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Meta Description
Agriculture, an important sector of our economy accounts for 14 per cent of the nation’s GDP and about 11 per cent of its exports. India has the second largest arable land base (159.7 million hectares) after US and largest gross irrigated area (88 milion hectares) in the world. Rice, wheat, cotton, oilseeds, jute, tea, sugarcane, milk and potatoes are the major agricultural commodities produced. More importantly, over 60 per cent of the country’s population, comprising several million small farming households, depends on agriculture as a principal income source and land continues to be the main asset for livelihood security. 
Meta Keywords
Flowers, trees
Featured Articles
May 22, 2024 Bridging the gender divide in Participatory Irrigation Management
Woman member of water user association is giving fish feed to a community pond in West Midnapore in West Bengal (Image: Tanmoy Bhaduri/IWMI)
May 18, 2024 A case study of women-led climate resilient farming by Swayam Shikshan Prayog
Building the resilience of women farmers (Image: ICRISAT, Flcikr Commons)
April 7, 2024 Advancements in smart irrigation: IoT integration for sustainable agriculture
Enhancing efficiency through sprinkler irrigation (Image: Rawpixel; CC0 License)
April 4, 2024 Tackling India's water crisis: A blueprint for agricultural water efficiency
Women working in the field in India (Image: IWMI Flickr/Hamish John Appleby; CC BY-NC-ND 2.0 DEED)
April 1, 2024 Decoding the problems and solutions related to stubble burning
Burning of rice residues after harvest, to quickly prepare the land for wheat planting, around Sangrur, Punjab (Image: 2011CIAT/NeilPalmer; CC BY-SA 2.0 DEED)
January 3, 2024 How has the shifting focus on rural electrification affected groundwater irrigation and agriculture in India? A study explores.
Rural electrification can affect irrigation practices. Image for representation purposes only. (Image Source: IWP Flickr photos)
ऊसर भूमि के विकास के लिए करें मेड़बंदी
Posted on 03 Sep, 2008 08:43 PM

किसान भाई ऊसर भूमि को उपजाऊ बना कर फसल लें इसके लिए ऊसर सुधार की जैविक विधि अपनायें इसमें धान का पुवाल गोबर की खाद वर्मी कंपोस्ट का उपयोग करें इससे ऊसर भूमि में उर्वरा शक्ति पैदा होती है और फसल की बुआई कर कृषक उत्पादन कालाभ ले सकते हैं। ऊसर भूमि वह भूमि होती है, जिसका पी.एच. 8.5 से अधिक होता है। विनिमयशील सोडियम की मात्रा 15 प्रतिशत से ज्यादा होती है। परन्तु कभी-कभी ई.सी. भी 4.

ऊसर भूमि के लिए मेड़बंदी तकनीक
कृषि जलप्रबंधन और वर्षाजल प्रबंधन क्यों
Posted on 03 Sep, 2008 11:21 AM

भारतवर्ष के ज्यादातर हिस्सों में वार्षिक वर्षाजल (Annual Rainfall) का लगभग 70-80 प्रतिशत भाग मानसून के तीन महीनों में प्राप्त होता है तथा बाकी के नौ महीनों में सिर्फ लगभग 20-30 प्रतिशत ही वर्षा होती है। इस विषम वर्षाजल वितरण (Rainfall distribution) कि वजह से जहां मानसून में वर्षाजल का अधिकांश भाग अपवाह (Runoff) के रूप में नदी नालों में बहकर बेकार चला जाता है और मृदा अपरदन एवं बाढ़ जैसी समस्याओ क

चंडीगढ़ क्षेत्र में (1958-2001) औसत मासिक वर्षा
कृषि जलप्रबंधन से आई सुखोमाजरी में खुशहाली
Posted on 03 Sep, 2008 09:10 AM

चंडीगढ़ से उत्तर-पूर्व दिशा में सड़क के रास्ते से लगभग 30 किमी की दूरी पर, हरियाणा के पंचकूला जिले में, शिवालिक की निचली पहाड़ियों में स्थित लगभग 100 परिवारों की छोटी सी बस्ती है - सुखोमाजरी, जिसमें प्रत्येक परिवार के पास औसतन 0.57 हेक्टेयर जमीन है। इस जगह का सहभागिता प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन तथा कृषि जलप्रबंधन ने ग्रामवासियों के जीवन में सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक रूपातंरण लाने में महत्वपूर

अवसादीकरण
तैरती खेती : जलवायु संकट से प्रभावित भूमिहीन समुदायों की आजीविका के लिए जलमग्न भूमि का उपयोग
नदी मार्ग में गाद का जमाव जल निकासी को अवरुद्ध करता है, जिससे स्थायी जल भराव की समस्या (4000 हेक्टेयर/प्रति वर्ष) लगातार बढ़ रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक पानी के साथ जीने के अलावा अन्य विकल्प नहीं है। अतः बांग्लादेश के दक्षिण मध्य जिलोंः बरिशाल, गोपालगंज, मदारीपुर, सतखीरा और पिरोजपुर के किसानों ने, अपने पुरखों से विरासत में मिली सदियों पुरानी, मृदा-रहित, स्थिर, उथले पानी पर तैरती खेती/कृषि (फ्लोटिंग एग्रीकल्चर), की बाढ अनुकूलित ऐतिहासिक प्रणाली को पुनर्जीवित किया है, जो कि इसी आर्द्रभूमि इलाके में लगभग 250 साल पहले विकसित हुई थी। इन तैरते खेतों की जरूरत अब लगभग पूरे साल ही रहती है। तैरती क्यारियों के रूप में प्राप्त 40% अतिरिक्त कृषि योग्य भूमि, भूमिहीन किसान के लिए आय के अवसर पैदा करती है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार, इस पारंपरिक कृषि तकनीक पर भरोसा कर बांग्लादेशी किसान तैरती क्यारी के प्रति 100 वर्ग मीटर से S (डॉलर) 40/₹3280 का औसत लाभ कमाते हैं। Posted on 19 Jun, 2024 08:09 PM

बदलती "वैश्विक जलवायु" का प्रतिकूल प्रभाव हमारे जन-जीवन, पर्यावरण और कृषि व्यवसाय पर "जलवायु संकट" यानी घातक प्राकृतिक आपदाओं (तूफान, भारी वर्षा व हिमपात, बाढ़, सूखा और हिमस्खलन आदि) की बढ़ती आवृत्ति एवं तीव्रता के रुप में स्पष्ट दिखाई दे रहा है। बाढ़ का मुख्य कारण, वैश्विक ऊष्मन है, जिससे गर्म हवा, अधिक जल वाष्प धारण कर सकती है। परिणामस्वरूप कम समय में भारी वर्षा हो रही है, जिससे मृदा क्षरण व

तैरते खेत (फोटो साभार - netzfrauen.org)
पर्यावरण-अनुकूलन के लिए विविधीकृत खेती अपनाएं
एक विविधिकृत फार्म क्या है? क्या पानी-पर्यावरण और पर्यावरण अनुकूलन में उपयोगी है? Posted on 04 May, 2024 11:23 AM

एक विविधिकृत फार्म यह है जिसमें कई उत्पादन उद्यम या आय के स्रोत हैं, लेकिन आय का कोई भी स्रोत उस स्रोत से कुल आय के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं है। ऐसे खेतों के किसान आय के अनेक स्रोतों पर निर्भर रहते हैं

विविधिकृत खेती
बूंद-बूंद उपयोग: धान के खेत में मछली पालन
जानिए धान संग मछली पालन के तहत किसान क्या कर सकता है? धान की खेती और मछली पालन क्या एक साथ संभव है। Posted on 03 May, 2024 03:51 PM

धान संग मछली पालन के तहत किसान एक साथ धान की खेती और मछली पालन कर सकते हैं। इस तरह की खेती का चलन चीन, बांग्लादेश, मलेशिया, कोरिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, थाईलैंड मैं बढ़-चढ़कर है। भारत में हालांकि ये तकनीक अभी कम प्रचलित है, लेकिन इसे बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत में भी झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश समेत कई इलाकों में धान संग मछली पालन के जरिए किसान दोगुनी कमाई कर रहे हैं। भारत में मछली की प

धान संग मछली पालन
बढ़ने लगी हैं पुंछ में भी केसर उत्पादन की संभावनाएं
"पिछले 5 वर्षों से हम केसर को ट्रायल बेस पर लगा रहे थे और 1 साल पहले पूर्ण रूप से इसकी खेती शुरू कर चुके हैं. आप यकीन मानिए परिणाम इतना अच्छा आया कि हमारी प्रोग्रेस को देखते हुए "स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी - यूनिवर्सिटी ऑफ जम्मू" की ओर से हमें 10 लाख रुपए की धनराशि दी गई है. हमारे यहां केसर की पैदावार को देखते हुए जम्मू विश्वविद्यालय के इस विभाग की प्रोफेसर ज्योति ने हमारी बहुत मदद की है. उन्होंने विश्वविद्यालय के पीएचडी स्कॉलर ताहिल भट्टी और एसडीओ, हॉर्टिकल्चर, पुंछ के मोहम्मद फरीद के मार्गदर्शन में हमें रिसर्च के लिए 10 लाख दिए और कहा कि आप यह खोज करें की पुंछ में केसर उत्पादन की और कहां-कहां संभावनाएं हो सकती हैं Posted on 19 Apr, 2024 03:48 PM

"पिछले 5 वर्षों से हम केसर को ट्रायल बेस पर लगा रहे थे और 1 साल पहले पूर्ण रूप से इसकी खेती शुरू कर चुके हैं. आप यकीन मानिए परिणाम इतना अच्छा आया कि हमारी प्रोग्रेस को देखते हुए "स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी - यूनिवर्सिटी ऑफ जम्मू" की ओर से हमें 10 लाख रुपए की धनराशि दी गई है. हमारे यहां केसर की पैदावार को देखते हुए जम्मू विश्वविद्यालय के इस विभाग की प्रोफेसर ज्योति ने हमारी बहुत मदद की है.

केसर के बिरवे
खाद्य विज्ञान की समझ से ही सुखद मानव जीवन की रचना संभव है
जानिए हरयाणा के शीशपाल हरडू जी के सहयोग और प्रयोग से प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन मिला और उनकी मेहनत रंग लायी Posted on 26 Mar, 2024 12:43 PM

शीशपाल हरडू जी मेरे मित्र हैं जो हरियाणा के सिरसा जिले के ऐलनाबाद ब्लाक के गाँव कुमथल के रहने वाले हैं। कोआपरेटिव विषय में पी.एच.डी.

केरल: हर जिले में जैविक खेती पर जोर
जानिए केरल के कोच्चि शहर में स्थित एलुवा स्टेट सीड फार्म के बारे में जिसे भारत का पहला कार्बन न्यूट्रल सीड फार्म है घोषित किया गया है क्यूंकि यह फार्म रसायनिक उर्वरकों का उपयोग नहीं करता है Posted on 15 Mar, 2024 02:28 PM

केरल के कोच्चि शहर में थुरुथ आइलैंड है। यह देश का पहला कार्बन न्यूट्रल सीड फार्म यानी ऐसा खेत जहां से कार्बन उत्सर्जन नहीं होता है। इसे एलुवा स्टेट सीड फार्म नाम दिया गया है। यह एक आदर्श फार्म है, क्योंकि इस फार्म में केमिकल्स का बिल्कुल इस्तेमाल नहीं होता है। 13.5 एकड़ में फैले इस फार्म में केवल नाव, बोट या रेलवे ट्रैक से चलकर ही पहुंचा जा सकता है। कोई भी वाहन इस फार्म में प्रवेश नहीं कर सकता

केरल में जैविक खेती पर जोर
कीटनाशकों का पर्यावरणीय प्रभाव और विकल्प
जानिए कीटनाशकों का पर्यावरणीय प्रभाव के बारे Posted on 13 Mar, 2024 05:40 PM

कीटनाशक प्राकृतिक या रासायनिक रूप से संश्लेषित यौगिक हैं जो संपूर्ण खाद्य और पशु आहार उत्पादन चक्र के दौरान कीटों को रोकने, नष्ट करने, खदेड़ने या नियंत्रित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। कीटनाशक कई तरह के होते हैं। जैसे, पौधों के विकास नियामक, डिफॉलिएटर्स (पत्तीनाशी), डेसिकैंट्स (जलशोषक), फलों की तादाद कम करने वाले रसायन, और परिवहन एवं भंडारण के दौरान फसल को खराब होने से बचाने वाले रसायन जिन्ह

कीटनाशकों का पर्यावरणीय प्रभाव और विकल्प
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