अब 2जी स्पेक्ट्रम की तरह बंटेगा पानी

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अब पानी या तो सरकार के हाथ में है या धीरे-धीरे सरकार उसे अपनी पसंद की कंपनियों को 2जी स्पेक्ट्रम की तरह सौंपती चली जाएगी। इसके नतीजे दूसरे देशों में भी भयानक रहे हैं और हम भी उससे बच नहीं पाएंगे।

कुछ बातें सचमुच बार-बार कहनी पड़ती हैं। हर साल इन्ही दिनों में पानी का संकट लगभग गांव से लेकर शहर और राजधानी को भी अपनी चपेट में ले लेता है। हम सब इसकी चिंता करते हैं, लेकिन चेत नहीं पाते, कुछ कर नहीं पाते। इसे प्रकृति की उदारता ही कहिए कि दो-तीन महीने तड़पाने के बाद वह पानी गिरा ही देती है। कहीं-कहीं तो इतना अधिक कि पानी की कमी वाले इलाके बाढ़ में डूब जाते हैं।

इसलिए कुछ बातें बार-बार कहनी पड़ेंगी। इनमें नयापन खोजने की कोशिश न करें। प्रकृति ने पानी गिराने के लिए कोई नई तकनीक या नया फैशन नहीं अपनाया है। हजारों-हजार साल से गर्मी पड़ती है, भाप उड़ती है, बादल बनते हैं और बरसात होती है। हमें अपने हिस्से में गिरने वाले पानी को रोकना चाहिए और अगली बरसात तक उसको संजोने की कोशिश करना चाहिए। वर्षा के मामले में हमारा देश सचमुच कन्याकुमारी से कश्मीर तक अमीर है। जहां कहीं कम पानी गिरता है, वहां के लोगों ने कम पानी पर ही अपना जीवन खड़ा किया, लेकिन नए विकास ने प्रकृति पर आधारित पद्धति तोड़ने को ही प्रगति माना है। इसलिए पानी की कमी के जिन इलाकों में ज्वार, बाजरा, मक्का जैसी कम प्यास वाली फसलें पैदा की जाती थीं, वहां आज गेहूं, धान, गन्ना और कपास लेने का चलन फैल चुका है। इसीलिए हम पाते हैं कि देश के संपन्न राज्यों में ही सबसे ज्यादा किसानों की आत्महत्या हुई है। इसमें पानी की कमी नहीं, पानी की बर्बादी कारण है।

इस बर्बादी को संभालने का नया तरीका अब हमारी सरकारों को कुछ इस तरह सूझ रहा है कि पानी को निजी हाथों में सौंप दो। इससे पहले सरकार ने पानी का राष्ट्रीयकरण करके भी देख लिया है। हालांकि एक तीसरा तरीका था, जिसमें पानी को समाज ने न राज्य को सौंपा था न बाजार को, उसे अपने हाथों में रखकर ममत्व के साथ संभाला था। अंग्रेज जब हमारे देश में आए, तब करीब 20 लाख तालाब थे, छोटों की तो गिनती ही छोड़ दीजिए। इन सबको लोगों ने सैकड़ों सालों से बनाया, संजोया, और बरसने वाले पानी के अनुसार अपने जीवन को भी संभाला था। लेकिन आज सरकार उस पद्धति को भूल चुकी है। अब पानी या तो सरकार के हाथ में है या धीरे-धीरे सरकार उसे अपनी पसंद की कंपनियों को 2जी स्पेक्ट्रम की तरह सौंपती चली जाएगी। इसके नतीजे दूसरे देशों में भी भयानक रहे हैं और हम भी उससे बच नहीं पाएंगे। कम से कम इस गर्मी में हमें चेतना चाहिए और पानी की कुछ ऐसी चिंता करनी चाहिए कि प्रकृति को अपनी उदारता भी दिखानी पड़े, तो वह खुशी-खुशी दिखाए।

शाहनवाज मलिक से बातचीत पर आधारित

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