26 दिसम्बर 2004 की विनाशकारी सिन्धुतरंगे : सुनामी


जब भी पृथ्वी पर ठोस चट्टानें अपने स्थान से अचानक हटती हैं या टूटती हैं तो पृथ्वी में कम्पन होता है, पृथ्वी की सतह पर इन कम्पन तरंगों का संचरण भूकम्प या भूचाल कहलाता है, पृथ्वी पर इन कम्पनों का मुख्य कारण महाद्वीपों या समुद्र तल की ठोस चट्टानों का अचानक भ्रंशतलों पर धँसना या खिसकना है जो महाद्वीपों की जमीन पर भूचाल या समुद्र में सुनामी (सिन्धुतंरगें) उत्पन्न करते हैं और ऐसे भूचालों को टैक्टोनिक भूचाल कहते हैं।

यह कम्पन पृथ्वी और समुद्र में केवल अचानक ठोस चट्टानों के टूटने से ही नहीं होते परन्तु रेल गाड़ियों के चलने, भूस्खलन टैंकों के चलने, हिमनद के टूटने एवं हिमखण्डों के टकराने से ज्वालामुखी के फटने, आणविक विस्फोट व उल्का पिण्डों के समुद्र में गिरने से भी होते हैं। लेकिन विनाशकारी भूकम्प व सुनामी केवल अधिकतर पृथ्वी में भ्रंशतल के साथ भ्रंशन के कारण होते हैं जो पृथ्वी पर महाविनाश का तांडव करते हैं।

आइये हम पहले जानें कि सुनामी (सिंधुतंरगे) क्या होती हैं और इसके बाद 26 दिसम्बर, 2004 को क्या हुआ था।

Fig-1

सुनामी क्या है?


सुनामी जिसको कि सु-ना-मी करके उच्चारण किया जाता है एक दैत्याकार तरंगों का रेला या तंरगों की श्रृंखला है जो समुद्र के पानी के अंदर हुये अचानक बदलाव को दर्शाती है जब जलराशि अचानक ऊपर से नीचे की ओर खिसकती है। लेकिन सबसे विनाशकारी सुनामी तब उत्पन्न होती है जब एक भ्रंशतल या खाई के साथ पृथ्वी की पर्पटी धँसती है और इसके कारण समुद्र के किनारे पर विनाशलीला दिखाई पड़ती है।

सुनामी वास्तव में एक जापानी शब्द है जिसका अर्थ है बन्दरगाह पर टकराने वाली तरंगें। ‘सु’ का मतलब है बन्दरगाह एवं ‘नामी’ का मतलब है तरंग। यह तरंगें ज्वार भाटा से अलग है। ज्वार भाटा चन्द्रमा, सूर्य व अन्य तारों की गुरुत्वाकर्षण के कारण आता है। इसी प्रकार यह तरंगें हमेशा भूचाल के कारण नहीं आती हैं और इनको भूचाल जनित समुद्री तरंग नहीं कहा जा सकता है। वास्तव में यह अकल्पित वेग से दौड़ती उमड़ती दैत्याकार जल धाराएँ हैं जो महाविनाशक होती है।

सुनामी (सिन्धुतरेंगे) व समुद्र की सामान्य तरंगें में अन्तर


सुनामी हवा से जन्मी जल तरंगों से अलग है। हवा के द्वारा बनी लहरों की तरंग दैर्ध्य 150 मी. से. कम होती है तथा हवा के द्वारा बनी एक लहर के बाद दूसरी लहर की पुनरावृत्ति का समय 10 सैकण्ड के लगभग होता है। जबकि सुनामी की तरंग दैर्ध्य 10 किमी से अधिक व पुनरावृत्ति का समय लगभग एक घण्टा होता है इस लम्बी तरंग दैर्ध्य के कारण से सुनामी की लहरों के तरंग दैर्ध्य की ऊँचाई कम ऊर्जा व बहुत अधिक गति से चलती है। सुनामी में खुले समुद्र में पानी की लहर कम ऊँची उथली इसलिये होती हैं क्योंकि पानी की गहराई व इसकी तंरगों की लम्बाई का अनुपात कम होता है। फिर इन कम ऊँचाई वाली तरंगों की गति निर्भर करती है : घनत्व व तरंग दैर्ध्य पर जोकि प्रशांत महासागर में 200 से 700 किमी घण्टा हो सकती है। सुनामी अपनी शक्ति की तरंग दैर्ध्य के विपरीत होती है अर्थात सुनामी बहुत तीव्र गति से चलती है व काफी दूरी भी पार करती है समुद्र से जमीन के काफी अन्दर तक, लेकिन इनकी शक्ति का ह्रास एक महासागर से दूसरे महासागर तक भी नहीं होता।

सुनामी जो उनकी तरंगों का एक अपनी तरह मुड़ना है वह पानी का प्रभाव उनकी उच्चतम (शिखर) व निचले हिस्से को पानी की सतह में यानी की गहराई में अन्तर के कारण है एक खुले समुद्र में यह ऊँचाई 1 मीटर हो सकती है पर यही 60 मीटर ऊँची हो सकती है यदि समुद्र का किनारा संकरा, उथला या खाड़ी का हिस्सा है। भूचाल द्वारा व दूसरे कारणों से जनित सुनामी में काफी अन्तर है भूचाल से बनी सुनामी में लहरें जल राशि की उथल-पुथल से उत्पन्न होती हैं। जिसका कारण समुद्र की तलहटी सतह का उठना या धँसना है जोकि विवर्तनिक भूचाल के कारण है। जबकि समुद्री भूस्खलन हिमनदों या हिमनद के टूटने ज्वालामुखी का फटना उल्का पिण्ड या विस्फोट के द्वारा जलराशि की उथल-पुथल चट्टानों या अवसादों के दुबारा फैलने से होता है। जलराशि कुछ में ऊपर से विचलित होती है व कुछ में नीचे की शक्ति के कारण से लेकिन यह एक सर्वभौमिक सत्य है कि टैक्टोनिक भूचाल से बनी सुनामी ही अधिक विध्वंसक होती है क्योंकि यह अधिक शक्तिशाली होती है व अन्य कारणों से जनित सुनामी इतनी शक्तिशाली नहीं होती है क्योंकि उनकी शक्ति जल्दी ही क्षीण हो जाती है आर वह समुद्र के किनारे विध्वंस नहीं कर सकती है।

Fig-2विवर्तनिक भूचाल ही अधिक समुद्र की जलराशि को इसकी स्थिर दशा से गुरुत्व के कारण अस्थिर कर सकता है हाँलाकि इस तरह के भूचाल अधिकतर पट्ट विवर्तनिकी के कारण से प्लेटों की भ्रंशोष्ट खाड़ियों में प्लेटों की सीमाओं पर ऊपर समान्तर या नीचे खिसकने से ही होते हैं यह स्थिति पृथ्वी पर अस्थिरता की दशा को उत्पन्न कर बड़े-बड़े सुनामियों को उत्पन्न करती है।

सुनामी व जमीन का सामना


जब भी सुनामी अपने जन्म स्थान खुले समुुद्र से जमीन की ओर उथले जलमग्न स्थान की ओर पहुँचती है तो काफी बदलाव सुनामी में आते हैं सबसे पहले इसकी रफ्तार कम होती है क्योंकि पानी उथला है पर इसकी शक्ति में कोई खास अधिक कमी नहीं आती है बल्कि इसकी तरंग ऊँचाई बढ़ जाती है इसी कारण से जो सुनामी खुले समुद्र में महसूस भी नहीं होती है वह समुद्र किनारे एक महाप्रलयकारी रूप धारण करती है और दैत्याकार लहरों जैसी दिखाई देती है वह किनारे पर आकर जमीन से टकराती है जब यह सुनामी समुद्र के किनारे जमीन से टकराती है तो इसकी शक्ति में ह्रास होता है क्योंकि कुछ शक्ति टकराकर वापस जाती है और कुछ जो जमीन की ओर बाकी बची लहरें जो जमीन पर पहुँच जाती हैं, समुद्र के किनारे व उसके पास जमीन के अंदर काफी महाविनाश करती है जैसा कि 26 दिसम्बर 2004 को हुआ।

सुनामी के द्वारा समुद्र के किनारे से अवसाद टूटी फूटी चट्टानों के भण्डार वृक्ष व पेड़ पौधों का विनाश करके अपने साथ होकर समुद्र के गर्त में ले जाती है इसके साथ-साथ यह सुनामी जमीन के भीतर के पानी को नमकीन कर देती है जो न खेती और न पीने के लिये उपयोगी होता है। भवनों व दूसरी इमारतों को तहस नहस करने के साथ-साथ प्राणियों का विनाश भी होता है तथा बचे लोगों को पुनर्वास की समस्या उत्पन्न हो जाती है जमीन का काफी हिस्सा समुद्र निगल जाता है व भूआकृति बदल जाती है सुनामी की दैत्याकार लहरें सामान्यत: 30 मीटर से 60 मीटर तक ऊँची हो सकती हैं।

अत: सुनामी (सिन्धु तरंगे) के बारे में कुछ जानने के बाद हम अब 26 दिसम्बर 2004 की सुनामी के बारे में जिक्र करते हैं।

26 दिसम्बर 2004 की सुनामी-समुद्री भूचाल का परिचय


भारतवर्ष के परिप्रेक्ष्य में सुनामी उतनी अधिक मात्रा में नहीं है जैसे कि जापान अलास्का व प्रशांत क्षेत्रों में है हाँलाकि यह नहीं कह सकते हैं कि कभी हमारे देश में ऐसा नहीं हुआ है। हमारा विचार है कि भगवान कृष्ण की द्वारका कलयुग के प्रारम्भ में लगभग 5,000 साल पहले सुनामी के कारण आए सागर में दब गई थी व इसी प्रकार दक्षिण भारत में चोला राज्य की राजधानी 1000 साल पहले इसी प्रकार सुनामी के कारण हिन्द महासागर में काल की ग्रास बन गई थी। 26 दिसम्बर, 2004 को आये भूचाल जनित सुनामी ने कई देशों के साथ-साथ भारत के पूर्वी तट पर बहुत अधिक तबाही मचाई थी इस सुनामी के कुछ पहलू इस प्रकार हैं।

भूकम्प का अभिकेन्द्र


इस भूचाल का अभिकेन्द्र सिमीजलेइ द्वीप में भूकम्प व ज्वालामुखी की चापाकार में इंडोनेशिया देश के उत्तरी-पश्चिमी प्रांत सुमात्रा में था जो वादा अंक से 257 किमी उत्तर पश्चिमी (सुमात्रा प्रांत), 990 किमी दक्षिण पूर्व में पोर्ट ब्लेयर (अंडमान सागर) से दूर था। तथा 1806 किमी पूर्वी दक्षिण पूर्व कोलम्बो (श्रीलंका) सब 2028 किमी दक्षिण पूर्व में चेन्नई (भारत) से था इस भूचाल ने 40 साल के इतिहास में सबसे शक्तिशाली सुनामी उत्पन्न की और जिसके कारण मानव इतिहास में सबसे अधिक 3 लाख इन्सानों की मृत्यु हुई।

भूकम्प के दूसरे विवरण


अक्षांश (3.3 डिग्री उत्तर) देशांन्तर (95.8 डिग्री पूर्व) उत्पत्ति समय (6.28 सुबह, भारतीय समय व 0.58 अंतरिक्ष) तीव्रता 9.0 रिक्टर पैमाने पर उद्गम की सतह गहराई (30 किमी) जबकि पहले 10-15 किमी बताई गई थी भूचाल की अवधि (210 सेकेंड तीन भ्रासन की अवस्था में = 60, 60 व 30 सेकेंड की) सुनामी की तरंग की ऊँचाई (20 मीटर, कुछ लोगों का कहना है कि 30-40 मीटर ऊँचाई है) सीधी खड़ी सरकन (15 - 20 मीटर सुण्डा खाई के साथ 1000 किमी से ज्यादा लम्बाई में) भ्रंशन की दिशा (उत्तर पश्चिम - दक्षिण पूर्व दिशा में 8 डिग्री उत्तर पूर्व की ओर)।

Fig-3

सुनामी की विनाश लीला


3,00,000 से अधिक व्यक्तियों की अकाल मृत्यु व लाखों डॉलर के बराबर सम्पत्ति का नुकसान, हजारों व्यक्ति घायल व 20 लाख से अधिक लोगों की पुनर्वास की समस्या उत्पन्न हुई। इस सुनामी ने दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में भारी तबाही मचा दी। इस सुनामी में जो देश प्रभावित हुये हैं उनमें भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश, थाईलैण्ड, बर्मा, इंडोनेशिया (सबसे अधिक दो/लाख की मृत्यु) मलेशिया है पर इस सुनामी का कहर मालद्वीप, मेडागास्कर व अफ्रीका महाद्वीप का पूर्वी तट पर भी हुआ (चित्र - 1) सबसे अधिक तबाही बांदा अरब (सुमात्रा - इंडोनेशिया) में हुई या फिर थाईलैंड (फुकेट में) भारत में विनाश का अधिकतर असर तमिलनाडु के कडलीट स्थान से विजयनगरम (आंध्रप्रदेश) के स्थान तक देखा गया (चित्र - 2) भारत के सुदूर दक्षिण में विवेकानन्द मेमोरियल (केरल) तक व केरल के अन्य अंदरूनी क्षेत्रों में भी क्षति हुई व वायुसेना का अण्डमान स्टेशन निकोवार द्वीप समुह तबाह हो गये तथा 100 से ज्यादा लोग मारे गये यदि हमारे पास आगाह करने वाले यंत्र होते तो जनहानि को कुछ कम किया जा सकता था यह जनहानि इतनी न होती क्योंकि भूचाल से उत्पन्न हुई सुनामी को भारतीय क्षेत्रों में आने में कम से कम 2-3 घण्टें लगे, इस सुनामी ने अपनी विनाशलीला अफ्रीका के सोमालिया से पोर्ट ऐलिजाबेथ तक व हिन्द महासागर मालद्वीप व मेडागास्कर में भी दिखाई, हम कह सकते हैं कि संसार का हर देश इससे प्रभावित हुआ।

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सुनामी के दूरगामी परिणाम


26 दिसम्बर, 2004 को आये विनाशकारी भूचाल के दूरगामी परिणाम सामने आये हैं व पूर्ण अन्वेषण के बाद और ज्यादा परिणाम सामने आयेंगे इससे उत्पन्न सुनामी के कारण प्रभावित स्थलों की भू-आकृति ही बदल गई है व जैव सम्पदा पर भी काफी असर पड़ा है काफी मात्रा में तटों से अवसादों व अन्य सामान के समुद्र की खाड़ियों में जाकर इकट्ठे होने से प्रवाल भीत्तियों को नुकसान पहुँचाया है। अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में कुछ द्वीपों के निचले क्षेत्र तो जलमग्न हो गये और कुछ द्वीपों में तो 1 से 1/2 मी. तक पानी भर गया तथा कहीं पर समुद्र तटों के काफी नजदीक आ गया, बंगाल की खाड़ी में स्थित इंदिरा प्वाइंट का अस्तिव्त ही समाप्त हो गया है। पानी में डूबने के साथ 1.5 मीटर दक्षिण पूर्व की ओर खिसक गया है तथा जीपीएस के द्वारा पाया गया है कि भारतीय तट 1.5 मीटर समान्तर उत्तरपूर्व की ओर खिसक गये हैं, हालाँकि सागर कन्या व सागर सम्पदा नामक समुद्र विकाश विभाग के जहाज अभी भी अन्वेषण में लगे हुये हैं पर उनकी प्रारम्भिक जाँच यह सिद्ध करती है कि काफी दूरगामी परिणाम इस सुनामी से हुये हैं अमेरिका में नासा संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की भू-आकृति में अवश्य बदलाव आये हैं जैसे कि पृथ्वी कुछ सेन्टीमीटर (2.5 सेमी) उत्तर की ओर खिसक गई है (145 डिग्री. ई अक्षांश पर) उसके भू-मध्य क्षेत्र में उथल होना पाया गया है इसके साथ ही दिन की अवधि 2.66 माइक्रो सेकेंड घट गई है।

अर्थात पृथ्वी की घूमने की गति बढ़ गई है जैसा कि पहले बताया गया है कि भारतीय पर्पटी 15 से 20 मीटर बर्मा - सुन्डा पर्पटी के नीचे चली गई है (सुन्डा खाई के नीचे चित्र -3) इस सुनामी के बाद संयुक्त अरब अमीरात में बर्फ का गिरना एक ओर मौसम में बदलाव बतलाता है और इस क्षेत्र में अभी भी काफी भूकम्प के झटके आ रहे हैं अस्थितरता दर्शाते हैं समाचार पत्र व टेलीविजन ने तो वैरन द्वीप समूह में (बंगाल की खाड़ी में) ज्वालामुखी फटने के चित्र तक दिखाये जोकि एक उम्मीद है क्योंकि यह द्वीप समूह सुन्‍डा खाड़ी के ऊपर है (चित्र - 2 और - 3)

26 दिसम्बर की सुनामी का कारण


पृथ्वी की घटनाओं को पट्ट विवर्तनिकी से ज्यादा अच्छी तरह से समझा जा सकता है हमारी पृथ्वी एक दर्जन से अधिक ठोस पट्टों से बनी हुई है यह 70-75 किमी मोटाई के पट्टे हैं जो महाद्वीपों व सागरीय तल बनाते हैं यह पट्ट एक दूसरे के विपरीत व साथ लगातार 5-10 सेमी प्रत्येक साल की गति से गतिमान हैं कभी दो पट्ट एक दूसरे से मिलते हैं तो कभी एक दूसरे से दूर हो जाते हैं कभी वह केवल एक दूसरे से समानांनतर मिलते हैं, चिपक जाते हैं और कभी एक पट्ट दूसरे के नीचे धँस जाते हैं हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि पृथ्वी में ज्वालामुखी अधिकतर खाड़ियों से जुड़े हैं अर्थात जब एक पट्ट दूसरे के नीचे धँसता है तो पृथ्वी के अन्दर से लावा के रूप में ज्वालामुखी से द्रव निकलता है अर्थात अगर एक जगह पट्ट का ह्रास हो रहा है तो दूसरी जगह सृजन भी होता है। ज्वालामुखी व भूकम्प स्थल एक दूसरे के साथ-साथ समुद्री खाईयों से जुड़े हैं।

हम जानते हैं कि भारतीय पट्ट 5 सेमी प्रतिवर्ष की दर से उत्तर की ओर गति कर रहा है और इस क्षेत्र में 6.1 सेमी प्रतिवर्ष की दर सुंडा की ओर उत्तर पूर्व दिशा में गतिशील है यहाँ पर भारतीय पट्ट सुंडा खाई के साथ 15-20 मीटर नीचे धँसता चला गया है जोकि 100 किमी से अधिक लम्बी है। जिसके कारण 9.0 शक्ति का भूचाल आया और महाविनाशकारी सुनामी।

सुनामी से बचाव के उपाय/सुझाव


यह अटूट सत्य है कि हमारी सरकार सुनामी जैसे आपदा का सामना करने के लिये बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। अपितु अमेरिका व अन्य संस्थाओं ने एक विनाशकारी भूचाल की घोषणा सुमात्रा में सुबह 6.30 बजे ही कर दी थी। अगर हम ध्यान देते तो जान-माल का कुछ विनाश कम किया जा सकता था अब हमारे यह सुझाव हैं :-

1. भारत को विश्व के सुनामी से बचाव व सूचना देने वाली संस्थानों के साथ हाथ मिलाना चाहिये जिससे आपातकाल में लोगों की सुरक्षा की जा सके। हमें समुद्र तल में सेंसर लगाने चाहिये जिससे हमें भूचाल व सुनामी तरंगों का पता चल सके।

2. सागर तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव के पेड़ अत्यधिक मात्रा में लगाने चाहिये जिससे जमीन का कटाव रुकेगा।

3. सुनामी की घोषणा की दशा में लोगों को ऊँचे स्थानों की ओर जाना चाहिये जैसा कि अण्डमान निकोबार की जनजातियों ने किया था।

4. पक्की ऊँची इमारतों से सबसे ऊँची छत पर रहना चाहिये जब तक सुनामी की खत्म होने की घोषणा नहीं की जाती है तब तक निचले स्थानों पर नहीं आना चाहिये।

5. सुनामी आने से पहले समुद्र का पानी अचानक किनारे से हटता है ऐसी स्थिति में समुद्र में वे समुद्र से लगे नदी, तालाबों में न जायें।

6. समुद्र के अन्दर के टीले, टापुओं पर न शरण लें वह कभी भी टूट सकते हैं व डूब सकते हैं।

7. यदि नाव या जहाज पर हों तो खुले समुद्र में जायें और जब तक सुनामी खत्म न हो वापस न आयें।

8. जब बन्दरगाह पर आयें तो ध्यान रखें कि बन्दरगाह का जलमार्ग सुनामी के कारण उथला तो नहीं हो गया है। इस प्रकार हमें विपत्तियों से समझौता करके रहना सीखना होगा।

सम्पर्क


राजेन्द्र सिंह रावत व नरेश कुमार जुयाल
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून



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