपना सब कुछ समेट कर किसी दूसरी जगह जाने का। फिर जहाँ हमें जाना है, वहाँ का वातावरण, वहाँ के लोग, वहाँ की संस्कृति वैसी नहीं होगी, जैसी यहाँ है, तो उन्हें नई जगह में ठीक से जमने के लिये भी कुछ समय तो मिलना ही चाहिये।

यह है हमारी इच्छा, हमारा सपना। कोई नहीं चाहता अपना घर छोड़ना। एक देश के राष्ट्रपति के नाते मैं कैसे बनाऊँ ऐसी योजना जिसमें सभी नागरिकों को, पूरे देश को अपना घर छोड़ना पड़े? प्रशांत महासागर के देशों का एक संघ है। हम भी उसके सदस्य है। इसमें आॅस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे बड़े-बड़े देश भी हैं। इस संघ की सभा में इन बड़े देशों ने बताया था कि वे अपने विकास में अब और कोई कटौती नहीं कर सकते। इतनी गाड़ियाँ, इतने उद्योग, इतने बिजलीघर तो उन्हें चलाने ही हैं अपने नागरिकों के कल्याण के लिये। तब मैंने कहा था कि आपके नागरिकों का यह कल्याण हमारे पूरे नागरिकों को, पूरे देश को ही डुबो देगा।

कुछ तो सोचिये हमारे बारे में भी। आपके ये उद्योग हमारी पूरी दुनिया डुबो देंगे। विश्व समुदाय से जिस संयम की हम बात करते हैं, वह संयम हमने खुद पर भी उतारा है। हमारे देश की आमदनी का एक बड़ा भाग मछली उद्योग होना स्वाभाविक ही है- हम चारों तरफ से पानी से घिरे जो हैं। हमारे यहाँ न तो कहने लायक खेती है, न उद्योग और न पशु-पालन। ले दे के बस प्रकृति की ओर से हमें यहाँ मछली ही तो मिली है। आज दुनिया का 30 प्रतिशत टूना मछली का भण्डार हमारे ही पास बचा है। हमारे पास धुआँ नहीं है, जिसकी हम कटौती करें। पर हमने सोचा कि हम विकास के लालच में अपना मछली भण्डार क्यों गँवा दें। इस तरह आज हम पूरा संयम रख रहे हैं इसके उपयोग पर। इस कदम से हमारी राष्ट्रीय आमदनी में भी भारी गिरावट आयेगी। पर हम उसे सह लेंगे। हम विश्व समुदाय को बताना चाहते हैं कि हमने तो अपना कर्तव्य निभाया है। अब बारी आपकी है।

लेखक किरिबाती नामक देश के राष्ट्रपति हैं।

‘टेड टाॅक्स’ में दिये गये उनके भाषण का हिन्दी रूपांतर अनुपम मिश्र

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