लेखक - हिमांशु भट्ट। इंसान को धरती पर सबसे बुद्धिमान जीव माना जाता है। जिसने विभिन्न आविष्कार कर जीवन की जटिलताओं को सुगम बनाया है और विज्ञान को अकल्पनीय ऊंचाईयों तक पहुंचाया है, लेकिन इस बुद्धिमानी का उपयोग इंसान शायद पर्यावरण संरक्षण और जल संरक्षण के लिए नहीं कर पाया। इसी कारण जीवन का आधार कहा जाने वाला जल देश के विभिन्न हिस्सों में पीने योग्य नहीं रह गया है। देश में 17 प्रतिशत जल स्रोत भयावह रूप प्रदूषित हैं। गंगा जैसी पवित्रतम नदी के जल में भी विष प्रवाहमान है। यमुना सहित देश की सैंकड़ों नदियां या तो सूख गई हैं, या नाले में तब्दील हो चुकी हैं। प्रदूषण के कारण जमीन के अंदर का जल भी स्वच्छ नहीं रहा। कुएं, तालाब, पोखर, बावड़ी, नौले धारे तो मानो इतिहास के पन्नों में दर्ज होते जा रहे हैं। ऐसे में देश को जल संकट से उभारना चुनौती बना हुआ है।
हाल ही में केंद्रीय जल आयोग ने नदियों के किनारे बने स्टेशन की जल गुणवत्ता का अध्ययन किया। अध्ययन में 414 स्टेशनों से जल के सैंपल लिए गए। सैंपलों की जांच के बाद सामने आया कि 168 स्थानों पर आयरन की मात्रा अधिक होने के कारा पानी पीने योग्य नहीं है। वहीं पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश के 17 प्रतिशत जल स्रोत गंभीर रूप से प्रदूषित हो चुके हैं, जिनमें 38 नदियां, 27 झीलें, 3 तालाब और 18 टैंक शामिल हैं। जल स्रोतों के प्रदूषित होने का मुख्य कारण सीवेज है। दरअसल देश में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट मांग के अनुरूप काफी कम हैं। साथ ही इन प्लांटों की क्षमता भी काफी कम है, जिस कारण सीवेज का करीब 37 प्रतिशत हिस्से का ही शोधन हो पाता है और 62 प्रतिशत सीवरेज सीधे नदियों और अन्य जल स्त्रोतों में बहा दिया जाता है। इसका असर नदियों के साथ ही भूजल और खेती पर भी पड़ रहा है।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आंकड़ों पर नजर डाले तो जम्मू और कश्मीर में झेलम नदी, हिमाचल प्रदेश में गिरि, सुखना, उत्तराखंड में भल्ला, ढेला, पंजाब में घग्गर, सतलुज, हरियाणा में घग्गर, दिल्ली में युमना, उत्तर प्रदेश में हिंडन, काली (पश्चिम), कालिंदी (पूर्व), बिहार में सिकराना, मेघालय में उमखाह, नागालैंड में धनसीरी, पश्चिम बंगाल में दामोदर, मध्य प्रदेश में बेतवा, गौर, खान और नर्मदा, महाराष्ट्र में मिठी, पातालगंगा, तेलंगाना में मूसी, कर्नाटक में भीमा, तमिलनाडु में कावेरी, साराबंगा, तिरुमनीमूथर, वशिष्ट, केरल में चित्रापुजा, पेरियार, पंवा, नीलेश्वरम, कारानामा, कोरायार, थिरूर नदियां अधिक प्रदूषित हैं। तो वहीं दमन, दीव और दादरा नगर हवेली में दमन गंगा और गुजरात में भादर, खारी तथा साबरमती नदी अधिक प्रदूषित हैं। जलस्त्रोतों की बात करें तो हिमाचल प्रदेश में खजियार, असम में एलंगावील, तेलंगाना में फाॅक्स सागर, लक्ष्मीनारायण, मिरालम, नूर मुहम्मद कुंटा, सरूरनगर, असानी, कुंटा, साई चिरूवू, चिन्ना वड्डेपल्ली, गांधीगुडूम, काजीपल्ली, किस्तारेड्डी, मल्लापुर, प्रेमाजीपेट, कर्नाटक में अराकेरे, वेलांदूर, दालावाई, हेव्वल, हुलीमावू, करीहोवनाहल्ली, मुलभागल, पुट्टेनाहल्ली, शेट्टीकेरे, सिंगासंदरा, सोमासुद्रापल्या, उल्सूर, येदीयूर, येनेहोल, आइनाकेरे, वीन्नीगानाहल्ली, ढोरेकेरे, हेरेकेरे, माडावारा, मावेनाकेरे, मेलेकोटे, पावागाड़ा, शिवपुरा, उत्तराहल्ली, डोराइकेरे, वीरापुरा, वेंगइनाकेरे, केरल में कामयकुला कायल, कोडुनगल्लूर, परावूर, पुन्नामदा कायल, वेंवानाड, वेंवानाडु, गुजरात में मूंसर, छत्तीसगढ़ में हितकासा टेलिंग जलाशय सबसे अधिक प्रदूषित हैं। हालाकि देश के अन्य जलस्त्रोत और नदियां भी प्रदूषित हैं, जिससे जल संकट गहरा रहा है। देश की आधी से ज्यादा आबादी को साफी पानी नहीं मिल रहा है। जिससे दिन प्रतिदिन जल की समस्या गहराती जाती है। इसलिए ये समय सभी को एक साथ मिलकर जीवन के आधार जल के संरक्षण के लिए कार्य करने की आवश्यकता है।
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