75 लाख वर्ष पुराने वृक्ष का जीवाश्म मिला

नैनीताल (एजेंसी) उत्तराखंड को शिवालिक पर्वत श्रृंखला में वैज्ञानिकों ने 75 लाख वर्ष पुराने अवसादी चट्टान से घिरे एक वृक्ष के जीवाश्म का पता लगाया है, जिनके अध्ययन से जलवायु परिवर्तन के रुझान का सटीक विश्लेषण किया जा सकेगा और उसके आधार पर भविष्य में होने वाले परिवर्तन का संकेत भी प्राप्त किया जा सकेगा ।

यू.जी.सी. के वेज्ञानिकों ने नैनीताल से 20 किमी. दूर रानीबाग में दूर प्राचीन चट्टान एवं वृक्ष के जीवाश्म का पता लगाया


विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के एक वैज्ञानिक दल ने हाल ही में नैनीताल से 20 किलो मीटर दूर रानीबाग में इस प्राचीन चट्टान एवं वृक्ष जीवाश्म का पता लगाया है। आयोग के वैज्ञानिक एवं दल के वरिष्ट सदस्य पी.बी.एस. कोटलिया ने बुधवार को बताया कि इस क्षेत्र में पहली बार इतना प्राचीन जीवाश्म मिला है। उन्होंने कहा,जीवाश्म तथा चट्टान के अध्ययन से इन 75 लाख वर्षों में हुए जलवायु परिवर्तन की स्थिति स्पष्ट होगी और भविष्य में होने वाले संभावित परिवर्तन की जानकारी मिल सकेगी । उन्होंने बताया,इन संकेतो के अनुरूप पौधे लगाकर अधिकतम उपज ली जा सकेगी अतः कृषि, बागवानी तथा वन क्षेत्र के लिये यह उपलब्धि अंतराष्ट्रीय महत्व की समझी जा रही है।

इस जीवाश्म के अध्ययन से जलवायु परिवर्तन के रूझान का सटीक विश्लेषण किया जा सकेगा


प्रो. कोटलिया ने बताया,वैज्ञानिक दल ने रानीबाग़ में प्राचीन वृक्ष के अवशेष को देखकर उसके चारो तरफ खुदाई शुरू कराई गई तो वहाँ उसे यह चट्टान मिली। भूमिगत प्राचीन चट्टान की आयु का निर्धरण करने के अंतराष्ट्रीय स्तर पर मान्य यंत्र मैगिनेट फील्ड स्केल ने इसकी आयु करीब पचहत्तर लाख वर्ष होने का संकेत दिया है। चूँकि चट्टान पहले से ही मौजूद जीवाश्म के चारो ओर निर्मित हुई है। अतःजीवाश्म चट्टान से भी ज्यादा प्राचीन यानि पचहतर लाख वर्ष से भी अधिक पुरानी है। प्रोफेसर कोटलिया ने बताया, कि यह वृक्ष चीड़ की कोनी फर प्रजाति का है। जीवाश्म का अध्ययन करके यह पता लगाया जायेगा कि वह प्राचीन पेड़ वर्तमान चीड़ के वृक्षों से कितना भिन्न है। इस तुलनात्मक अध्ययन से जलवायु परिवर्तन का वनस्पति पर पड़ने वाले प्रभाव का पता चलेगा।

उन्होंने कहा, चट्टान के अध्ययन से इस बात का भी पता चलेगा कि इन लाखों वर्षो में जलवायु परिवर्तन का रूझान कैसा रहा । प्रोफेसर कोटलया ने बताया, अवसादी चट्टानों पर प्रत्येक वर्ष पानी के साथ रहकर आने वाले चूने की परत जमा होती है। इन पर्तों की मोटाई तथा बनावट के आधार पर इस बात का पता लगाया जाता है कि अमुख वर्ष का तापमान तथा वर्षा की मात्रा कितनी रही। उन्होंने स्पष्ट किया कि अत्याधुनिक वैज्ञानिक विधियों तथा परिष्कृत उपकरणों की सहायता से लाखों वर्षो के जलवायु परिवर्तन का विश्लेष्ण करना आज के वैज्ञानिक युग में कठिन नहीं है।

संकलनकर्ता
नीलम श्रीवास्तवा,महोबा

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Post By: pankajbagwan
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